Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निगंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ . पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक: श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन (जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि: विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १३ (२५०० वां निर्वाण दिवस) पृष्ठांक ! ६२५ मूल्य : ८० मुद्रक :एस. नारायण एण्ड संस (प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO. UWASAGADASÃO ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Vāćanā PRAMUKHA ĀCĀRYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria Director: Agama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kärtic Krishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers: S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणठवं ॥ विलोडियं लर्द्ध आगमदुद्धमेव, सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्झाण- रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभूओ स्स कालुस्स तस्स समर्पण पणिहाणपुण्वं ॥ पवायणस्स, पणिहाणपुध्वं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पहुं होकर भी आगम-प्रधान था । सत्य योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत श्रुत- सद्ध्या लीन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से । धार बहाई, जिसने श्रुत की सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत कालुगणी को विमल भाव से । सम्पादन में, - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित दुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है । चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान् बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं। संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक : पाठ-संशोधन : सहयोगी 72 18 " संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान् कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए। आचार्यश्री ऊटी ( उटकमण्ट) पधारे। वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दृष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की बात ठहरी। इस तरह नंदी गिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मातृ-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनूं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० श्री के दर्शन प्राप्त हुए । कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे। आचार्यश्री मुग्ध हुए मुनिधी नथमलजी ने फरमाया – “ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है ।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम- सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही को चैत्र शुक्ला त्रयोदशी २०१३ में लाडनूं में आचार्य दशवैकालिक सूत्र के अपने १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत आगम ग्रन्थमाला आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में - ( १ ) दसवेआलियं तह उत्तरज्भयणाणि, (२) आयारो तह आधारचूला, (३) निसीभवणं, (४) उबवाइयं और (५) समयाओ प्रकाशित हुए। रायपसेणइयं एवं सूयगडो ( प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर बे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में - (१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्भयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए समवायांग का मुद्रण कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया । तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं: (१) दशर्वकालिक एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन: एक समीक्षात्मक अध्ययन | Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त आ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं.. "धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय--ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चूना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सून्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध--- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं.–अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या बारह है-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृतदशा ६. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग। प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणु सरोदवाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं-इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका और शब्द-सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी। प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ-संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं। लेखनकार्य में कुछ ऋटियां हई हैं। कुछ त्रटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं। वे कब हुई यह निश्चय-पूर्वक नहीं कहा जा सकता। पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हई हैं, यह संभावना की जा सकती है। 'नायाधम्मकहाओ' १११५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है। स्थानांग ४११३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है। बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है. पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता । ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है। इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति रायपसेणइय सूत्र के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें-नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकहाओ १।१२:३६, १।१६।२१, १।१६।४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०।४ में 'कायवर' पाठ मिलता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर'-प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है। लिपि-दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया। निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सुत्र १) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र-दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं। इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है। लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण-विपर्यय अन्यत्र भी हआ है। 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा पचंकमण' के स्थान पर एवंकमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं। उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है। प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओक. ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट) मूलपाठ यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है। यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित यह प्रति गर्वया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है। पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इथर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए। प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं। उनमें अन्तिम श्लोक एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥१॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्मप्रदेशटीकेति ॥छ।। ४२५५ ग्रंथानं ।। वत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥१॥छ।। ग. नायाधम्मकहाओ (मूलपाठ) यह प्रति गर्धया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं ।प्रत्येक पत्र १०१ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं। प्रति जीर्ण-सी है। बीच में वावड़ी है। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घ. १५ लिपि संवत् १५५४ है । अंतिम प्रशस्ति में लिखा है - संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण दि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायक श्री सुमतिसाधसूरि । तत्पट्टे श्रीहेमविमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन ॥ साह श्री सूरा लिखापितं । जोसी पोपा लिखितं । भ्राति उज्जल संजुक्त घी लिखापितं ॥ १ ॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं । टब्बा यह प्रति १२ वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है । २. उवासगदसाओ क. उवासगदसाओ --- मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) - इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है । पत्र क्रमांक संख्या १५२ से २०२ तक है। फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है। इसकी लम्बाई १४ इंच चौड़ाई 3 इंच है । प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीब अक्षर हैं । प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् १९८६ है | अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है । ख. उवासगदसाओ --टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित) -- यह प्रति गया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पृष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है । प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४० इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओ क. ताडपत्रीय ( फोटो प्रिंट ) । पत्र संख्या २०३ से २२२ तक । विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् १९८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी १९८६ से पहले की होनी चाहिए । ख. हस्तलिखित – गधैया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति ( उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय - देखें अणुत्तरोववाइथ 'ख' प्रति -- लेखन • संवत् १४६५ है । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ॥३॥ तदंगजन्माजनि वाहडास्यः सद्धर्मकर्मार्जिन बद्धकक्ष: 1 वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंच का राजमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तदुवंशविशालकेतुः कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं बुधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ||५|| तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥ ६ ॥ तस्यार्हदंह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य । आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभूवुरभितोप्युद्योतयंतः कुलं, चत्वारस्तनया नयार्जितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तातयस्त्रिभुवाभिवस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ॥८॥ चत्वारोपि व्यधुरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातनुधनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहृदयास्तीह जैनांहिलीना ॥ ६ ॥ तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा | द्वाप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥ १० ॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण सारेण सहिता शुभा । गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पौ ॥ १२ ॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरंतरं । एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षतः ||१३|| विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण' निधि' 'वादु' मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे || १४ || गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांग पुस्तकं । दत्तेस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ॥१५॥ ॥ छ ॥ श्रीः ॥ ग. हस्तलिखित प्रति नधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त। इसके पत्र ६ तथा पृष्ठ १८ हैं । प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं । प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की लम्बाई १०२ इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं-- ॥छ। अणु त्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्त छ।। श्री: श्रीः श्री: श्री: श्रीः श्री: छ छ: प्रति का अनुमानित समय १६०० है । ५. पण्हावागरणाई-- क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ---- पत्र संख्या २२८ से २५६ ख. पंचपाठी । हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तरार्ध । यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र हैं। प्रत्येक पत्र १०४४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा बीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति को जगह-- ग्रंथान १२५० शुभं भवत् कल्याणमस्तु ।। लिखा है । लेखन कर्ता तथा लिपि-संवत का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए। ग. त्रिपाठी (हस्तलिखित)-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र १११ हैं। प्रत्येक पत्र १०x४१ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ से ८ तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वत्ति तथा बीच में कलात्मक बावडी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच बीच के कई पन्ने लप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथार १२५० ।छ। श्री ।। छ।।।। लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए। घ. मूलपाठ (सचित्र)-- पूनमचंद दुधोडिया, छापर द्वारा प्राप्त । इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं। बीच में वावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र हैं। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानत: १५७० के लगभग की होनी चाहिए ! अशुद्धि बहुल है ! च. मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति-- गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । पत्र संख्या ८३ ।' क्व. यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयल भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। _हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं--पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है ! मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू। प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्म में किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। ___ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प' और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। जैन विश्व-भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व-भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। ___ एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस। मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मकहाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशानी का छठा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्र तस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है। दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है। प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित-दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' नाथधर्मकथा) मिलता है। नाथ का अर्थ है स्वामी। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है। आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण-प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म-कथाएं' है। दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्धीकरण का उल्लेख किया है।' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पइग्णगसमवाप्रो, सून १४ ॥ २. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा । ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि-उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरा. दित्वात्पूर्वपदस्य दीन्तिता। (ख) समवायांगवत्ति, पन १०८ : ज्ञातानि- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घवं संज्ञात्वाद अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिघायकत्वात् ज्ञातानि, द्वितीयस्तु तथव धम्मकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। TOTAद . विषय-वस्तु भगवान महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म---इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मनि के लिए पांच महावतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमगोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तर तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है कि गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यत: इसी आगम में मिलता है। इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासको की धामिक कसोटी को घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखने थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं -दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिबोजन विरति ग्रहाचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सूत्र में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है'। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता हैं। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे- गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्ण । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं-अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासदेवकष्ण के छोटे भाई गजसकमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगड़ता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं ! ___ अतिमवतक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान महावीर ने उपवास और ध्यान दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान--दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया? विस्मति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्त्वार्यवातिक १२०, पृ० ७३ :... इत्येते दश बर्धमानतीर्थकरतीर्थे 1 एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृत: दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहट भाग ११० १३०: अंतयडदसा णाम अंगं चउम्बिहोवसग्गे दारुण सहिऊण पारिहेर लढण णिम्वाणं __ गदे सुदंसपादि-दस-दस-साहू तित्यं पहि वपणेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४५३..."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भाषयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुत्तरोदवाइयदसाओ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवा अंग है। इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओं' है। नंदी सत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्थानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवातिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मनियों का वर्णन है। समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग-दोनों का उल्लेख है। उसमें दस अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं। (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। (२) राजवार्तिक के अनुसार-- ऋषिदास, वान्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे--यह तत्त्वार्थवार्तिककार का मत है। धवला में कार्तिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है। उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य. १. नंदी, सून ८९ :....."तिण्णि वरगा। २. ठाणं १०१५१४ ३. (क) तत्त्वार्थवातिक ११२०, प०७३ । ...इत्येते दश वर्धमानतीर्थकरतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य विजयाद्यनुतरेषुत्पन्ना इत्येवमनुत्तरोपपादिक: दशास्या वय॑न्त इत्यनुत्तरोप पादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंमं च उब्दिहोवसम्मे दारुणे सहिपूण चउवीसहं तित्थयराणं तित्थेसु अणुत्तर विमाण गदे दस दस मुणिवसहे वण्णेदि । ४. समवाओ, पइण्णगस मवाओ ९७ । ...."दस अज्झयणा तिणि बागा......! ५. ठाणं १०१११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०१०७३ । ७. षट्खण्डागम ११२ ८. स्थानांगवृत्ति पन ४८३ : तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाऽध्ययनविभाग उक्त्तो न पूनरुपलभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त है, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है । धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कृश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पण्हावागरणाई नाम-बोघ प्रस्तुत आगम द्वादशाक्षी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है। जयधवला में 'पण्हवायरण' और तत्त्वार्थवार्तिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए है-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, पइण्णमसमवाओ सूत्र ६८। (ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०॥ ३. (क) कसायपाहुट, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं"। (ख) तत्त्वार्थवार्तिक ११२० : ''प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पण्हावागरणदसाणं दस अपझयणा एण्णता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमणपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दामपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समकाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८: पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाह प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षोम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वणित हैं। इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्देशनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी- इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख जीवन और मरण वा वर्णन करता है। उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं हैं। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो। यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नदी में प्रस्तत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नंदी चूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है । यह संभव है कि चूणिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्यवार्तिक १२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविक्षेपहेतुन्याश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२ः पण्डवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिव्वेयणीणामाग्रो चउम्विहं कहाओ पण्हादो णट्र-मटिठ चिंता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च वणेदि । १. नंदी सूत्र, चूणि सहित पृ० ६६ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯ विवागसुयं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है। स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है। १. