Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओहनियुति - (२८४) ॥९३||पा.-93 ||१७८11-177 ॥१७९||-178 १८०||-179 ||१८१1-180 (२८) १८२||-181 ||१८३||-182 ||९४पा .94 |१८||-183 (२८४) सुदणे वीसुक्यातो पडिबझंतो पजो उन मिलेडा जगण अप्पडिबझण जइवि चिरेणं न उवहम्मे (२८५) पुरओ माझे तह मगओय ठायंति खितपडिलेहा दाइंतुधाराई भावासण्णाइरक्खट्टा (२८१) डहरे मिक्खग्गामे अंतरगामंमि ठावए तरुणे उवगरणगहण असहू व ठावए जाणगंचेगं (२८७) दूरुहिमखुलए नव मह अगणी य पंत पडिणीए संघाडेगो धुवकम्मिओ वसुण्णे नवरि रिक्खा (२८८) जाणंतठिऍता एउ वसहीए नत्यि कोइ पडियरइ अण्णाएऽजाणतेसु वावि संघाइधुवकम्मी जइ अब्मासे गमणंदूरे गंतुंदुगाउयं पेसे तेविअसंथरमाणा इंती अहवा विसर्जति (२९०) पदमबियाए गमणं गहणं पडिलेहणा पवेसोउ काले संघाडेगो वसंथरंताण तह चेव (२९७) पढमबितियाएँ गमणं बाहिं ठाणं चचिलिमिणी दोरे धितूण इंति वसहा वसहिं पडिलेहिउँ पुब्दि (२९२) याघाए अण्णं मग्गिऊण चिलिमिणि पमज्जणा वसहे पत्ताण भिक्खवेलं संघाडेगो परिणओवा (२९३) सव्वे वा हिंडता वसहिं मागंतिजह व समुयाणं लद्धे संकलियनिवेयणं तु तत्थेव उ नियट्टे (२९०) एक्को धरेइ भाणं दोण्हवि पवेसए उवहिं सव्योउवेइ गच्छो सबाल वुड्ढाउलो ताहे (२१५) चोयगपुच्छा दोसा मंडलिबंधमि होइ आगमणं संजमआयचिराहण वियालगहणे यजे दोसा (२९६) अइभारेण उ इरियं न सोहए कंडगाइ आयाए भत्तट्ठिय बोसिरिया अइंतु एवं जढा दोसा (२९७) आयरियवयण दोसादुविहा नियमा उसंजमायाए वन्चहन तुझसामी असंखड मंडलीए वा (२९८) कोऊहल आगमणं संखोभेणं अकंठगमणाई ते वसंखडाईवसहिं वन दंतिजवन (२११) भारेण वेयणाए न पेहए थाणुकंट आयाए इरियाइसंजमंसि य परिगलमाणेण छकाया (३००) सावयतेणा दुविहा विराहणाजा य उवहिणा उ विणा तणअग्गिगहणसेवण वियालगमणे इमे दोसा (१०१) पविसणमग्गणठाणे वेसिथिदुगुछिए प बोद्धब्बे सज्झाए संयारे उचारे चेव पासवणे ॥१८५11-184 ||१८६||-185 १८७/-186 ||१८८||-187 ||१८९||-188 ||१९011-189 ||१९१11-190 ॥१९२।।-191 |१९३||-192 For Private And Personal Use Only

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