Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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४२९/-428
ओइनिति - (१८०) (१८०) वेंटल पुट्ठो न याणे आयत्रातीणि वजए ठाणे सुद्धं गवस उंछं पंचऽइयारे परिहरंतो
|२५||-424 (१८१) जहणेण चोलपट्टो वीसरणालू गहाय गळेजा उस्सग काउ गमणे मत्तयऽगहणे इमे दोसा
२६-426 (६८२) आयरिए यगिलाणे पाहुणए दुल्लहे सहसलामे संस्तमत्तपाणे मत्तगगहणं अनुत्रायं
|२७||-428 (६८३) पाउग्गायरियाई कह गिण्डउ मत्तए अगहियमि
जा एसि विराहणयादवभाणेजं दवेण विणा ॥२२९॥ मा.-229 (१८४) दुलहदव्वं वसिया धयाइ गिण्हे उवग्गहकरंतु पउरऽप्रपाणलंपो असंघरे कत्तय सिया उ
॥२३०॥ मा.-330 (६८५) संसत्तमत्तपाणे मत्तग सोहेउ पक्खिवे उपरि संसत्तगंच नाउं परिडवे सेसरक्खड्डा
॥२३॥ भा.-231 (६८६) गेलनकद्धतुरिओ अण्णमोगेणं चलित अग्गहणं
अणमोग गिलाणवा उस्सगादीणि नवि कुञा |२८11-427 (६८७) जस्स यजोगमकाऊण निग्गमोनलाई तु सहितं
नययत्यपायमाई तेणं गहणे कुणसुतम्हा (१८८) सो आपुछि अनुत्राओसागामे हिंड अहव परगामे सग्गामे सइकाले पत्ते परगामे वोच्छामि
॥४३01-429 (१८९) पुरतो जुगमायाए गंतूणं अन्नगामबाहिठिओ तरुणे मज्झिम येरेनय पुच्छाओ जहा हेट्ठा
11४३१1-430 (१९०) पायपमजणपडिलेहणा उमाणदुग देसकालंमि अप्पत्तेऽबिय पाए पपस पत्तेय पायदुगं
॥४३२||-431 (१९१) समणं समणि सावग साविय गिहि अन्नतिथि बहि पुछे
अत्यीह समण सुबिहिया सिडे तेसालयं गच्छे ॥४३३।।-432 (९९२) समणुनेसुपवेसो बाहिं ठविऊण अन्न किइकम्म खग्गूडे सनेसुंठवणा उच्छोभबंदणयं
॥४३४||-433 (१९३) गेलनाइ अवाहा पुच्छिय सयकारणं च दीवित्ता
जयणाए ठवणकुले पुच्छइ दोसा अजयणाइ ||४३५|-434 (३१५) दाणे अभिगमसड्ढे संमत्ते खलु तहेव मिछत्ते मामाए अचिपत्ते कुलाई जयणाइ दायंति
॥४३८1-436 (९९५) सागारि वणिम सुणए गोणे पुत्रे दुगुछियकुलाई हिंसागं मामागं सवपयत्तेण बजेा
४३७1-438 (९९६) बाहाए अंगुलीय य लट्ठीइ व उजुओ ठिओ संतो नपुच्छेज न दाएजा पञ्चावाया पवे दोसा
॥३८||-437 (१९७) अगणीण व तेणेहि व जीवियववरोवणं तुपडिणीए
खरओ खरिया सुण्हा नढे यहक्खुरे संका
॥४३९1-438
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