Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वृत्ति
१११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२
११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६
अणते जाव समुप्पण्णे
११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो
११।१६४ अणगारे जाव इहमागए
११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे
२।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं
१।१२।३ अणिवा जाव अमणामा
११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं
१११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं
१।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि
१।१।११३ अण्णं च तं विउलं
१८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे
श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज
१।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए
११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए
१॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया
शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए
१११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए
श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए
१।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि
११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए
१११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए
श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए
१३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे
१३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था
११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं
११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा
११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए
१।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए
११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए
श११११२ ११८।२०५
१३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४
११५२६६
११११६१ ११११११७-११६
१।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४
१८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१
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