Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 629
________________ पीइमण-पूच्छा ४७,४८,५६,५७,६४,६५,७२,७३,१३३,१३४, ३६८१ ज १७ सू १११४ १३८,१३६,१४५,१४६ पुक्खरद्ध (पुष्करार्ध) प १५२५५:१७११६५ पीइमण (प्रीतिमनस्) ज ३१५,६,८,१५,१६,३१,५३, सू१६२०२,५ ६२,७०,७७,८४,६१,१००,११४,१४२,१६५, पुक्खरवर (पुष्करवर)सू १९१२ से १६:२११३,२८ १७३,१८१.१८६,१९६,२१३,५।२१,२७ पुक्खरवरदीवड्ढ (पुष्करवरद्वीपार्ध) ५ १६।३० उ ११२१,४२,३।१३६ म १६०२१ पीइवद्धण (प्रीतिवर्धन) ज ७.११४।१ पुक्खरवरोद (पुष्करबरोद) सू १६०२८ से ३१ पीढ (पीठ) १३६६१ उ ३१३६ पुक्खरसारिया (पुष्करसारिका) प १६८ पीढग्गाह (पीठग्राह) ज ३.१७८ पुषखरिणी (पुष्करिणी) प २।४,१३,१६ से १६, पीढमद्द (पीठमद) ज ३१९,७७ २८,१११७७;२११८७ ज १।१३,३३,२११२; पीण (प्रीणय ) पीणेति ज ५१५७ ४।१४०,१५४,२२१ से २२४,२३५,२४३ पीण (पीन) ज २०१५ पुवखरोद (पुष्करोद) ज ५।५५ सू १६।२८ से ३१ पीणणिज्ज (प्रीणनीय) १ १७११३४ पुक्खल (पुष्कल) ज ४११६६ पीणित (प्रीणित) सू १२।२६ पीतय (पीतक) सू २०१२ पुक्खलकूड (पुष्कलकूट) ज ४११६८ पीति (प्रीति) उ १११११,११२ पुक्खलचक्कट्टिविजय (पुष्कलचक्रवति विजय) ज४।१६४,१६५ पीतिदाण (प्रीतिदान) ज ३।१५० पुक्खल विजय (पुष्कलविजय) ज ४११६७ पोतिवद्धण (प्रीति वर्धन) सू १०।१२४११ पीय (पीत) ज ३१२४,३१ पुक्खलसंवट्टय (पुष्कलसंवर्तक) ज २।१४१,१४२ पीयकणवीरय (पीतकरवीर) प १७११२७ पुक्खलावइचक्कवट्टीविजय (पुष्कलावतीचक्रवर्ति पीयबंधुजीवय (पीतबन्धुजीवक) ५ १७११२७ विजय) ज ४।२०० पीयासोग (पीताशोक) र १७११२७ पुखलाई (पुष्कलावती) ज ४१६६ पीलु (पीलु) 4 ११३५११ पुक्खलावईकूड (पुष्कलावतीकूट) ज ४११६६ पीवर (पीपर) ज २१५७.१०८ पुग्गल (पुद्गल) ५ २८॥३५ पीसिज्जमाण (विष्यमाण) ज ४११०७ पुच्छ (प्रच्छ) पुच्छड चं ११४ उ २०१२ पोहगपाय ('पोहग'पान) उ ३।१३० पुच्छिज्जति सू १०।६२ पूच्छित्सामि उ १११७,३२६ पुंख (पुख) ज ३।२४ पुंज (पुञ्ज) प २।३०,३१,४१ ज २।१०:३७,८८ पुच्छणी (प्रच्छनी) ५१११३७।१ ४।१६६:५७ पुच्छा (पृच्छा) प २१४४,४१५० से ५४,५४ से ६४, पुंडरीका (पुण्डरीका) ज ५१११११ ६६,६७,६६,७०,७१,७३,७४,७६,७७,८०,८१ पुंडरोगिणी (पुण्डरीकिणी) ज ४०२००११ से ८७.८६,६०,६२ से ६४,६६,६७,६६,१००, पंडरीय (पुण्डरीक) ५ २१४८ ज ३।१०:४१४६,२७४ १०२.१०३,१०५ से ११२,११४ से १३०, पुक्कार (पुक्का रय) पुक्कारेंति ज ५१५७ १३२ से १३६,१४१ से १४८,१५० से १५७, पुक्खर (पुष्कर) ५ १५६५५३१ ज २१६८ १५६ से १६४,१६६,१६७,१६६,१७०,१७२, सू १६२१३१ १७३,१७५ से १८२,१८४ से २०६,२०८, पुक्खरकणिया (पुष्करकणिका) परा३०,३१,४१, २०६,२११,२१२,२१४ से २६३,२९५,२६६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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