Book Title: Agam 14 Jivajivabhigam Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र १४, उपांगसूत्र-३, 'जीवाजीवाभिगम' प्रतिपत्ति/उद्देश-/सूत्र सूत्र-९ जो दो प्रकार के संसारसमापन्नक जीवों का कथन करते हैं, वे कहते हैं कि जीव त्रस और स्थावर हैं। सूत्र-१० स्थावर किसे कहते हैं ? स्थावर तीन प्रकार के हैं-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक । सूत्र-११ पृथ्वीकायिक का स्वरूप क्या है ? दो प्रकार के हैं-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । सूत्र - १२ सूक्ष्मपृथ्वीकायिक क्या हैं ? दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । सूत्र - १३ सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का २३ द्वारों द्वारा निरूपण किया जाएगा- १. शरीर, २. अवगाहना, ३. संहनन, ४. संस्थान, ५. कषाय, ६. संज्ञा, ७. लेश्या, ८. इन्द्रिय, ९. समुद्घात, १०. संजी-असंज्ञी, ११. वेद, १२. पर्याप्ति, १३. दृष्टि, १४. दर्शन, १५. ज्ञान, १६. योग, १७. उपयोग, १८. आहार, १९. उपपात, २०. स्थिति, २१. समवहतअसमवहत मरण, २२. च्यवन और २३. गति-आगति । सूत्र-१४ हे भगवन् ! उन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन-औदारिक, तैजस और कार्मण | भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से भी अंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण है । भगवन् ! उन जीवों के शरीर के किस संहननवाले हैं ? गौतम ! सेवार्तसंहनन वाले । भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संस्थान क्या है ? गौतम ! चन्द्राकार मसूर की दाल के समान है। भगवन् ! उन जीवों के कषाय कितने हैं ? गौतम ! चार-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय । भगवन् ! उन जीवों के कितनी संज्ञाएं हैं ? गौतम ! चार-आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा । भगवन् ! उन जीवों के लेश्याएं कितनी हैं ? गौतम ! तीन-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या । भगवन् ! उन जीवों के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? गौतम ! एक, स्पर्शनेन्द्रिय | भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात हैं ? गौतम-तीन, १. वेदना-समुद्घात, २. कषाय-समुद्घात और ३. मारणांतिक-समुद्घात । भगवन् ! वे जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ? गौतम ! असंज्ञी हैं । भगवन् ! वे जीव स्त्रीवेदवाले हैं, पुरुषवेदवाले हैं या नपुंसकवेदवाले हैं ? गौतम ! वे नपुंसकवेदवाले हैं । भगवन् ! उन जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ हैं ? गौतम ! चारआहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति और श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति । हे भगवन् ! उन जीवों के कितनी अपर्याप्तियाँ हैं ? गौतम ! चार-आहार-अपर्याप्ति यावत् श्वासोच्छ्वास-अपर्याप्ति । भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्-मिथ्यादृष्टि हैं? गौतम ! वे मिथ्यादृष्टि हैं । भगवन् ! वे जीव चक्षुदर्शनी हैं, अचक्षुदर्शनी हैं, अवधिदर्शनी हैं या केवलीदर्शनी हैं ? गौतम ! वे जीव अचक्षुदर्शनी हैं । भगवन ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! वे अज्ञानी हैं । वे नियम से दो अज्ञानवाले हैं-मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी | भगवन् ! वे जीव क्या मनोयोग वाले, वचनयोग वाले और काययोग वाले हैं ? गौतम ! वे काययोग वाले हैं । भगवन् ! वे जीव क्या साकारोपयोग वाले हैं या अनाकारोपयोग वाले ? गौतम ! साकार-उपयोग वाले भी हैं और अनाकार-उपयोग वाले भी हैं। भगवन् ! वे जीव क्या आहार करते हैं ? गौतम ! वे द्रव्य से अनन्तप्रदेशी पुद्गलों का, क्षेत्र से असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों का, काल से किसी भी समय की स्थितिवाले पुद्गलों का और भाव से वर्ण वाले, गंधवाले, रसवाले और स्पर्शवाले पुद्गलों का आहार करते हैं । भगवन् ! भाव से वे एक वर्ण वाल, दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चार वर्ण वाले या पंच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ? गौतम ! स्थानमार्गणा की अपेक्षा से एक, दो, मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (जीवाजीवाभिगम) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 6Page Navigation
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