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥ (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NAYA DHAMMAKAHÃO The title The present Agama is the sixth Anga of Dwadasangi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NAYA' and the second as 'DHAMMAKAHÃO. On combining both the Srutaskandhas, the present Agama has the title as 'NÄYADHAMMAKAHÃO. NAYA' (Jnäta) means examples. and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables. In the Jayadhawala the title of this Agama is found as 'Nähadhämmakaha' (Nathadharma-katha). Nätha' means the Lord. 'Nathadhamma-kaha' ie, the dharmakatha expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Jnātṛidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as Jnatadharmakatha". Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnätadharmakatha. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Srutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word 'Jnäta"." The family name of lord Mahavira has been given as 'Jnāta' and 'Nätha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that 'Jnātadharmakatha' or 'Natha dharmakatha' means the 'Dharmakatha by lord Mahavira. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnätṛiwanst Mahavira, is titled as NAYADHAMMAKAHA' But, on the account found in the Samwayanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 1/20. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. 5. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakathā of Jaatsiwansĩ Mabävira' does not seem to be appropriate. It has been toid there that in the 'Jnātadharmakathā', the cities and gardens etc. of the Inātas' (the persons cited) have been described,1 The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanâye' (Utkshiptajñāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Āgama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her---You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said - You are like a Kūpa-Mandūka. Who is that Kupa Manduka ? Chokha said–There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered -I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean ? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him--Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered --Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said--Is the ocean so big? The ocean-frog answered--It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao. painnagasamawao, Sutra 94. (6) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWĂSAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasangi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as ‘Upāsagadasão' in the Sramanū order the laymen serving the Sramanas are called Sramaṇopāsakas or Upāsakas. Lord Mahavira had large number of Upāsakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upāsakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upāsakas. Five Mahāyratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka, śramanopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidentiy, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upasakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upāsakas. and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawalā the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upåsakas'. They are-Darsan, Vrat, Sāmayika, Pausadhopawā. Sacitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati Anumáti-Virati, and Uddista Virati'. The Srāwakas, beginning from 1. Kasyapahuda, parti, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimás also. These Vratās and Pratimās are the two religious codes for an Upāsaka. In the Samawāyānga and the Nandi Sütra, Vrata and Pratimă both are mentioned. The Jayadhawalā gives an account of Pratimäs only. ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwādaśāngi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão". The Samwāyānga tells us that it contained ten Adhyayanas and scven Vargast. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sūri has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawāyānga Sūtra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas'. But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawāyanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kālas) of this Agama and the Nandi Sūtra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the differcnce in the number of the Uddesankälas. Thc Chūrnikār of the Nandisātra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikär, Sri Haribhadra Sūri also write that the present Āgama is given the title 'Antagadadasão as it has ton Adhyayanas in the first Vargas. The Churņikār takes the meaning of 'Daśā' as 'Awastha' (condition) also. Threc traditions are found to narrate the present Agama : firstly, that of the sa mawāyānga; secondly, that of the Tatwārtha Vārtika, and thirdly, that of the Nandi Sütra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96. 2. Nandi Sotra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ According to the first tradition, the present Agama has ten Adhyayanas, The Sthānanga Sutra supports it. The Sthänänga mentions the ten Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mätanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamali, Bhagali, Kimkaşa, Čilawaka, Pala, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwärthavartika also with some variance, such as, Nami, Matang, Somila, Ramagupta, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pala and Ambasthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Agama gives an account of the Antakṛita Kewalis, in groups of ten contemporaries of each Tirthankara. The Jayadhawala, too, supports this statement of the Tatwarthavrātika. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayanas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawayanga and the Tatwärthavarțika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the above said. headings, i... Gautama, Samudra, Sagara, Gambhira, Stanita, Aćala Kampilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänängavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vacna". This shows that the 'Vadna of the 'Nandi' is different from the 'Vaćna found in the 'Samawayanga". 35 The word 'Antagada' has two Sanskrit forms-Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gada' goes more with the Sanskrit version "Krita' so far as morphology is concerned. The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Kriṣṇa and his family. The Dikša (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krisna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Arjuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both-the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mabavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO 36 The title This Agama is the ninth Anga of the Dwadasangi. As it containsten Adhyayanas regarding the Munis born in the Anuttara Swarga class, its title is given as 'Anuttarowawaiya-Dasão'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas. The Sthänänga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavarttika groups of ten Anuttaropapätika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it. The Samawayanga mentions the ten Adhyayanas and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyayanas have not been given in it. According to the Sthänänga and the Tattwärthavarttika they read as, Rişidasa, Dhanya, Dhanya, Sunakṣatra, Kärttika, Swasthan, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśärnabhadra and Atimukta, and as Risidasa, Dhanya, Sunakṣatra, Kärttika, Nandanandana, Saubhadra, Abhaya, Wärişena, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporaries of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tattawärthavärttika. In the Dhawala we find Kartikeya instead of Karttika and Anand instead of Nanda". The present form of the Agama is different from the 'Vaćna of the Sthäniga and the Samawäyänga. Abhayadeva Sür! holds that it is a different "Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tattawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130, 4. Samawao, painnagasamawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tattwarthvarttika 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisrena and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagära and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Panhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwägaradasão" in the Sthānānga and the same reads as 'Panhāwāgaranadasásu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhäwayaraña or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga citcs its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhāsitä, Mahavira-bhăşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna. Angustha-Praśna and Bahu-Praśna.* The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Āgama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi. Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapanuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thadam 10/116. 5. (a) Samawao, pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 The title The present Agama is the 11th Anga of the Dwadasangl. The Vipäka (fruit) of the Sukrita and Duskrita deeds has been dealt with in it. therefore the title Vivägasuyam." The Sthänännga gives its title as 'Kāmma Vivägadasă." VIVAGASUYAM The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipaka and the Sukha Vipäka. The first division contains the topics on the lives of the individuals. doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affect their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthänänga Sutra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigaputra, Goträsa, Anda, Sakata, Mahan, Nandisena, Saurika Udumbara, Sahasoddaha-Amaraka, and Kumar Licéhavi. These headings have been taken from some other 'Vaćna'. The account of the Anga-Sutras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred. that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the AngaSütra is ancient and how much modern, as well as who of the Acaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. 2. Thanam 10/110. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणांई पढम अज्झयणं सू० १-४० पृ० ६३५-६५० उक्खेव-पदं १, पाणवहस्स सरूव-पदं २, पाणवहस्स तीसनाम-पदं ३, पाणवहस्स पगार-पदं ४. पाणबहस्स कारण-पदं ११, पाणवहस्स कत्तार-पदं २०, पाणवहस्स फलविवाग-पदं २३. निगमण-पदं ४०। बीयं अज्झयणं सू०१-१६ पृ० ६५१-६५६ उस्खेव-पदं१. अलियवयणस्स तीसनाम-पद २, अलियवयणस्स पगार-पदं ३. अलिय. वयणस्स फलविवाग-पदं १५, निगमण-पदं १९। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं सू० १-२६ पृ० ६५७-६६७ उक्खेव-पदं १, अदिण्णादाणस्स तीसनाम-पदं २, चोरिय-चोरपगार-पदं ३, रणो परधणहरण-पदं ४, धणत्थं जुद्ध-पदं ५, लूटाक-पदं ६, सामुद्दियचोर-पदं ७, दारुणचोर-पदं ८, अदिणादाणस्स फलविवाग-पदं ६, निगमण-पदं २६ । चउत्थं अज्झयणं सू०१-१५ पृ० ६६८-६७७ उक्खेव-पदं १, अबभस्स तीसनाम-पदं २, सुरगणस्स अबंभ-पदं ३, चक्कवट्टिस्स अबंभ-पदं ४, बलदेव-वासुदेवस्स अबंभ-पदं ५, मंडलिय-नरवरेंदस्स अबंभ-पदं ६ जूगलियाण लावग्गनिरूवगपूरस्सर अबभ-पदं ७, जुगलिगीणं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं अबंभ-पदं ८, अबंभस्स फलविवाग-पदं, निगमण-पदं १५ । पंचमं अज्झयणं सू०१-१० पृ०६७८-६८२ उक्खेव-पदं १, परिग्गहस्स तीसनाम-पदं २, देवाणं परिग्गह-पदं ३, मणस्साणं परिग्गह-पदं ४, परिग्महत्थं सिक्खा-पदं ५, परिग्गहीणं पवित्ति-पदं ६, परिग्गहस्स फलविवाग-पदं ८, निगमण-पदं १०। छटठं अज्झयणं सू० १-२५ पृ०६८३-६८८ उक्खेव-पदं १, अहिंसा-पज्जवनाम-पदं ३, अहिंसा-थुइ-पदं ४, अहिंसा-माहप्प-पदं ६, उंछगवेसणा-पदं ७, अहिंसाए पंचभावणा-पदं १६, निगमण-पदं २२ । सत्तमं अज्झयणं सू० १-२५ पृ० ६८६-६६३ उक्खेव-पदं १, सच्चस्स माहप्प-पदं २, सच्चस्स थुइ-पदं १०, सावज्जसच्च-पदं १२, अणवज्जसच्च-पदं १४, सच्चस्स पंचभावणा-पदं १६, निगमण-पदं २२ । अट्ठम अझयणं सू० १-१७ पृ० ६६४-६९७ उक्खेव-पदं १, अदत्तस्स अग्गहण-पदं २, अदत्तादाणवेरमणस्स अजोग्यता-पदं ५, अदत्तादाणवेरमणस्स जोगिता-पदं ६, अदतादणवेरमणस्स पंचभाबणा-पदं ८, निगमण-पदं १४।। नवमं अज्झयणं सू० १-१५ पृ० ६६८ ७०३ उक्खेव-पदं १, बंभचेरमाहाप-पदं २, बंभचेरथिरीकरण-पदं ४, बभचेरस्स पंचभावणा-पदं ६, निगमण-पदं १२ । दसमं अज्झयणं सू० १-२३ पृ० १००४-७१३ अक्खेव-पदं १, अकप्पदव्वजाय-पदं ३, असमिहि-पदं ६, अकप्पभोयण-पदं ७, कप्पभोयण Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ पदरोगा के वि असण्णहि पदं ६, उवगरणधारणविहि-पदं १०, समणस्स सरूवनिरूवण-पदं ११, अपरिग्गहस्स पंचभावगा-पदं १३, निगमण-पई १९, परिमेसो । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ o [?] कोष्ठक्रवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें - पृष्ठ ३. सूत्र ७ । ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४ । 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूर्ति स्थल का निर्देश है। देखें - पृष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८ ㄨ संकेत निर्देशिका ये दोनों विन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपुत्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [ [ और उसके समापन में रिक्त बिन्दु [0] रखा गया है । देखें- पृष्ठ २ सू ६ । ० काश [X] पाठ न होने का द्योतक है । देखें-- पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [0] अपूर्ण पाठ का द्योतक है। देखें- पृ० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५ । 'जहा' 'तहेव' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं | देखें-- पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० । क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-- सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'च्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें - पृष्ठ ३९६ टिप्पण १ । 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श | सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें - पृष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति सम्मत पाठान्तर । देखें- पृष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें- पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थं द्रष्टव्यम् । देखें - पृष्ठ ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ । अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ । उवा उवास गदसाओ 1 ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ । भ०, भग०, भगवई । राय० रायपसेणइयं । पण्हा पण्हावागरणाई । वि० विवागसूर्य । सू० सूयगडो । जंबु० जंबूदीवपणत्ति | Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहावा गराडं Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपखेव पदं १. जंबू' ! पढमं यणं पढमं श्रासवदारं इम' ग्रण्य-संवर विणिच्छयं पवयणस्स निस्संदं । वोच्छामि णिच्छयत्थं सुहासियत्थं महेसीहि ||१|| १. वृत्तिकारेण पुस्तकान्तरवर्ती उपोद्घातग्रन्थः उल्लिखितः । तत्र 'जंबू' इति पदं युक्तमस्ति । किञ्च तस्मिन् प्रस्तुतसूत्रस्य प्रारम्भः सुधर्मजम्बू-संवादपूर्वकः कृतोस्ति । किन्तु वृत्तिकृता स्वीकृते पाठे सुधर्मस्वामिनो नास्ति कोषि उल्लेखः । तं विना केवलं 'जंबू' इति पदं कथं युक्तं स्यात् ? इति सम्भाव्यते पुस्तकान्तरवयुपोद्घातग्रन्थस्य सम्बन्धि 'जंबू' पदं प्रस्तुतवाचनायामपि प्रविष्टम् । २. पुस्तकान्नरेषु उद्घातग्रन्थ उपलभ्यते, यथा तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था | पुष्णभद्दे चेदए । वणसंडे 1 असोगवरपायवे । पुढविसिलापट्टए । तत्थण चंपre नयरीएकोणिए नाम राया होत्था । धारिणी देवी । तेणं कालेणं तेण समहणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी ६३७ अज्जसुहम्मे नामं थेरे - जाइसंपणे कुलसंपण्णे बलसंपण्णे स्वसंपणे विणयसंपणे नाणसंपण्णे दंसण संपणे चरितसंपणे लज्जासपणे लाघवसंपणे ओयसी तेयंसी वच्चसी जसंसी जियको हे जियमाणे जियमाए जियलोभे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीस हे जीवियास- मरण-भय-विप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणहाणे करणष्पहाणे चरणप्पहाणे तिच्छ्य पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दद्वष्पहाणे लाघवप्पहाणे खतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे मतप्पहाणे वंभप्पहाणे वैयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चपहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे चरित पहाणे चोहसपुथ्वी चउनाणोवगए पंचहि अणगारसएहिं सद्धि संपरिवुड़े पुब्वा - णुपुवि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे जेणेव चंपा नगरी तेणेव उवागच्छइ जाव Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई पंचविहो पण्णत्तो, जिणेहि इह अण्हनो अणादीओ। हिंसा - मोसमदत्तं', अब्बंभ - परिग्गहं चेव ॥२॥ जारिसमो, जनामा', जह य को जारिसं फलं देति । जेवि य करेंति पावा, पाणवह' तं निसामेह ।।३।। पाणवहस्स सरूव-पदं २. पाणवहो नाम एस निच्चं जिणेहिं भणियो-पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहसियो' अणारियो निग्घिणो निस्संसो महब्भो पइभो अतिभयो बीहणो तासणग्रो अणज्जो उब्वेयणयो य निरवयक्खो निद्धम्मो निप्पिवासो निक्कलुणो निरय अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं जंबू! दसमस्स यंगस्स समणेणं जाव तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । परिसा संपत्तेणं दो सुयक्खंधा पण्णता अण्हयदारा निग्गया। धम्मो कहिओ। जामेव दिसि य संवरदारा य । पढमस्स णं भंते ! सुयक्खं. पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया । धस्स समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अझयणा तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स पण्णता? थेरस्स अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे जंबू ! पढमस्स णं सुयक्खंघस्स समणेणं कासव गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव संखित्त- जाव संपत्तेणं पंच अज्झयणा पण्णत्ता । विपुलतेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स दोच्चस्स णं भंते ! एवं चेव । एएसिणं प्रदूरसामंते उड्ढंजाण जाव संजमेण तवसा भंते ! अण्हय-संवराण समणेणं जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । संपत्तेणं के अ? पण्णत्ते ? तए णं से अज्जजंबू जायसड्ढे जायसंसए ___ ततेणं अज्जसुहम्मे थेरे जंबूनामेणं प्रणगारेणं जायकोउहल्ले, उप्पण्णसड्ढे ३, संजायसड्ढे । एवं बुत्ते समाणे जंबूअणगार एवं बयासी३, समुप्पण्णसड्ढे ३, उट्टाए उट्टेइ, उर्दुत्ता जंवू ! इणमो इत्यादि ।। (वृ) । जेणेव अज्जसुहम्मे थेरे तेणेव उवागच्छइ, ३. विणिच्छियं (घ)। उवागच्छित्ता अज्जमहम्म थेरं तिक्खुत्तो। प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ १. मोसादत्तं (क)। नमसइ, नमंसित्ता नच्चासन्ने नाइदूरे विणएणं २. जण्णामा (क)। पंजलिपडे पज्जुवासमाणे एवं क्यासी-जइ ३. पाणिवहं (ग)। णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव ४. साहस्सिओ (ग)। संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्त रोववाइय ५. व्याकरणदृष्ट्या 'अण्णज्जो' इति पदं युक्त दसाणं अयपट्टे पण्णत्ते, दसमस्स णं अंगस्स पहावागरणाणं समजेणं जाव संपत्तेणं के स्यात्। अटू पण्णते? Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदम अज्झरणं (पढ़प आसबदार) ६३६ वास-गमण-निधणो मोह-महब्भय-पवडो' 'मरण वेमणंसो' पढम अधम्म दारं ॥ पाणवहस्स तीसनाम-पदं ३. तस्स य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होति' तीसं, तं जहा-१, २. पाणवहुम्मू लणा" सरीरानो ३. अवीसंभो ४. हिंसविहिंसा तहा ५. अकिञ्चं च ६. घायणा ७. मारणा य८. वहणा. उद्दवणा १०. तिवायणाय ११. प्रारंभ-समारंभो १२. 'आउयकम्मस्स उवद्दवो" [भेय-णिट्ठवण-गालणा य संवट्टग-संखेवो'] १३. मच्च १४. असंजमो १५. कडग-मद्दणं १६. वोरमणं १७. परभव-संकामकारओ १८. दुग्गतिप्पवानो १६. पावकोवो य २०.पावलोभो २१.छविच्छेप्रो" २२. जीवियंतकरणो २३. भयंकरो २४. अणकरो२ २५. वज्जो २६. परितावण-अण्हरो २७. विणासो २८. निज्जवणा" २६. लुंपणा५ ३०. गुणाणं विराहणत्ति । अवि य तस्स एवमादीणि"नामधेज्जाणि होति तीसं पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-देसगाई। पाणवहस्स पगार-पदं ४. तं च पुण करेंति केई पावा असंजया अविरया अणिहुय-परिणाम-दुप्पयोगी" १. पयद्दप्रो (क, ग); पयट्टओ (क्व); पदस्य पर्यायवावित्वेन निर्दिष्टानि सन्ति, प्रकर्षक: (१); वृत्तिकारेण 'प्रकर्षक: यथा--आउयकम्मस्स भेओ प्रवर्तकः' इत्युल्लेखः कृतः । उत्तरवादशेषु गालणा 'प्रवर्तक' पदस्याधारण 'पयट्टओ' इति , संवट्टगो पाठः प्रनलितोभूत् । पवड्ढओ (वृपा)। संखेवो। २. मरण वेमणसो (ख, ग); मरणावेमणस्सो वृत्तिकारेणापि लिखितमिदम् - एतेषां च (व); वृत्तिकारेण असौ पाठ एकपदत्वेन उपद्रवादीनामे कतरस्यैव गणनया नाम्नां व्याख्यातः, किन्तु अस्माभिः ‘एस मारे' त्रिशत पूरणीयाः । (१।