Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(५७९)
जोइनिपुत्ति - (५७२) (५७२) निव्वोदगस्स गहणं केई माणेसुअसुइ पडेसेहो गिहिमायणेसु गहणं ठिय वासे मीसिअंछारो
॥३५६||-355 (५७३) गुरुपच्चक्खाणगिलाणसेहमाईण धोवर्ण पुव्यं तो अप्पणा पुवमहाकडे य इतरे दुवे पच्छा
॥३५७||-356 (५७) अच्छोइपिट्टणासुतं न धुवे धावे पतावणं न करे परिभोगमपरिभोगे छायातव पेह कल्लाणं ।
॥३५८||-367 (५०५) इगपागाईणं बहुमझे विजुयाइ निन्छइओ इंगालाई इयरो मुम्मुरमाई य मिस्सोउ
॥३५९||-368 (५७६) ओदणवंजणपाणगआयामुसिणोदगं च कुम्मासा डगलगसरखसूई पिप्पलमाई य परिभोगो
॥३६०1359 (५७७) सयलयधणतणुवायाअतिहिम अतिदुद्दिणे य निच्छिइओ
ववहार पाय इमाई अक्कत्तादी य अच्चित्तो। t३६१||-360 (५७८) हत्यसयमेग गंता दइउ अचित्तो बिइय संमीसो तइयंमि उ सचित्तो वत्थी पुण पोरिसिदिणेहिं
॥३२||-361 दइएक वत्यिणा वा पओयणं होमवाउणा मुणिणो गेलनंमि व होञ्जा सचित्तमीसे परिहरेजा
॥३६३||-982 (५८०) सब्बो वऽणंतकाओसछित्तो होइ निच्छयनयस्स ववहाराउ असेसो मीसो पव्ययरोट्टाई
॥३६४।।-383 (५८१) संथारपायदंडगखोमिअकप्पाइ पीढफलगाई ओसहमेसजाणि य एमाइपओयणं तरुसु
॥३६५||-364 (५८२) बियतियचउरोपंचिंदिया य तिप्पपिइंजत्य उ समेति सट्ठाणे सट्ठाणे सो पिंडो तेण कञ्जमिणं
॥३६६||-365 (५८३) बेइंदियपरिभोगो अक्खाण ससंखसिप्पमाईणं तेइंदियाण उद्देहिगाइजंदा वए विजो
॥३६७||-368 (५८४) चउरिदियाण मक्खियपरिहारो आसमक्खिया देव
पंचिंदिअपिंडंमि उ अब्बवहारी उ नेरइया (५८५) चम्मट्ठिदंतनहरोमसिंगअमिलाइछगणगोमुत्ते
खीरदाहिमाइयाणं पंचिंदिअतिरिअपरिमोगो ॥३६९||-368 (५८६) सञ्चित्तो पव्ववण पंथुवदेसे य भिक्खदाणाई सीसद्विय अधित्ते मीसहि सरक्खपहपुच्छा
॥३७०||-969 (५८७) खमगाइकालकजातिएसु पुछेज देवयं किंचि पंथे सुमासुभेवा पुच्छेज व दिव्यमुक्ोगो
॥३७१11-370 (५८८) अह होइ लेवपिंडो संजोगेणं नवण्ह पिंडाणं नायव्यो निष्फनो परूयणा तस्स कायव्वा
॥३७२।-371 (५८९) अब्बक्कालिअलेवं मणंति लेवेसणा नविअ दिवा ते वत्तव्दा लेवो दिट्ठो तेलुकदंसीहिं
॥३७३||-372
॥३६८1-367
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