Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१४||-119 ओहनियुत्ति - (१७६) (१७६) तेणं परंपासत्याइएसुनवसइयऽकालचारीसु गहिआवासगकरणं ठाणं गहिएणऽगहिएण ॥१०९11-108 (१७७) निसिअतुयट्टण जग्गण विराहणभएण पासि निखिवइ पासत्याईणेवं निइए नवरं अपरिमुत्ते 19900-109 (१७८) एमेव अहाछंदे पडिहणणा शाण अज्झयण कन्ना ठाणडिओ निसामे सुवणाहरणा य गहिएणं ॥१991-110 (१७१) असिवे ओमोयरिए राय द्वे भए नदुट्टाणे फिलिअगिलाणे कालगवासे ठाणटिओ होई ॥११२||-111 (१८०) तत्येव अंतरा वा असिवादी सोउ परिरयस्तऽसई संचिक्खे जाव सिवं अहवावी ते तओ फिडिआ 11991-112 (१८१) पुत्रा व नई घउमासवाहिणी नविय कोइ उत्तारो तत्यंतरा व देसोव उडिओ न य लक्ष्मइ पवत्ती IE५||मा.-65 (१८२) फिडिएसुजा पवित्ती संयं गिलाणो परं व पडियरइ कालगया व परती ससंकिए जाव निस्संकं ६६|पा.-88 (१८३) वासासुंउब्मिण्णा बीयाई तेण अंतरा चिट्टे तेगिच्छि मोइ सारक्खणहढे ठाणमिच्छति (१८४) संविग्गसंनिभद्दग अहप्पहाणेसु भोइयधरे वा ठवणा आयरियस्सा सामायारी पउंजणया ११५||-114 (१८५) एवं ता कारणिओ दूइज्जइ जुत्त अप्पमाएणं निक्कारणिअंएतो चइओ आहिंडिओ चेय ||१६||-115 (१८६) जह सागरंमि मीणा संखोहं सागरस्स असहता निति तओ सुहकामी निग्गयमित्ता विनस्संति (१८७) एवं गच्छसमुद्दे सारणवीईहिं चोइया संता निति तओ सुहकामी मीणा व जहा विनस्संति 1994-117 (१८८) उवएसु अनुवएसा दुविहा आर्हिडआ समासेणं उवएस देसदसण अनुवएसा इमे होति ॥११२||-118 (१८९) चक्के थूभे पडिमाजम्मण निक्खमण नाण निव्वाणे संखडि विहार आहार उवहि तह देसणहाए ॥१२०11-119 (१९०) एते अकारणासंजयस्स असमत्ततदुभयस्स मवे तेचेद कारणा पुण गीयत्यविहारिणो भणिआ ||१२१11-120 (१९१) गीयत्यो यविहारो बिइओ गीयत्यमीसिओ मणिओ एतो तइअविहारो नाणुनाओ जिणयरेहि (१९२) संजमआयविराहण नाणे तह दंसणे चरितेय आणालोव जिणाणं कुबइ दीहं तु संसारं |१२३||-122 (१९३) संजमओ छक्काया आयाकंटऽद्विजीरगेलने नाणे नाणायारो दंसणचरगाइ वुग्गाहे ॥६७||पा.-87 ||११७||-116 ॥१२२11-121 For Private And Personal Use Only

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