२४) इति आचाराङ्गसूत्रसन्दर्भण १०. पावलो (वृ)। पृथक्पदत्वेन गृहीतः । ११. छविच्छेयकरो (वृ)। ३. X (क)। १२. अणकरो य (ग)। ४. X (क)। १३. सावज्जो (वृपा)। ५. पाणवहं उम्मूलणा (घ)। १४. निज्जवणो (ग)। ६. उदृवण (क)। १५. लुंपणो (घ)। ७. शिवायणा (क)। १६. एवमातीणि (ग)। ८. कम्मस्सुवद्दवो (क, ख)। १७. दुप्पओया (क)। ६. अत्र कोष्ठकवर्तीनि भेदादिपदानि 'उवद्दव' मिट्ट वणं Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४० पण्हावागरणाई पाणवहं भयंकर' बहुविहं परदुक्खुप्पायणप्पसत्ता इमेहि तसथावरेहि जीवेहिं पडिणिविट्ठा, 'कि ते' ? --- ५. पाठीण-तिमि-तिमिगिल-अणेगझस -विविहजातिमंदुक्क - दुविहकच्छभ- णक्क मगर -दुविहगाह-दिलिवेढय - मंदुय-सीमागार"-पुलुय - सुंसुमार - बहुप्पगारा' जलयरविहाणाकते' य एवमादी ।।। ६. कुरंग-रुरु-सरभ-चमर-संबर - हुरब्भ -ससय-पसय-गोण- रोहिय" हय-गय-खर करभ-खग्ग-वानर-गवय-विग-सियाल-कोल-मज्जार-कोलसुणक सिरियंदलय. आवत्त-कोकंतिय-गोकण्ण-मिय - महिस - वियग्घ- छगल-दीविय-साण-तरच्छ अच्छ-भल्ल-सदूल-सीह-चिल्लला चउप्पयविहाणाकए य एवमादी ।। ७. अयगर" - गोणस - वराहि- मउलि" -कामोदर-दब्भपुप्फ-प्रासालिय"-'महोरगा उरगविहाणाकए" य एवमादी ।। ८. छोरल-सरंब"-सेह-सल्लग" 'गोधा-उंदुर'२-णउल-सरड -जाहग-मुगुस-खाडहिल वाउप्पइय"-घरोलिया" सिरीसिवगणे य एवमादी॥ ६. कादंबक-बक-बलाका-सारस-पाडासेतीय-कुलल-बंजुल-पारिप्पव-कीव-सउण___ दीविय"-हंस-धत्तर? -भास-कुलीकोस"-कोंच'"-दगतुंड-डेणियालगसूईमुह-कविल १. बहुविहभयंकरं (वृ); भयंकर (वृपा)। १४. सिरिकंदलगावत्त (ख); श्रीकन्दलका २. बहुविहबहुप्पयार (क, ख,); बहुविहं आवर्ताश्च (क) बहुप्पगारं (ग, घ)। १५. चिल्लल (क, ख, ग, घ,); चित्तला (पा)। ३. कथं तं प्राणवधं कुर्वन्तीत्यर्थः (१); तद्यथेति १६. अयकर (क, ख, ग, घ)। ___ वा (वृपा)। १७ माउलि (ख, ग, च)। ४. पाढीण (क)। १८. यासालिय (ख, घ, च); ५. तिमि (क)। १६. महोरगारगविहाणगकए (ख, ग, ध, च)। ६. मदुय (क) मदुक (ख); मंडुय (ग, घ)। २०. सरंग (ख, च)। ७. सीमागर (क)। २१. सेल्लग (ख, ग, घ, च)। ८. बहप्रकारश्चेति कर्मधारयोऽतस्तान् नतोति २२. गोधुंदर (क, ख, ग) । ___ वक्ष्यमाणेन योगः । इह च द्वितीयाबहुवचने- २३. वाउप्पिय (ख, घ)। प्येकाराभावः छान्दसत्वात् (वृ) २४. घरोलिय (क, ख, ग); घोरोलिय (घ)। ६. जलचरविधानककृतांश्च, इह च कशब्द- २५. कादंबकीबक (क)। लोपेन विधानशब्दस्यान्तदीर्घत्वम् (वृ)। २६. कीर (ग)। १०. उरभ (ख)। २७. पिपिय (क); दीपिय (ग); पीपिय (वृ)। ११. रोहिस (वृपा)। २८. धात्तरिट्ट (ख)। १२. कोक (वृपा)। २६. कुडीकोस (ग)। १३. °सुणका (क, ख, ग, घ)। ३०, कुंच (ख, घ)। Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पढमं आसवदार) ६४१ पिंगलक्खग - कारंडग'- चक्कवाग-उक्कोस- गरुल-पिंगुल'-सुय-वरहिण- मयणसाल-नंदीमुह-नंदमाणग-कोरंग-भिगारग-कोणालग - जीवजीवक-तित्तिर-वट्टकलावक- कपिजलक' - कवोतग - पारेवग' - चिडिग-हिक - कुक्कुड-बेसर-नयु रगचउरग-हरपोंडरीय-सालग" - वीरल्ल-सेण- वायस- विहंगभेणासि-चास-वगुलि चम्मदिल-विततपक्खी खयरविहाणाकते य एवमादी ।। १०. जल-थल-खग-चारिणो उ" पंचिदिए पसुगणे विय-तिय-च उरिदिए य विविहे जीवे, पियजीविए, मरणदुक्खपडिकूले वराए हणंति बहुसंकिलिकम्मा" ।। पाणवहस्स कारण-पदं ११. इमेहि विविहेहि कारणेहिं, कि ते ? चम्म-वसा-मंस - मेय-सोणिय- जग- फिप्फिस - मत्थुलिंग" - हियय -अंत - पित्तपोप्फस-दंतट्ठा, अट्ठि-मिंज-नह-नयण-कण्ण-हारुणि-नक्क-धाग-सिंग-दाहि पिच्छ-विस-विसाण-वालहेउं ।। १२. हिसंति य भमर-मधुकरिगणे रसेसु गिद्धा, तहेव तेइंदिए सर गोवकरणयाए, किवणे बेइंदिए वहवे वत्थोहरपरिमंडणट्ठा, अण्णहि य एवमाइएहि बहुहि कारणसतेहिं अवुहा इह हिंसति तसे पाणे ।। इमे य एगिदिए" वराए तसे य अण्णे तदस्सिए चेव तणुसरीरे समारंभति–अत्ताणे असरणे अणाहे अवंधवे कम्मनिगल-बद्धे अकुसलपरिणाम-मंदबुद्धिजण-दुब्बिजाणए, पुढविमए पुढविसंसिए, जलमए जलगए, अणलाणिल-तणवणस्सतिगणनिस्सिए य 'तम्मय-तज्जिएर चेव तदाहारे तप्परिणत-वण-गव-रस-फासबोंदिरूवे अचक्खुसे चक्खुसे य तसकाइए असंखे ॥ १३. १. पिंगलक्ख (क): १२. ४ (क, ख, घ)। २. कारड (घ, च)। १३. सत्त्वा इति गम्यते (७)। ३. पंगुल (ख, ग, घ, च) १४. किं तत् प्रयोजनम् ? तद्यथेति वा ()। ४. वरिहिण (ख, ग, घ, च)। १५. मत्थुलुंग (क, घ)। ५. जीवक (क); जीवजीवक (क्व) । १६. हितय (क, घ, च। ६. कापिंजलक (क)। १७. °हेउ (क, च)। 'हणति बहुसंकिलिट्ठ कम्मा' ७. परिवयग (ख, घ, च)। इति अध्याहर्तव्यमत्र । ८. मसर (क); विसर (च); मेसर (ग, घ)। १८. बिदिए (ख)। ६. हयपोंडरीय (ख, ग, घ, च), १६. एगिदिए बहवे (घ, च) । १०. करकरल्लग (क); करकरग(ख, ग, घ, च); २०. नियल (क) । करग (वृपा)। २१. तन्मयजीवाश्चेति (वृपा) । ११. य (ग, च)। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४२ पण्हावागरणाई १४. थावरकाए य सुहम-बायर-पत्तेयसरीर-नाम-साधारणे अणते हणंति अविजाणतो य परिजाणो य जीवे इमेहि विविहेहिं कारणेहि, 'किं ते' ?करिसण-पोक्खरणी-वावि-वप्पिण-कूव-सर-तलाग-चिति-वेदि'-खातिय-आरामविहार-थूभ-पागार-दार - गोउर - अट्टालग - चरिय-सेतु-संकम-पासायविकप्पभवण-घर-सरण-लेण-प्रावण - चेतिय - देवकुल - चित्तसभ-पव-आयतण-पावसहभूमिघर-मंडवाण य कए, भायण-भंडोवगरणस्स विविहस्स य अट्ठाए पुढविं हिंसंति मंदबुद्धिया ।। १५. जलं च मज्जणय-पाण-भोयण-वत्थधोवण-सोयमादिएहि ।। १६. पयण-पयावण-जलावण-विदसणेहिं अगणि ।। १७. सुप्प-बियण-तालयंट-पेहुण-मुह-करयल-सागपत्त वत्थमादिएहिं अणिलं ॥ १८. अगार-परियार-भक्ख - भोयण - सयण - प्रासण-फलग-मुसल -उक्खल-तत-वितत आतोज्ज- वहण - वाहण-मंडव-विविहभवण-तोरण-विडंग'-देवकुल- जालय-अद्धचंद-निज्जूह-चंदसालिय-वे तिय" -णिस्सेणि-दोणि-चंगेरि-खील-मेढक-सभ-प्पवपावसह-गंध-मल्ल - अणुलेवण-अंबर-जुय- नंगल-मइय-कुलिय-संदण-सीया-रहसगड-जाण-जोग्ग - अट्टालग - चरिम - दार-गोपुर- फलिह-जंत-सूलिय"-लउडमुसुंढि"-सतग्घि-बहुपहरण-आवरण-उवक्खराण कते ६ । अण्णेहि य एवमादिएहिं बहूहि कारणसतेहिं हिंसंति ते१७ तरुगणे, भणियाभणिए य एवमादी सत्ते सत्तपरिवज्जिया उवहणंति दढमूढा दारुणमती ।। १६. कोहा माणा माया लोभा 'हस्स रती अरती सोय" वेदत्थ-'जीव-धम्म-अत्थ कामहे', सवसा अवसा अट्ठा अणद्वाए य तसपाणे थावरे य हिंसंति मंदबुद्धी। सवसा हणति, अवसा हणंति, सवसा अवसा दुहमओ हणति । १. कि तत् तद्यथेति वा (वृ)। १०. निज्जूहग (ध)। २. पोखरिणी (क, ग)। ११. वेदिय (क्व)। ३. वेति (क, ख)। १२. मलिय (क) । ४. गोपुर (क, ग)। १३. चरित (क, ग)। ५. संकमण (ख)। १४. सूलय (क, ख, घ, वृपा); मूसलय (ग)। ६. एतदादिभि: कारण रिति प्रक्रम: (वृ)। १५. मुसढि (क, घ)। ७. जलण जलावण (ख, च)। १६. कए (क, ग, घ) . तालएंट (क, ध); तालवंट (ख); तालविंट १७. X (क, ग)। १८. इह पंचमीलोपो दृश्यः । ६. विटंग (ख) १६. जीयकामस्थधम्म हे (क, ख, घ, च) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पढमं आसवदार) ६४३ अट्ठा हणंति, अणट्ठा हणंति, अट्टा अणट्ठा दुहम्रो हणंति ।। हस्सा हणंति, वेरा हणति, रतीए' हणंति 'हस्सा वेरा रतीए'' हणंति । कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति, कुद्धा लुद्धा मुद्धा हणंति । अत्था हणंति, धम्मा हणंति, कामा हणंति, प्रत्था धम्मा कामा हणंति ।। पाणवहस्स कत्तार-पदं २०. कयरे' ? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मा' 'दीवित बंधप्पयोग - तप्प- गल - जाल - वीरल्लग - प्रायसीदब्भवग्गुरा - कूडछेलिहत्या हरिएसा ऊणिया य वीसग-पासहत्था वणचरगा लुद्धमा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर-दह - दीहिन - तलाग - पल्लल- परिगालण- मलणसोत्तबंधण-सलिलासयसोसगा 'विस-गरलस्स य दायगा" उत्तण-वल्लर-दवग्गि णिय-पलीवका ।। २१. कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया', के ते? - सक जवण सवर बब्बर काय' 'मुरुंड उड्ड भडग निण्णग" पक्काणिय कुलक्ख गोड" सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल"पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम" मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा" मेद पल्हव" मालव मग्गर आभासिया अणक्क चीण ल्हासिय खस १. रती य (क, ख, ग, घ, च)। ६. मिलक्खुजाती (क, ख, ग, घ, च) । २. हस्सवेरा रती य (क, ख, ग, घ, च); अत्र १०. किं (क, ख, ग, घ, च)। एकारपरिवर्तनेन यकारो जातः । अस्याला- ११. गाय (ख)। पकस्यानुसारेण 'हस्सा वेरा रतीए' एष पाठ १२. मुरडोद (ख, ग, घ, च); मुरुड-उद () । उपयुक्तीस्ति, किन्तु लिपिकरणे परिवर्तनं १३. भित्तिय (ख, ग); तित्तिय (व)। जातम्, तेन 'हस्सा' स्थाने 'हस्स' तथा १४. गोंड (ख, ग, घ, च) । 'रतीए' स्थाने 'रतीय' इति जातम् । १५. ° बिल्लल (ख, ग, घ, च, वृ) । ३. कयरे ते (क); घ्नन्तीति प्रश्नः (वृ)। १६. पोक्काण (क, ख, ग, घ) । ४. कूरकम्मा वाउरिया (ग, च, वृपा) १७. राम (क, ख)। ५. दीविय (क); देविय (दृपा)। १८. मोस (क्व)। ६. अबमालापक: क्वचित् कथंचिद दृश्यते (व); १६. कोंकणग (क)। • छेलियाहत्था (ग)। २०. मेत (क, ख, ग, घ, च)। ७. कुणिका (क्व); साउणिया (वृपा)। २१. पल्लव (क, घ): पण्हव (ख, वृ) । म. विसगरदायमा (क); विसगरलदायगा (ख); २२. महुर (च, वृ) । विसगरस्स ° (घ)। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४४ पण्हावागरणाई खासिय नेदर' मरहट्ट' मुट्ठिय प्रारब डोंविलग कुहण केकय हूण रोमग रुरु मरुगा' चिलायविसयवासी य पावमतिणो, जलयर-थलयर-'सणहपय-उरग -खहचर-संडासतोंड-जीवोवधायजीवी, सण्णी य असणिणो य पज्जत्ता असुभलेस्सपरिणामा॥ २२. एते अण्णे य एवमादी करेंति पाणातिवाय-करणं, पावा पावाभिगमा पावरुई पाणवहकयरती पाणवहरूवाणुट्ठाणा पाणवहकहासु अभिरमंता तुट्टा पावं करेत्तु होति य बहुप्पगारं ।। पाणवहस्स फलविवाग-पदं २३. 'तस्स य पावस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेति---महब्भयं अविस्साम-वेयणं दीहकालबहदुक्खसंकर्ड' नरय-तिरिक्ख-जोणि । इओ आउक्खए चुया" असभकम्मबहला उववज्जति नरएस हलित-महालएस, वयरामय-कड़-रुंदनिस्संधि - दारविरहिय - निम्मदव" - भूमितल-खरामस्स-विसम-णि रयघरचारएसुरु, महोसिण-सयावतत्त"-दुग्गंध-विस्स-उव्वेयणगेसु" वीभच्छ'-दरिसणिज्जेसु, निच्च हिमपडलसोयलेसु, कालोभासेसु य, भीम-गंभीर-लोमहरिसणेसु, णिरभिरामेसु, निप्पडियार-वाहि-रोग-जरा-पीलिएसु", अतीवनिच्चंधकारतिमिसेसु, पतिभएसु, ववगय-गह-चंद-सूर-णक्खत्त-जोइसेसु, मेयवसामंसपडलपुच्चड-पूयरुहिरुविकण्ण-विलीण-चिक्कण-रसियावावष्ण-कुहियचिक्खल्लकद्दमेसु, कुकूलानल-पलित्त- जाल - मुम्मुर- असिक्खुरकरवत्तधार-सुनिसितविच्छ्यडंक १. मेदर (ख, ग, च)। १०. निमद्दव (ख, ग, घ, च)। २. मढा (वृपा)। ११. खरामंस (क, घ); खरामस (ग, च); ३. एतानि च प्रायोलुप्तप्रथमाबहुवचनानि । खरामरिस (व)। ४. सणहप्फतोरग (क, ख, ग); सणफतोरग १२. नारएस (ख)। (घ, च)। १३. सइयतत्त (क)। ५. परिणामे (क, ख, घ)। १४. उब्वेयजणगेसु (क्व)। ६. पावरुती (ख, घ, च)। १५. विभत्थ (ख, ग)। ७. ° दुक्खयण (क)। १६. ०सीयलेसु य (क, ग, घ, च)। ८. 'तस्स' इति पदादारभ्य 'चुया' इति पदान्तः १७. काला° (क)। पाठ: वृत्तिकारेण सर्वेषु आदर्शेषु नोपलब्धः, १८. जलपीलिएसु (क); जरपोलिएसु (ग, घ)। यथा-तस्सेत्यादि सूत्रं च क्वचिदेव दृश्यते १६. तिमिएसु (क)। २०. कुक्कुला (क)। ६. पार ° (क, ध); यार° (ग); वार ° (च)। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (पढमं आसवदारं) निवातोवम्म'-फरिस-अतिदुस्सहेसु, अत्ताणसरण-कडु यदुक्खपरितावणेसु, अणुबद्ध-निरंतरवेयणेसु, जमपुरिससंकुलेसु ॥ २४. तत्थ य अंतोमुहुत्तलद्धि-भवपच्चएणं निव्वत्तेति य ते सरीरं, हंड वीभच्छ____दरिसणिज्ज' बीहणगं अट्ठि-पहारु-णह-रोमवज्जियं 'असुभगंध-दुक्खविसह ॥ २५. ततो य पज्जत्तिमुवगया इंदिएहि पंचहिं वेदेति असुभाए वेयणाए उज्जल-बल विउल-उक्कड-खर-फरुस-पयंड-घोर-बीहणग-दारुणाए, कि ते ?.कंदमहाकभियपयणपउलण-तवगतलणभद्रभज्जणाणि य, लोहकडाहकढणाणि य, कोट्ट-बलिकरण-कोट्टणाणि य, सामलितिक्खग्ग-लोहकंटक-अभिसरणापसरणाणि' फालण-विदालणाणि य, अवकोडकबंधणाणि' य", लट्ठिसयतालणाणि य, गलगबलुल्लंबणाणि य, सूलग्गभेयणाणि य, अाएसपवंचणाणि, खिसणविमाणणाणि य, विघुटुपणिज्जणाणि, वज्झसयमातिकाणि य ।। २६. एवं ते पुवकम्मकयसंचयोवतत्ता निरयग्गि-महग्गिसंपलित्ता गाढदुक्खं महन्भयं कक्कसं असायं सारीरं माणसं च तिव्वं दुविहं वेदेति वेयणं, पावकम्मकारी बहुणि पलिग्रोवम-सागरोवमाणि कलुणं पालेंति ते अहाउंर जमकाइय२ तासिता य सदं करेंति भीया, कि ते ?अविभाव"-सामि-भाय-वप्प-ताय 'जियव" मुय मे'१५ मरामि दुब्बलो वाहिपीलियोहं. कि दाणिऽसि? एवं दारुणेणियो य मा देहि मे पहारे, उस्सासेतं महत्तयं मे देहि, पसायं करेहि, मा रूस, वीसमामि, गेबिज्जं मंच" मे मरामि, गाढं तण्हाइप्रो" अहं देहि पाणीयं, १. ० डंडक (क, ख, ग, घ, च)। १०. ४ (ख, घ, च)। २. उ (ग, घ)। ११. अहाउयं (वृ)। ३. दुरिमणिज्ज (ख, वृ)। १२. जमकातिय (क, ख, ग, घ, च)। ४. असुभदुक्खविसहं (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। १३. अविहाव (वृ) । ५. तिउल (वृपा)। १४. जितव (ग)। ६. कोट्टकिरिया (वृपा)। १५. जियवम्मुय (ख, च)। ७. अहिसरणोसारणाणि (क); सारणाणि १६. ० नं (ख) । (ख, ग, घ, च)। १७. करेह (ख, ग, घ, च, वृ)। ८. विदारणाणि (क, ग)। १८. मुयह (क, ख, ग, घ, च)। ६. अवकोडग ° (ग)। १९. तण्हातिओ (ख, घ)। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४६ पाहावागरण ता हंत' ! पिय इमं जलं विमलं सीयलं ति घेत्तूण य नरयपाला' तवियं तउयं से देंति कलसेण अंजलीसु, दट्ठण य तं पवेवियंगममा अंसुपगलंतपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हा' इयम्ह कलुणाणि जपमाणा, विप्पेक्खता दिसोदिसं', अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहूणा विपलायति य मिगा व वेगेण भयव्विग्गा, घेत्तण बला पलायमाणाणं निरणकंपा मुहं विहाडेत्त लोहडंडेहि कलकलं' ण्हं वयणसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता॥ तेण य दड्डा संता रसंति य भीमाई विस्स राइं, रुदंति य कलुणगाई पारेवतगा व, एवं पलवित-विलाव-कलुणो कंदिय बहुरुन्न-रुदियसद्दो परिदेविय"-रुद्धबद्धकारव-संकुलो णीसट्ठो "रसिय-भणिय-कुविय-उक्कूइय-निरयपालतज्जियमेह, कम, पहर, छिंद, भिंद, उप्पाडेहि, उक्खणाहि", कत्ताहि, विकत्ताहि य, भंज, हण, विहण, विच्छभोच्छुभ", 'प्राकड्ड, विकड्ड", कि ण जंपसि? सराहि पावकम्माइ दुक्कयाइ"--एवं वयणमहप्पगठभो पडिसुयासह-संकुलो तासो सया निरयगोयराण महाणगर-डज्झमाण-सरिसो निग्घोसो सुच्चए" अणिट्रो तहियं ने रइयाणं जाइज्जताणं जायणाहि, कि ते ?असिवणदब्भवणजंतपत्थरसूइतलखारवाविकलकलेंतवेयरणिकलंबवालयाजलिय गुहनिरुंभण-उसिणोसिणकंटइल्लदुग्गमरहजोयणतत्तलोहपहगमणवाहणाणि ।। २८. इमेहि विविहेहि आयुहेहिं", कि ते ? मोग्गर मुसुढि" करकच सत्ति हल गय मुसल चक्क कोंत तोमर सूल लउल भिडिमाल सव्वल" पट्टिस चम्म?" दुहण मुट्ठिय असिखेडग खग्ग चाव नाराय १. हंता (क्व)। च, वृ); अत्र वृत्तेः पाठान्तरं मूलपाठत्वेन २. निरयवाला (क्व)। स्वीकृतम् । 'भुज्जो' इति पदापेक्षया 'भंज' ३. तण्ह (क, ख, घ, च)। इति पदं क्रियापदप्रयोगे प्रासङ्गिकमस्ति ! ४. वचनानीति गम्यते (द)। १३. विच्छुब्भोच्छुब्भ (क); विछुभउछुभ (१); ५. दिसि (क, घ)। निछुभ ° (वृपा)। ६. भउब्बिग्गा (क) १४. आकट्ट विकट (ख. ग, घ, च)। ७. कलकल (ग, घ, च); त्रपुकमिति गम्यते। १५: जानासि (वृपा)। ८. रुयंति (क, ग); रुवंति (घ); रोवंति (च)। १६. विहणओ तासणओ पइन्भओ अइन्भओ(वृपा)। है. वयगा (क, ग)! १७. सुब्बए (ख, ग, घ)। १०. परिवेदिय (क, ख, घ); परिवेविय (वृपा)। १८. आउहेहिं ° (क, ग)। ११. उग्घाडेहुक्खणाहि (क); उप्पाडेहुक्खणाहि १६. मुसंढि (क)। (ख, ग, घ, च। २०. सद्दल (वृ)। १२. भुज्जो; भुज्जो (क); भुज्जो (ख, ग, घ, २१. चम्मेढ (क, घ)। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय ( पढमं आसवदारं ) कणक कप्पणि वासि परसु टंकतिक्ख निम्मल', अण्णेहि य एवमादिएहिं भेहिं वेव्विहि पहरणसतेहि अणुबद्धतिब्ववेरा परोप्परं वेयणं उदीरेंति अभिहता ॥ २६. तत्थ य मोग्गरपहारचुण्णिय-मुसुंढिसंभग्गमहितदेहा जंतोपीलण - फुरंत - कप्पिया केइत्थ सचम्मका विगत्ता णिम्मूलुल्लूण - कण्णोद्वणासिका छिण्णहत्थपादा असिकरकय- तिक्खकोंत-परसुप्पहार फालिया वासीसंतच्छितंगमंगा कलकलखारपरिसित्त-गाढडज्भंतगत्ता कुंतग्गभिण्ण-जज्जरिय सव्वदेहा विलोलंति महीतले वियिंग मंगा' । तत्थ य विग सुणग- सियाल - काक-मज्जार सरभ-दीविय वियग्ध-सल-सीहदप्पिय-खुहाभिभूतेहिं णिच्चकालमणसिएहिं घोरारसमाण भीमरूवेहिं अक्कमित्ता ढाढ गाढक्कड्डिय' - सुतिक्खनहफालियउद्धदेहा विच्छिप्पते समंतश्र विमुक्कसंधिबंधणा वियंगिमंगा | कंक-कुरर-गिद्ध घोरकटुवायसगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्ख-लोहतुंडे हिं श्रवतित्ता पक्खाहय - ' तिक्खणक्ख विक्खित्त जिन्भ-छियनयण" - नियोलुग्गविगतवयणा', उक्कोसंता य, उप्पयंता निपतंता भमंता पुण्वकम्मोदयोवगता पच्छाणुसपण' डज्झमाणा, णिदंता पुरेकडाई कम्माई पावगाई, तहि तहि तारसाणि सण्णचिक्कणाई दुखाइं प्रणुभवित्ता, ततो य ग्राउक्खएणं उव्वट्टिया समाणा बहवे गच्छति तिरियवसहि- दुक्खुत्तारं" सुदारुणं जम्मण-मरण-जरावाहि परियट्टा रहट्टं जलथलखहचर- परोप्पर - विहिंसणपवंचं ॥ ३०. इमं च जगपागडं वराका दुक्खं पावेंति" दीहकालं, किं ते ? – सी उहहहवेयण- प्रप्पडीका रडविजम्मण- णिच्चभ उव्विग्गवास- जग्गणवधबंधण-तालणंकण"-निवायण- श्रद्विभंजण-नासाभेय " - प्पहार - दूमण छवि च्छेयणअभियोगपावण - कसंकुसार " - निवाय दमणाणि वाहणाणि य, मायापिति १. ततस्तैरिति व्याख्येयम्, तृतीया बहुवचन लोपदर्शनात (वृ) । २. ० पिलुण (ख, च ) | ३. ०ल्लू ( क ) । ४. फालिय (वृ) ; वृत्तिकारेण विभक्तिरहितं पदं लब्धम् । तेन अग्रिमपदेन सह समासः सूचित: । ५. निम्गयम्गजीहा (वृपा ) । ६. दिढ ( क ) । ७. ० जिन्भंछिय (क, ख, ग, घ, च) 1 - - ८. ओलुत्तविगयगत्ता (वृपा ) | ६. पच्छणुस एण ( ख, ग, घ ) १०. तारिसाह ( क ) 1 ६४७ ११. दुक्खुत्तरं ( ख ) । १२. ० पगडं ( ख, ग, च) 1 १३. पावंति (क, ख, घ, च) । १४. ताडणंकण (च ) 1 १५. नासाभेद (ख, घ, च) । १६. कस | अंकुश + आर Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४८ पण्हावागरणाई विप्पयोग - सोयपरिपीलणाणि य, सत्थग्गिविसाभिधाय' - गलगवलाबलणमारणाणि य, गलजालुच्छिपणाणि' पउलण-विकप्पणाणि य, जावज्जीविगवंधणाणि पंजर-निरोहणाणि य, सज्जूह-निद्धाडणाणि धमणाणि दोहणाणि य, कुडंड-गलबंधणाणि वाङ-परिवारणाणि य, पंकजलनिमज्जणाणि वारिप्प वेसणाणि य.ग्रोबायणिभंग-विसमणिवडण -दवग्गिजाल-दहणाइयाई ।। ३१. एवं ते दुक्खसय-संपलित्ता नरगाग्रो प्रागया इहं सावसेसकम्मा तिरिक्ख पंचदिएसु पावंति पावकारी कम्माणि पमाद-राग-दोस-बहुसंचियाइं अतीव अस्साय -कक्कसाई॥ ३२. भमर-मसग-मच्छियाइएसु य जाई-कुलकोडिसयसहस्सेहिं नहिं चउरिदियाण तहि-हि चेव जम्मण"-मरणाणि अणुभवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइय समाणतिव्वदुवखा फरिस-रसण-घाण-चक्खुसहिया ॥ ३३. तहेव तेइंदिरासु -- कुंथु"-पिपीलिका-अवधिकादिकेसु" य जाती-कुलकोडिसय सहस्सेहि अहि अणूणएहि तेइंदियाण तहि-तहि चेव जम्मण-मरणाणि अणुहवंता कालं संखेज्जकं भमंति नेरइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस-रसण"-घाण-संपत्ता ।। ३४. 'तहेव बेइंदिरासु-गंडूलय -जलुय-किमिय-चंदणगमादिएसु य जाती-कुलकोडि सयसहस्सेहि सहि अण्णएहिं बेइदियाण तहि-तहि चेव जम्मण-मरणाणि अणुहवता काल' सखेज्जकं भमंति ने रइयसमाणतिव्वदुक्खा फरिस-रसण संपत्ता । ३५. पत्ता एगिदियत्तणं पि य---पढवि-जल-जलण-मारुय-वणप्फति-सहम-बायरं च पज्जत्तमपज्जत्तं पत्तेयसरीरणामसाहारणं च । पत्तेयसरी रजीविएसु य, तत्थवि कालमसंखेज्जगं भमंति, अणंतकालं च अणंतकाए फासिदियभाव-संपउत्ता दुक्खसमुदयं इमं अणिटुं पावति" पुणो-पुणो तहि-तहि चेव परभव-तरुगणगहणे" १. विसघाय (क)। १०. जाइ (ग, च): २. ° लुछियणाणि (क); °छुपणाणि (ग); ११. जगण (क) । __ छिपणाणि (च)। १२. जंतु (क)। ३. सयूह (ग)। १३. अवहिकाइकेसु (ख, घ, च)। ४. कुदंड (ख, ग, च)। १४. रस (क)। ५. वाडग (ग, घ, च)। १५. X (क, ख, घ)। ६. परिणालणागि (क)। १६. गंदूयल (क, ग, घ, च)। ७. विसमापडण (क)। १७. जलूय (ग)। ८. असाय (ग, च)। १८. पाविति (ग); पावंति (च)। ६. मच्छिमाइएसु (ख, घ); मच्छिगाइ ° (ग,च)। १६. तरुगणगणे (वृ); तरुगणगहणे (वृपा)। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (पढम आसवदारं) कोद्दालकुलियदालण-सलिलमलण-खंभण - रुंभण-अणलाणिल-विविहसत्थघट्टणपरोप्पराभिहणण-मारणविराहणाणि य अकामकाई परप्पोगोदीरणाहि य कज्जप्पोयणेहि य पेस्सपसु-निमित्तं ओसहाहारमाइएहिं उक्खणण-उक्कत्थणपयण-कोट्टण- पीसण - पिट्टण - भज्जण - गालण-ग्रामोडण-सडण -फुडण- भंजणछेयण-तच्छणा-विलुचण-पत्तज्झोडण-अग्गिदहणाइयाति ।। एवं ते भवपरंपरादुक्खसमणुबद्धा अडति संसार-बीहणकरे जीवा पाणाइवाय निरया अणतकाल।। ३७. जेवि य इह माणुसत्तणं आगया कहंचि नरमायो उव्वट्टिया अधण्णा, ते वि य दीसंति पायसो विकय-विगल-रूवा खुज्जा वडभा य वामणा य बहिरा काणा कंटा य पंगुला 'विमला य मूका य मम्मणा य अंधिल्लग-एगचक्खुविणिहयसचिल्लया' वाहिरोगपीलिय-अप्पाउय - सत्थवज्झ-वाला कुलक्खणुक्किण्णदेहदुब्बल-कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा किविणा य हीणा हीणसत्ता' निच्चं सोक्खपरिवज्जिया असुह-दुक्खभागी णरगानो उव्वट्टिया इहं सावसेस कम्मा ।। ३८. एवं णरग-तिरिक्खजोणि कुमाणुसत्तं च हिंडमाणा पार्वति अणंतकाई दुक्खाई पावकारी॥ ३९. एसो सो पाणवहस्स फलविवागो इहलोइनो पारलोइनो अप्पसुहो वहुदुक्खो महमओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चती', न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति -एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य पाणवहस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं ४०. एसो सो पाणवहो' चंडो रुद्दो खुद्दो प्रणारिओ निम्घिणो निस्संसो महन्मयो बीहणो२ तासणो अणज्जो उव्वेयणनो" य निरवयक्खो'६ निद्धम्मो १. ० पयोगो° (ख, ग, च)। २. यणाहि (क)। ३. नरगा (ख, ग, घ, च)। ४. अवि य जलमूया (वृपा)। ५. अंधेल्लग (क)! ६. सपिसल्लया (वृपा)! ७. दीणा निस्सत्ता (क)। ८. ततः प्राणीति शेषः (व)। ६. तमिति शेषः (व)। १०. अस्मादिति शेष: (व) । ११. पाणिवधो (ख, ग, घ, च)। १२. बीभणओ (क, ग); बीभाणओ (ख, घ)। १३. तासओ (क, ख, ग, घ)। १४. द्रष्टव्यम्-१० १२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् । १५. उज्वेवणमो (क, ख, ग, घ, च) । १६. गिरावकंखो (ख)। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५० पाहावागरणाई निप्पिवासो निक्कलुणो निरयवास-गमण-निधणो' मोह-महब्भय-पबड्डनो मरण वेमणंसो' । पढमं अहम्मदारं समत्तं । –त्ति बेमि ।। १. निबंधणो (क)। २. पयट्टओ (क, ख); पयट्टओ (ग, घ)। ३. बेमणस्सो (ख, ग, घ, च); द्वितीयसूत्रवर्तीनि एतानि विशेषणानि अत्रन सन्ति, वृत्तिकारेणापि न व्याख्यातानि-साहसिओ पइभओ अतिभओ। