Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाही-४१० ॥२४१11-240 IR४२||-241 ४३।1-242 २४४||-243 ॥२४५||-244 ॥२४६।।-245 २४७11-246 |१२४८||-247 ॥२४९||-248 {४१०) आयरिए आपुच्छा तस्संदिढे व तमि उपसंते घेइयगिलाणकताइएसुगुरुणो यनिग्गमणं (४११) भण्णइपुबनिउत्ते आपुछिन्ता वयंति ते समणा अणमोगे आसन्ने काइयउच्चारभोमाई (४१२) दवमाइनिगयं वा सेझायर पाहुणं च अप्पाहे असई दूरगओऽविय नियत्तंइहराउते दोसा (१३) अण्णं गापच वएइमाइंकलाई तत्य नाऊणं तत्यविअप्पाहणया नियत्तई वा सईकाले (१४) दूरहिअ खुर्लए नव भड अगणी य पंत पडिणीए पाओग्गकालऽइक्कम एककगलंमो अपजत्तं (४१५) पाउगाईणमसई संविगंसण्णिमाइ अप्पाहे जइ य चिरंतो इयरे ठवित्तु साहारणं भुंजे (१६) जाऍदिसाए उगया भत्तं घेत्तुंथओपडियरंति अणपुच्छनिग्गयाणं चउद्दिसं होइ पडिलेहा (४१७) पंथेणेगो दो उप्पहेण सदं करेति वचंता अक्खरपडिसाडणया पडियरनिअरेसि मागेणं (४१८) गामे व गंतु पुच्छे घरपरिवाडीऍ जत्थ उन दिवा तत्थेव बोलकरणं पिंडियजणसाहणंचेव (४१९) एवं उग्गपदोसा विजढा पइरिक्कया अणोमाणं मोहतिगिच्छा य कया विरियायारो य अनुचिण्णो (४२०) अनुकंपायरियाई दोसा परिक्कजयणसंसद्धं पुरिसे काले खमणे पढमालिप तीसु ठाणेसु (१२) चोयगवयणं अप्पाऽणुकंपिओ ते य मे परिचत्ता आयरियअनुकंपाए परलोए इहपसंसणया (१२२) एवंपि अपरिचत्ता काले खवणे य असहुपुरिसे य कालो गिम्हे उ मवे खमगोया पढमबिइएहिं (४२३) जइ एवं संसट्ठ अप्पत्ते दोसिणाइणं गहणं लंबणमिक्खा दुविहाजहण्णमुक्कोस तिअपणए (४२४) एगत्य होइ मतंबइयंमि पडिागहे दवं होइ राउग्गायरियाई भत्ते बिइए उ संसत्तं (४२५) जइ रित्तो तो दव मत्तगंमि पढमालियाएँ करणं तु संसत्तगहण दवदुलहे य तत्येव जंपत्तं (४२) अंतरपल्लीगहीयं पढमागहियं व सब्ब मुंजेशा धुवलंभसंखडीयं वजं गहियं दोसिणं वावि (४२७) दरहिडिए द माणं भरियं भोच्चा पुणोवि हिंडिज्जा कालो वाऽइक्कमई मुंजेज्ञा अंतरा सव्वं ॥२५०||-248 ॥२५१/-250 ॥१४८॥ मा-148 ॥१४९|| भL-149 १५०) प.-150 २५२0-251 ।१२५३।।-252 ॥२५४1-253 ॥२५५||-254 For Private And Personal Use Only

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