Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 630
________________ पुच्छिज्ज-युद्धविच्काइय .६६६१,१५१,१५१३६ से ४०,४५,२०१३६; २२१५६२३।१३ से २३:२८।११,१२,५७,५८ ज०१८,२०,२३,४८3३३३५,४१,५५,६२, ८१,८६,६८,१०८,१७२, ६।१,३,७१४०,५०, २९८५१३,१५,१६,५५.५८,६२,६७,७०, ७३,८८,६६,१३०,१३३,१३५,१३७,१३६, १४२,१४४,१४६,१४६,१५३,१५६,१५६, १६२,१६५,१६८,१७१,१७३,१७६,१८०,१८३, १८६,१८६,१६२,१६६,१६६,२०२,२०६, २१०,२१३,२१७,२२०,२२३,२२७,२२६, २३३,२३६,२३८,६१२४ से २६,२८ से ४२, ७४,७६,७७,११०,११२,६४२२;१०१७ से १३, २२ से २४;१२।२४,३३,१४।१५,१५१४ से ६, ६,१०,४२,५७,८१,८२,८५,८६,६२,६३; १६.४,६ से ८,१७:१४,१७,२८,२६,३३,४१ से ५५,६५,१०२,१०४,१३१ से १३४,१५८, १६२,१६४,१८१२६,६२,११२,११८,१२१, १२३,१२४,१२७:१६।२,३,५,२०१४.७,१६, ३०,३५,४१ से ४४,४६ से ४८,५३,५४; २११३७,६७, २२१६८,६६,६५,६८२३६४८ से ५०,६५,६६ से ७६,८१,८३ से ८६,८८ से ९०,६५,९८,६६,१०१ से १०४,१०६,१११ से ११८,१२८,१२६,१३१ से १३३,१५४,१७३; २४।६,८,२६।६,१०,२८७६ से ६७,६६, १०६,११०,१२६,१४५,२६१८,११,२०,२१; ३०।१२,१८,२०,२२,३१।२,३,६,३२१३,४,६, ३३१७ में ६,२० से २६,२८,२६,३२,३३,३६, ३४।७ से ६,११,३५।३.११,१६,२२,३६१३४, ५०,५१.५५ से ५७ ज ४।२०४,२१०,२५८, २५६७।६३.७४,७७,८३,८४,१०८,१४२ से १४४ सू ९३१०।१५१,१८११० से १३,३५, ३६:१९३५,८,११,१५,१६,२१,३१,३५,३८ उ २०१३;३१८,२१,२६,६४,१५६,१६६ ; ४।५; ५१२३ पुच्छिज्ज (प्रच्छ) पुच्छिज्जइ प ३।१२१ पुच्छिज्जति प १११८२,८३,८५,१७।३०; २११६१,२८।११५,११७ पुच्छिज्जति प२८॥१४५ पुठ्ठ (स्पृष्ट) ५ २६४११०,११,१११६१,६२, पुड (पुट) ज ५११४,१७ उ १५५,५७,६१,६२, ८०,८२,८६,८७,३।११४ पुढवि (पृथ्वी) प ११२०११,११४८३८११५३, २।१,२० से २७,३० से ३७,४१ से ४३,४६, ४८ से ५१,६३,६४,३१११ से २३,१८३:४।४ से २४,६१० से १६,४५,५१,७३ से ७८,८०; ८०१,२,६।८८,६१,६२,१००,१०६:१०१ से ३,११।२६ से २८,१५॥५५२,१६१२६; १७१३३१८११०७.११६.२०१६ से १०,३८ से ४२,४६,५६,२११५२,५६,६६,८५,८७, ६०:२२२२४; २८१२३,३०१२५ से २८, ३३१३ से ८,१६,१७ ज २।१६,१७,६८; ३१२२४; ४।२५४,७११२१४,२११,२१२ सू१०।१२६१४ पढधिकाइय (पृथ्वीकायिक) प १४१५,१६, २१ से ३,३१२,५० से ५२,५४,६० से ६३,६५ ७१ से ७४,७६,८४ से ८७,८६,६५,१५६ से १५८.१८३,४१५६ से ६४,६८,५१३,६,१०, ५२,५३,५५,५६,५८,५६,६२,६३,६।१६.५३, ६२,८२,८३,८६,८६,१०२,१०३,११५; ७।४;८१३;६।४,१६:१२१२०,२१,२३,२५,२६, १३.१६,१५१२० से २८,५३,५४,७२ से ७४, ७६.१३७;१६।१२,१७१६५.१०२,२०१२४; २।३७, २८१२८,२६।२० ज २०७२ सू २१ पुढधिकाइयत्त (पृथ्वीका कत्व) प १५।६६,३६।२२ ज ७१२१२ पुढविक्काइय (पृथ्वीकाक) प १२।३,२४; १५१५७,८५,१६।४१७।१८ से २२,४०,६०, ८७,६४,६५,६७,१०२,१८१२६,३२.३८,४०, पुढविकाय (पृथती माय) सू ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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