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं बीनं आसवदारं उक्खे व-पदं १. जंबू ! बितियं च' अलियवयणं-लहुसगलहु-चवल-भणियं भयंकर-दुहकर अयसकर-वेरकरगं अरति रति-रागदोस-मणसंकिलेस-विय रणं अलिय-नियडिसाति-जोयबहुलं नीयजण-निसेवियं निसंसं अप्पच्चयकारकं परमसाहु-गरहणिज्ज परपीलाकारकं परमकण्हलेस्ससहियं' दुग्गइविणिवायवड्डणं' भव पुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगतं दुरंत' । बितियं अधम्मदारं ॥ अलियवयणस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य नामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जहा-१. अलियं २. सढं ३. अणज्ज ४. मायामोसो ५. असंतकं ६. कूडकवडमवत्थु ७. निरत्थयमवत्थगं च ८. विद्देसगरहणिज्जं ६. अणुज्जगं' १०. कक्कणा य ११. वंचणा य १२. मिच्छापच्छाकडं च १३. साती १४. सोच्छन्नं १५. उक्कूलं च १६. अटुं'. १७. अब्भक्खाणं च १८. किब्बिसं १६. वलयं २०. गहणं च २१. मम्मणं च २२. नूमं २३. नियती" २४. अप्पच्चयो २५. असमनो २६. असच्चसंधत्तणं २७. विवक्खो २८. अवहीयं २६. उवहि-असुद्धं ३०. अवलोवो त्ति । १. ४ (ख, ग)। २. निस्संसं (ग)। ३. °लेससहियं (क)। ४. पवड्ढणं (क)। ५. दुरंतं कीत्तितं (ख, ग, घ, च)। ६. मायामोहं (क)। ७. अणज्जुगं (च)। ८. ओत्थत्तं (क, वृषा)। ६. उक्कलं (वृपा)। १०. आट्ट (ख)। ११. नियडी (ग, च)। १२. आणाइयं (वृपा)। Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ पहावागरणाई अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं सावज्जस्स अलियस्स वइजोगस्स अणेगाई ।। अलियवयणस्स पगार-पदं ३. तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल-कड्य चडुलभावा' कुद्धा लुद्धा 'भया य हस्सट्टिया' य सक्खी चोरा चारभडा खंड रक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग'-कारगा कुलिंगी उबहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार-कलायकारुइज्जा वंचणपरा चारिय-चडुयार - नगरगुत्तिय-परिचारग-दुट्ठवायि-सूयकअणवल भणिया य पुत्वकालियवयण-दच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अणिग्गहा अणियता छदेण मुक्क वायी भवंति अलियाहि जे अविरया ।। ४. अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति-सूण्णति । नत्थि जीवो । न जाइ इह 'परे वा लोए । न य किचिवि फुसति पुण्णपावं । नत्थि फलं सुकय-दुक्कयाणं । पंचमहाभूतियं सरीरं भासंति ह" वातजोगजुत्तं । पंच य खंधे भणंति केई । मणं च मणजीविका वदति । वाउजीवोत्ति एवमासु । सरीरं सादियं सनिधणं इह भवे 'एगे भवे", तस्स विप्पणासम्मि सव्वनासोत्ति-एवं जपंति मुसावादी। तम्हा दाणव्वय"-पोसहाणं तव-संजम-भचेर-कल्लाणमाइयाणं नत्थि फलं, नवि"य पाणवह-अलियवयणं, न चेव चोरिक्ककरण-परदारसेवण वा सपरिग्गहपावकम्मकरणं पि नत्थि किचि , न नेरइय-तिरिय-मणुयाण जोणी, न देवलोगो वत्थि, न य अस्थि सिद्धिगमणं, अम्मापियरो वि नत्थि, नवि अत्थि पुरिसकारो, ५. १. चटुल० (ख, ग, घ, च)। ७. चाटुयार (ख); चटयार (ग, च)। २. अस्मिन कत पदप्रकरणे वृत्तिकृता चतुर्थ्यन्त ८. नगरगोत्तिय (ग)। पञ्चम्यन्त वा व्याख्यातं 'भया य' इति पदं ६. जगदिति गम्यते (वृ)। नैव संगच्छते । सम्भवत: 'भयट्ठा' अथवा १०. परेच्च (क, च); परिच्च (घ)। "भयट्टा य' इति पदं प्रासीत्, किन्तु लिपि- ११. हे (वृ)। करणक्रमे परिवर्तितमिवाभाति । १२. X (ख, ग, च)। ३. हस्सट्टि (क); हस्सट्ठाय (वृपा)। १३. विप्पणासे (क); विप्पणासंसि (च)। ४. ° जुयकरा (ख)। १४. दाणवत (क, च)। ५. कुरुग (क); °कुरग (ख, ग, च); १५. नेवि (ख, च)। °कुरूग (घ)। १६. परदारा (क)। ६. कूडतुल (ग)। १७. किंपि (क, च)। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीघ्रं अज्झयणं (बी आसवदार) ६५३ पच्चक्खाणमवि नत्थि, नवि अत्थि काल मच्च, अरहंता चक्कवट्टी बलदेववासुदेवा नत्थि, नेवत्थि केइ रिसयो, धम्माधम्मफलं च नवि अत्थि किंचि बहुयं च थोव' वा। तन्हा एवं विजाणिऊण' जहा सुवहु-इंदिवाणुकूलेसु सव्वविसएमु वट्टह । नत्थि काइ किरिया वा अकिरिया वा - एवं भणंति नथिकवादिणो वामलोगवादी ।। ६. इमं पि बिइयं कुदसणं असभाववाइणो पण्णवेति मूढा–संभूतो अंडकामो लोको। सयंभुणा सयं च निम्मियो। एवं एत अलियं, पयावइणा इस्सरेण य कयं ति केई । एवं विण्हुमयं कसिणमेव य जगं ति केई॥ ७. एवमेके वदंति मोसं-- एको पाया प्रकारको वेदको य सुकयस्स दुक्कयस्स य करणाणि कारणाणि सब्वहा सवहिं च निच्चो य निक्किनो निग्गुणो य अणुवलेवोत्ति वि य ।। एवमाहंसु असब्भावं-जंपि इहं किंचि जीवलोके दीसइ सुकयं वा दुक्कयं वा एयं जदिच्छाए वा, सहावेण वावि दइवतप्पभावओ वावि भवति, 'नत्थेत्थ किचि कयकं तत्तं"। लक्खण-विहाण नियती य कारिया-एवं केइ जपंति इड्डिरससातगारवपरा, बहवे करणालसा परूवति धम्मवीमंसएणं मोसं ।। १. अवरे अहम्मायो रायदुटुं प्रभक्खाणं भणंति अलियं.. चोरोत्ति' अचोरियं करेंतं, डामरिप्रोत्ति वि य एमेव उदासीणं, दुस्सीलोत्ति य परदारं गच्छतित्ति मलिति सीलकलियं, अयंपि गुरुतप्पग्रोत्ति, अण्णे एवमेव भणंति उवहणता', मित्तकलत्ताई सेवंति अयंपि लुत्तधम्मो, इमो वि वीसंभघायो पावकम्मकारी अकम्मकारी अगम्मगामी, अयं दुरप्पा बहुएसु य पातगेसु जुत्तोत्ति-एवं जपति मच्छरी" भद्दके व गुण-कित्ति-नेह-परलोग-निप्पिवासा ।। १०. एवं ते अलियवयणदच्छा परदोसुप्पायणप्पसत्ता वेति अक्खइय-बीएण अप्पाणं कम्मबंधणेण मुहरी असमिक्खियप्पलावी, निक्खेवे अवहरंति परस्स अत्थंमि गढियगिद्धा, अभिजुजति य परं असंतएहिं', लुद्धा य करेंति कूडसक्खित्तणं, असच्चा प्रत्थालियं च कन्नालियं च भोमालियं च तहा गवालियं च गरुयं भणति अहरगतिगमणं । १. थोवकं (क)। २. जाणिऊण (ख, ग, घ, च)। ३. केयि (स्व, घ, च); केति (ग)! ४. अण्णो अलेवओत्ति (वृपा)। ५. नत्थि किंचि कयं तत्त (वृपा)। ६. चोरित्ति (क)। ७. तद्धतिकीादिकमिति गम्यते (व)। ८. पावगेसु (ग, च)। ६. भणति (क)। १०. मच्छरीया (ग)। ११. वा (ग, च)। १२. दूषणः इति गम्यम् (वृ)। Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५४ पावागरणाई ११. अणपिय जाति- रूव-कुल- सील- पच्चय - मायाणिगुणं चवला पिसुणं परमभेदकं असंतकं विदेसमणत्थकारकं पावकम्ममूलं दुद्दिट्ठ दुस्सुयं श्रमुणियं निल्लज्जं लोकगरहणिज्जं वह-बंध- परिकिलेस बहुलं जरा - मरण- दुक्खसोयनेम्मं असुद्ध - परिणाम-संकिलिट्ठ भणति अलियाहिसंधि- निविट्टा', असंतगुणुदीरका य संतगुणनासका य हिंसाभूतोवघातितं अलियसंपउत्ता वयणं सावज्जमकुसलं साहुग रहणिज्जं अधम्मजणणं भणति ग्रणभिगत- पुन्नपावा ॥ १२. पुणो य अधिकरण - किरिया पवत्तगा बहुविहं प्रणत्थं श्रवमदं श्रप्पणी परस्स य करेंति, एमेव' जंपमाणा महिससूकरे य साहेति घायगाणं, ससय-पसय- रोहिए य साहेति वागुरीणं, तित्तिर- वट्टक लावके य कविजल - कवोयके य सार्हेति साउणीणं, झस-मगर-कच्छभे य साहेति मच्छियाणं, संखंके खुल्लए य साहेति मगराणं, अयगर-गोणस - मंडलि- दव्वीकर. मउली य साहेति वालवीण', गोहासेहाय सल्लग - सरडगे य साहेति लुद्धगाणं, गयकुल-वानरकुले य साति पासिया, सुक - बरहिण-मयणसाल कोइल हंसकुले सारसे य सार्हेति पोसगाणं, वध-बंध जायणं च सार्हेति गोम्मियाणं, धण-धन्न - गवेलए य साहेति तक्कराणं, गाम-नगर-पट्टणे य सार्हेति' चारियाणं पारघाइय-पंथघातिया साहेति य गठियाणं, कयं च चोरियं नगरगोत्तियाणं, लछण - निल्लंछण - धमण- दुहणपोसण-वणण- दुमण-वाणादियाई 'साहेति बहूणि गोमियाणं, धातु-मणि-सिलप्पवाल- रयणागरे य साहेति प्रागरीणं, पुष्कविहिं फलविहिं च सार्हेति मालियाणं, सार्हेति वणचराणं, जंताई विसाई मूलकम्म आहेवण" श्राभिओगमंतोस हिप्पोगे चोरिय-परदारगमण बहुपावकम्मकरणं श्रखंदे" गामघाति याश्रवणदहण-तलागभेयणाणि बुद्धि-विसय" विणासणाणि वसीकरणमादियाई भयमरण- किलेस - दोसजणणाणि" भाव - बहुसंकिलिट्ठ - मलिणाणि भूतघातोवघातियाइंसच्चाणि वि ताई हिंसकाई वयणाई उदाहरति ॥ को १३. पुट्ठा व अपुट्टा वा परतत्तिवावडा य असमिक्खियभासिणो उवदिसंति सहसा उट्ठा गोणा गवया दमं परिणयवया अस्सा हत्थी गवेलग-कुक्कुडा य किज्जंतु, १. संकिलिट्ठा ( ख, ग ) संनिविट्ठा (च ) । २. एवमेव ( ख ) । ३. वगुरीणं ( क ) ; वग्गुरीणं ( ख ) । ४. मगिणा (वृपा ) | ५. साहति ( क ); साहिति ( ख ) 1 ६. बालियाण (कृपा) । पंथघायग' ० इति पाठो दृश्यते । अत्रापि तथाविधः पाठः परिकल्प्यते । ९. निलंण ( क ) । १०. बहूणि साहति (क) 1 ११. ग्राहिण, आविधणं च (वृपा ) । १२. खंधे (क, ख, ग, घ, च) । ७. साहिति ( क ) । १३. विस (क, ग, घ, च) । ८. तृतीयाध्ययनस्य तृतीये सूत्रे 'पुरषाय- १४. कर्तुरिति गम्यते (दृ) । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीय अज्झयणं (बी आसवदार) ६५५ किणावेध' य, विक्केह, पयह, सयणस्स देह, पिय, धय', दासि-दास-भयकभाइल्लका य सिस्सा य पेसकजणो कम्मकरा किंकरा य एए, सयण-परिजणो य कीस अच्छति ? भारिया भे करेत्तु कम्म, गहणाई वणाई खेत्त-खिलभूमि-वल्लराइं उत्तण-घण-संकडाइ डझंतु सूडिज्जंतु य, रुक्खा भिज्जंतु जंतभंडाइयस्स उवहिस्स कारणाए" बहविहस्स" य अदाए, उच्छ दुज्जत, पीलियंत य तिला. पयावेह य इट्टकाओं घरट्टयाए, च्छेत्ताई कसह, कसावेह य लहुं गाम-नगरखेड-कब्बडे निवेसेह अडवीदेसेसु विपुलसीमे, पुप्फाणि य फलाणि य कंदमूलाई कालपत्ताई गेण्हह", करेह संचयं परिजणटुयाए, साली वोहो जवा य लुच्चंतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु य, लहुं च पविसंतु य कोट्ठागारं, अप्पमहुक्कोसगा य हम्मंतु पोयसत्था, सेणा निज्जाउ जाउ डमरं, घोरा वर्सेतु य संगामा, पवहंतु य सगड-वहणाई, उवणयणं चोलगं विवाहो जन्नो अमुगम्मि होउ दिवसेसु करणेसु मुहुत्तेसु नक्खत्तेसु तिहिम्मि य, अज्ज होउ ण्हवणं मुदितं बहुखज्जपेज्जकलियं, कोउकं विण्हावणकं संतिकम्माणि कुणह, ससि-रवि-गहोवराग-विसमेसु सज्जण-परियणस्स य नियकस्स य जीवियस्स परिरक्खणट्टयाए पडिसीसकाई च देह, देह य सीसोवहारे विविहोसहि-मज्ज-मंस-भक्खण्णपाण-मल्लाणुले वणपईवजलि उज्जलसुगंधधूवावकार-पुप्फफल-समिद्धे, पायच्छित्ते करेह, पाणाइवायकरणण बहविहेण, विवरीयुरपाय दास्सामण-पावसउण-असामग्गहचरिय अमंगलनिमित्त-पडिघायहेउ वित्तिच्छेयं करेह, मा देह किचि दाणं, 'सुठ्ठहो सुठ्ठहरो'" सुछिष्णो भिण्णोत्ति उवदिसंता॥ १४. 'एवं विविह" करेंति अलियं मणेण वायाए कम्मुणा य अकुसला अणज्जा अलियाणा अलियधम्मणिरया अलियासु कहासु अभिरमंता तुट्ठा अलियं करेत्तु होंति य बहुप्पयारं ।। - ---- १. किणावेद (क)। ११. गेण्हेह (क)। २. देध (ख)। १२. परिजणस्स अट्ठाए (ख, ग, च)। ३. वाचनान्तरेण खादत पिबत दत च (व)। १३. अप्पुणिज्जंतु (क)। ४. करेंतु (क, वृक्षा)। १४. निज्जासो (क)। ५. च्छेत्त (क)। १५. जामो (क)। ६. पाठांतरेण गहनानि वनानि छिद्यन्ताम् (वृ)। १६. देवतानामिति गम्यते (व)। ७. वाचनान्तरे तु यत्र भांडस्य उक्तरूपस्य १७. पुप्फरडल (क)। कारणात (वृ)। १८, विपरीत उप्पाय (ख); विवरीउप्पाय ८. बहुविधस्य च कार्यसमूहस्येति गम्यम् (वृ)। (ग, घ, च)। ६. इट्टगाओ (क)। १६. सुट्ठहओ (क, ग, घ, च) । १०. मम घरट्ठयाए (ख, ग, घ, च)। २०. एवंविहं (क, ख); एवं तिविहं (ग, वृपा)। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई अलियवयणस्स फलविवागपदं १५. तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्दति महत्भयं अविस्सामवेयणं दोहकालं बहुदुक्खसंकडं नरय-तिरिय-जोणि । तेण य अलिएण समणुबद्धा पाइद्धा पुणब्भवंधकारे भमंति भीमे दुरगतिवसहिमुवगया ॥ १६. तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परवसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिता 'फुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना" खरफरुस-विरत्त-ज्झाम-झुसिरा निच्छाया लल्ल-विफल-वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकता काकस्सरा हीणभिण्णघोसा विहिंसा जडवहिरंधया य मम्मणा अकंत-विकय'-करणा णीया णीयजण-निसेविणो लोग-गरहणिज्जा भिच्चा असरिस जणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक-वेद-अज्झप्प-समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि-वियला ॥ १७. अलिएण य 'ते डज्झमाणा" असंतएणं अवमाणण-पट्ठिमंस-अहिक्खेव-पिसुणभेयण गुरु - बंधव - सयण - मित्तवक्खारणादियाइं अभक्खाणाई बहुविहाई पावेंति अमणोरमाइं हियय-मण-दुमकाई जावज्जीवं दुरुद्ध राई' अणिटुख रफरुसवयणतज्जण-निब्भच्छण-दोणवदणविमणा कुभोयणा कुवाससा कुवसहीसु किलिस्संता नेव सहं नेव निव्वइं उवलभंति अच्चंत-विपुल-दक्खसय-संपलिता। १८. एसो सो अलियवयणस्स फलविवाओ इहलोइनो पारलोइनो अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहि मुच्चइ, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति-एवमासु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य अलिय-वयणस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं १६. एयं तं वितियपि अलियवयणं लहुसगलहु-चवल-भणियं भयंकर-दूहकर अयसकर-वेरकरगं अरतिरति-रागदोस-मणसंकिलेस-वियरणं अलिय-नियडिसादि-जोगबहुलं नीयजण-निसेवियं निस्संस अप्पच्चयकारक परमसाहगरहणिज्ज परपीलाकारकं परमकण्हलेससहियं दुग्गतिविनिवायवतणं भवपुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगयं दुरंत । वितियं अधम्मदारं समत्तं । -त्ति बेमि॥ १. फुडियच्छविधीभच्छविवन्ना (ख,ग,घ,च,वृ)। ४. तेण य डज्झमाणा (ग)। २. जडबहिरमका (क, ख, ग, घ, च, बृपा)। ५. अणुवमाणि (व); अमणोरमाई (वा)। ३. विकत (ख, ग, च); अकृतानि विकृतानि ६. दुद्धराई (क)। च विरूपतयाकृतानि (वृपा)। ७. संपउत्ता (ग)। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं तइयं प्रासवदारं उक्खेव-पदं १. जंबू! तइयं च अदिण्णादाणं-हर-दह-मरण-भय-कलुस-तासण-परसंतिगऽ भेज्जलोभमूलं काल-विसम-संसियं अहोऽच्छिण्णतण्ह-पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर-विधुर-बसण-मगण-उस्सव-मत्त-प्पमत्तपसुत्त-वंचणाखिवण-घायणपर-अणिहुयपरिणामतक्क रजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया साहुगरहणिज्जं पियजण-मित्तजण-भेदविप्पीतिकारक रागदोसबहुलं पुणो य उप्पूर-समर-संगाम-डमर-कलि-कलह-वेहकरणं दुग्गतिविणिवायवड्डणं भव-पुणब्भवकरं चिरपरिचितमणुगयं दुरंतं । तइयं अधम्मदारं॥ प्रदिण्णादाणस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य णामाणि गोण्णाणि होति तीसं, तंजहा–१. चोरिक्क २. परहर्ड ३. अदत्तं ४. कूरिकर्ड' ५. परलाभो' ६. असंजमो ७. परधणम्मि गेही ८. लोलिक्का' ६. तक्करत्तणं ति य १०. अवहारो ११. हत्थलहुत्तणं" १२. पावकम्मकरणं १३. तेणिक्का' १४. हरण-विप्पणासो १५. आदियणा १६. लुंपणा धणाणं १७. अप्पच्चो १८. प्रोवीलो १६. अक्खेवो २०. खेवो १. अदिलदाणं (क, ख, घ)1 टककृतं दृश्यते (व)। २. वाचनान्तरे त्विदमेव पठयते-छिद्रविषम- ५. परलोभो (क, ख, ग, घ, च)। पापकं च (वृ)। ६. लोलिक्क (ग)। ३. वंचक्खिवण (ग, च)। ७. हत्थलत्तणं (व); हत्थलहुत्तणं (वृपा)। ४. कूरिकर (क) कूरिकयं (ख); क्वचित्तु 'कुछ- ८. तेणक्कं (ग)। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५८ चोरिय-चोरपगार- पदं ३. पण्हावागरणाई २१. विक्खेव २२. कूडया २३. कुलमसी य २४. कंखा २५ लालप्पणपत्थणा य २६. 'आससणाय वसणं" २७. इच्छा मुच्छा य २८. तण्हा गेही २६. नियडिकम्मं ३०. अपरच्छति । अविय तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होंति तीसं प्रदिण्णादाण स पाव- कलिकलुस-कम्मबहुलस्स गाई || तं च पुण कति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया कयकरण-लद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अतिमहिच्छ - लोभगत्था, दद्दर - प्रोवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजका' भग्गसंधिया रायदुद्रुकारी य विसयनिच्छूढा' लोकवज्झा, उद्दहक' - गामघाय पुरघाय-पंथघायग-प्रालीवग" - तित्थभेया लहुहत्थ-संपउत्ता जूईकरा' खंडरक्ख-त्थी चोर-पुरिसचोर-संधिच्छेया य गंथिभेदग - परधणहरणलोमावहार-अक्खेवी हडकारक" -निम्मद्दग- गूढचोर-गोचोर-ग्रस्सचोरगदासिचोरा य एकचोरा श्रोकडूक-संपदायक - उच्छिपक सत्थघायक- बिलकोलीकारका य निगाह - विप्पलं पगा" बहुविहतेणिक्कहरणबुद्धी, " एते अण्णेय एवमादी परस्स दव्वाहि जे अविरया || रणो परधनहरण-पदं ४. विपुलबल - परिग्गहा य वहवे रायाणो परधणम्मि गिद्धा चउरंग- समत्त" बलसमग्गा निच्छिय-वरजोह जुद्धसद्धिय ग्रहमहमिति' दप्पिएहि सेन्नेहि" संपरिवुडा पउम - सगड - सूइ चक्क सागर-गरुलवू हाइएहि " ऋणिएहि उत्थरंता अभिभूय हरति परधणाई || धत्थं जुद्ध-पदं ५. अवरे रणसीसद्धलक्खा संगामम्मि प्रतिवयंति सण्णद्धबद्धपरियर- उप्पीलिय १. आसासणाय वमणं (क, च) ; वसण ( वृ); ६. परवणलोमावहारप्रक्खेवडकारगा (वृपा ) | आणाय वसणं (वृपा ) 1 १०. विलुंपका (ख, घ, च) । ११. बहुविहत हव हरणबुद्धी (वृपा ) | १२. गिद्धा सए दव्वे असंतुद्रा परविसए अभिहणंति २. अदिष्णदास (क, ग) ३. ० रा ( क ) | ४. अणभंजक (ख, ग, घ, वृ) । ५. ० निच्छूढ (क, ग, घ ) । ६. उद्दोहक (वृ); उद्दहक (वृपा ) 1 ७. श्रादीवक ( ख ) 1 ८. जूइकरा (क, घ); जुकिरा (ख, च ) । लुद्धा परघणस्स कज्जे ( क, ख, ग, घ,च, वृपा ) । १३. विभत्त (वृ); समत्त (वृपा ) | १४. भिचेहि (वृ); से न्नेहिं (वृपा ) । १५. ० वहतिएहि (क, ग, घ, च) ( ख ) ; वाचितेहि (वृ ) । ब्रहाहिएहि Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइय अज्झयण (तइयं आसवदार) ६५६ चिंधपट्ट-गहियाउहपहरणा माढि-गुड-वम्मगुडिया' आविद्धजालिका कवय'कंकडइया' उरसिरमुह-बद्धकंठतोण-माइयवरफलगरचित-पहकर-सरभसखरचावकर-करंछिय- सुनिसितसरवरिसचडकरक-मुयंतघणचंडवेग-धारानिवायमगे, अणेगधणुमंडलग्ग-संधित-उच्छलियसत्तिकणग-वामकरगहियखेडगनिम्मलनिक्किट्ठखग्ग - पहरंतकोंत - तोमर - चक्क-गया-परसु-मुसल-लंगल-सूललउल' - भिडिमाल - सब्बल-पट्टिस - चम्मेढ - दुधण-मोट्टिया-मोमगर-वरफलिहजंतपत्थर - दुहण-तोण - कुवेणी- पीढकलिए, ईली - पहरण-मिलिमिलिमिलतखिप्पंत-विज्जुज्जलविरचितसमप्पहणतले, फुडपहरणे, महारण-संख-भेरिवरतूर-पउरपडपडहाहय-णिणाय-गंभीरणंदित-पक्खुभियविपुलघोसे, हय-गयरह-जोह-तुरिय-पसरित-रउद्धत-तमंधकारबहुले, कातरनर-णयणहिययवाउल करे, विलुलिय - उक्कडवर - मउड - तिरीड - कुंडलोडुदामाडोवियपागडपडाग-उसियज्झय-वेजयंति-चामर चलंत-छत्तंधकारगंभीरे, यहेसियहत्थिगुलुगुलाइय-रहघणघणाइय - पाइक्कहरहराइय-अफोडियसीहनाय-छेलियविघुटुक्कुटु-कंठकयसद-भीमगज्जिए, सयराहहसंत-रुसंत-कलकलरवे, आसूणियवयण-रुद्दभीम-दसणाधरोट्ठ-गाढदट्ठ-सप्पहारणुज्जयकरे, अमरिसवसतिव्वरत्त-निद्दारितच्छे, वरदिट्ठि-कुद्धचेट्ठिय-तिवलीकुडिलभिउडि-कयनिलाडे, वधपरिणय-नरसहस्स-विक्कम-वियंभियवले, वगंततुरंग-रहपहाविय-समरभडावडिय-छेय-लाघव-पहारसाधित - समूसवियवाहुजुयल-मुक्कट्टहास-पुक्कत-बोलबहुले, फुरफलगावरणगहिय-गयवरपत्थत-दरियभडखल-परोप्परवलग्गजद्धगविय - विउसितवरासिरोसरियअभिमहपहरेंत - छिन्नकरिकर-वियंगितकरे", अवइद्ध-निसुद्धभिन्न-फालिय-पगलिय-रुहिरकय-भूमिकद्दम-चिलिच्चिलपहे, कुच्छिदालिय - गलत-निभेलितंत-फुरुफुरंत"-विगल-मम्माय-विकयागाढदिन्नपहारमुच्छित - रुलंत - विब्भल - विलावकलुणे यजोह - भमंततुरगउद्दाममत्तकुंजर-परिसंकितजण - निवुक्कच्छिन्नधय - भग्गरहवर - नट्ठसिरकरि १. माढिवरवम्मगुडिया(व); माढिगुडवम्मगुडिया ७. °धय (ख, च)। (वृपा)। ८. फुक्कत (ख, घ, च)। २. कवया (ख, ५)। ६. फलफलगा (क, ग, घ); फडफलगा (च)। ३. कंककडइया (क)। १०. विभंगितकरे (क, ख, ग, घ, च)। ४. निवाय मते (वृपा)। ११. फुरफरेंत (क, घ)। ५. लउड (ख)। १२. विहिय (ख, च)। ६. मुट्ठि (क); मोट्ठि (ख)। १३. बेभल (ख, ग, घ, च)। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० पाहावागरणाई कलेवराकिण्ण - पडिय - पहरणविकिण्णाभरणभूमिभागे', नच्चंतकबंधपउरभयंकरवायस-परिलेंतगिद्धमंडल-भमंतच्छायंधकारगंभीरे। वसु-वसुह-विकंपितठव पच्चक्खपिउवणं परमरुद्द-बीहणगं दुप्पवेसतरगं अभिवडंति' संगामसंकडं परधणं महंता ।। लुटाक-पदं ६. अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावई चोरवंदपागड्डिका' य अडवीदेसदुग्गवासी काल हरित-रत्त-पीत-सुक्किल-अणेगसचिधपट्ट-बद्धा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कज्जे ॥ सामुद्दियचोर-पदं ७. रयणागरसागरं उम्मीसहस्समालाकुलाकुलविनोयपोतकलकरेंतकलियं, पायालसहस्स-वायवसवेगसलिल उद्धम्ममाण-दगरयरयंधकार, वरफेणपउरधवलपुलंपुलसमुट्ठियट्टहासं, मारुयविच्छब्भमाणपाणिय-जलमालुप्पील-'हुलियं, अवि य" समंतनो खुभिय-लुलिय-खोखुब्भमाण-पक्खलिय-चलियविपुलजलचक्कवालमहानईवेगरियापूरमाण - गंभीरविपुलावत्तचवल-भममाणगप्पमाणच्छलंतपच्चोणियत्तपाणिय • पधावियखरफरुसपयंडवाउलियसलिलफुटुंतवीचिकल्लोलसंकुल, महामगर-मच्छ-कच्छभ-अोहार गाह-तिमि-सुसुमार-सावय-समायसमुद्धायमाणक-पूरघोरपउरं, कायरजण-हिययकंपणं, घोरमारसतं महन्भयं भयंकरं पतिभयं उत्तासणगं अणोरपारं आगासं चेव निरवलंब, उप्पाइयपवणधणियनोल्लिय-उवरुवरितरंगदरिय-अतिवेगवेग' चक्खुपहमुत्थरंतं, कत्थइ गंभीरविपुलगज्जिय-गुंजिय-निग्घाय-गरुयनिवतित-सुदीहनीहारि-दूरसुव्वंतगंभीरधुगधुगेंतसई, पडिपहरुभंत-जक्खरक्खसकुहंडपिसायरुसियतज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं', बहुप्पाइयभूयं', विरचितबलिहोमधूवउवचार-दिन्नरुधिरच्चणाकरणपयत - जोगपयय-चरियं, परियंतजुगंतकालकप्पोवमं, दुरंत, महानईनईवइ - महाभीमदरिसणिज्ज, दुरणुचरं विसमप्पस दुक्खुत्तारं दुरासयं लवणसलिलपुण्णं असिय-सिय-समूसियगेहि दच्छतरेहि वाहणेहिं अइवइत्ता समुहमज्झे हणति गंतण जणस्स पोते ॥ १. विणिकिण्णा ' (क)। ५. लुप्ततृतीयकवचनदर्शनात् (व) । २. अभिवदंति (क); अभिवयंति (ग); अति- ६. ०पिसायपडिगज्जिय° (व); पिसायरुसिपतंति (व)। यतज्जाय° (वृपा)। ३. पागट्टिका (ख, च)। ७. उबद्दवाभिभूयं (वृपा)। ४. हुलियकं पि य (क,ग); हुलिकं तं पि य ८. दुरणुच्चरं (ग)। (ख, घ); हुलियं तं पि य (च)। ६. हत्थतरकेहि (क, ख, ग, घ, च)। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइय अज्झयण (तइय आसवदार) दारुणचोर-पदं परदव्वहरणनि रणुकंपा निरवयक्खा गामागर-नगर-खेड-कव्वड-मडंब-दोणमुहपट्टणासम-णिगम-जणवते य धणसमिद्धे हणति, थिरहियय-छिण्णलज्जा वंदिग्गहगोग्गहे य गोहंति, दारुणमतो णिक्किवा णियं हणंति, छिदंति गेहसंधि, निक्खिताणि य हरंति धगधन्नदवजायाणि जगत्रयकुलाणं णिग्घिणमतो परस्स दव्वाहि जे अविरया ।। अदिण्णादाणस्स प.लविवाग-पदं तहेव केई अदिण्णादाणं' गवेसमाणा कालाकालेसु संचरंता चियका-पज्जलियसरस-दरद-कट्टिय-कलेवरे, रुहिरलित्तवयण-अक्खत-खातियपीत-डाइणिभमंतभयकर-जंबुखिखियंते, घूयकय-घोरसद्दे, वेयालुट्ठिय-निसुद्ध-कहकहतपहसित-बीहणक-निरभिरामे, अतिदुभिगंध-बीभच्छदरिसणिज्जे, सुसाणे वणसुन्नघर - लेण - अंतरावण - गिरिकंदर - विसमसावय - समाकुलासु वसहीसु किलिस्संता, सीतातव-सोसिय-सरीरा दड्ढच्छवी निरय-तिरिय-भवसंकडदक्खसंभार-वैयणिज्जाणि पावकम्माणि संचिणंता, दुल्लहभक्खन्नपाणभोयणा पिवासिया झुझिया किलंता मस-कुणिम-कंद-मूल-जंकिंचिकयाहारा उव्विग्गा उप्पूया' असरणा अडवीवासं उवति वालसत-संकणिज्ज। अयसकरा तक्करा भयंकरा 'कास हरामो' त्ति अज्ज दन्वं इति सामत्थं करेंति गुज्झ । बहुयस्स जणस्स कज्जकरणेसु विग्धकरा मत्त-पमत्त-पसुत्त-वीसत्थछिद्दधाती वसणभुदएसु हरणबुद्धी विगव्व रुहिरमहिया परिति नरवतिमज्जायमतिक्कंता" सज्जणजणदुगुछिया" सकम्मेहिं पावकम्मकारी असुभपरिणया य दुक्खभागी निच्चाविल"-दुहम निव्वुइमणा इहलोके चेव किलिस्संता परदन्वहरा नरा बसणसयसमावण्णा ।। १०. तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिता य हया य बद्धरुद्धा य तरितं अति १. परदव्वहरा नरा निरणुकंपा (क, ख, ग, ८. पासुत्त (क, च)। घ, च, वृपा)। ६. वगव्य (क) २. अदिण्णदाणं (क, ग, घ, च)। १०. मतिक्कमंता (क)। ३. अदर (वृपा) ११. °दुग्गंछिया (ख, घ); °दुगंछिया (ग)। ४. खतिय ° (क, ख, घ)। १२. निच्चाइल (क, ग, घ); निच्चाउल ५. खिक्खियते (क, ख, ग, घ, च)। (ख, वृपा)। ६. दुरभिगंध (व)। १३. केपि (क, ख, घ)। ७. अफुया (ख)। १४. तुरियं (ग); तुरितं (च) । