Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ ओहनिमुक्ति - (०८) ॥३८०11-379 २०३।। पा.-203 ॥३८१11-380 ॥३८२।।-381 11३८३11-382 ॥३८४||-383 ॥३८५||-384 ॥३८६|1385 ॥३८७||-386 (६०८) पुन्यण्हं लेवदाणं लेवग्गहणं सुसंवरं काउं लेवस्स आणणार्लिपणे य जयणाविही वोच्छं (६०९) पुष्यण्ह लेवगहणं काहंति चउत्यगं करेजाहि असहू वासिअमत्तं अकारऽलंभेय दितियरे (६१०) कयकित्तिकम्मोछंदण छंदिओ भणइ लेवऽहं घेत्तुं तुबअमंपिअत्विअट्ठो आमंतं कित्तिअंकिंवा (1) सैसेवि पुच्छिऊणं कयउस्सग्गो गुरुंपणमिऊणं मल्लगलवे गिण्हइ जइ तेसिंकप्पिओ होइ (६१२) गीयत्यपरिग्गा हिअ अयाणओ रूवमल्लए धेत्तुं छारं च तत्थ वनइ गहिएतसपाणरक्खट्टा (६१३) वच्चंतेण यदिई सागारिदुचकगं तु अब्बासे तत्येव गहो गहणं न होइ सो सागरिअपिंडो (६१४) गंतुंदुचक्कमूलं अनुत्रवेत्ता पहुंति साहीणं एत्य य पहुत्ति भणिए कोई गच्चे निवसभीवे (६१५) किं देमित्ति नरवई तुझं खरमक्खिआ दुचक्केत्ति सोअपसत्यो लेवो एस्थय भद्देतरे दोसा (६१६) तम्हादुचकवाणा तस्संदिद्वेण वा अनुनाए कडुगंधजाणणहा जिंघे नासंतु अफुसंता (६१७) हरिए बीए चले जुत्ते वच्छे साणे जलहिए पुढवी संपाइमा सामा महवाते महियाऽमिए (६१८) हरिए बीएस तहाअनंतरपरंपरेविय चउकको आया दुपयं च पतिट्ठियति एत्यपि चउभंगो (११९) दव्ये भावे पचलंदन्वमिदुपट्ठिअंतुजंदुपयं आया य संजमंमि अदुविहा उ विराहणा तत्य (१२०) भावचलं गंतुमणं गोणाई अंतराइयं तत्य जुत्तेवि अंतरायं वित्तस चलणे यआयाए (६२१) बच्छो भएणनासइभंडिक्खोभेण आयवावती आया पवयण साणे काया य मएण नासंति (०२२) जो चेव य हरिएसुसो वेव गमो उ उदगपुढवीसु संपाइमा तसगणा सामाए होइ घउमंगो (६२३) वाउंमि वायमाणेसु संपयमाणेसु वातसगणेसु नाणुनायं गहणं अभियस्सयमा विगिचणया (६२४) एयद्दोसविमुक्कं घेत्तुछारेण अक्कमित्ताणं चीरेण बंधिऊणं गुरुमूल पडिक्कमालोए (१२५) दंसिअछंदिअगुरुसेसएसु ओमत्यियस्स भाणस्स काउं चीरं उपरि रूयं च छुभेज तो लेवं ॥३८८11-387 ॥२०४३ मा.-204 ॥२०५॥ भा.-205 ॥२०६॥ पा.-200 ॥२०७॥ पा.-207 ॥२०८॥ पा.-208 ||२०९॥ पा.-209 ॥३८९||-988 ॥३९०।-389 For Private And Personal Use Only

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