Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६६०
पाहावागरणाई कलेवराकिण्ण - पडिय - पहरणविकिण्णाभरणभूमिभागे', नच्चंतकबंधपउरभयंकरवायस-परिलेंतगिद्धमंडल-भमंतच्छायंधकारगंभीरे। वसु-वसुह-विकंपितठव पच्चक्खपिउवणं परमरुद्द-बीहणगं दुप्पवेसतरगं
अभिवडंति' संगामसंकडं परधणं महंता ।। लुटाक-पदं ६. अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावई चोरवंदपागड्डिका' य अडवीदेसदुग्गवासी काल
हरित-रत्त-पीत-सुक्किल-अणेगसचिधपट्ट-बद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा
धणस्स कज्जे ॥ सामुद्दियचोर-पदं ७. रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाकुलाकुलविनोयपोतकलकरेंतकलियं,
पायालसहस्स-वायवसवेगसलिल उद्धम्ममाण-दगरयरयंधकार, वरफेणपउरधवलपुलंपुलसमुट्ठियट्टहासं, मारुयविच्छब्भमाणपाणिय-जलमालुप्पील-'हुलियं, अवि य" समंतनो खुभिय-लुलिय-खोखुब्भमाण-पक्खलिय-चलियविपुलजलचक्कवालमहानईवेगरियापूरमाण - गंभीरविपुलावत्तचवल-भममाणगप्पमाणच्छलंतपच्चोणियत्तपाणिय • पधावियखरफरुसपयंडवाउलियसलिलफुटुंतवीचिकल्लोलसंकुल, महामगर-मच्छ-कच्छभ-अोहार गाह-तिमि-सुसुमार-सावय-समायसमुद्धायमाणक-पूरघोरपउरं, कायरजण-हिययकंपणं, घोरमारसतं महन्भयं भयंकरं पतिभयं उत्तासणगं अणोरपारं आगासं चेव निरवलंब, उप्पाइयपवणधणियनोल्लिय-उवरुवरितरंगदरिय-अतिवेगवेग' चक्खुपहमुत्थरंतं, कत्थइ गंभीरविपुलगज्जिय-गुंजिय-निग्घाय-गरुयनिवतित-सुदीहनीहारि-दूरसुव्वंतगंभीरधुगधुगेंतसई, पडिपहरुभंत-जक्खरक्खसकुहंडपिसायरुसियतज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं', बहुप्पाइयभूयं', विरचितबलिहोमधूवउवचार-दिन्नरुधिरच्चणाकरणपयत - जोगपयय-चरियं, परियंतजुगंतकालकप्पोवमं, दुरंत, महानईनईवइ - महाभीमदरिसणिज्ज, दुरणुचरं विसमप्पस दुक्खुत्तारं दुरासयं लवणसलिलपुण्णं असिय-सिय-समूसियगेहि दच्छतरेहि वाहणेहिं अइवइत्ता समुहमज्झे हणति गंतण जणस्स पोते ॥
१. विणिकिण्णा ' (क)।
५. लुप्ततृतीयकवचनदर्शनात् (व) । २. अभिवदंति (क); अभिवयंति (ग); अति- ६. ०पिसायपडिगज्जिय° (व); पिसायरुसिपतंति (व)।
यतज्जाय° (वृपा)। ३. पागट्टिका (ख, च)।
७. उबद्दवाभिभूयं (वृपा)। ४. हुलियकं पि य (क,ग); हुलिकं तं पि य ८. दुरणुच्चरं (ग)। (ख, घ); हुलियं तं पि य (च)।
६. हत्थतरकेहि (क, ख, ग, घ, च)।
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