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पण्हावागरणाई धाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गाह चारभड-चाडुकराण तेहि' य कप्पडप्पहारनिदय-प्रारक्खिय-खर- फरुस वयण-तज्जण- गलत्थल्ल-उत्थल्लणाहि विमणा चारगवसहि पवेसिया निरयवसहिसरिसं || ११. तत्थवि गोम्मिकप्पहार- दूमण-निन्भच्छण कडुयवयण 'भेसणग-भयाभिभूया'" वित्त-नियंसणा मलिणदंडिखंडवसणा उक्कोडा लंच-पास मग्गण-परायणेहिं गोम्मिक भहिं विविहेहि बंधणेहिं किं ते ? हडि- नियड' - बाल रज्जुय-कुदंड - वरत्त'-लोहसंकल- हत्थं दुय वज्झपट्ट दामक णिक्कोडणेहि, ग्रण्णेहि य एवमादिएहि गोम्मिक - भंडोवकरणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं संकोडण - मोडणाहिं' वज्झति मंदा || १२. संपुड-कवाड - लोहपंजर भूमिघर निरोह- कूव चारग खीलग जुय' - चक्क विततवंधण खंभालण- उद्धचलणबंधण विहम्मणाहि य विहेडयंता, अवकोडकगाढउरसिरबद्ध - उद्धपूरित' - फुरंत उरकडग" मोडणामेडणाहि " बद्धा य नीससंता, सीसावेढ - ऊरुयाल-चप्पडगसंधिबंधण" तत्तसलागसूइयाकोडणाणि तच्छृणविमाणणाणि य खार- कडुयतित्त-नावण जायण कारणस्याणि बहुयाणि पावियंता, उरखोडीदिन्नगाढपेल्लण-टिकसंभग्ग संपंसुलिगा", गल- कालकलोहदंडउर- उदर- वत्थि पट्टि परिपीलिता, मच्छंत" -हियय-संचुण्णियंग मंगा ॥ १३. श्राणत्तीकिकरेहि केति प्रविराहिय वेरिएहिं जमपुरिस सन्निहिं पहया ते तत्थ मंदपुण्णा, चडवेला वज्भपट्ट- पाराइ छिव कस-लत-वरत्त- वेत्त-प्पहारसयतालियगमगा, किवणा " लंवंतचम्म-वण-वेयण विमुहियमणा, घणकोट्टिम-नियल "जुयल कोडिय - मोडिया य कीरति निरुच्चारा, एया अण्णा य एवमादीओ वेयणाश्रो पावा 'पावेति श्रदितिदिया "" वसट्टा बहुमोहमोहिया परवणम्मि लुद्धा १. तेहि (क ) । २. भेसणगाभिभूया (वृ); भेसणगभयाभिभूता (वृपा ) । ३. नियल (ख, घ, च ) | ४. वरत्ता ( ख ) | ५. गोमिक ( क ) । ६. मोडणेहि (ख, व, च) । ७. कोलग (च ) 1 ८. जय ( ग ) । ६. उद्धपुरीय (क, वृपा ) । १०. इह प्रथमावहुवचनलोपो - मोटना नाभ्यामित्येतदुत्तरत्र योज्यते (वृ) । ११. मोडणाहि ( ख, ग, घ, च) । १२. गुरुपाल ( क ) ; ऊरुयावल (वृपा ) । १३. चप्पडसंधि (ख, घ, च) । १४. सर्पसुलिग्गा ( क ) । १५. इह थकारस्य छकारादेशो छान्दसत्वात् (वृ) 1 १६. किविणा ( क ) । १७. नियड ( ख ) । दृश्यस्ततश्च १८. पार्वतदतिंदिया (ख, घ ) । Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (तइयं आसवदारं) फासिदिय विसय-तिब्बगिद्धा, इत्थिगय-रूव-सद्द-रस-गंध-इट्ठ-रति-महितभोग तण्हाइया य धणतोसगा गहिया य जे नरगणा ।। १४. पुण रवि ते कम्मदुब्बियड्ढा उवणीया रायकिंकराणं तेसि बधसत्थगपाढयाणं विलउलीकारकाणं लंचसयगेण्हगाणं कड-कवड-माया-नियडि-आयरण-पणिहिवंचण-विसारयाण बहविहअलियसयजपकाण परलोकपरम्महाणं निरयगति गामियाणं ।। १५. तेहि य आणत्त-जीयदंडा तुरिय' उग्धाडिया पुरवरे सिंघाडग-तिय-चउक्क चच्चर-च उम्मुह-महापह-पहेसु वेत्त-दंड-लउड-कटु-ले?-पत्थर-पणालिपणोल्लि-मुट्ठि-लया-पाद-पण्हि-जाणु-कोप्पर-पहारसंभग्ग-महियगत्ता अट्ठारसकम्मकारणा' जाइयंगमंगा कलुणा सुक्कोट्टकंठगलकतालुजिब्भा जायंता पाणीयं विगयजीवियासा तण्हादिता वरागा तपि य ण लभंति वज्झपुरिसेहि धाडियंता ।। १६. तत्थ य खरफरुसपडहघट्टित-कूडगह-गाढरुट्टनिसट्ठपरामट्ठा वज्झकरकुडिजुय नियत्था, सुरत्तकणवीर-गहिय-विमुकुल'-कंठेगुणवज्झदूत-प्राविद्ध-मल्लदामा मरणभयुप्पण्णसेयमायतणेहुत्तुपियकिलिन्नगत्ता चुण्णगुंडियसरीरा रयरेणुभरियकेसा कुसुभगोविखण्णमुद्धया छिण्णजीवियासा घुण्णता वज्झपाणपीता तिलंतिल चेव छिज्जमाणा सरीरविक्कित्त'-लोहियोलित्त-कागणिमसाणि खावियंता पावा खरकरसएहि तालिज्जमाणदेहा वातिकनरनारिसंपरिवुडा पेच्छिज्जता य नागरजणेण, वज्झनेवत्थिया पणेज्जति नयरमज्झेण, किवणकलुणा अत्ताणा असरणा अणाहा प्रबंधवा बंधुविप्पहीणा विपेक्खंता दिसोदिसिं, मरणभयुब्बिग्गा आघायण-पडिदुवार-संपाविया अधण्णा सूलग्ग-विलग्ग-भिण्णदेहा ॥ १. तरिय (क, ग, घ)। २. मथित ° (क, ख)। ३. चोरः चोरापको मन्त्री, भेदज्ञ: काणकक्रयी। अन्नदः स्थानदश्चव, चोरः सप्तविधः स्मृतः ।।१।। भलनं कुशलं तर्जा, राजभागोऽवलोकनम । अमार्गदर्शनं शय्या , पदभङ्गस्तथैव च ॥२॥ विश्रामः पादपतन, आसनं गोपनं तथा । खण्डस्य खादन चैव, तथाऽन्यन्माहराजि कम् ।।३।। पद्याऽन्युदकरज्जूनां, प्रदानं ज्ञानपूर्वकम् । एताः प्रसूतयो ज्ञेया, अष्टादश मनीषिभिः ॥४।। (ख) ४. तण्हातिता (क, च)। ५, विमुक्कल (ख, च)। ६. कुसुभगोखिन्न ° (क); कुसुममोखण्ण मुद्धया (क्व); कुसुंभगोक्किन्न ° (क्व)। ७. वज्झयाणभीया (क, वपा)। ८. मरीरविक्कित (ख, ग); सरीरविक्कत Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६४ पण्हावागरणाइ १७. ते य तत्थ कीरंति परिकप्पियंगमंगा, उल्लंबिज्जति रुक्खसालेहि केई कलुणाई विलवमाणा, अवरे चउरंग-धणियबद्धा पव्वयकडगा पमुच्चंते दूरपात-बहुविसमपत्थरसहा, अण्णे य गयचलण-मलण-निमद्दिया कीरंति पावकारी, अट्ठारसखंडिया य कीरति मुंडपरसूहि, केई उक्कत्तकण्णो?नासा' उप्पाडियनयणदसणवसणा जिब्भंछिय-छिण्णकण्णसिरा पणिज्जते', छिज्जते य असिणा, निन्विसया छिण्णहत्थपाया य पमुच्चंते, जावज्जीवबंधणा य कीरंति केइ परदव्वहरणलुद्धा कारग्गलनियलजुयलरुद्धा चारगाए-हतसारा सयणविप्पमुक्का मित्तजणनिरक्कया निरासा बहुजणधिक्कारसद्दलज्जाविता अलज्जा' अणुबद्धखुहापरद्धा सीउण्हतण्हवेयणदुहट्टघट्टिय-विवष्णमुह-विच्छवीया विहलमइलदुब्बला किलता कासंता वाहिया य प्रामाभिभूयगत्ता परूढनहकेसमंसुरोमा छग-मुत्तम्मिणियगम्मि खुत्ता तत्थेव मया अकामका बंधिऊण पादेसु कड्डिया खाइयाए छुढा ।। १८. तत्थ य बग-सुणग-सियाल-कोल-मज्जारवंद-संदंसगतुड-पक्खिगणविविहमुहसय विलुत्तगत्ता कय-विहंगा ।। १६. केइ किमिणा य कुथितदेहा अणि?वयणेहि सप्पमाणा-सुठ्ठकयं जं मउति पावो, तुटेण जणेण हम्ममाणा" लज्जावणका य होंति सयणस्सवि दीहकालं मया संता।। २०. पुणो परलोगसमावण्णा नरगे गच्छंति निरभिरामे अंगारपलित्तककप्प-अच्चत्थ सीतवेदण-अस्सामोदिण्ण-सततदुक्खसयसमभिदुते ॥ ततोवि उवट्टि या समाणा पुणोवि पवज्जति तिरियजोणि । तहिपि निरयोवम" अणुभवंति वेयणं ते ॥ २२. अणंतकालेण जति नाम कहिंचि मणुयभावं लभंतिणेगेहि णिरयगतिगमण तिरियभव-सयसहस्स-परियट्टएहि । तत्थवि य भवंतऽणारिया नीचकुलसमुप्पण्णा आरियजणेवि लोगवज्झा तिरिवखभूता य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं १. पमुच्चति (ख, घ)। ८. तण्हा° (क)। २. उबिखत ° (ख); उक्कित्त° (घ, च)। ६. संडास तुंड (क, घ, च)। ३. प्रणीयन्ते आघातस्थानमिति गम्यते (व)। १०. भण्णमाणा (क)। ४. जावज्जीय° (क)। ११. निरओवमं (ख)। ५. निरिक्कया (क, ग)। १२. अणुहवंति (क, घ)। ६. अमज्जा (क), १३. लहंति (ख, घ, च)। ७. पारद्ध (ख, ग, वृ); परद्ध (घ, वृपा)। १४. परियहि (ग)। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण (तइयं आसवदार) निबंधंति निरयवत्तिणि', भवप्पवंचकरण-पणोल्लि', पुणोवि 'संसार-णेमे" धम्मसुति-विवज्जिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुति-पवण्णा य होंति एगंतदंडरुइणो, वेढेता कोसिकारकोडो व्व अप्पगं अट्ठकम्मतंतु-धणबंधणेणं ।। २३. एवं नरग-तिरिय-नर-अमर-गमणपेरंतचक्कवालं जम्मणजरमरणकरण' गंभीरदुक्ख-पखुभियपउरसलिलं संजोगवियोगवीची'-चितापसंगपसरिय-वहबंधमहल्लविपुलकल्लोल-कलुणविलवित-लोभकलकलितवोलवहुलं अवमाणणफेणतिव्वखिसण-पुलंपुलप्पभूयरोगवेयण-पराभवविणिवात--फरुसरिसणसमावडियकढिणकम्मपत्थर - तरंगरंगत - निच्चमच्चुभय - तोयपटुं कसायपायाल-संकुलं भवसयसहस्सजलसंचयं अणंतं उब्वेयणयं अणोरपारं महब्भयं भयंकरं पइभयं अपरिमिय महिच्छ-कलुसमतिवाउवेगउद्धम्ममाण- प्रासापिवासपायाल-कामरतिरागदोसवंधण-बहुविहसंकप्पविपुलदगरयरयंधकार, मोहमहावत्तभोगभममाणगुप्पमाणुब्बलंतबहुगम्भवास - पच्चोणियत्तपाणिय - पधावितवसणसमावण्ण'रुण्णचडमाख्यसमाहयाऽमणुण्णवीचोदाकुलित - भंगफुट्टतनिट्ठकल्लोलसंकुलजल, पमायबहुचंडमुटुसावयसमाहय'-उठायमाणगपूरघोरविद्धसणत्थबहुलं, अण्णाणभमतमच्छपरिहत्थ - अनिहुतिदियमहामगरतुरियचरियखोखुब्भमाण - संतावनिच्चय - चलतचवलचंचल-अत्ताणाऽस रणपुवकयकम्मसंचयोदिण्णवज्जवेइज्जमाण-दुहसयविपाकघुण्णंतजलसमूह, इड्डिरससायगारवोहारगहियकम्मपडिबद्धसत्त- कडिज्जमाणनिरयतलहत्तसण्ण विसण्णबहुल, अरइरइभयविसायसोगमिच्छत्तसेलसकडं, अणातिसंताणकम्मबंधणकिले सचिखल्लसुदुत्तार, अमरनरतिरियनिरयगतिगमणकुडिलपरियत्तविपुलवेलं, हिंसालय - अदत्तादाण - मेहणपरिग्गहारंभ-करणकारावणाणुमोदण-अट्ठाविहणिट्ठकपिडित-गुरुभारोक्कतदुग्गजलोघदूरणिवोलिज्जमाण -उम्मग्गनिमग्गदुल्लभतलं, सारीरमणोमयाणि १. ०वत्तणि (ख, ग, घ, च)। त्ययादिति'-वृत्तिकृता विवरणमिदं व्याख्या२. पणोल्लि-प्रणोदीनि, अत्र द्वितीयाबहुवचन- गतमूलपदमाश्रित्य कृतम् । लोपो दृश्यः (व)। ४. जम्मजरा (ग, च)। ३. संसारणेममूले (क, ख, घ); संसारावत्त- ५. वीई (क); वीति (ख, घ) । णेममूले (ग, च): वृत्तिकृता 'नेम त्ति मूलं' ६. पबाहिय ° (वृपा)। इति व्याख्यातम् । अनेन ज्ञायते मूलमिति ७. पवात (क); पम्मात (ख, ग, घ)। पदं व्याख्यानमस्ति, न तु मूलपाठाङ्गम् । ८. ° वेज्जमाण (ख, वृ)। उत्तरकालीनादर्शपु अस्य पदस्य मूलपाठे ६. गारवापहार (ख)। समावेशी जातः। 'इह च मूलाइति वाच्ये १०. अदत्तदाण (क, ख, ग, घ)। मूल इत्युक्त प्राकृतत्वेन लिङ्गव्य- ११. ° पोलिज्जमाण (क, ग)। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई दुक्खाणि उप्पियंता, सातस्सायपरितावणमयं उव्वुड्डनिवुड्डयं करेंता, चउरंतमहंतमणवयग्गं रु{ संसारसागरं अट्ठियप्रणालंबणपतिठाणमप्पमेयं, चुलसीतिजोणिसयसहस्सगुविलं, अणालोकमंधकार, अणंतकालं निच्च उत्तत्थ-सुण्ण-भयसणसंपउत्ता वसंति उम्विग्गवासवसहिं ।।। जहि-जहि आउयं' निबंधंति पावकारी बंधवजण-सयण-मित्तपरिवज्जिया अणिट्ठा भवंतऽणादेज्ज - दुव्विणीया कुट्ठाणासण - कुसेज्ज-कुभोयणा असुइणो कुसंघयण-कुप्पमाण-कुसंठिया कुरूवा बहुकोह-माण-माया-लोभा बहुमोहा धम्मसण्ण - सम्मत्त - परिभट्टा दारिद्दोबद्दवाभिभूया, निच्च परकम्मकारिणो जोवणत्थरहिया किविणा' परपिंडतक्कका दुक्खलद्धाहारा अरस-विरस-तुच्छकयकच्छिपूरा, परस्स पेच्छंता रिद्धिसक्कार-भोयण विसेस-समुदयविहिं निदंता अप्पक कयंत च, परिवयंता इह य पुरेकडाई कम्माइं पावगाई', विमणा सोएण उज्झमाणा परिभूया होंति सत्तपरिवज्जिया य, छोभा सिप्प-कलासमयसत्थ-परिवज्जिया जहाजायपसुभूया अचियत्ता णिच्चनीयकम्मोवजीविणो लोयकच्छणिज्जा मोहमणोरह-निरासबहुला प्रासापासपडिबद्धपाणा अत्थोपायाण-कामसोक्खे य लोयसारे होति अपच्चंतगा य सुट्ठवि य उज्जमता, तदिवसज्जुत्त-कम्मकयदुक्ख-संठविय-सिथपिंड-संचयपरा खोणदव्वसारा, निच्चं अवधण-धण्ण-कोस-परिभोग-विवज्जिया, रहिय-काम-भोग-परिभोग-सव्वसोक्खा परसिरिभोगोवभोगनिस्साण'-मगणपरायणावरामा अकामिकाएविणेति दुक्खं, णेव सुहं णेव निव्वुर्ति उवलभंति, अच्चंतविपुलदुक्खसय-संपलित्ता परस्स दव्वेहि जे अविरया ॥ एसो सो अदिण्णादाणस्स फलविवागो इहलोइनो पारलोइनो अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भयो' बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चति न य अवेयइत्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति ---एवमासु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो', कहेसी य अदिण्णादाणस्स फलविवागं !! २५. एता निगमण-पदं २६. एयं तं ततियंपि अदिण्णादाणं हर-दह-मरण-भय-कलुस-तासण-परसंतिकऽभेज्ज १. आउगं (क, ख, ग)। २. पमट्ठा (ख, ग, घ)। ३. किवणा (ख, ग, घ)। ४. X (ख, घ, च)। .. पावकारिणः (वृपा) ६. निसण्ण (ख, ग)। ७. महब्भयो (ख, च)। ८. वरवीर ° (ख, घ, च) । ६. अदिण्णदाणस्स (क, ख, ग, घ)। १०. अदिण्णदाणं (क, ख, ग, घ, च)। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण (तइयं आसवदार) लोभभूल' "काल - विसम - संसियं अहोऽच्छिपणतण्ह - पत्थाण-पत्थोइमइयं अकित्तिकरणं अणज्जं छिद्दमंतर-विधुर-वसण-मग्गण-उस्सव-मत्त-प्पमत्त-पसुत्तवंचणाखिवण - घायणपर - अणिहुयपरिणाम - तक्करजणबहुमयं अकलुणं रायपुरिसरक्खियं सया सागरहणिज्ज पियजण-मित्तजण-भेदविप्पीतिकारक रागदोसबहुलं पुणो य उप्पूर-समर-संगाम-डमर-कलि-कलह-वेहकरणं दुग्गतिविणिवायवड्डणं भव-पुणब्भवकरं चिरपरिगतमणुगतं दुरंतं । ततियं अहम्मदारं समत्तं । -त्ति बेमि ॥ १. भिज्जणा (ख, घ, च)। (क, ग); ऽभिज्ज° २. सं० पा.-एवं जाव चिरपरिगत ° | Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं चउत्थं प्रासवदारं उक्खेव-पदं १. जंबू! अभं च च उत्थं ...सदेवमणुयासुरस्स लोयस्स पत्थणिज्ज, पंक-पणग' पासजालभूयं, थी-पुरिस-नपुंसगवेदचिंधं तव-संजम-बंभचेर-विग्घं भेदाययण'वहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजणवज्जणिज्ज उड्ढं नरग-तिरियतिलोक्कप इट्टाणं, जरा-मरण-रोग-सोगबहुलं वध-बंध-विधाय-दुविघायं दसण चरित्तमोहस्स हेउभूयं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं ! चउत्थं अधम्मदारं ।। प्रबंभस्स तीसनाम-पदं २. तस्स य णामाणि गोण्णाणि इमाणि होति तीसं, तं जहा-१. अबभं २. मेहणं ३. चरंत ४. संसग्गि ५. सेवणाधिकारो ६. संकप्पो ७. वाहणा' पदाणं ८. दप्पो ६. मोहो १०. मणसंखोभो ११. अणिग्गहो १२. बुग्गहो। १३. विघामो १४. विभंगो १५. विब्भमो १६. अधम्मो १७. असीलया १८. गामधम्मतत्ती १६. रती २० रागो २१ कामभोग-मारो २२. वेरं २३ रहस्सं २४. गुज्झ २५. बहुमाणो २६. वंभचेर-विग्घो २७. वावत्ति २८. विराहणा २६. पसंगो ३०. कामगुणो त्ति। अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तीसं ।। १. पणय (ग)। २. भेदायण (ख, ग, घ, च)। ३. चिरपरिगय० (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। ४. चउत्थं (व); चरंत (वृपा)। ५. पाहणा (क) ६. विम्गहो (ख, च)। ७. रागचिता (क, ख, ग, घ, च वपा)। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घउत्थं अग्झरणं (च उत्थं प्रासवदार) ६६६ सुरगणस्त प्रभ-पद ३. तं च पुण निसेवंति सुरगणा समच्छरा मोह-मोहिय-मती, असुर-भयग'-गरुल विज्जु-जलण-दीव-उदहि-दिस-पवण-थणिया । अणवणिय-पणवम्णिय-इसिवादिय-भूयवादियकंदिय-महाकंदिय-कहंड-पतगदेवा', पिसाय-भूय-जक्ख-रक्खसकिन्नर-किंपुरिस - महोरग - गंधब्ब - तिरिय- जोइस-विमाणवासि-मणुयगणा, जलयर-थलयर-खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता वितण्डा कामभोगतिसिया.तहाए बलवईए महइए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, प्रबंभे प्रोसण्णा. तामसेण भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंति 'अयणोणं सेवमाणा५ ।। चक्कट्टिस्स प्रबंभ-पदं ४. भुज्जो असुर-सुर-तिरिय-मणुय-भोगरति-विहार-संपउत्ता य चक्कवट्टी सरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह-णग-णगर-णियम-जणवय-पूरवर दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टण-सहस्समंडियं थिमिय-मेयणियं एगच्छत्तं ससागरं भंजिऊण वसुहं नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मय-वसभकप्पा, अभहियं रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणा सोमा रायवंस-तिलगा। रवि-ससि-संख-वरचक्क - सोत्थिय - पडाग-जव-मनछ-कूम्म-रहवर-भग-भवणविमाण-तुरय-तोरण-गोपुर-मणि-रयण-नंदियावत्त-मुसल-णंगल-सुरइयवरकप्परुक्ख-मिगवति-भदासण-सुरुचि - थूभ-बरम उड-सरिय - कुंडल-कुंजर-वरवसभदीव-मंदिर-गरुल-द्धय-इंदकेउ- दप्पण - अट्रावय - चाव-बाण-नक्खत्त-मेह-मेहलवीणा-जुग-छत्त-दाम-दामिणि-कमंडलु-कमल-घंटा-वरपोत-सुइ-सागर-कुमुदगारमगर-हार-गागर-ले उर-णग-णगर-वइर-किन्नर - मयुर-वररायहंस - सारस. चकोर-चक्कवागमिहुण-चामर - खेडग -पव्वीसग-विपंचि-वरतालियंट-सिरियाभिसेय-मेइणि-'खग्ग-ग्रंकुस"-विमलकलस -भिगार-वद्धमाणग-पसत्थ-उत्तमविभतवर-पुरिसलक्खणधरा। बत्तीसं रायवरसहस्साणुजायमग्गा चउसट्ठिसहस्सपवरजुवतीण णयणकता १. भुयंग (क)। ५. अण्णमण्ण° (च)अण्णोपणस्स सेवणया २. दिसि (ख, च)। (); अण्णोण्णं सेवमाणा (वृपा)। ३. पतंग (क, य, ग, घ, च)। ६. भरध (क, ग)। ४. अणुमुक्का (क, ख, ग, घ, च); आदर्गेषु ७. तुरत (क); तुरग (ख, घ, च)। एतत् पदं लभ्यते. किन्तु नैतत् शुद्धमस्ति । ८. सुरुवि (क, घ, च) उन्मुक्तपदस्य प्राकृतरूपं 'उम्मुक्क' इति ६. खग्गंकुस (क, ख, ग, घ, च)। जायते ! न उम्मुक्का= अणुम्मुक्का । १०. वरराय ° (क, ग)। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७० पहावागरणाई - रत्ताभा परमपम्ह कोरंटगदाम चंपक सुतवितवरकणकनिसवण्णा सुजायसव्वंगसुंदरंगा महग्घ-वरपट्टणुग्गय - विचित्तराग- एणि पेणि' - णिम्मिय - दुगुल्लवरचीणपट्ट - कोसेज्ज- सोणीसुत्तक- विभूसियंगा वरसुरभिगंध वरचुण्णवासवरकुसुमभरिय सिरया' कप्पिय-छेयायरियसुकय-रइतमाल- कडगंगय - तुडियपवरभूसण-पिणद्धदेहा एकावलिकंठसुरइयवच्छा पालंवपलं माणसुकयपडउत्तरिज्जमुद्दियापिंगलं गुलिया उज्जल नेवत्थ रइय- चिल्लग - विरायमाणा तेएण दिवाकरोव्व दित्ता सारय - नवथणिय-महुर-गंभीर निद्धघोसा उप्पण्णसमत्तरयणचक्करयण पहाणा नवनिहिवइणो समिद्धकोसा चाउरता चाउराहि सेणाहिं समणुजाइज्जमाणमग्गा तुरंगवती गयवतो रहवती नरवती विपुलकुलविस्सुयजसा सारयससिसकल- सोमवयणा सूरा तेलोक्क निग्यय- पभावलद्धसद्दा समत्तभरहाहिवा नरिंदा, ससेलवण-काणणं च हिमवंत सागरंतं धीरा भुत्तूण भरवासं जियसत्तू पवररायसीहा पुव्वकडतवप्पभावा निविट्ट-संचियसुहा' - गवासस्यमायुवतो भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहि लालियंता अतुल-सद्द - फरिस - रस- रूव-गंधे य अणुभवित्ता तेवि उवणमंति मरणधम्मं, 'प्रवितित्ता कामाणं ॥ बलदेव- वासुदेवस्स प्रबंभ-पदं ५. भुज्जो' बलदेव वासुदेवा य पवरपुरिसा महावलपरकम्मा महाधणुवियड्डका महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा नरवसभा रामकेसवा भायरो सपरिसा वसुदेवसमुद्दविजयमादियदसाराणं, पज्जुण्ण पयिव संब- अनिरुद्ध निसह उम्मुयसारण-गय-सुमुह- दुम्मुहादीण जायवाणं श्रद्धट्टणावि कुमारकोडीणं हिययदयिया, देवीए रोहिणीए देवीए देवकीए य ग्राणंदहियय भावनंदणकरा सोलस रायवरसहस्साणुजातमग्गा सोलसदेवी सहस्स-वरणयण- हिययदयिया पाणामणिarr - रयण - मोत्तिय पवाल- धण-धन्नसंचय - रिद्धि समिद्धकोसा, हय-गय-रहसहस्ससामी गामागर - णगर- खेड कब्बड मडंब - दोणमुह-पट्टणासम-संबाहसहस्सथिमियनिव्वयप मुदितजण - विविहसस्सनिप्फज्जमाणमेइणि" - सर-सरिय तलाग-सेल-काणण-आरामुज्जाण मणाभिरामपरिमंडियस्स दाहिणड्डवेयडगिरिविभत्तस्स लवणजल हिपरिगयस्स छव्विकालगुणकमजुत्तस्स" अद्धभ रहस्स १. पणि ( क, ख, घ, च ) | २. खोमिय (वृपा ) ३. सिरिया ( क ) ; सिरसा (च ) 1 ४. कुंडलकडगंग ( क ); कुंडलंमय (वृपा ) | ५. सागर (वृपा ) 1 ६. संचय ० ( क, ख, घ) । - - - - - ७. अतित्ता कामभोगाणं ( क ) 1 ८. भुज्जो भुज्जो ( ग ) | ६. पब (ख, घ); पइंव ( ग ) । १०. ० सास ० (क, ग, घ ) । ११. ० काम जुत्तस्स ( ख, ग, घ, च) 1 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (च उत्थं आसवदार) ६७१ सामिका, धीरकित्तिपुरिसा पोहबला अइबला अनिहया अपराजियसत्तुमद्दणा रिपुसहस्स-माणमहणा साणुक्कोसा अमच्छरी अचवला अचंडा मितमंजुलपलावा 'हसिय-गंभीर-महुरभणिया" अब्भुवगयवच्छलासरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणम्माण-पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसंदरंगा ससि-सोमागार-कंतपियदसणा अमरिसणाः पयंडडंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्रय-उविद्धगरुलकेऊ बलवग-गज्जंत-दरित - दप्पित - मुट्टियचाणूरमूरगा रिटुवसभघाती-केसरिमुहविप्फाडगा' दरितनागदप्पमहणा जमलज्जुणभंजगा महासउणि-पूतणरिऊ कंसमउडमोडगा जरासंध-माणमहणा । तेहि य 'अविरल सम-सहिय-चंदमंडलसमप्पभेहि सूरमिरीयिकवयं विणिम्मुयंतेहिं" सपतिदंडेहि प्रायवत्तेहि धरिज्जंतेहि विरायंता। ताहि य पवरगिरिगुहरविहरणसमुद्धियाहि निरुवहयचमर-पच्छिमसरीरसंजाताहिं अमइल - सियकमल - विमुकुलुज्जलित-रयतगिरिसिहर-विमलससिकिरणसरिस-कलहोय-निम्मलाहिं पवणाहयचवलचलिय-सललिय-पणच्चियवीइपसरिय-खीरोदगपवरसागरुप्पूरचंचलाहिं माणससरपसर-परिचियावासविसदवेसाहिं कणगगिरिसिहर-संसिताहि प्रोवायुप्पाय चवलजयिणसिग्धवेगाहिं हंसवध्याहिं चेव कलिया", नाणामणिकणग-महरिहतवणिज्जुज्जलविचित्तडंडाहिं सललियाहि नरवतिसिरिसमुदयप्पकासणकरीहि" वरपट्टणुग्गयाहि समिद्धरायकुल-सेवियाहि कालागुरुपवर - कुंदुरुक्क - तुरुक्क - धूववसवास १. महरपरिपुण्णसच्चक्यणा (वृपा) । लियदंडसज्जिएहिं वयरामय-वत्थि-णि उण२. अमसणा (क, ग, च)। जोइय - असहस्सवरकंचणसलागनिम्मिएहिं ३. केसिमुह (वपा)। सुविमलरयय- सुटकृच्छइहि णि उणोविय४. मरीयि ° (ख); सुचिमरीयि (वपा) । मिसिमिसिंत-मणि-रयण-सर-मंडल-वितिमिर५. वाचनान्तरे पुनरातपत्रवर्णकं एवं दृश्यते- कर-निग्गय-पडिहय-पुणरवि पच्चोक्यंतचंचल अब्भपडल पिंगलुज्जलेहिं अविरल-सम-साहिए- मरीइकवयं विणिम्मयतेहि (वृ)। चंदमंडलसमप्प भेहिं मंगलसयभक्ति-च्छेय- ६. कुहर° (ख, ग, घ, च)। विहरण चित्तिखिखिणि - मणि - हेमजाल -विरइय- विचरणं गवामिति गम्यते (वृ)। परिगय-पेरत-कणय-घंटिय-पयलिय-खिणिखि- ७. आमलित (वृपा) । णित-सुमहुर-सुइसुह-सद्दालसोहिएहि सपयरग- ८. सललिय-पवत्त (वृ)। मुत्तदाम-लंबंतभूसणेहिं नरिंद-वामप्यमाण- ६. वीयि ° (क) । रुदपरिमंडलेहिं सीयायव-वायवरिस-विस- १०. वासुदेव-बलदेवा इति प्रक्रमः (व)। दोसणासएहि तमरय-मलबहुल-पडल-धाडण- ११. ०प्पगासण. (ग)। पहाकरेहि मुद्धसुहसिवच्छायसमणुबद्धेहिं वेरु Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७२ पण्हावागरणाई विसद'-गंधुद्धयाभिरामाहि चिल्लिकाहि उभयोपासंपि चामराहि उक्खिप्प. माणाहिं सुहसीतलवातवीतियंगा। अजिता अजितरहा हल-मुसल कणगपाणी संख-चक्क-गय-सत्ति-णंदगधरा पवरुज्जलसुकय-विमलकोत्थुभ-तिरीडधारी कुंडल उज्जोवियाणणा पुंडरीयणयणा एगावलीकंठरइयवच्छा सिरिवच्छसुलंछणा वरजसा सव्वोउय-सुरभिकुसुम-सुरइयपलं ब-सोहंत-वियसंत-चित्तवणमालरइयवच्छा, अटुसयविभत्तलक्खण-पसत्थसुंदरविराइयंगमंगा मत्तगयरिंद-ललियविक्कम-विलसियगती कडिसुत्तगनील-पीत-कोसेज्जवाससा पवरदित्ततेया सारयनवणिय-महरगंभीरनिद्धघोसा नरसीहा सीहविक्कमगई अत्थमिय-पवररायसीहा सोमा वारवइपुण्णचंदा' पुव्वकडतवप्पभावा' निविट्ठसंचियसुहा' अणेगवाससयमायुवंतो भज्जाहि य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता अतुलसद्द-फरिस-रस-रूव-गधे अणुभवेत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। मंडलिय-नरवरेंदस्स प्रबंभ-पदं ६. भुज्जो मंडलिय-नरवरदा सबला सतेउरा सपरिसा सपुरोहिय-अमच्च दंडनायक-सेणावति-मंतनीतिकुसला नाणामणिरयण-विपुलधण-धन्न-संचयनिही समिद्धकोसा रज्जसिरि विपुलमणुभवित्ता विक्कोसंता बलेण मत्ता ते वि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। जुगलियाणं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं प्रबंभ-पदं ७. भज्जो उत्तरकुरु-देवकुरु-वणविवर-पायचारिणो नरगणा भोगुत्तमा भोगलक्षण धरा भोगसस्सिरीया पसत्थसोम्मपडिपुण्णरूवदरिसणिज्जा' सुजात-सव्वंगसंदरंगा रत्तुप्पलपत्तकंत-कर-चरण-कोमलतला सुपइट्ठिय-कुम्मचारुचलणा अणपुव्वसुसंयंगुलीया" उन्नततणुतंबनिद्धनक्खा संठियसुसिलिट्ठगूढगोंफा एणी-कूविद-वत्त-वट्टाणुपुत्वजंघा समुग्ग-निसग्गगूढजाणू" वरवारणमत्त-तुल्लविक्कम-विलासितगती वरतुरग-सुजायगुज्झदेसा पाइण्णह्यब्व १. विसय (क, घ, च)। २. चिल्लकाहिं (क, ग)। ३. चकक० (ख, ग)। ४. गोथभ (क, घ, च)। ५. अत्यमिया (क, ख, ग, घ, च, वृ); अत्यमिय (वृपा)। ६. पुण्णयंदा (क, ख, घ)। ७. पुव्वक्रय ° (ग, च)। ८. निविड़ (ग)। 