Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाहा-८०१ 47 1513 / 1-612 ||14||-513 // 515||-514 // 267|| मा.-267 // 516||-515 २६८ापा.-268 11517||-518 // 269 / / भा.-289 ||२७०|भा.-370 (806) काउस्सग्गमि ठिओ चिंते समुयाणिए अईआरे जानिगमप्पयेसो तत्य उदोसे मणे कुत्रा (807) ते उ पडिसेवणाए अनुलोमा होति वियडणाएय पडिसेववियडणाए एत्य उघउरो भवे भंगा (202) बक्खित्तपराहुत्ते पमत्ते मा कयाइ आलोइ आहारंच करेंतो नीहारं था जइ करेइ (801) कहणाईवक्खित्ते विकहाइ पमत्त अत्रओ व मुहे अंतरमकारए वा नीहारे संक मरणं वा (810) अवविखत्ताउत्तं उवसंतमुवट्ठिअंच नाऊणं अनुत्रवेतुमेहावी आलोएना सुसंजए (811) कहणाइ अवक्खित्ते कोहाइ अगाउले तदुवउत्ते संदिसहत्ति अनुत्रं काऊण विदिनमालोए (812) न वलंचलं भासंपूयं तह ढड्ढरं च वज्जेजा आलोएज्ज सुविहिओ हत्यं मतंच वावारं (813) करपायभमुहिसीसऽच्छिउट्ठमाईहिं नट्टिनाम वलणं हत्यसरीरे चलणं काए य भावेय (814) गारस्थियभासाओ य घजए भूय ढड्ढरं च सरं आलोए वावारं संसट्ठियो व करमत्ते (815) एयद्दौसविमुकूकं गुरुणो गुरुसम्मयस्स वाऽऽलोए जंजह गहियं तु मवे पदमाओजा भवे चरिमा (816) कालेय पहुप्पते उद्याव्या ओवावि ओहमालोए देला गिलाणगस्स व अइच्छइ गुरूव उचाओ (817) पुरकम्मंपच्छकम्मे अप्पेऽसुद्धे य ओहमालोए तुरियकरणमिजं से नसुन्झई तत्तिअंकहए (818) आलोइत्ता सव्वं सीसंसपडिग्गहं पमञ्जित्ता उड्ढमहो तिरियंमी पडिलेहे सवओप्सव्वं (819) उड्ढे पुप्फफलाई तिरिय मारिसाणडिमाई खीलगदारुगआवडणरक्खणा अहो पेहे (020) ओणमओपवडेझा सिरओ पाणा सिपमजेजा एमेव उग्गहमिवि मा संकुडणे तसविणासो (821) काउंपडिग्गहं करयलंमि अद्धं च ओणमित्ताणं भत्तं वा पाणं वा पडिदंसिझा गुरुसगासे (822) ताहे य दुरालोइय पत्तपाणएसणमेसणाए उ अगुस्सासे अहवा अनुग्गाहादी उ झाएजा (823) विणएण पट्टवित्ता सम्झायं कुणइतो मुहुत्तागं पुब मणियाय दोसा परिस्समाईजढ़ा एवं / / 518 // -517 H512||-518 ||52011-510 // 52118-520 ॥२७१||भा.-271 ||272|| मा.-272 // 273 // मा.-273 ॥२७४||पा.-274 // 522 / / -521 For Private And Personal Use Only

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