Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Pannavanna Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 627
________________ पास-पिंगायण १८३ प २१६४।१३,१५१४६ से ४६,३३.२ से १३, २४३,५११,६,२५ उ ११४६,६४,२१६५।१३, १५ से १८,३४१६ से ६,११,१२ ज ३११०५, २०,२७,३१ ११३ उ १५३६ पासति र १२३७,४१,४४, पासायव.सय (प्रासादावतंसक) ज ४।१०२,११६, ४५,१७१०६ से १११:२३।१४;३०।२५ से । २२१,२२२,२२३११,२२४।१।। २८,३६१८०,८१ पासह ज ३।१२४ पासि (पाव) ज २३,२५,२८,३२,३।१७६; पासिज्जा उ ११५ पासिहिति ज २।१४६ ४.१,४३,६२,७२,७८,८६,६५,६६,१०३,१७८, पासिहिसि उ ११२२ पासे इ उ ११५७ पासेज्जा १८३,२००,२०१:५१४६,६०,६६ उ १२१ पासिङ (द्रष्टुम्) १ ११४८।५७ पास (पास) १८६ पासिउकाम (द्रष्टुकाम) प २३।१४ पास (पाश्च) ज २।१५,३१३२,४।१४२,२०२,२१२, पासित्ता (दृष्ट्वा ) १२३३१४ ज २०६० उ ११६ ५।१७,४३,४६,६०,६६, ७१३१,३३ सू ४।३,४ ३३१०१,४११३:५११३ २०१२ उ ३।१२,१४,२१,२८,९६,४६,५१,७६; पासित्ताणं (दृष्ट्वा ) उ ११३३,२१८ ४११०,११,१३,१५,१६,२०,२८ पासियत्व (द्रष्टव्य) प २३।१४ पाश (पाश) ज ३.१०६ पासेत्ता (दृष्ट्वा ) उ ११५७ पासंडबहुल (पापण्डबहुल) ज १११८ पाहाण (पाषाण') ज ५११६ पासंडधम्म (पापण्डधर्म) ज २११२६ पाहुड (प्राभूत) ज ३८१ च ३१२,३,५१४ सु ११७; पासग (पाशक) ज ७१७८ ___६१४,२५,१०।१७३ पासग्गाह (पाशग्राह) ज ३।१७८ पाहुडत्थ (प्राभृतस्थ) सू २०६ पासणया (दर्शन,पश्यत्ता) प १११।७,३०।१,५,८,१० पाहुडपाहुड (प्राभृतप्राभूत) च ५।४ स ११६ पासथविहारि (पाश्चस्थविहारिन्) उ ३११२० पाहुणिय (प्राधुनिक) ज ७१८६।१ सू २०१८ पासमण (श्यत्) ज २१७१ पाहुय (प्राभूत) प १२५० पासवण (प्रस्रवण) : १८४ पि (अपि) उ ३३० पासाईय (प्रासादीय प्रासादिक) प २१३१,४८,५६, पिड़ (पितृ) उ १६१,५४३ ६३ १२३,४१,२।१५:४३,६,१३,२५,२६, पिइदेवया (पिलदेवता) सू१०।८३ ३३,४६,१४६; १६२ उ ५१६ पिउ (पितृ) ज ७१३०,१८६।४ उ ११५२,५४, पासाण (पाषाण) ज ३।१०६४।३,२५,७४१७८ पासाद (पासाद) १६५ पिउसेणकण्ह (त्रिसेनकृष्ण) उ ११७ पासादच्छाया (प्रसादच्छाया) मू ६४ पिंगल (पिङ्गल) ज ३१६,१६७१४,२२२ पासासठित (प्रासादसंस्थित) सू४१२ पिंगलक्ख (गिलाक्ष) ज ७।१७८ पासादीय (प्रासादीय,प्रासादिक) प २।३०,४१,४६, पिंगलक्खग (पिंगलाक्षक) ज २।१२ ६४ ज ११८,३१,२।१२,१४,४।२७ मू १११ पिंगलग (चिंगल क) ज ३।१६७ उ५४,५ पिंगलय (सिंगलक) ज ३३१६७४१,१७८ सू २०१२, पासाय (प्रासाद) ज ११४२,४३ ; २।२०,६५,३।३२, ८,२०१८४ ८२,१८७,२१८,२१६,४१३,४६,५०,५३,५६, पिंगायण ( गायन) ज ७१३२।३ सू १०११०८ १०६,११२,११६,११६१२०,१४७,१५५,१५६। २२१ से २२४,२२६,२३५,२३७,२३५,२४०, १.दे ११२६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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