8. ° सोम ० (ख, ग, घ, च)। १०. ° सुमायं ० (क); आणुपुव्वीसुजायपीवरंगु लीया (वृपा) । ११. निमुग्ग ° (वृषा)। Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (चउत्थं आसवदार) ६७३ निरुवलेवा पमुइयवरतुरग-सोह-अतिरेगवट्टियकडी' साहतसोणंद-मुसल-दप्पणनिगरियवरकणग-च्छरुसरिस-वरवइरवलियमझा उज्जुग-सम-सहिय-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-प्रादेज्ज-लडह-सूमाल-मउयरोमराई झस-विहग-सुजातपोण. कुच्छो झसोदरा पम्हविगडनाभा सन्नतपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइय-पीणरइयपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल-सुजाय-निरुवह्यदेहधारी कणगसिलातल-पसत्थ-समतल-उवइय-विच्छिण्णपिहुलवच्छाजुयसलिभपीणरइयपीवरपउट्ठ-संठियसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसुनिचितघणथिरसुवद्धसंधी पुरवरफलिह'. वट्टियभुया भुयईसरविपुल भोग-प्रायाणफलिह-उच्छृढदीहबाहू रत्ततलोवइयमउय-मंसल-सुजायलक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरसुजायकोमलवरंगुली तंबतलिणसुइरुइल निद्धनक्खा निद्धपाणिलेहा चंदपाणि नेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा' 'रवि-ससि-संखवरचक्क-दिसासोवत्थिय विभत्त-सुविरइय-पाणिलेहा" वरमहिस-वराह-सीहसर्दुल-रिसह-नागवर-पडिपुण्णविउलखंधा चउरंगुलसुप्पमाण-कंबुवरसरिसगीवा अवट्ठिय-सुविभत्त-चित्तमंसू उवचिय-मंसल-पसत्य-सर्दूलविपुलहणुया ओयवियसिल-प्पवाल-बिंबफलसन्निभाधरोट्ठा पंडुरससिसकल -विमलसंख-गोखीर-फेणकुंद-दगरय-मुणालिया-धवलदंतसेढी अखंडदंता अप्फुडियदंता अविरलदंता सुणिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढिन्य अणेगदंता हुयवहनिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा गरुलायत-उज्जुतुंगनासा अवदालियपोंडरीयनयणा कोकासियधवलपत्तलच्छा आणामियचावरुइल-किण्हब्भराजिसंठिय-संगयायय-सजाय. भुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोलदेसभागा अचिरुग्गयबालचंदसंठियमहानिडाला उडुवतिरिव पडिपुण्णसोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा" घणनिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकूडागारनिपिडियग्गसिरा' हुयवहनिद्धंतधोयतत्ततवणिज्ज-रत्तकेसंतकेसभूमी सामलीपोंडवणनिचियछोडिय-मिउ-विसद-पसत्थसुहुम-लक्खण-सुगंध-सुंदर-भुयमोयग-भिंग-नील - कज्जल - पहट्ठभमरगण- निद्ध १. कडी गंगावत्त-दाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रवि. नास्ति। किरण-बोहियविकोसायं तपम्ह - गंभीरविगड. २. °वरफलिह (ग)। नाभा (क,ख,ग,घ,च); वृत्तिकृता किञ्चित- ३. दिसामुट्ठिय० (क) । पुरोवर्तिनः 'पम्हविगडनाभा' इति पाठस्य ४. ४ (क)। व्याख्यायां विकृतमिदम् –इद च विशेषणं न ५. पंडर ० (क, ग, घ)। पुनरुक्तम् । पूर्वोक्तस्य नाभिविशेषणस्य ६. ४ (क, ख, ग)। बाहुल्येनापाठादिति (ब)। एतेन प्रतीयते केषु ७. रुत्तिमंग ° (क, ग)। चिदादर्शषु नाभिवर्णकं पाठद्वयमुपलभ्यते, ८. ° सन्निभ° (क)। किन्तु बहुलेषु आदर्शेषु असौ टिप्पणगतः पाठो ६. नेलग (क); नेल (ख)। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ पण्हावागरणाई निगुरुव-निचिय कुंचिय-पयाहिगावत्त-मुद्धसिरया सुजात - सुविभत्त-संगयंगा लक्खणवंजणगुणोववेया पसत्यबत्तीसलक्खणधरा हंसस्सरा कुंचस्सरा दुंदुभिस्सरा सीहस्सरा 'ग्रोधस्सरा' मेघस्सरा" सुस्सरा सुस्सरनिग्धोसा वज्जरिसनारायसंघयणा समचउरंस संठाणसंठिया छायाउज्जोवियंगमंगा छवी निरातंका कंकरगहणी कोतपरिणामा सउणिपोस - पिट्ठतरोरुपरिणया पउमुप्पलसरिसगंधसास सुरभिवयणा ग्रगुलोमवाउवेगा अवदाय- निद्ध-काला 'विग्गहिय-उष्णयकुच्छी' श्रमय र सफलाहारा तिगाउय-समूसिया तिपलियोनमट्टितीका तिष्णि य पलियोमाई परमाउं पालयित्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं, अवितित्ता कामाणं ॥ जुग लिणीनं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं प्रबंभ-पदं ८. पमया विय तेसि होंति - सोम्मा सुजाय सव्वंग सुंदरीश्रो पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता' प्रतिकंत विसप्पमाण-मउय सुकुमाल कुम्मसंठिय-सिलिटुचरणा उज्जुमउय-पीवरसुसंहतंगुलीओ' ग्रब्भुण्णत - रतिद-तलिण-तंत्र-सुइ-द्विनवखा रोमर िवसंठि जण पसत्थ-लक्खण-प्रकोप्प- जंघजुयला सुणिम्मित- सुनिगूढजण्णू मंसल-पसत्थ- सुबद्ध-संधी कयलीसंभातिरेकसंठिय- निव्वणसुकुमाल-मउयकोमल- श्रविरल- सम-सहित वट्ट- पीवर निरंतरोरू अट्ठावयवी चिपसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी वयणायामप्पमाणदुगुणिय-विसाल मंसल सुवजहणवरधारिणीश्रो वजविराइय-पसत्यलक्खण निरोदरीयो तिवलिवलित-तणुनमियमझियाश्रो उज्जुय-सम-सहिय- जच्च-तणु-कसिणनिद्ध-श्रादेज्ज-लडहसुकुमाल-मउय सुविभत्तरोमराई" गंगावत्तग-पदाहिणावत्त-तरंगभंग- रविकिरणतरुण-वोधितको सायं तपउम गंभीरविगडनाभी अणुव्भडपसत्थजातपीकुच्छी सन्नतपासा संगतपासा सुंदरपासा" सुजातपासा मियमायिय-पीपरइतपासा प्रकरंडुय"-कणगरुयगनिम्मल सुजाय - निरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसपमाण-सम १. उज्जरस ( ग ) ! २. मेघस्सरा ओघस्सरा (घ ) । ३. वाचनान्तरे सिघोसादिकानि विशेषणानि १०. ० वरजहण ( क ) । पठ्यन्ते (वु) । ११. रोमराती (क); • रोमरातीओ (ग) i ४. मुद्रितवृत्ती पसयच्छवि, हस्तलिखितवृत्ती- १२. x ( क, ख, ग, घ, च) ; सन्नतपार्वादिविशेषणानि पूर्ववत् (a); वृत्तिसङ्केतानु छवित्ति प्रशस्तत्वचः । सारेणासौ पाठः स्वीकृतः । ५. सगुण ० ( क ) । ६. विग्महितुण्णय ० ( ख, ग ) 1 13. संजुत्ता ( क ) । ८. सुमाहतंगुलीओ (क, ग, घ, च) 1 ६. पट्टिसंठिया ( क ) ; ० पडिसंठिय (ख, घ) १३. अकरंदुय (क, ख ) । १४. ० रुपि ० ( ख ). ° रुय ० (घ) 1 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं प्रज्झयणं (च उत्थं आसवदार) ६७५ सहिय-लट्ठचूचयामेलग-जमल-जुयल-वट्टियपनोहराया भुयंगमणुपुव्वतणुयगोपुच्छवट्ट-सम-संहिय-नमिय-आदेज्ज-लडहबाहा तंबनहा मंसलग्गहत्था कोमलपीवरवरंगुलीया निद्धपाणिलेहा ससि-सूर-संख-चक्क-वरसोत्थिय-विभत्त-सुविरइय-पाणिलेहा पीणण्ण यकक्खवस्थिप्पदेस-पडिपुण्णगलकवोला चउरंगलसप्पमाण-कंबूवरसरिसगीवा मंसलसंठियपसत्थहणया दालिमप्फप्पगास-पीवरपलं वकंचितवराधरा सुंदरोत्तरोट्ठा दधि-दगरय-'कुंद-चंद"-वासंतिमउल-अच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पल-रत्तपउमपत्त-सुकुमालतालुजीहा कणवीरमउल कुडिलऽभुण्णय-उज्जुतुंगनासा सारदनवकमल-कुमुत-कुवलयदल निगरसरिसलक्खणपसत्थ-अजिम्हकतनयणा' यानामियचावरुइल-किण्हव्भराइसंगय-सुजाय-तणुकसिण-निद्धभुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुस्सवणा पीणमट्ट'-गंडलेहा चउरंगुल विसाल - समनिडाला कोमुदिरयणिक रविमलपडिपुण्णसोमवदणा' छत्तुन्नय-उत्तिमंगा' अकविल-सुसिणिद्ध दोहसि रया छत्त-ज्झय-जूव-थूभ दामिणिकमंडल-कलस-वावि-सोत्थिय-पडाग-जव-मच्छ- कुम्म-रहवर - मकरज्झय-अंकथाल अंकुस-प्रहावय-सुपइट्ट-अमर-सिरियाभिसेय-तोरण- मेइणि-उदधिवर-पवरभवण-गिरिवर-वरायस-सुललियगय -उसभ-सीह-चामर- पसत्थवत्तीसलक्खणधरीमो हंससरिच्छगतीनो' कोइल-महयरि-गिरामो कंता सव्वस्स अणुमयानो ववगयवलिपलितवंग-दुव्वन्न-वाधिदोहग -सोयमुक्काओ', उच्चत्तेण य नराण थोवणमूसियानो, सिंगारागारचारुवेसा सुंदर-थण-जहण-वयण-कर-चरण१२ णयणा लावण्ण ख्वजोवणगुणोववेया नंदणवणविवरचारिणीअो व्व अच्छरायो उत्तरकुरुमाणुसच्छरायो अच्छेरगपेच्छणिज्जियाओ तिणि य पलिनोवमाई परमाउं पालायित्ता ताऽवि उवणमंति मरणधम्म, अवितित्ता कामाणं ।। प्रबंभस्स फलविवाग-पदं ६. मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहि हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीर एसु । अवरे परदारेहि" हम्मति विसुणिया धणनासं सयणविप्पणासं च पाउ १. चंद-कुंद (च)। २. अजिम्म° (क, ध, च)। ३. पीणमट्ठसुद्ध (ख)। ४. वयणा (ख, घ, च) ५. ° उत्तमंगा (ग, च)। ६. सल लिय० (क, ग, वृ)। ७. सरिसगतीओ (च)! ८. अणुगयाओ (ख)। ६. वाहि (घ)। १०. दोभग्ग (ध, च)। ११. मुक्का (क, ख, घ)। १२. चलण (ख, च) ! १३. ताओ (च)। १४. प्रवत्ता इति गम्यते (व) । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७६ पहावागरणाइ णंति । परस्स दाराप्रो जे अविरया मेहुणसग्णसंपगिद्धा य मोहरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मणुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झति, मित्ताणि' खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणेय भिदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारो खणेण उल्लोट्टए' चरित्तयो', जसमंतो सुब्वया य पावंति अयसकित्ति', रोगत्ता वाहिया य वड्डेति रोयवाही, दुवे य लोया दुबाराहगा भवंति-इहलोए चेव परलोए-परस्स दाराओ जे अविरया ॥ १०. तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया हया य बद्धरुद्धा य एवं जाव नरगे गच्छंति निरभिरामे विपुलमोहाभिभूयसण्णा ।। ११. मेहुणमूलं च सुव्वए तत्थ-तत्थ वत्तपुव्वा' संगामा बहुजणक्खयकरा" सीयाए दोवतीए कए, रुप्पिणीए, पउमावईए, ताराए, कंचणाए, रत्तसुभद्दाए, अहिल्लि याए', सुवण्णगुलियाए, किण्णरीए, सुरूवविज्जुमतीए, रोहणीए य ।। १२. अण्णेसु य एवमादिएसु वहतो" महिलाकएसु सुव्वंति अइक्कता संगामा गाम धम्ममूला॥ १३. 'इहलोए ताव नट्ठा' 'परलोए वि५२ य नट्ठा महयामोहलिमिसंधकारे घोरे, तसथावर-सुहुमबादरेसु पज्जत्तमपज्जत्तक-साहारणसरीर-पत्तेयसरी रेसु य, अंडज-पोतज-जराउय-रसज-संसेइम-समुच्छिम-उभिय-उववाइएस य, नरगतिरिय-देव माणुसेसु, जरा-मरण-रोग-सोग"-बहुले, पलिग्रोवम-सागरोवमाई अणादीयं प्रणवदग्गं दीमद्धं चाउरंतं संसारकतारं अणपरियटुंति जीवा मोहवस सण्णिविट्ठा॥ १४. एसो सो अबंभस्स फलविवागो इहलोइरो पारलोइलो य अप्पसुहो बहुदुक्खो महभयो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहि मुच्चती, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति -- एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जियो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य अबंभस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं १५. एयं तं प्रबंभंति च उत्थं सदेवमणुयासरस्स लोगस्स पत्थणिज्ज, पंक-पणग१. राज्ञः सकामादिति गम्यते (व)। ६. अहित्तियाए (क, ख, ग, घ); अहित्रिका २. मित्ता (क, ग, घ)। अप्रतीता (वृ)। ३. उल्लट्टर (क); उल्लोट्ठए (ग)। १०. बहुओ (क, ख)। ४. चरिताओ (ग, च)। ११. x (क, ग, घ)। ५. अकित्ति (वृ); अयसकित्ति (वृपा)। १२. परलोयम्मि (ख, घ)! ६. पण्हा० ३।१०-२० । १३. X (क, ख, घ)। ७. वृत्तपुब्वा (ख)। १४. सं० पा०-पत्थगिज्ज एवं चिरपरि । ८. जणक्ख यकरा (क, ख, ग, घ, च)। Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं प्रज्झणं (चउत्थं आसवदारं ) पासजालभूयं थी- पुरिस नपुंसगवेदविधं तव संजम बंभचेरविग्धं भेदाययणबहुपमादमूलं कायरकापुरिससेवियं सुयणजणवज्जणिज्जं उड्ढं नरग- तिरियतिलोक्कपट्ठाणं जरा-मरण-रोग-सोगबहुलं वध-बंध- विधाय दुव्विधायं दंसणचरितमोहस्स हे भूयं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं । चउत्थं अधम्मदारं समत्तं । -त्ति बेमि ॥ १. चिरपरिजिय (ग, घ ) ; चिरपरिगय 0 (वृपा) ६७७ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं यणं पंचमं प्रासवदारं उक्लेव पदं - १. जंबू ! एत्तो' परिग्गही पंचमो उ नियमा - णाणामणि - कणगरयण-महरिहपरिमल-सपुत्तदार परिजण दासी दास - भयग- पेस ह्य-गय-गो-महिस उट्ट-खरअय-गवेलग-सीया-सगड - रह जाण जुग्ग संदण सयणासण वाहण कुविय-धणधण पाण-भोयण - श्रच्छायण - गंध मल्ल भायण भवणविहिं चैव बहुविहीयं, भरहं णग-नगर-नियम' - जणवय- पुरवर दोणमुह-खेड - कब्बड - मडंब संबाह-पट्टणसहस्मंडियं थिमियइणीयं, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं श्रपरिमियमत हम गय-महिच्छसार- निरयमूलो, लोभकलिकसाय - महासंघों, चिंतासयनिचिय' -विपुलसालो, 'गारव-पविरल्लियग्गविडवो", नियडि-तयापत्तपल्लवधरो, पुप्फफलं जस्स कामभोगा आयासविसूरणाकलह-पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, बहुजणस्स हिययदइम्रो इमस्स मोक्खवर - मोत्तिमग्गस्स पहिभू' । चरिमं ग्रहम्मदारं ॥ परिग्गहस्स तीसनाम-पदं २. तरस य नामाणि गोप्या होंति तीस, तं जहा - १. परिग्गहो २. संचयो ३. 'चयो ४. उवचयो" ५. नहाणं ६. संभारी ७. संकरो ८. आयरों ६. पिंडो १. इतो ( ग ) | २. निगम (च) | ३. महाखंधी (ख, च ) ४. चितायास ° (वृ); चितासय ० ( वृपा ) । ५. गोरव -पविरेल्लि (घ, वृपा ) । ६७८ ६. फलिह° (ग, च) । ७. नामाणि इमाणि (ख, च ) । पचओ उवचओ (क, ग) 8. प्रायारो (क, ख, घ, च) । Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचम अज्झयण (पंचम आसवदार) ६७६ १०. दव्वसारो ११. तहा' महिच्छा १२. पडिबंधो १३. लोहप्पा १४. महद्दी १५. उवकरणं १६. संरक्खणा य १७. भारो १८. संपायुप्पायको १६. कलिकरंडो २० पवित्थरो २१. अणत्थो २२. संथवो २३. अगुत्ती २४. आयासो २५. अविनोगो २६. अमुत्ती २७. तन्हा २८. अणत्थको २६. अासत्ती ३०. असंतोसो त्ति। अवि य तस्स एयाणि एवमादीणि नामधेज्जाणि होति तोसं ॥ देवाणं परिग्गह-पदं ३. तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिगो परिग्गहरुयी' परिग्गहे विविहकरणबुद्धी, देवनिकाया य–असुर-भुयग - गरुल-विज्जु-जलण-दीव-उदहि-दिसि' -पवणथणिय-प्रणवष्णिय-पणवणिय - इसिवाइय-भूतवाइय -कंदिय-महाकदिय-कुहंडपतगदेवा, पिसाय-भूय-जक्ख - रक्खस-किन्नर-किंपुरिस -महोरग -गंधव्वा य तिरियवासी। पंचविहा जोइसिया य देवा,-वहस्सती-चंद-सूर-सुक्क-सनिच्छरा,राहु-धूमकेउबुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकणगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि' चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नाणासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम-मंडलगती उवरिचरा। उड्डलोगवासी दुविहा वेमाणिया य देवा-सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदबंभलोग-लतक-महासुक्क-सहस्सार-प्राणय - पाणय-प्रारणच्चुय-कप्पवरविमाणवासिणो सुरगणा गेवेज्जा अणुत्तरा य दुविहा कप्पातीया विमाणवासी महिड्डिका उत्तमा सुरवरा। एवं च ते चउब्विहा सपरिसा वि देवा ममायंति भवण-वाहण-जाण-विमाणसयणासणाणि य नाणाविहवत्थभसणाणि य पवरपहरणाणि य नाणामणिपंचवण्णदिव्वं च भायणविहिं नाणाविह - कामरूव - वेउब्विय-अच्छरगणसंघाते दीवसमढे दिसायो चेतियाणि वणसंडे पवते गामनगराणि य पारामज्जाणकाणणाणि य कृव-सर-तलाग-वावि-दीहिय-देवकल-सभ-प्पव-वसहिमाइयाई २. महंती (वृ०); महद्दी (वृषा) । ३. ° रुती (क, ग)। ४. दिस (क, ग, घ)। ५. पतत ° (क); पतंग (च)। ६. जोइसियम्मि (ख, घ)। ७. देवतगणा (ख, घ, च)। ८. दिसाओ विदिसाओ (ग, च)। Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८० पाहावागरणाई बहुकाई कित्तणाणि य परिगेण्हित्ता परिग्गहं विपुलदव्वसारं देवावि सइंदगा न तित्ति न तुट्टि उवलभंति अच्चंत-विपुल-लोभाभिभूतसन्ना।। वासहर-इसुगार-बट्टपन्वय-कुंडल-रुयगवर-माणुसुत्तर-कालोदधि-'लवण-सलिल' दहपति - रतिकर - अंजणकसेल-दहिमुहम्रोवातुप्पाय-कंचणक - चित्त'-विचित्त जमक-वरसिहरि-कूडवासी ।। मणुस्साणं परिग्गह-पदं ४. वक्खार .. अकम्मयभूमीसु, सुविभत्तभागदेसासु कम्मभूमिसु जेऽवि य नरा चाउरंतचक्कवट्टी वासुदेवा बलदेवा मंडलीया इस्सरा तलवरा सेणावती इभा सेट्ठी रट्ठिया पुरोहिया कुमारा दंडणायगा माविया सत्थवाहा कोडुबिया अमच्चा एए अण्णे य एवमादी परिग्गहं संचिणंति अणतं असरणं दुरतं अधुवमणिच्चं असासयं पावकम्मनेम्मं अवकिरियवं विणासमूलं वहबंधपरिकिलेसबहुलं' अणंतसंकिले सकरणं ते तं धण-कणग-रयण-निचयं पिडिता चेव लोभ घस्था संसारं अतिवयंति सव्वदुक्ख-संनिलयणं । परिग्गहत्थं सिक्खा-पदं ५. परिगहस्सेव य अट्ठाए सिप्पसयं सिक्खए बहुजणो कलायो य बावरि सुनि पुणासो लेहाइयायो सउणरुयावसाणाम्रो गणियप्पहाणाम्रो, चउसटुिं च महिलागणे रतिजणणे, सिप्पसेवं, असि-मसि-किसी-वाणिज्ज, ववहार, अत्थसत्थईसत्थ-च्छरुप्पगयं, विविहाओ य जोगजुंजणानो" य, अण्णेसु एवमादिएसु बहुसु कारणसएसु जावज्जीवं नडिज्जए, संचिणंति मंदबुद्धी ।। परिग्गहीणं पवित्ति-पदं ६. परिग्गहस्सेव य अट्ठाए करंति पाणाण वहकरणं अलिय-नियडि-साइ-संपओगे परदव्व-अभिज्जा सपरदारगमणसेवणाए" प्रायास-विसूरणं कलह-भंडण-वेराणि य अवमाण-विमाणणाओ इच्छ-महिच्छ-प्पिवास-सतततिसिया तण्ह-गेहि-लोभघत्था अत्ताण-अणिग्गहिया करेंति कोहमाणमायालोभे अकित्तणिज्जे ।। १. भूतसत्ता (च)। ८. मनसंकिलेस (क)। २. इक्खुगार (ख, घ, च)। ६. पिंडता (ख)। ३. लवणसमुद्द (क)। १०. अविचयंति (ख, घ)। ४. दहिमुहवातुप्पाय (क); ° उवातुप्पाय (च)। ११. परिग्रहाय शिक्षत इति प्रतीतम् (व) । ५. X (क, ख, ग, घ)। १२. बहुवचनार्थत्वादेकवचनस्य (वृ)। ६. अकिरियव्वं (क); अविकिरियव्यं (घ)। १३. ४ (ख, घ); ° अभिगमण ° (ग)। ७. मनंतं परि० (क)। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (पंचमं आसवदार) ६५१ ७. परिग्गहे चेव हांति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाय-सण्णा य कामगुण अण्हगा य इंदियलेसाप्रो। सयण-संपयोगा सचित्ताचित्तमीसगाई दव्वाई अणंतकाई इच्छंति परिधेत्तुं । सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहि भणियो, नस्थि एरिसो पासो पडिबंधो' सव्वजोवाण सव्वलोए । परिग्गहस्स फलविवाग-पदं ८. परलोगम्मि य नट्ठा' तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमवादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग- साहारणसरीर-पत्तेयसरी रेसु य, अंडज-पोतज - जराउय-रसज-ससेइम-समुच्छिम-उब्भिय-उववाइएसु य, नरगतिरिय-देव-माणुसेसु, जरा - मरण-रोग-सोग-बहुले, पलिनोवम-सागरोवमाई अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अणु परियटृति जीवा मोहवससणिण विट्ठा ॥ ६. एसो सो परिग्गहस्स फलविवाग्रो इहलोइनो पारलोइयो' अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भनो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता' अत्थि हु मोक्खोत्ति-एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं १०. एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा-नाणामणि-कणग-रयण-महरिह परि मल-सपुत्तदार-परिजण-दासी - दास-भयग-पेस-हय-गय-गो-महिस-उट्ट-खर-अयगवेलग - सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग-संदण-सयणासण-वाहण-कुविय-धण-धण्णपाण-भोयण-अच्छायण-गंध-मल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरहं णग-णगर-णियम-जणवय- पुरवर-दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संवाह-पट्टणसहस्समंडियं थिमियमेइणीय, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमियमणंततण्हमणगय-महिच्छसार-निरयमूलो, लोभकलिकसाय-महवखंधो, चितासयनिचियविपूलसालो, गारव-पविरल्लियग्गविडवो, नियडि-तयापत्तपल्लवधरो, पूप्फफलं जस्स कामभोगा, प्रायासविसरणाकलह-पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो. बहजणस्स हिययदइयो° इमस्स मोक्खवर-मोत्तिमग्गस्स फलिहभूयो। चरिम अधम्मदारं समत्तं । १. पडिबंधो अस्थि (ख, ग, घ, च)। २. ४।१३ सूत्रे अतः प्राग् 'इहलोए ताव नट्ठा' पाठो विद्यते, अत्र तु स न दृश्यते । ३. सं० पा.-एवं जाव परियति । ४. परलोइओ (ख, ग, घ, च)। ५. अवेतित्ता (ग)। ६. सं० पा०-एवं जाव इमस्स । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५२ पहावागरणाई एएहिं पंचहि असंवरेहि रयमादिणित्तु' अणुसमयं । चउविहगतिपेरंतं, अणुपरियटृति संसारं ॥१॥ सव्वगई - पक्खंदे, काहेति अणंतए अकयपुण्णा। जे य ण सुणंति धम्म, सोऊण य जे पमायंति ॥२!! अणुसिटुंपि बहुविहं, मिच्छदिट्ठी णरा अवुद्धीया। बद्धनिकाइयकम्मा, सुणेति धम्मं न य करति ॥३।। कि सक्का काउं जे, जं णेच्छह ओसहं मुहा पाउं । जिणवयणं गुणमहुरं, विरेयणं सव्वदुक्खाणं ।।४।। पंचेव' उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेण । कम्मरय - विप्पमुक्का, सिद्धिवरमणुत्तरं जंति ।।५।। ३. पंचेव य (च)। १. ° अचिणित्तु (वृ)। २. अणुसटुं (क, ग, घ); अणुसिट्ठा (वृ) ! Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छठें अज्झयणं पढमं संवरदारं उक्खेव-पदं १. जंबू ! एत्तो संवरदाराई, पंच वोच्छामि आणुपुत्वीए । जह भणियाणि भगवया, सव्वदुहविमोक्खणट्ठाए ।।१।। पढम होइ अहिंसा, बितियं सच्चवयगति पण्णत्तं । दत्तमणुण्णायसंबरो, य बंभचेरमपरिग्गहत्तं च ॥२॥ तत्थ पढम अहिंसा, तसथावरसव्वभूयखेमकरी। तीसे सभावणाए, किंचि वोच्छं गुणुद्देसं ।।३।। २. ताणि उ इमाणि सुव्वय-महव्वयाइं 'लोकहिय-सव्वयाई' सुयसागर-देसियाई तव-संजम-महव्वयाई सीलगुणवरव्वयाई सच्चज्जवव्वयाई नरग-तिरिय-मणुयदेवगति-विवज्जकाई सव्वजिणसासणगाई कम्मरयविदारगाई भवसयविणासणकाई दुहसयविमोयणकाई सुहसयपवत्तणकाई कापुरिसदुरुत्तराई सप्पुरिसनिसेवियाई निव्वाणगमणमग्ग-सग्गपणायगाई संवरदाराई पंच कहियाणि उ भगवया ॥ अहिंसा-पज्जवनाम-पदं ३. तत्थ पढम अहिंसा, जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति १. लोए घिइअव्वयाई (4); लोयहियसव्वयाइं ग, च)। (वृपा)। ३. सप्पुरिसतीरियाई (वृपा)। २. विवज्जियकाई (क); विवज्जयकाई (ख, ४. पयाणगाइं (वृपा)। ६८३ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८४ दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा निव्वाण' निब्बुई' समाही सत्ती कित्ती कती रतीय विरती य सुयंग तित्ती दया विभुती खंती समताराहणा महंती वोही बुद्धी धिती समिद्धी रिद्धी विद्धी ठिती पुट्ठी नंदा भद्दा विसुद्धी लद्धी विसिद्वदिट्ठी कल्लाणं मंगल मोस्रो विभूती रक्खा सिद्धावास प्रणासवो केवलीणं ठाणं सिव समिई - सील-संजमो त्ति य सीलपरिघरों संवरो य गुत्ती ववसाश्रो उस्सो' य जणो, प्रायतणं जयणमप्पमाम्रो । श्रासासो वीसासो, अभग्रो सवूस्स विग्रमाधाओ । अहिंसा-थुइ-पद ४. एसा सा भगवती हिंसा, जा सा चोक्खपवत्ता सुती या विमल - पभासा य निम्मलतरति । एवमादीणि निययगुण- निम्मियाई पज्जवणामाणि होति अहिंसाए भगवतीए ॥ भीयाणं पिव सरणं, पक्खीणं पिव गयणं । तिसियाणं पिव सलिलं, खुहियाणं पिव ग्रसणं । समुद्दम व पोतवहणं, चउप्पयाणं व आसमपयं । दुहट्टिया' व श्रसहिवलं, ग्रडवीमज्भे व सत्थगमणं ॥ ५. एतो विसितरिका अहिंसा, जा सा- पुढवि-जल-प्रगणि- मारुय - वणप्फइ - बीज- हरित जलचर-थलचर-खहचर-तसथावर - सव्वभूय खेमकरी || १. वाणं ( क ) | २. नेव्वुई (क, ख ) । ३. सोलायारो (क); सोलघरो (ख, ध, च) 1 ४. उस्सतो ( क ) 1 पण्हावागरणाई ५. चोक्खा पवित्ती ( क ) 1 ६. गमणं (क, ग, वृ) । 13. दुहट्ठियाणं ( च, ग ) । