Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र उन जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहर्त्त । वे जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर ? गौतम ! दोनों प्रकार से मरते हैं। भगवन् ! वे जीव अगले भव में कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में, तिर्यंचों में, मनुष्यों में और देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! तिर्यंचों में अथवा मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं । भन्ते ! क्या वे एकेन्द्रियों में यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे एकेन्द्रियों, यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न होते हैं, लेकिन असंख्यात वर्षायुवाले तिर्यंचों को छोड़कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त तिर्यंचों में उत्पन्न होते हैं । अकर्मभूमि वाले, अन्तरद्वीपवाले तथा असंख्यात-वर्षायुवाले मनुष्यों को छोड़कर शेष पर्याप्त-अपर्याप्त मनुष्योंमें उत्पन्न होते हैं भगवन् ! वे जीव कितनी गति में जानेवाले और कितनी गति से आने वाले हैं ? गौतम ! वे जीव दो गतिवाले और दो आगतिवाले हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे जीव प्रत्येक शरीरवाले और असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण कहे गए हैं। सूत्र - १५ बादर पृथ्वीकायिक क्या हैं? वे दो प्रकार के हैं-श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय और खर बादर पृथ्वीकाय । सूत्र-१६ __ श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय क्या है ? श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय सात प्रकार के हैं-काली मिट्टी आदि भेद प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना यावत् वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण । इस प्रकार सब कथन पूर्ववत् जानना । विशेषता यह है कि इनके चार लेश्याएं हैं | शेष वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह, यावत् नियम से छहों दिशा का आहार ग्रहण करते हैं । ये बादर पृथ्वीकायिक जीव तिर्यंच, मनुष्य और देवों से आकर उत्पन्न होते हैं । देवों से आते हैं तो सौधर्म और ईशान से आते हैं । इनकी स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है। हे भगवन् ! ये जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर मरते हैं ? गौतम ! समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी । भगवन् ! ये जीव वहाँ से मर कर कहाँ जाते हैं ? कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! ये तिर्यंचों में और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । तिर्यंचों और मनुष्यों में भी असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते, इत्यादि । भगवन् ! वे जीव कितनी गति वाले और कितनी आगति वाले हैं ? गौतम ! दो गति वाले और तीन आगति वाले हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! वे बादर पृथ्वीकाय के जीव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात लोकाकाश प्रमाण हैं। सूत्र-१७ अप्कायिक क्या है ? अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म अप्कायिक और बादर अप्कायिक । सूक्ष्म अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं, जैसे कि पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण । इस प्रकार सब वक्तव्यता सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों की तरह कहना । विशेषता यह है कि संस्थान द्वार में उनका स्तिबुक संस्थान है। शेष सब उसी तरह कहना यावत् वे दो गति वाले, दो आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात कहे गए हैं। सूत्र - १८ बादर अप्कायिक का स्वरूप क्या है ? बादर अप्कायिक अनेक प्रकार के हैं, ओस, हिम यावत् अन्य भी इसी प्रकार के जल रूप । वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । इस प्रकार पूर्ववत् कहना । विशेषता यह है कि उनका संस्थान स्तिबुक है। उनमें लेश्याएं चार पाई जाती हैं, आहार नियम से छहों दिशाओं का, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देवों से उपपात, स्थिति जघन्य से अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष जानना । शेष बादर पृथ्वीकाय की तरह जानना यावत् वे दो गति वाले, तीन आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात कहे गए हैं मुनि दीपरत्नसागर कृत्- (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 8Page Navigation
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