Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १९७|पा.-97 ओरिजुत्ति - (१२०) (३२०) अविहरिअविहरिओ वा जइ सड्ढो नत्यिनत्यि उनिओगो नाए जइओसण्णा परिसंति तओय पारस 1॥१५॥पा.-85 (३२१) संविग्गमणुष्णाए अइंति अहवा कुले विरंचंति अण्णाउंछं वा सह एपेव य संजईवागे १९६ापा.-96 (३२२) एवं तु अण्णसंभोइयाण संभोइयाण ते चेव जाणित्ता नियंघंवत्यव्येण स उ पमाणं (१२३) असइ वसहीए वीसुंराइणिए वसहि मोयणागम्म असाहू अपरिणया का ताहे वीसुंसहूवियरे ॥९मा.-98 (३२४) तिण्हं एककेण समं मत्तट्टो अपणो अवड्डे तु पच्छा इयरेण समंआगमणविरेगु सो चेव । ॥९९||पा.-99 (३२५) चेइयवंद निमंतण गुरूहि संदिट्ठ जो वऽसंदिह्रो निबंधे जोगगहणं निवेय नयणं गुरुसगासे ।।१००||मा.-100 (३२६) अविहरियमसंदिट्ठो चेइय पाहुडियमेत्त गेहंति पाउग्गपउरलंभे नऽम्हे किंवा न मुंजंति 11१०१॥पा.-101 (३२५) गच्छस्स परीमाणं नाउ घेत्तुंतओ निवेयंति गुरुसंघाडग इयरे लद्धं नेयं गुरुसमीवं ||१०२|| मा.-102 (३२८) मा वह गिह गुरुजोगं एवइसंवा नियत्तह य मंते अणिवेइए अ गुरुणो हिंडताणं इमे दो सा 11१५प.-15 (३२९) दरहिडिय वुड्ढाई आगंतुसमुद्दिसतिजं किंचि दव्वविरुद्धं च कयं गुरूहि किंचि वा मुत्तं ||१६||प.-16 (३३०) एगागिसमुद्दिसगा भुत्ता उ पहेणएण दिलुतो हिंडणदव्वविणासो निद्धं महुरंच पुव्वंतु ||१०३॥ मा.-103 (३३१) सत्रिति भत्तद्विय आवस्सग सोहेउं तो अइंति अवरोहे अब्भुटाणं दंडाइयाण गहणेक्कवयणेणं ||२१२||-211 (३३२) खुडुलबिगढ़तेणा उण्हं अवरहि तेण उपएवि पक्खित्तं मोतूर्ण निक्खिवमुक्खित्तमोहेणं ||२१|-212 (३३३) अप्पा मूलगुणेसुं विराहणा अप्प उत्तरगुणेसु अप्पा पासत्याइसुदाणग्गहसंपओगोहा ||२१४||-213 (३३४) भुंजह मुत्ता अम्हे जो वाइछे अमुत्त सह भोझं सच्चंततेसि दाउं अन्नं गेहंति वत्यव्वा (३३५) तिणि दिणे पाहुनं सव्वेसिं असइ बालबुड्ढाणं जे तरुणा सग्गामे वत्थव्वा बाहिं हिंडति ॥२१६1-215 (३५६) संघाडगसंजोगो आगंतुगभद्दएयरे बाहिं आगंतुपा व बाहिं वत्यव्वगमद्दए हिंडे ||२१७||-216 (३३७) वित्यिण्णा खुइलिआ पमाणजुताय तिविह वसहीओ पढमविइयासु ठाणे तत्य य दोसा इमे होति ||२१८||-217 ||२१५/-214 For Private And Personal Use Only

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