Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 605
________________ पउसीया-पंचवीस ९६१ पउसिया (बकुसिका) ज ३।११०१ पंचगुमितल (पंचांगुलितल) ज ३१५६ पएस (प्रदेश) प १४,११४८१५८,५९२१६४, पंचोलिया (पञ्चाङ्गुलिका) प १४०।१ २०६४।११:३।१८०।५।१३२,१३६ से १४५, पंचगि ((गच्चाग्नि) उ ३०५० १६०,१६१,१७६ १६५,२१४,२१६:१०१२ से पंदण उय (पञ्चनवति) ज ४।११८ १,१८ से २४,२६ से ३०,१११५०; १५।१११; पंचतीत (पञ्चविंशत् ) सू १३१२५ १५॥१२,२५,५४ ; १५११४१ ; २०१।१; पंचपएसिय (पञ्चप्रदेशिक) प १०१० २२१५६,३६८२ ज २१५:३।११७,५१३८%, पंचम (पञ्चमी पंचम (पञ्चय) प ३।१६,१८३,६८०१; ६६१,३,७१७८ १०११४।३;१२१३२:१७१६५; २२१४१,४२, पएसठ्ठया (प्रदेशार्थ) प ३।१२२,१८०,५१२४, ३३११८:३६१८५,८७ ज १८८,४११०६; २८,६८,७८,८६,११५,१३६,१३८,१४०,१४३, ७।१०१ से ११०,१३११ सू१०७७.१२७; १४७,१५०,१५४,१६३,१६६,१६३,१६७ ६३३१११२,६,१२१६,१३१० उ २।२२, २००,२१४,२१८,२२१,२३०,२४२:१०॥३,२७ 1७४,७६,१५४,१६६,१६७,५११,३,४५ से २६:१५॥१३,२६,३१,१७१४४ से १४६, पंचमी (पटनमी) ज ३१२४१४ १२:४५२,११८, २११०४ उ ३१४४ १२५,१२११४ सु १०।६०; १२१२८ पओग (प्रयोग) प ११११५,१६११ से १८ पंचमठिय (परमप्टिक) ज ३।२२४ उ ३।११३ __ ज ३।१०३,११५,१२४,१२५ पंचय (पञ्चक) प २३।२६,२७,६१ पओगगति (प्रयोगगति) प १६।१७ से २१ । पंचराइय (पञ्चरात्रिक) ज २७० पओगि (प्रयोगिन् ) १६१० से १५ पंचलइया (चलतिकर) ज ३१८८ पओय (प्रयोग) उ ३।१०१ पंचम (चवर्ण) ज १।१३,२१,२६,३३,३७, पंक (पङ्क) प १६।५.४ ३६,२७,५७,१२२,१२७,१४७,१५०,१५.६, पंकगति (पङ्कगति) प १६१३८,५४ १६४:३१,७,२६,३६,४७,५६,६४,७२,८८, पंकरपभा (पङ्कप्रभा) प १५३,२१,२०,२४; ११३,१३३,१३८,१४५,१६२,४१६३,११४; ३.१४,२०,२१,१८३:४११३ से १५६१३, ५१३२,४३ सू २०१२ ७६,७७,१०११;२०१६,१०,४०,२१६७:३३१६, if पंच पिणय (पंचणिक) ज ३।११७ काज १६ उ ११२६,२७,१४० पंचध (पञ्चविध) सू २०१७ पंकबहुत (पङ्कवहुल) ज २११३२ पंचविह (पञ्चविध) प १४,१४,१५,५५,५८,६६, पंकय (पङ्कज) ज ३।३५ १२४,१३३,१३८,१११७३;१३१४,६,१२,२४ पंकावई (पावती) ज४।१९३ से १६६ से २६,२८; १५॥१८ से ६०,६२,६३,६.५ से पंकावती (पावती) ज ४१६५ ६७; १६।५,१७,२५,२७,२११२,३,५५,७५,७६, पंच (पञ्नन्) प ११७४१९ च ३।३ सू १० १४:२३।१७,२३,२५,२७,४०,४१,४३,४४,४६, उ १२ ५६३४।१७,१८ ज २२१४५:३१८२,१८७, पंच (पंचम) प १०१४।४ से ६ २१८,७।१०५,१११,११२ सू १०।१२७ से पंचक (पञ्चक) प २३।१.४ १२६:१६।२२।२१ उ ३३१५,८४,१२१,१६२ः पंचग (पञ्चक) प २३११५५,१३७,१८० ४१२४:५१२५ ज७१३१२ पंचवीस (पञ्चविंशति) सू ११२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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