Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 50 मोहनिम्नुत्ति * (860) // 55311-552 // 5541-553 // 55511-664 115561-555 // 557 / 1-656 // 558||-557 // 55911-658 // 5601-659 // 56111-580 (860) एवं एगस्स विही मोत्तब्बे वनिओ समासेणं एमेव अणेयाणविजं नाणतंतयं वोच्छं (861) अतांतबालवुड्ढा सेहाएसा गुरू असहुबग्गो साहारणोग्गहालद्धिकारणा मंडली होइ (862) नाउ नियट्टणकालं वसहीपालोय मायणुप्पाहे परिसंठियऽच्छदवगेम्हणट्ठया गच्छमासन (863) असई य नियत्तेसुंएक्कं चउरंगुलूणमाणेसु पक्खिविय पडिग्गहगंतत्यऽच्छदयं तुगालेजा (864) आयरियअभावियपाणगठ्ठया पायपोसधुवणवा होइ यसुहं विवेगो सुह आयपणं च सागरिए (865) एक्कं व दो व तिन्नि व पाए गच्छप्पमाणमासज्ज अच्छदवस्स मरेज्जा कसबीए विगिंचेझा (1866) मूहूंगाईमक्कोडएहिं संसत्तगंच नाऊणं गालेग्नछब्मएणं सउणीधरएणं वदवंतु (867) इय आलोइयपट्टविअगालिए मंडलीइ सवाणे सज्झायमंगलं कुणइ जावसव्ये पडिनियत्ता (868) कालपुरिसे व आसज्ज मत्तए पक्खिवित्तु तो पढमा अहवाविपडिगहगंमुयंति गच्छं समासज्ज (869) चित्तंबालाईणं गहाय आपुछिऊण आयरिसं जमलजणणीसरिच्छो निवेसई मंडली थेरो (870) जइ लुद्धोराइणिओ होइ अलुद्धोविजोऽवि गीयत्यो ओमोवि हुगीयस्थो मंडलिराइणि अलुद्धो (871) ठाण दिसि पगासणया भायण पखेवणाय भाव गुरू सो वेवय आलोगो नाणत्तं तद्दिसाठाणे (852) निक्खमपदेस मोत्तुं पढमसमुद्दिस्सगाण ठायंति सज्झाए परिहाणी भावासन्नेवाईया / (873) पुव्वमुहोराइणिओ एक्को य गुरुस्स अभिमुहो ठाइ गिण्हइवपणामेइ व अभिमुहो इहरहाऽयन्ना (844) जो पुण हवेञ्ज खमओ अतिउच्चाओ व सो बहिं ठाइ पढमसमुद्दिट्ठो वा सागारियक्खणट्ठाए (875) एक्केक्कस्स य पासंमि मालयं तत्य खेलमुग्गाले कट्ठऽहिए व छुडभइमा लेवकडा भवेवसही (876) मंडलिभायणभोयण गहणं सोही य कारणुव्वरिते भोयणविही उ एसो मणिओ तेलुक्कदंसीहिं (877) मंडलि अहराइणिआ सामायारी य एसजा भणिआ पुन्वं तु अहाकडगा मुच्चंति तओ कमोणियरे // 562||-581 // 563||-662 // 564||-563 // 281 // मा.-281 // 282 // मा.-282 ||565||-584 // 566||-585 // 567||-568 283 // पा.-283 For Private And Personal Use Only

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