Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 155
________________ अग्गमित्ताए वा जाव विहङ अन्य जाय ववरांविज्जसि असा जाय खओवसमेण अहि य जाव वागरणेहि अट्ठेहि य जाव निष्पट्ट अड्ढे चत्तारि अड्डे जहा आनंदो नवरं अहिरणको डीओ सकसान निहाणपउताओ अट्ठहि अहि ससाओ पवि अदुवा दस गो साहस्सिएणं वर्ण अड्डे जाव अपरिभू अारए जहा चुलीपिया तहा चिलेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ अणारिए जाव समाचरति अणे जाव अरिसक्का रपरककमेणं अण्णा कदाइ बहिया जाव विहरइ अपच्छिम जाव अणवखमाणे अपच्छिम जाव भक्त्तपाण अपच्छिम जाय भूरियरस अपच्छिम जाव बागरितए अभगुणाएतं बेबस कहे जान अभिगयजीवाजीवे जान पडिकामाणे अभिगयजीवाजीने जाव विहरइ अभिगयजीवेजी णं जाव अण इक्कमणिज्जेणं अभीए जाव विहरद अभीयं जाव धम्मभाणोवगयं अहीण जाव सुरुवा अहीण जाव सुरुवाओ २८ Jain Education International ७/२६ ३४४ ८१३७ 91%E ६१२५ ६१३,४,१०१३, ४ ८/३-५ १।११ ५४२ ३४४,४२४२ ६१२१,२२,२३,७१२३,२४ १६५४. १।७२ ८१४६ ८४६ ८४६ १1३६ १०५५ ८।१६ ११३१ अभीयं जाव पासइ २४०३।२३ अभीयं जाव विहरमाणं २१२८,३० अवहरद वा जाव परिवेश ७/२६ ! अस्सिणी भारिया सामी सामास जहा आणंदो तहेब गिम्मिं पडिज सामी बहिया विहरह असोगणिया जाव विहरसि 1 १।५-१५. ७११७ १|१४ 디 २०२६,३५ ३२२ २१२४ For Private & Personal Use Only ७।२६ २/२२ १।६६ ६४२८ ६।२८ २/३,४ १।११-१३ ओ०सू० १४१ ३१४२ ३०४२ ६।२० ना० १।१।१६६ १/६५ १/६५ १०६५ ८।४६ ११७१-७८ ओ० १० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० ० सू० १६२ २।२३ २/२३ २।२४ २१२४ ७/२५ २।५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ www.jainelibrary.org


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