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टु अज्झणं (पढमं संवरदारं ) श्रहिंसा-माहत्य-पदं ६. एसा भगवती ग्रहिंसा, जा सा -- अपरिमियनाणदंसणधरेहिं सीलगुण-विषय-तव-संजमनायकेहि तित्थंकरेहिं सव्वजगवच्छलेहि तिलोग महिएहि जिणच देहि सुट्ठदिट्ठा, मोहिजिणेहि विष्णाया, उज्जुमतीहि विदिट्ठा, विपुलमतीहि विदिता, पुत्रधरेहिं अधीता, वीहि पतिष्णा । आभिणिवोहियनागीहि सुयनाणीहिं मणपज्जवनाणीहि केवलनाणीहिं आमोस हिपत्तेहि खेलोसहिपतेहि जल्लोसहिपत्तहि विप्पोसहिपतेहि सव्बोसहिपत्तेहि daबुद्धीहि कोबुद्धीहिं पदाणुसारीहि संभिण्णसोतेहिं सुयधरेहिं मणबलिए हिं afraलिएहिं कायवलिएहि नाणवलिएहि दंसणवलिएहिं चरितवलिएहि खीरासह महासवेहिं सप्पियासवेहि अक्खीणमहाणसिएहि चारणेहिं विज्जाहरेहि चउत्थभत्तिएहि 'छट्टभत्तिएहि द्रुमभत्तिएहि एवं दसम दुवालसचोट्स सोलस - श्रद्धमास मास दोमास चउमास-पंचमास" - छम्मासभत्तिएहिं उक्खित्तचरएहिं निक्खित्तचरएहिं अंत चरएहिं पंतचरएहिं लूहचरएहिं समुदाणचरएहि अण्णइलाएहि मोणच रहि संसकप्पिएहि तज्जायस सदृकप्पिएहि उवनिहिएहिं सुद्धेस णिएहि संखादत्तिहि दिट्ठलाभिएहि श्रदिट्ठलाभिएहि पुलाभिएहि विलिएहि पुरिमडिएहि एक्कासणिएहिं निव्वितिएहि भिष्णपिंडवाइएहि परिमियपिंडवाइएहि अंताहारेहि पंताहारेहि रसाहारेहिं विरसाहारेहिं लूहाहारेहिं तुच्छाहारेहिं अंतजीवीहि पंतजीवीहि लूहजीवीहि तुच्छजीवीहि उवसंतजीवहि पसंतजीविहिं विवित्तजीवीहिं अक्खी र महुस पिएहि श्रमज्जमंसासिएहि ठाणाइएहि पडिमट्ठाईहि' ठाणुक्कडिएहि वीरासणिएहि सज्जिएहि डंडाइएहि लगंडसाईहिं एगपासगेहि आयावहि अप्पाजहि प्रणिट्टुभएहि अकडूयएहि aahari-लोमनखेहि सव्वगायपडिक म्मवित्यमुक्केहिं समणुचिण्णा । सुरविदितत्थ काय बुद्धीहि । धीरमतिबुद्धिणो य जे ते ग्रासीविस उग्गतेयकप्पा निच्छय-ववसाय-पज्जत्तकयमतीया णिच्चं सज्झायज्झाण-प्रणुवद्धधम्मज्झाणा पंचमहव्वयचरित्तजुत्ता समिता समिती समितपावा छव्विहजगवच्छला " निच्चमप्पमत्ता, एएहिं " अण्णेहि य जा सा प्रणुपालिया भगवती । १. सव्वजगजीव० (क) 1 २. विविदिता (घ ) | ३. सप्पियासह (ख, ग, घ, च) । ४. एवं जाव (क, ख, ग, घ ) । ५. प्रक्खित्त ० ( क ) 1 ६. पडिमट्टाइएहि (ख, घ, च) । ६८५ ७. ठाणुक्कुडुएहिं ( क ) । ८. समनुपालितेति सम्बन्ध: ( वृ) 1 ६. मिच्छत्तकयमतीया (ख, घ); विणीयपज्जतकयमतीया (वृपा ) | १०. छव्हिजगजीववच्छला ( क ) । ११. एएहिय ( घ च ) । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८६ उछन वेसणा-पदं ७. इमं च पुढवि दग प्रगणि मारुय तरुगण-तस-यावर सव्वभूय-संजमदयटुयाए सुद्ध उंछं गवेसियध्वं अकतमकारितमणाहूयमणुद्दिद्धं प्रकीयकडं, नवहिय कोडीहिं सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं उग्गमउप्पायनेसणासुद्ध, ववराय-चयचइय' - चत्तदेहं च, फासूयं च । ८. ε. न निसज्ज हापयणक्खासुग्रवणीयं न तिमिच्छा-मंत-मूल भेसज्जहेउ', न लक्खपाय - सुमिण - जो इस निमित्त कह कुह कप्पउत्तं ॥ नवि भणा, नवि रक्खणाते, नवि सासणाते, नवि डंभण- रक्खण- सासणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ नवि वंदणाते, नवि माणणाते, नवि पूयणाते, नवि वंदण- माणण- पूयणाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ १०. नवि होलणाते, नवि निंदणाते, नवि गरहणाते, नवि होलण- निंदण गरहणाते भिक्खं गवेयिव्वं ॥ ११. नवि भेसणाते, नवि तज्जणाते, नवि तालणाते, नवि भेसण-तज्जण तालणाते भिक्खं गवेयिव्वं ॥ १२. नवि गारवेणं, नवि कुहणयाते, नवि वणीमयाते, नवि गारव - कुहण-वणी मयाते भिक्खं गवेसियव्वं ॥ १३. नवि मित्तयाए, नवि पत्थणाए, नवि सेवाए, नवि मित्तत-पत्थण सेवणाते भिक्खं गवेयिव्वं ॥ १४. अण्णाए गढिए प्रदुट्टे प्रवीणे' अविमणे अकलुणे प्रविसाती अपरिदंतजोगी जयण-घडण करण- चरिय- विषय - गुण जोगसंपत्ते भिक्खू भिक्खेसणाते निरते ।। १५. इमं च सव्वजगजीव- रक्खणदयद्वारा पावयणं भगवया सुकहियं प्रतहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं प्रकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विनोसमणं || पहावागरणाई हिंसाए पंचभावणा-पदं १६. तस्स इमा पंच भावणाओ पढमस्स वयस्स होंति पाणातिवायवेरमणपरिरक्खणट्टयाए || १७. पढमं - ठाणगमणगुणजोगजुंजण-जुगंत रनिवातियाए दिट्ठीए इरियव्वं कीड १. चयिय ( क ) ; चात्रिय (क्व ) | २. भेसज्जकज्जहेउं ( क, ख, ग, घ, च) । ३. अद्दणे (वृ) । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (पढम संवरदार) पपंग-तस-थावर-दयावरेण, निच्चं पुप्फ-फल-तय-पवाल-कंद-मूल-दगमट्टियबीज-हरिय-परिवज्जएण' सम्म । एवं खुसव्वपाणा न होलियब्वा, न निंदियन्वा, न गरहियव्वा, न हिसियन्वा, न छिदियन्त्रा, न भिदियव्या, न वहेयव्वा, न भयं दुक्खं च किचि लब्भा पाउंजे। एवं इरियासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ।। १८. वितियं च-मणेण पावाणं पावग अहम्मियं दारुणं निस्संसं वह-बंध परिकिलेसबहुल भय-मरण-परिकिलेससंकिलिटुं न कयावि मणेण पावएण' पावगं किंचि वि झायव्वं । एवं मणसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असवलमसंकिलिट्ठ-निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ।। १६. ततियं च वतीते पावियाते पावगं न किंचि वि भासियव्वं । एवं वतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वण चरित्तभावणाए अहिंसनो संजो सुसाहू ।। २०. चउत्थं-- अाहारएसणाए सुद्धं उछं गवेसियव्वं अण्णाए 'अगढिए अदुद्वे" अदीणे अविमणे अकलुणे अविसादी, अपरितंतजोगी जयण-घडण-करण-चरिय-विणयगुण-जोगसंपउत्ते१ भिक्खू भिकावेसणाए जुत्ते समुदाणेऊण भिक्खचरियं उंछं घेत्तूण अागते गुरुजणस्स पासं, गमणागमणातिचार-पडिक्कमण-पडिक्कते, पालोयण-दायणं च दाऊण गुरुजणस्स जहोवएसं निरइयारं च अप्पमत्तो पुणरवि असणाए पयतो" पडिक्कमित्ता पसंतासीण-सुहनिसणे", मुहृत्तमेत्तं च झाण-सुहजोग-नाण-सज्झाय-गोवियमणे धम्ममणे अविमणे सुहमणे अविमाहमणे समाहिमणे सद्धासंवेगनिज्जरमणे पवयणवच्छल्लभाबियमणे उ?ऊण य पहट्टतुटे जहराइगिय" निमंतइत्ता य साहवे भावो य, विइण्णे य १. परिवज्जिएणं (क)। ८. 'अहोणे' त्यादि तु पूर्ववत् (वृ)। २. सम (ग, छ)। ६. X (क, ख, ग, घ, च)। ३. खलु (क, ग)1 १०. अविसाती (ख, घ, च) । ४. निसंसं (ख, घ)। ११. ° संपओगजुत्ते (क, ख, ग, घ, च)। ५. पावतेणं (ख)। १२. पयत्तो (क, ख, घ, च)। ६. आहारं एसणाए (क, ग, घ, च) १३. सुनिसण्णा (घ)। ७. अकहिए असिट्टे (क, ख, ग, घ, च, व); १४. जहाराय पियं (क, ग)। एते 'पदे वृत्तेर्वाचनान्तरस्य तथा अस्यैवाध्यय- १५. विदिण्णे (क, ख, घ, च) । नस्य चतुर्दशसूत्रस्याधारेण स्वीकृते । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ पाहावागरणाई गुरुजणेणं, उपविद्वे संपमज्जिऊण ससोसं कायं तहा करतःलं, अमुच्छिर अगिद्धे अगढिए अगरहिए अणज्झोववणे अणाइले अलुद्धे अणत्तट्टिते असुरसुरं अचवचवं अद्यमविल बियं' अपरिमाडि आलोयभायण जयं पयत्तेणं ववगयसंजोगमणिगालं च विगयधूम अक्खोवंजण-वणाणु नेवणभूयं संजमजायामायानिमित्तं संजयभारवहणट्टयाए भुजेज्जा पाणधारण?याए संजए णं समियं । एवं आहारसमितिजोगणं भाविग्रो भवति अतरप्पा, असबलमसंकिलिटु निव्वण-चरित्तभावणाए अहिंसए संजए सुसाहू ।। २१. पंचमगं -पीढ-फलग-सिज्जा-संथारग-वत्थ-पत्त-कंबल-दंडग-रयहरण-चोलपटूग मुहपोत्तिग-पायपुंछणादी। एयंपि संजमस्स उवबूहणट्ठयाए वातातव-दंसमसगसोय-परि रक्खणट्ठयाए उवगरण रागदोसरहियं परिहरितव्वं संजतेण णिच्चं पडिलेहण-पप्फोडण-पमज्जणाए अहो य राम्रो य अप्पमत्तेण होइ समयं निक्खिवियव्वं च गिण्हियव्वं च भायण-भंडोवहि-उवगरण । एवं आयाणभंडनिक्खेवणासमितिजोगण भावियो भवति अतरप्पा, असबलमसं किलिट्ठ-निव्वण-चरित्तभावणाए अहिंसए संजते सुसाहू ।। निगमण-पद २२. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होति सुप्पणिहियं इमेहि पंचहि वि कारणेहिं मण-वयण-काय-परिरक्खएहि । २३. णिच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया प्रणासवो अकलुसो अच्छिद्दो अपरिसावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णातो !! २४. एवं पढमं संवरदारं फासियं पालियं सोयिं तीरियं किट्टियं पाराहियं आणाते अणुपालियं भवति । २५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आधवित सुदेसितं पसत्थं । पढम संवरदारं समत्तं । —त्ति बेमि॥ १ अदुय° (च)। २. मायनिमित्तं (क, ख, ग, घ)। ३. ° रक्खणट्टयाए (क): ४. उवगहणट्टयाए (क, ख, च)। ५. संजमेणं (ग)। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं बीयं संवरदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! बितियं च सच्चवयणं-सुद्धं सुइयं सिवं सुजायं सुभासियं सुव्वयं सुकहियं सुदिटुं सुपतिट्ठियं सुपतिट्ठियजसं सुसंजमियवयणबुइयं सुरवर-नरवसभ-पवरबलवग-सुविहियजण-बहुमयं परमसाहुधम्मचरणं तव-नियम-परिग्गहियं सुगतिपहदेसगं च लोगुत्तमं वयमिणं विज्जाहरगगणगमणविज्जाण साहक सम्गमग्गसिद्धिपहदेसकं अवितह, तं सच्चं उज्जुयं अकुडिलं भूयत्थं, अत्थतो विसुद्धं उज्जोयकरं पभासकं भवति सव्वभावाण जीवलोगे अविसंवादि जहत्थमधुरं पच्चक्खं दइवयं व जं तं अच्छेरकारकं अवत्थंतरेसु बहुएसु माणुसाणं ।। सच्चस्स माहप्प-पदं २. सच्चेण महासमुद्दमझे चिटुंति, न निमज्जति मूढाणिया वि पोया ॥ ३. सच्चेण य उदगसंभमंमि वि' न बुज्झई', न य मरंति, थाहं च ते लभंति ॥ ४. सच्चेण य अगणिसंभमंमि विन डझंति उज्जुगा' मणसा ।। ५. सच्चेण य तत्ततेल्ल-तउय-लोह-सीसकाइ छिवंति धरैति', न य डझंति मणसा॥ ६. पव्वयकडकाहिं मुच्चंते, न य मरंति सच्चेण य परिग्गहिया ।। 1. असिपंजरगया" समरानो वि णिइंति अणहाय सच्चवादी। १. दरियवं (ख, ग); देवयं (च)। २. X (क, ख, ग, घ, च)। ३. वचनपरिणामान्लोह्यन्ते (वृ)। ४. ४ (क)। ५. उज्जगा (क, ख, घ)। ६. अंजलिभिरिति गम्यते (व)। ७. असिपंजरसत्तिपंजरगया (क, च)। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६० पण्हावागरणाई ८. वहबंधभियोगवेरघोरेहिं पमुच्चंति य, अमित्तमज्झाहिं निइंति' अणहा य सच्चवादी॥ 8. सादेव्वाणि य देवयाओ करेंति सच्चवयणे रताणं ॥ सच्चस्स थुइ-पद १०. तं सच्चं' भगवं तित्थगरसुभासियं दसविहं चोहसपुव्वीहिं पाहुडत्थविदितं 'महरिसीण य समयप्पदिण्णं देविंद-नरिद-भासियत्थं वेमाणियसाहियं महत्थं मंतोसहिविज्जसाहणटुं चारणगण-समण-सिद्धविज्ज मणुयगणाणं च वंदणिज्ज 'अमरगणाणं च अच्चणिज्जं असुरगणाणं च पूणिज्ज," अणेगपासंड-परिग्गहियं, जं तं लोकम्मि सारभूयं । गंभीरतरं महासमुद्दामो, थिरतरगं मेरुपव्वयानो। सोमतरं चंदमंडलाओ, दित्ततरं सूरमंडलाओ। विमलतरं सरयनहयलाओ, सुरभितरं गंधमादणायो । ११. जे वि य लोगम्मि अपरिसेसा मंता जोगा जवा य विज्जा य जंभका य अत्थाणि य सत्थाणि य सिक्खायो य अागमा य सव्वाणि वि ताई सच्चे पइट्ठियाई ॥ सावज्जसच्च-पदं १२. सच्चपि य संजमस्स उवरोहकारकं किंचि न वत्तव्वं-हिंसा-सावज्जसंपउत्तं भेय-विकहकारक अणत्यवाय-कलहकारकं अणज्ज अववाय-विवायसंपउत्तं लंबं प्रोजधेज्जबहुलं निल्लज्ज लोयगरहणिज्जं दुट्टुिं दुस्सुयं दुम्मुणियं ।। १३. अप्पणो थवणा, परेसु निदा-- नसि मेहावी, न तंसि धण्णो। नसि पियधम्मो, न तं कुलीणो। नसि दाणपती, न तंसि सूरो। नसि पडिरूवो, न तसि लट्रो। न पंडिग्रो, न बहुस्सुओ, न वि य तं तवस्सी । १. नइंति (क)। ५. सच्वाई (ख, च)। २. भगवंत (क, ख, ग, घ, च)। ६. अवरोहकारकं (ख)। ३. पइण्णं (4); महरिसिसमयपश्यणचिणं ७. अमुणियं (ख, ग, घ, च)। (वृपा)। ८. त्वमिति गम्यते (व)। ४. ४ (क)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (बीयं संवरदार) ६६१ न यावि परलोगणिच्छियमतीऽसि सव्वकालं, जाति-कूल-रूव-वाहि-रोगेण वा वि जं होइ वज्जणिज्जं दुहिलं' उवयारमतिकंतं -एवंविहं सच्चंपि न वत्तव्वं । प्रणवज्जसच्च-पदं १४. अह केरिसकं पुणाई सच्चं तु भासियव्वं ? जं तं दव्वेहिं पज्जवेहि य गुणेहिं कम्मेहिं सिप्पेहिं प्रागमेहि य नामक्खाय-निवाग्रोवसग्ग-तद्धिय-समास-संधिपद-हेउ-जोगिय-उणादि-किरियाविहाण-धातु-मर-विभत्ति-वण्णजुत्तं तिकल्लं दसविहं पि सच्चं जह भणियं तह य कम्मुणा होइ। दुवालसविहा होइ भासा, वयणंपि य होइ सोलसविहं । एवं अरहंतमणुण्णायं समिक्खियं संजएणं कालम्मि य वत्तव्वं ।। १५. इमं च अलिय-पिसुण-फरुस-कडय-चवल-वयण-परिरक्खणट्ठयाए' पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभाविकं प्रागमेसिभई सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाणं विप्रोसमणं ।। सच्चस्स पंचभावणा-पदं १६. तस्स इमा पंच भावणाप्रो बितियस्स वयस्स अलियवयणवेरमण'-परि रक्खणटूयाए॥ १७. पढमं सोऊणं संवरटुं परमट्ठ, सुठ्ठ जाणिऊण न वेगिय न तुरियं न चवलं न कडुयं न फरुसं न साहसं न य परस्स पीलाकरं सावज्ज, सच्चं च हियं च मियं च 'गाहकं च" सूद्ध संगयमकाहलं च समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्व। एवं अणुवीइसमितिजोगेण' भाविप्रो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो॥ १८. बितियं--कोहो ण सेवियन्यो । कुद्धो चंडिक्कियो मणूसो अलियं भणेज्ज, पिसुणं भणेज्ज, फरुसं भणेज्ज, अलियं पिसुणं फरसं भणेज्ज। कलहं करेज्ज, वेरं करेज्ज, विकह करेज्ज, कलहं वेरं विकह करेज्ज । सच्च हणेज्ज, सीलं हणेज्ज, विणयं हणेज्ज, सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज। वेसो भवेज्ज, वत्थु भवेज्ज, गम्मो भवेज्ज, वेसो वत्थु गम्मो भवेज्ज । १. दुहओ (क, ख, ग, घ, च, वृपा)। पदस्यार्थो भ्रान्ति जनयति। २. रस (वपा)। ५, वेतितं (क); वेइयं (ख, ग, च) । ३. परिरक्खणटाए (क)। ६. गाहगं (क)। ४. अलियवयणस्स ° (क, ख, ग, घ, च); एतद् ७. अणवीति ° (क); अणुवीयि° (ख, घ'; हाय सर्वेष्वपि संवरद्वारेषु समस्तं पदमुप- अणुवीय ° (च)। लभ्यते । अत्रापि तथैव युज्यते। असमस्त- ८. कोधो (ख, घ)। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६२ पण्हावागरणाइ एयं अण्णं च एवमादियं भज्ज कोहग्गि-संपलित्तो, तम्हा कोहो न सेवियवो। एवं खंतीए' भावियो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो॥ १६. ततियं---लोभो न सेवियन्वो । लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं खेत्तस्स व वत्थुस्स व कतेण । लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं कित्तीए व लोभस्स व कएण। लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं इड्ढीए व सोक्खस्स व कएण । लद्धो लोलो भणेज्ज अलियं भत्तस्स व पाणस्स व कएण। लद्धो लोलो भणेज्ज प्रलियं पीढस्स व फलगस्स व कएण । लद्धो लोलो भणेज्ज प्रलियं सेज्जाए व संथार करसव कएण। लुद्धो लोलो भणेज्ज प्रलियं वत्थस्स व पत्तरस व कएण। लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं कंबलस्स व पायपुंछणस्स व कएण । लुतो लोलो भणेज्ज अलियं सीसस्स व सिस्सिणीए व कएण। अण्णेसु य एवमादिएसु बहुसु कारणसतेसु लुद्धो लोलो भणेज्ज अलियं, तम्हा लोभो न सेवियवो। एवं मुत्तीए भाविनो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सुरो सच्चज्जवसंपण्णो । २०. चउत्थं-न भाइयव्वं । भोतं खु भया अइंति लहुयं, भीतो अबितिज्जयो मणूसो, भातो भूतेहिं व धेपेज्जा, भीतो अण्णं पि हु भेसेज्जा, भीतो तव-संजमं पि ह मुएज्जा, भीतो य भरं न नित्थरेज्जा, सप्पुरिसनिसेवियं च मग्गं भीतो न समत्थो अणुचरिउं । तम्हा न भाइयव्वं भयस्स वा वाहिस्स वा रोगस्स वा जराए वा मच्चुस्स वा अण्णस्स व एवमादियस्स। एवं धेज्जेण भाविमो भवति अंतरप्पा, संजय-कर-चरण-नयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो॥ २१. पंचमक-हासं न सेवियव्वं । अलियाइं असंतकाई जंपति हासइत्ता । परपरि भवकारणं च हासं, परपरिवायप्पियं च हासं, परपीलाकारगं च हास, भेदविमुत्तिकारकं च हासं, अण्णोण्णजणियं च होज्ज हासं, अण्णोष्णगमणं च होज्ज मम्म, अण्णोण्णगमणं च होज्ज कम्म, कंदप्पाभियोगगमणं च होज्ज हास, प्रासुरियं किव्विसत्तं च जणेज्ज हासं, तम्हा हासं न से वियव्वं । १. खंतीय (ख); खंतीय (ग, घ, च) ४. मुत्तीय (ख, घ)। २. संथारस्स (क)। ५. भावितव्वं (क); भातियव्वं (ग)। ३. लुतो लोलो भणेज्ज अलियं अण्णेसु (क, ख, ६. एगस्स (व); एवमादियस्स (पा)। ग, घ, च)। Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झषणं (बीयं संवरदारं ) ६६३ एवं मोणेण भाविओ भवइ अंतरप्पा, संजय-कर-चरण- नयण - वयणो सूरो सच्चज्जव संपण्णो ॥ निगमण-पदं २२. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहि पंचहि वि कारणेहि मण-वण- काय परिरक्खि एहिं ॥ २३. निच्चं श्रामरणंतं च एस जोगो यव्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलुसो अच्छिदो अपरिसावी असंकिलिट्ठो सुद्धों सव्वजिणमणुण्णाश्रो || २४. एवं बितियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं 'आराहियं आणाए श्रणुपालियं भवति ॥ २५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं प्राघवितं सुदेसितं सत्यं | बितियं संवरदारं समत्तं । १. X ( क, ख, ग, घ ) । २. अणुपालियं आणाए आराहियं (क, ख, ग, घ, च) 1 - त्ति बेमि ॥ -- Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं तइयं संवरदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! दत्ताणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं-सुव्वतं' महन्वतं गुणव्वत परदव्व हरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमणंततण्हामगुगय-महिच्छ-मणवयणकलुसआयाणसुनिग्गहियं सुसंजमियमण-हत्थ-पायनिहुयं निग्गंथं णेट्ठिक निरुत्तं निरासवं निब्भयं विमुत्तं उत्तमनरवसभ-पवरबलवग-सुविह्यिजणसंमतं परम साहुधम्मचरणं ॥ प्रदत्तस्स अग्गहण-पदं २. जत्थ य गामागर-नगर-निगम-खेड-कव्वड'-मडंब-दोणमुह-संवाह-पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-कंस-दूस-रयय-वरकणग-रयणमादि पडियं पम्हटुं विप्पणटुं न कप्पति कस्सति' कहेउं वा गेण्हिउं वा । अहिरण्ण सुवणिकेण समलेठ्ठकंचणेणं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विहरियव्वं ।। ३. जे पि य होज्जा हि दव्बजातं 'खलगतं खेत्तगत रण्णमतरगत व किंचि पुप्फ फल-तय-प्पवाल-कंद-मूल-तण-कट्ठ-सक्कराइं अप्पं व बहुं व अणुं व थूलगं वा न कप्पति प्रोग्गहे अदिग्णमि गिहिउ जे ॥ १. दत्तमणुण्णायं° (क); दत्तमणुष्णाय ° पदानि एकरूपाणि सन्ति । एकस्मिन् (ख, ग, घ, च)। क्वचित्प्रयुक्तादर्श 'सुव्वयं' इति पाठोपि २. सुव्वत (क, ख, ग, घ, च); वृत्तिकारेण लब्धः । तेनासौ पाठः स्वीकृतः । 'सुव्वय' इति पाठो लब्धः, तेन 'हे सुव्रत' ३. खव्वड (क) इति सम्बोधनत्वेन व्याख्यातः। वस्तुतोऽत्र ४. कासती (क, घ)। 'सुव्वयं महब्बयं गुणब्वयं एतानि त्रीण्यपि ५. वाचनान्तरे- जलथलगयं खेत्तमंतरगयं(व)। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ अणं (तइयं संवरदारं ) ६६५ ४. हृणिहणि प्रोग्गहं अणुण्णविय गेहियव्वं । वज्जेयव्वो य सव्वकालं श्रचियत्तघरप्पवेसो, अचियत्तभत्तपाणं अचियत्तपीढ- फलग - सेज्जा- संथारग-वत्थ- पत्तकंबल-दंडग-रयहरण-निसेज्ज-चोलपट्टग-मुहपोत्तिय पायपुंछणा इ-भायण - भंडोवह उकरणं परपरिवाओ परस्स दोसो परववएसेणं जं च गेण्हइ, परस्स नासेइ जं च सुकयं, दाणस्स य अंतरातियं, दाणविप्पणासो, पेसुण्णं चेव मच्छरितं च ॥ प्रदत्तादाणवेरमणस्स श्रजोगता-पदं ५. जे वि य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारंग-वत्थ- पाय'- कंबल - रोहरण-निसेज्जसंविभागी चोलपट्टग-मुहपोत्तिय पायपुंछणादि-भायण- भंडोवहि उवकरणं' प्रसंगहरुई, 'तव - वइतेणे" य रूवतेणे य, आयारे चेव भावतेणे य, सद्दकरे भंभकरे कलहकरे वेरकरे विकहकरे असमाहिकारके, सया अप्पमाणभोई सततं श्रणुबद्धवेरे य निच्चरोसी से तारिसए नाराहए वयमिणं ॥ श्रदत्तादाणवेरमणस्स जोग्गता-पदं ६. ग्रह के रिसए पुणाई प्राराहए वयमिणं ? जे से उवहि भत्तपाण- दाण-संग्रहण" - कुसले अन्तबाल- दुब्बल - गिलाण - वुड्ढखमके पवत्ति थायरिय-उवज्झाए सेहे साहम्मिए तवस्सी - कुल-गण-संघ चेइयट्ठे यनिज्जरट्ठी वेयावच्चं प्रणिस्सियं दसविहं बहुविहं करेति, न य प्रचियत्तस्स घर' पविसइ, न य अचियत्तस्स ' गेण्हइ भत्तपाण", न य प्रचियत्तस्स सेवइ पीढ-फलग-सेज्जा-संथारग वत्थ-पाय-कंबल दंडग-रोहरण- निसेज्ज-चोलपट्टयमुहपोत्तिय पायपुंछणाइ-भायण-भंडोवहि-उवगरणं, न य परिवार्य परस्स जंपति, ण यावि दोसे परस्स गेहति, परववएसेणवि न किंचि गेहति, न य विपरिणामेति कंचि' जणं, न यावि णासेति दिण्ण-सुकयं, दाऊण य काऊण य न होइ पच्छाताविए, संविभागसीले संगहोवग्गहकुसले, से तारिसए राहए वयमिणं ॥ ७. इमं च परदव्वहरणवेरमण - परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं प्रत्तहिय पेच्चाभाविकं आगमेसिभद्दं सुद्धं नेयाउयं ग्रकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विश्रमणं ॥ १. पत्त (च) 1 २. रोहरण ( ख, ग, घ, ) । ३. प्रतीत्येति गम्यते (बृ.) । ४. तब तेणे य व ० ( क, ख, ग, घ ) ५. ० भोती (क, ग) | ६. संग्रहणदाण (क, ग, च) | ७. हिं (ग) 1 ८. भत्तपाणं गेहइ (ख, घ, च) । ६. किंचि ( क ) | १०. विओवसमणं ( क, ख, ग, घ, च) । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाइ अदत्तादाणवेरमणस पंचभावणा-पदं ८. तस्स इमा पंच भावणा ततियस्स वतस्स होंति परदव्वहरणवेरमण-परि रक्खणट्टयाए । ६. पढम-देवकुल-सभ-प्पवा-पावसह-रुक्खमूल-पाराम-कंदरा - आगर-गिरिगह 'कम्मत-उज्जाण-जाणसाल-कुवितसाल-मंडव - सुण्णघर - सुसाण-लेण-पावणे, अण्णमि य एवमादिर्याम दगमट्टिय-बीज-हरित-तसपाण-असंसत्ते अहाकडे फासुए विवित्ते पसत्थे उवस्सए होइ विहरियव्वं । आहाकम्म बहुले य जे से आसित्त-संमज्जिप्रोसित्त-सोहिय-छायण-दुमण-लिंपणअणलिंपण-जलण-भंडचालण', अंतो बहिं च असंजमो जत्थ वट्टती', संजयाण अट्टा 'वज्जेयव्वे हु उवस्सए” से तारिसए सुत्तपडिकुटे । एवं विवित्तवासवसहिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरणकरण-कारावण-पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुई । बितियं-- पारामुज्जाण-काणण-वणप्पदेसभागे जं किंचि इक्कडं व कढिणगं व जंतुगं व 'परा-मेरा" - कुच्च - कुस - डब्भ - पलाल - मूयग - वल्लय"-पुष्प- फलतय-प्पवाल-कंद-मूल-तण-कट्ठ-सक्कराई गेण्हइ सेज्जोवहिस्स अट्ठा, न कप्पए प्रोग्गहे अदिण्णंमि गेण्हिउं जे । हणिहणि ओग्गहं अणुण्णविय गेण्हियन्वं । एवं प्रोगहसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्च अहिकरण-करणकारावण-पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुई। ततियं - पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगट्टयाए रुक्खा न छिदियव्वा, न य छेदणेण" भेयणेण य सेज्जा कारेयव्वा । जस्सेव उवस्सए वसेज्ज सेज्जं तत्थेव गवेसेज्जा, न य विसमं समं करेज्जा, न निवाय"-पवाय-उस्सुकत्तं, न डंसमसगेसु खुभियव्वं, अग्गी धूमो य न कायव्यो। एवं संजमबहुले संवरबहुले संवुडबहुले समाहिबहुले धीरे कारण फासयंते सययं अज्झप्पज्झाणजुत्ते समिए एगे चरेज्ज धम्म । १. वसहि (क, ख, घ)। ७. वदृति (च)। २. गिरिगुहा (च)। ८. बज्जेयव्यो हु उवस्सओ (ग)। ३. कम्मतुज्जाण (क, ग, घ), कम्मं उज्जाण ६. दत्तमणुण्णाय (क, ख, ग, घ, च); सर्वत्र । १०. ° रुती (क, ग)। ४. लयण (ख)। ११. परमेर (क); परंमेरा (ख); परमेरा (घ)। ५. मट्टिया (ख, घ)। १२. पन्वय (ख, घ); वल्वज: तृणविशेषः (वृ)। ६. एतेषां समाहारद्वन्द्वः विभक्तिलोपश्च दृश्यः १३. छेदण (ख, ग, घ, च)। १४. निव्वाय (ख)। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अग्झयणं (तइयं संवरदार, ६६७ एवं सेज्जासमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरण-करणकारावण-पावकम्मविरते दत्ताणण्णाय-प्रोग्गहरुई ।। चउत्थं-साहारपिंडपातलाभे भोत्तव्वं संजएण समियं, न सायसूयाहिक, न खद्धं, न वेइय, न तुरियं, न चवलं, न साहसं, न य परस्स पीलाकरं सावज्ज, तह भोत्तव्वं जह से ततियवयं न सीदति। साहारणपिडवायलाभे सुहम 'अदिण्णादाणवय-नियम-वेरमण। एवं साहारणपिंडवायलाभ समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, निच्चं अहिकरण-करण-कारावण-पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुती॥ १३. पंचमग--साहम्मिएसु विणो पउंजियव्वो, उवकारण-पारणासु विणतो पउंजियव्वो, वायण-परियट्टणासु विणो पउंजियव्बो, दाण-गहण-पूच्छणासु विणो पउंजियवो, निक्खमण-पवेसणासु विणो पउजियब्बो, अण्णेसु य एवमाइएसु बहुसु कारणसएसु विणो पजियव्वो। विणो वि तवो तवो वि धम्मो, तम्हा विणो पउंजियव्वो गुरूसु साहूसु तवस्सीसु य । एवं विणएण भावियो भवति अंतरप्पा, णिच्च अहिकरण करण कारावण पावकम्मविरते दत्ताणुण्णाय-प्रोग्गहरुई ।। निगमण-पदं १४. एवमिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुपणिहियं 'इमेहिं पंचहि वि कारणेहिं __ मण-वयण-काय-परिरक्खिएहि ।।। १५. निच्चं आमरणतं च एस जोगो गेयत्वो धितिमया मतिमया अणासवो अकलूसो - अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिट्ठो सुद्धो सवजिणमणुण्णाम्रो ॥ १६. 'एवं ततियं संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं 'पाराहियं प्राणाए अणुपालियं भवति।। स एवं नायमूणिणा भगवया पण्णबियं परूवियं पसिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आधवियं" सुदेसियं पसत्थं । ततियं संवरदारं समत्तं । –त्ति बेमि ।। १. वेतितं (क)। २. अदिण्णादाणविरमणवर्यानयमणं (व); अदिग्णादाणवयनियमवेरमणं (वृपा)। ३. अणुपालियं आणाए आराहियं (च)। ४. एवं जाव पापवियं (क, ख, ग, घ)। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं चउत्थं संवरदारं उक्खेव-पदं १. जंबु ! एत्तो य बंभचेरं- उत्तम-तव-नियम-णाण-दसण-चरित्त-सम्मत्त-विणयमुलं जम-नियम-गुणप्पहाणजुत्तं हिमवंत-महंत-तेयमंतं पसत्थ-गंभीर-थिमित-मझ अज्जवसाहुजणाचरितं मोक्खमगं विसुद्ध-सिद्धिगति-निलयं 'सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पसत्थं सोमं सुभं सिवमचलमक्खयकर' जतिवर-सारक्खियं सुचरियं सुसाहियं नवरि मुणिवरेहि महापुरिस-धीर-सूर-धम्मिय-धितिमंताण य सया विसुद्धं भव्वं भव्वजणाणुचिणं' निस्संकियं निभयं नित्तसं निरायासं निरुवलेवं निव्वतिघरं नियम-निप्पकंपं तवसंजममूलदलिय-णेम्मं पंचमहन्वयसुरक्खियं समितिगुत्तिगुत्तं झाणवरकवाडसुकयं अज्झप्पदिण्णफलिहं संणद्धोत्थइयदुग्गइपह सुगतिपहदेसगं" लोगुत्तमं च वयमिणं पउमसरतलागपालिभूयं महासगडअरगतुंबभूयं महाविडिमरुक्खक्खंधभूयं महानगरपागारकबाडफलिहभूयं रज्जुपिणतो व इंदकेतू विसुद्धणेगगुणसंपिणद्धं ॥ बंभचेरमाहप्प-पदं २. जंमि य भग्गंमि होइ सहसा सव्वं संभग्ग-मथिय-चुण्णिय-कुसल्लिय-पल्लट्ट १. यम (ग, घ)। ५. वीर (क, ख, घ)। २. सासयमपुणभवं पसत्थं सोमं सुहं सिवमक्ख- ६. भव्वजणसमुच्चिण्णं (क, ख)। यकर (व); सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं पसत्थं ७. नीसंक (ख)। सोमं सुहं सिवमचलमक्खयकरं (वृषा)। ८. ° सुक्कयरक्खणं (च)। ३. संरक्खि यं (ख)। ६. सण्णद्धवद्धोच्छइय° (च)। ४. सुभासियं (ग)। १०. देसगं च (क, ख, ग, घ, च)। ६६८ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (च उत्थं संवरदार) पडिय-खंडिय-परिसडिय-विणासियं विणयसीलतवनियमगुणसमूह, तं बंभ भगवंतंगहगण-नक्खत्त-तारगाणं वा जहा उडुपती', मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-रत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो, वेरुलियो चेव जह मणीणं, 'जह मउडो चेव भूसणाणं, वत्थाणं चेव खोमजुयलं, अरविदं चेव पुष्फजेहूँ, गोसीस चेव चंदणाणं, हिमवंतो चेव प्रोसहीणं, सीतोदा चेव निन्नगाणं, उदहीसु जहा सयंभुरमणो, रुयगवरे चेव मंडलिकपव्वयाण पवरे, एरावण इव कुंजराणं, सीहो व्व जहा मिगाणं पवरो, पवकाणं चेव वेणुदेवे, धरणो जह पण्णगइंदराया', कप्पाणं चेव बंभलोए, सभासु य जहा भवे सुहम्मा, ठितिसु लवसत्तम व्व पवरा, दाणाणं चेव अभयदाणं, किमिराम्रो चेव कंबलाणं, संघयणे चेव वज्जरिसभे, संठाणे चेव समचउरसे, झाणेसु य परमसुक्कज्झाणं, णाणेसु य परमकेवलं तु सिद्ध, लेसासु य परमसुक्कलेस्सा, तित्थकरो चेव जह मुणीणं, वासेसु जहा महाविदेहे, गिरिराया चेव मंदरवरे, ३. पण्णइंदराया (क, घ, च)। १. उलूपती (क); उदूपती (ग, ध)। २. जहा (ख, ग)। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्हावागरणाई वणेसु जह नंदणवणं पवरं, दुमेसु जह जंबू सुदंसणा वीसुयजसा- जीसे नामेण य अयं दीवो, तुरगवती गयवती रहवती नरवती जह वीसुए चेव राया, रहिए चेव जहा महारहगते । एवमणेगा गुणा अहीणा भवंति एक्कमि बंभचेरे ।। ३. जमि य आराहियमिग्राराहियं वयमणं सव्वं । सील तवो य विणग्रो य, संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती। तहेव इहलोइय-पारलोइय-जसो य कित्ती य पच्चो य । तम्हा निहुएण बभचेरं चरियव्वं सव्वो विसुद्धं जावज्जीवाए जाव सेयट्ठिसंजोत्ति-एवं भणियं वयं भगवया । तं च इम पंचमहन्वय-सुव्वयमूलं, समणमणाइलसाहुसुचिण्णं । वेरविरामण-पज्जवसाणं, सव्वसमुद्द-महोदधितित्थं ॥१॥ तित्थक रेहि सुदेसियमन्ग, नरयतिरिच्छविवज्जियमगं । सव्वपवित्त-सुनिम्मियसारं, सिद्धिविमाण-अवंगुयदारं ॥२॥ देवनरिंदनमंसियपूर्य, सव्वजगुत्तममंगलमग्गं । दुद्धरिसं गुणनायगमेक्कं, मोक्खपहस्स वडिसकभूयं ।।३।। जेण सुद्धचरि.एण भवइ सुबंभणो सुसमणो सुसाहू । स इसी स मुणी स संजए स एव भिक्खू, जो सुद्ध चरति बंभचेरं ।। बंभचेरथिरीकरण-पदं ४. इमं च रति-राग-दोस-मोह-पवड्डणकरं किमज्झ-पमायदोस-पासत्थसीलकरणं अब्भंगणाणि य तेल्लमज्जणाणिय अभिक्खणं कक्ख सीसकरचरणवदणधोवणसंबाहण-गायकम्म-परिमद्दण-अणुलेवण-चुण्णवास-धूवण - सरीरपरिमंडण-बाउसिक-हसिय-भणिय-नट्टगीयवाइयनडनट्टकजल्ल मल्लपेच्छण-वेलंबक जाणि य सिंगारागाराणि य अण्णाणि य एवमादियाणि तव-संजम-बंभचर-घातोवधातियाई अणुचरमाणेणं बंभचेरं वज्जयव्वाइं सव्वकालं । भावेयवो भवइ य अंतरप्पा इमेहि तव-नियम-सील-जोगेहिं निच्चकालं, कि ते ?अण्हाणक-ऽदंतधोवण' - सेयमलजल्लधारण - मूणवय-केसलोय-खम-दम-अचेलगखप्पिवास - लाघव - सितोसिण-कट्ठसेज्ज-भूमिनिसेज्ज-परघरपवेस-लद्धावलद्ध १. संमोह (क, च)। वर्जयितव्या इति योगः (व)। २. छान्दसत्वाच्च प्रथमाबहुवचनलोपो दृश्यः, ३. अदंतधोवण (च)। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (चउत्थं संवरदार) ७०१ माणावमाण-निंदश-दसमसगफास-नियम-तवगुणविणयमादिएहिं जहा से थिर तरगं होइ बंभचेरं ।। ५. इमं च प्रबंभचेरविरमण'-परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहित पेच्चाभाविक आगमेसिभदं सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विप्रोसवणं ॥ बंभचेरस्स पंचभावणा-पदं ६. तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थवयस्स होंति अबंभचेरवेरमण परिरक्खणट्रयाए। पढमं -सयणासण - घरवारअंगण - मागास - गवक्ख - साल - अभिलोयणपच्छवत्थुक-पसाहणकण्हाणिकावकासा, अवकासा जे य वेसियाणं, अच्छंति य जत्थ इथिकानो अभिक्खणं मोह-दोस-रति-रागवड्डणीप्रो, कहिंति य कहानो बहुविहानो, ते हु वज्जणिज्जा । इत्थिसंसत्त-संकिलिट्ठा, अण्णे वि य एवमादी अवकासा तेह वज्जणिज्जा जत्थ मणोविब्भमो 'वा भंगो वा भंसणा वा अद रुदं च होज्ज झाणं तं तं वज्जेज्ज वज्जभीरू अणायतणं अंतपंतवासी। एवमसंरात्तवासवसहीसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, पारतमणविरयगामधम्मे जितेदिए वंभचेरगत्ते ।। वितियं-नारीजणस्स मज्झे न कहेयव्वा कहा--विचित्ता विब्बोय-विलाससंपउत्ता हास-सिंगार-लोइयकह व्व मोहजणणी, न आवाह-विवाह-वरकहा, इत्थोणं वा सुभग-दुब्भग'-कहा, चउसटुिं च महिला गुणा, न वण्ण-देस-जातिकुल-रूव-नाम- वत्थ परिजणकहव्व इत्थियाणं, अण्णा वि य एवमादियानो कहारो सिंगार-कलुणाग्रो तव-संजम-बंभचेर-घातोवघातियानो अणुचरमाण बंभचेरं न कहेयव्वा, न सुणेयव्वा, न चितेयव्वा । एवं इत्थीकहविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, भारतमणविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते ।। ततियं -- नारीण हसिय - भणिय - चेट्टिय - विप्पेक्खिय-गइ - विलास-कोलियं, विब्बोइय-नट्ट-गीत-वाइय-सरीरसंठाण- वण्ण - कर - चरण - नयण - लावण्णरूव-जोवण्ण-पयोहर-अधर-वत्थ-अलंकार-भूसणाणि य, गुज्झोकासियाई, अण्णाणि य एवमादियाई तव-संजम-बंभचेर-घातोवधातियाई अणुचरमाणेण बंभचेरं न चक्खूसा न मणसा न वयसा पत्थेयव्वाई पावकम्माई। १. बंभचेर (क, ग, घ); बंभविरमण (ख)। २. व्व भंगो व्व (क)। ३. कहाविव (क, ख, ग, घ, च) ! ४. दुभग (ख, ग, घ)। ५. चोट्टि (ख, ग, घ)। ६. गुज्झोक्कासियाई (क, ख, ग, घ, च)। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०२ पण्हावागरणाई एवं इत्थीरूवविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, प्रारमणविरयगामधम्मे जितेंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ १०. चउत्थं - पुव्वरय- पुव्वकीलिय- पुण्वसग्गंथ' - गंथ संथया जे ते प्रवाह-विवाहचोल य तिथि जण्णेसु उस्सवेसु य सिगारागार चारुवेसाहिं इत्थीहि ' हाव-भाव - पललिय - विक्खेवर - विलास सालिणीहि प्रणुकूलपेम्भिकाहिं सद्धि भूया सयण संपोगा, उदुसुह-वरकुसुम-सुरभिचंदण-सुगंधिवर वास-धूवसुहफरिस वत्थ भूसणगुणोववेया, रमणिज्जाश्रोज्ज-गेज्ज'- पंउरनड-नट्टक- जल्लमल्ल- मुट्ठिक - वेलंबग कहग पवगलासग प्राइक्खग लेख मंख - तूणइल्लतुंबवीणिय- तालावर -पकरणाणि य बणि महरसर-गीत-सुस्सराई, अण्णाणि य एवमाइयाई तव -संजम बंभचेर- घातोवघातियाई अणुचरमाणेण बंभचेरं न ताई समणेण लब्भा दट्ठे न कहेउं नवि सुमरिउ जे । एवं पुव्वरयपुस्वकीलियविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरयमण-विरतगामधम्मे जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ॥ ११. पंचमगं - आहारपणीय- निद्धभोयण-विवज्जए संजते सुसाहू ववगयखीर - दहिसप्पि-नवनीय- तेल्ल-गुल- खंड- मच्छंडिक-महु-मज्ज-मंस-खज्जक विगति-परिचत्तकयाहारे न दप्पणं न बहुसो न नितिकं न सायसूपाहिकं न खद्धं, तहा भोत्तव्वं जह से जायामाता य भवति, न य भवति विब्भमो भंसणा य धम्मस्स । - एवं पणीयाहारविरतिसमितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा, आरयमणविरतगामधम्मे जिइदिए बंभचेरगुते ॥ निगमण-पदं १२. एवभिणं संवरस्स दारं सम्मं संवरियं होइ सुप्पणिहितं इमेहि पंचहि वि कारणेहिं मण वय काय- परिरक्खिएहिं ॥ १३. णिच्चं आमरणंतं च एस जोगो यव्वों धितिमता मतिमता अणासवो सोच्छ परिस्सावी" असं किलिट्ठो सुद्धो सव्वजिणमणुष्णा ॥ १. ० संगंथ ( ख, ग, घ, च ) । २. X ( ख, ग, घ च ) ; स्त्रीभिरिति गम्यते ( वृ ) | ३. विच्छेव (क, ख, घ, च ) 1 ४. पेम्मकाहिं ( क ) 1 ५. सुगंध ० ( क, ख, ग, घ, च ) 1 ६. गेय ( ग ) । ७. आहारं भुजीतेतिशेष: ( वृ ) 1 ८. एसो (क, ख, ग, घ ) । ९. णायव्वो (ख, घ ) | १०. अपरिस्सादी ( क ) : अपरिस्साती (ख, घ च ) । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (च उत्थं संवरदार) ७०३ १४. एवं' च उत्थं संवरदारं फासितं पालितं सोहितं तोरित किट्टितं पाराहितं आणाए अणुपालितं भवति । १५. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्ध सिद्धवरसासणमिणं माघवियं सुदेसितं पसत्थं । चउत्थं संवरदारं समत्त । --त्ति बेमि ॥ १. एयं (क, ख, घ)! Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं पंचमं संवरदारं उक्खव-पदं १. जंबू ! अपरिग्गहो' संवुडे य समणे प्रारंभ-परिग्गहातो विरते, विरते कोहमाणमायालोभा। एगे असंजमे। दो चेव राग-दोसा । तिण्णि य दंडा, गारवा य, गुत्तीयो, तिण्णि' य विराहणाअो। चत्तारि कसाया, झाणा, सण्णा, विकहा तहा य हुंति चउरो। पंच य किरियानो,समिति-इंदिय-महव्वयाइं च । छज्जीवनिकाया,छच्च लेसायो। सत्त भया । अट्ठय मया । नव चेव य बंभचेरगुत्ती । दसप्पकारे य समणधम्मे । एक्कारस य उवासगाणं' । वारस य भिक्खपडिमा । किरियठाणा य । भूयगामा। परमाधम्मिया । गाहासोलसया । असंजम-अवंभ-गाय-असमाहिठाणा। सबला। परिसहा । सूयगडझयण-देव-भावण-उद्देस-गुण-पकप्प-पावसुत-मोहणिज्जे । सिद्धातिगुणा य । जोगसंगहे, 'सुरिंदा । तेत्तीसा प्रासातणा" ! आदि एक्काइयं करेता एक्कुत्तरियाए' वड्डिएसु तीसातो जाव उ भवे तिकाहिका ] १. अपरिगह (क, ग, घ, च)! याणामुल्ले खोस्ति तथा द्वात्रिंशत्संख्यायामपि २. तिन्नि तिन्नि (क, ग, घ, च)। द्वयोविषयोहल्लेखोस्ति, द्रष्टव्यमिह 'समवाओ' ३. प्रतिमा भवन्तीति गम्यम् (कृ) । (३२१,२) यथा--'बत्तीस जोगसंगहा ४. तेत्तीमा आसातणा सुरिदा (क, ख, ग, घ, च); पणत्ता' तथा 'बत्तीसं देविदा पण्णत्ता' । आदर्शषु यद्यपि तेत्तीसा आसातणा सुरिंदा' अत्र 'देविदा' इति पदस्य स्थाने 'सुरिंदा' एवं पाठो दृश्यते, किन्तु अर्थमीमांसया नैव इति पदं प्रयुक्तमस्ति । सङ्गच्छते । 'जोगसंगहे सुरिंदा' एष क्रमः ५. एएसु त्ति वाक्यशेष: (व) । स्यात तदार्थसङ्गतिर्जायते। यथा-तिषिण ६. वृद्धया इति गम्यते (व)। य दंडा गारवा य गुत्तीओ, तिषिण य विराह- ७. असौ पाठो व्याख्यांशः प्रतीयते । णाम्रो' एवं एकस्यां संख्यायामने केषां विष ७०४ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अषण (पंचमं संवरदारं ) २. जो सो वीरवरवयविरतिपवित्थर-बहुविहप्पकारो सम्मत्तविसुद्ध मूलो धितिकंदो विreast निग्गततिलोक्कविपुलजसनिचियपीणपीवरसुजातखंधो पंचमहव्वयविसालसालो भावणतयंत' - ज्झाण-सुभजोग - नाण- पल्लववरंकुरधरो बहुगुणकुसुमसमिद्धो सीलसुगंधो अणण्यफलो' पुणो य मोक्खवरबीजसारो मंदरगिरि - सिहरचूलिका इव इमस्स मोक्खवर - मोत्तिमग्गस्स सिहरभूश्रो संवरवरपायवो | चरिमं संवरदारं || recycoatta-पदं ३. विरती - पणिहसु अविरती य एवमादिसु बहूसु ठाणेसु जिणपसत्थेसु अतिसु सासयभावेसु अवट्टिएस संकं कखं निराकरेत्ता सद्दहते सासणं भगवतो अणियाणे अगारवे अलुद्धे अमूढमण-वयण कायगुत्ते ॥ जत्थ न कप्पइ गामागर-नगर- खेड- कब्बड-मडंब - दोण मुह-पट्टणासमयं व किंचि बहु व णुं व थूलं व तस थावर काय दत्रजायं मणसा वि परिधेत्तुं । न हिरण्ण-सुवण्ण-खेत-वत्थं न दासी- दास भयक-पेस- हय-गय-गवेलगं व, न जाण - जुग्ग-सयणासणाई, न छत्तकं न कुंडिया' 'न पाणहा' न पेहुण-वीयणतालिका ॥ - + ४. न यावि अय-तउय तंव सीसक-कंस रयत जातरूव-मणि मुत्ताधारपुडक संख - दंतमणि-सिंग सेल' - काय वइर' - चेल- चम्म- पत्ताई महारिहाई परस्स ग्रज्भोववायलोभजणणाई परियढिरं गुणवत्रो" || १. भावतयं (घ, वृ); °तयंत (वृपा ) | २. अह० (वृ) । ३. परिघेत्तू (क, ख, ग, घ ) 1 ४. कोंडिका (ख, घ ) । ५. न यावि पुष्फ-फल- कंद-मूलादियाई, सणसत्तरसाईं सव्वधण्णाई तिहिं वि जोगेहि परिवेत्तुं सहसज्जभोयणट्टयाए संजएणं । किं कारणं ? --- अपरिमितणाणदंसणधरेहिं सील-गुण-विषय-तव-संजमनायकेहि तित्थयरेहिं ५. नोवाहणा ( ख ) ; नोपाहा (क्व ) | ६. न कल्पते परिग्रहीतुमिति शेषः । हारपुलक ( क ) । ७. ८. लेस (वृपा) । ७०५ न वाहणा (ग, च); ६. वर (क, ख, ग, घ, च, वृ); एतत् पदं १०. वृत्तिरचनात् पूर्वमेव विपर्यस्त जातम् । - वृत्तिकृत्ता 'वर' इति पद लब्धम् तेन 'काचवरः प्रधानकाचः' इति व्याख्यातम् । वस्तुतोत्र 'वर' इति पदमासीत् । लिपिदोषेण तद् विपर्ययो जातः । निसीहज्भयणस्स एकादशोद्देशे प्रथमे सूत्रे 'कायपायाणि वा वइरपायाणि वा' इति पदद्वयं सुस्पष्टमस्ति । अत्रापि पात्रप्रकरणे तथैव युज्यते । आचारचूलायाः पात्रेषणाध्ययने 'वर' पदस्य उल्लेख नास्ति । गुणवयाई ( क ) । Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०६ पावागरणाई सव्वजग-जीव- वच्छलेहि तिलोय महिएहि जिणवरिदेहिं एस जोणी जगाणं दिट्ठा न कम्पते' जोणिसमुच्छेदोत्ति, तेण वज्जति समणसीहा || अस णिहि-पदं - ६. जंपि य ओदण - कुम्मास गंज- तप्पण-मंथु भुज्जिय- पलल- सूप - सक्कुलि-वेढिम-वरसरक'- चुण्णकोसग - पिंड - सिरिणि वट्ट- मोयग खीर- दहि- सप्पि - नवनीत तेल्लगुड' - खंड-मच्छंडिय· मधु मज्ज-मंस-खज्जक वंजणविधिमादिकं पणीयं उवस्सए परघरे व रण्णे न कप्पति तंपि सणिहि काऊण सुविहियाणं ॥ प्रकप्प भोयण-पदं ७. जंपि य उद्दिठविय-रचितग-पज्जवजात-पकिण्ण पाउकरण पामिच्चं, मीसककीयकड पाहुडं वा, दाण- पुण्णपगडं, समण-वणीमगट्टयाए व कयं पच्छाकम्म पुरेकम्मं नितिकं मक्खियं अतिरित्तं मोहरं चेव सयंगाहमाहङ" मट्टियोवलित्तं, अच्छेज्जं चेव प्रणीसट्टं, जं तं तिहीसु' जण्णेसु ऊसवेसु य अंतो व्व बहि व होज्ज समणट्टयाए ठत्रियं हिंसा सावज्ज-संपत्तं न कप्पति तंपि य परिधेत्तुं ॥ कपभोयण-पदं ८. ग्रहकेरिसयं पुणाइ कप्पति ? जं तं एक्कारसपिंडवायसुद्धं किणण-हणण-पयण कयकारियाणुमोयण-नवकोडी सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहि विप्पक्कं उग्गम उप्पायनेसणासुद्धं, ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं च फासूयं च ववगयसंजोगमणिगालं, विगयधूमं, छट्टा निमित्तं, छक्कायपरिरक्खणट्ठा हणिहणि फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं ॥ रोगाविस णिहि-पदं ६. जंपि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पकारंमि समुप्पण्णे, वाताहिकपित्त संभाइरित्तकुविय तहसण्णिवायजाते, उदयपत्ते उज्जल-वल- विउल-तिउलकक्खड-पगाढ-दुक्खे, असुभ - कडुय - फरुस - चंडफलविवागे महन्भये जीवियंतकरण सव्वसरीर-परितावणकरे न कप्पति" तारिसे वि तह अप्पणी परस्स वा प्रोसहभेसज्जं भत्त-पाणं च तंपि सणिहिकयं || १. कप्पती (क, ग, घ, च) । २. विसारक ( क ) । ३. गुल ( ग, घ, ४. काउ ( ग ) | ५. सयगाह ० (घ, च) | F ६. तिहिसु ( क च ) | ७. चयिय ( क ) ; चविय (घ ) | ८. हणि-हणि (क, ग, घ ) । • जाते ब्व (क, ग, घ, च) | ε. १०. कप्पती ( क ) । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (पंचमं संबरदारं) ७०७ उवगरणधारणविहि-पदं १०. जंपि य समणस्स सुविहियस्स तु पडिग्गहधारिस्स भवति भायण-भंडोवहि उवगरणं पडिग्गहो पायबंधणं पायकेसरिया पायठवणं च पडलाइं तिण्णेव, रयत्ताणं च गोच्छनो, तिण्णेव य पच्छाका, रोहरण-चोलपट्टक-मुहणंतकमादीयं । एयं पि य संजमस्स उववहणट्टयाए वायायव-दंस-मसग-सीय-परिरक्षणट्ठयाए उवगरणं रागदोस रहियं परिहरियव्वं संजएण णिच्चं, पडिलेहण-पप्फोडण-पमज्जणाए अहो य राम्रो य अप्पमत्तण होइ सततं निक्खिवियव्वं च गिण्हियव्वं च भायण-भंडोवहि-उवगरण । समणस्स सरूवनिरूवण-पदं ११. एवं से संजते विमुत्ते निस्संगे निप्परिग्गहरुई निम्ममे निन्नेह-बंधणे सव्वपाव विरते वासीचंदण-समाणकप्पे सम-तिण-मणि-मुत्त'-लेठ्ठ-कंचण-समे समे य माणावमाणणाए समियरए समित-रागदोसे, समिए समितीसु, सम्मदिट्ठी, समे य जे सव्वपाणभूतेसू, से ह समणे, सूयधारते उज्जए' संजते ससाह. सरणं सव्वभूयाणं, सव्वजगवच्छले सच्चभासके य, संसारते ठिते य, संसारसमच्छिण्णे सततं मरणाणुपारए, पारगे य सव्वेसि संसयाणं, पवयणमायाहिं अहिं अनुकम्मगंठीविमोयके, अट्ठमयमहणे ससमयकुसले य भवति सुह-दुक्ख-निविसेसे, अभितर-बाहिरमि सया तवोवहाणंमि य सुठ्ठज्जुत्ते, खते दंते य हियनिरते, ईरियासमिते भासासमिते एसणासमिते आयाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिते उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणजल्ल-परिट्ठावणियासमिते मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्तिदिए गुत्तबंभयारि चाई लज्जू धन्ने तवस्सी खंतिखमे जितिदिए सोधिए अणियाणे अबहिल्लेस्से अममे अकिंचणे छिण्णगंथे निरुवलेवे, सुविमल-वरकसभायणं व मुक्कतोए, संखे विव निरंगणे विगय-राग-दोस-मोहे, कुम्मो व इंदिएसु गुत्ते, जच्चकंचणं व जायरूवे, पक्खरपत्तं व निरुवलेवे, १. तण (क)। २. मुत्ते (ख)! ३. उज्जते (क्व); उद्यतो वा (व)। ४. पारके (क, ख, घ, च) ! ५. घिइनिरते (वृपा)। ६. चागी (ख, घ, च)। ७. सोधिके (क, ख, घ, च)। ८. छिण्णसोए (वृपा)। ९. चेव (क, ख, ग, घ, च)। १०. इव (क, ग)। ११. ० कंचणगं (क, ग, घ)। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०८ चंदो इव सोमभावयाए', सूरो व्व दित्ततेए, अचले जह मंदरे गिरिवरे, अक्खोभे सागरो व्व थिमिए, पुढवी सव्वास सहे, तवसावि' य भासरासिछन्ने व्व जाततेए, जलियहुयासणो विव तेयसा जलते, गोसीसचंदणं पिव सीयले सुगंधे य, हरयो विव समियभावे, उघसिय सुनिम्मलं व ग्रायंसमंडलतलं पागडभावेण सुद्धभावे, सोंडीरे कुंजरें व्व, वसभे व्व जायथामे, 'सीहे वा" जहा मिगाहिवे होति दुप्पधरिसे, सारयसलिल व सुद्ध हियए, भारंडे चैव ग्रप्पमत्ते, विसाणं व एगजाते, खाणुं चेव उड्ढकाए, सुन्नागारे व्व पडिकम्मे, सुन्नागारावणस्संतो निवायसरणप्पदीवज्भाणमिव निप्पकंपे, जहा खुरो चेव एगधारे, जहा ग्रही चेव एगदिट्ठी, प्रागासं चैव निरालंबे, fan far as विप्पमुक्के, कय- परनिलये जहा चेव उरए, पविद्धे श्रनिलो व्व, जीवो व्व पडियगती, १. सोमताए ( वृ); सोमभाक्याए ( वृपा ) ; श्रवाइयमुत्ते (सू० २७) 'चदो इव सोमलेसा' तथा कप्पसुते 'चंद इव सोमलेसे' आयारो तह आयारचूला परिशिष्ट ३, पृ० १६ तथा जंबुद्दीवपण्णत्तीए 'चंदो इव सोमदंसणे' इति पाठो विद्यते, आयारो तह आयारचूला परिशिष्ट ३, पृ० १७ । पहा चागरणाई २. पुढवी विव (घ, च ) 1 ३. ० इ ( ख, ग, घ, च) । ४. हरतो (ख, घ, च ) । ५. कुंजरो (ग, च) 1 ६. सीहे व्व ( क ) ; सीहो वा (ख, घ) सीहो ब्व (च) | ७. विहंगे (ख, च ) । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम अज्झयणं (पंचमं संवरदार) गामे-गामे एगराय, नगरे-नगरे य पंचरायं दूइज्जते य, जितिदिए जितपरीसहे निब्भए' विऊ सच्चित्ताचित्तमीसकेहि दवेहि विरायं गते, संचयतो विरए, मुत्ते लहुके निरवकखे जीवियमरणासविप्पमुक्के, निस्संधि निव्वणं चरित्तं धीरे कारण फासयंते, सततं अज्झप्पझाणजुत्ते निहुए एगे चरेज्ज धम्म ।। १२. इमं च परिग्गहबेरमण-परिरक्खणट्ठयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभाविकं पागमेसिभ सुद्धं नेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्खपावाण विप्रोसमणं॥ अपरिग्गहस्स पंचभावणा-पदं १३. तस्स इमा पंचभावणाओ चरिमस्स वयस्स होंति परिग्गहवे रमण-रक्खणट्टयाए । १४. पढम--सोइंदिएण सोच्चा सद्दाई मणुण्ण-भद्दगाई, किं ते ? ---- वरमुरय-मुइंग-पणव-दद्र-कच्छभि- वीणा-विपंची - वल्लयि-वद्धीसक-सुघोसनंदि-सूस रपरिवादिणी-वंस- तूणक-पच्चक-तंती - तल-ताल-तुडियनिग्घोस-गीयवाइयाई, नडनट्टक-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिक-वेलंबक-कहक-पवक-लासग-प्राइक्खकलख-मख-तुणइल्ल-तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य, वहणि महरसर-गीतसुस्सराई, कंची-मेहला- कलाव - पतरक- पहेरक-पायजालग-घंटिय-खिखिणिर यणोरुजालय-छुद्दिय - नेउरचलणमालिय - कणनियल- जालग-भूसणसद्दाणि, लीलचंकम्ममाणाणुदीरियाई, तरुणीजणहसिय · भणिय-कलाभित-मंजुलाई, गुणवयणाणि य वहाण महरजणभासियाइ, अण्णसू य एवमादिएसू सहस मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिझियव्व न मुझियव्वं न विणिग्घायं प्रावज्जियव्वं न लुभियध्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सइंच मइं च तत्थ कुज्जा । पुणरवि सोइंदिएण सोच्चा सहाई अमणुण्ण-पावकाई, कि ते?अक्कोस-फरुस - खिसण- अवमाणण - तज्जण - निब्भंछण - दित्तवयण-तासणउक्कूजिय-रुण्ण-रडिय - कंदिय - निग्धुटरसिय-कलुणविलवियाई, अण्णेसु य एवमादिएसु सद्देसु अमणुण्ण-पावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पाएउं । एवं सोतिं दियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णाऽमणुण्ण-सुब्भि-दुन्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए चरेज्ज धम्म। १. निन्भओ (ग)। २. विउसे (च); विसुद्ध (वृपा)। ३. निहुते (क); निहुके (ख, घ, च)। ४. मेहल (क, ग, घ, च)। ५. करुण° (क)। Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१० पण्हावागरणाई १५. बितियं-चक्खुइंदिएण पासिय रूवाणि मणुष्णाई भद्दकाई, सचित्ताऽचित्त मीसकाई–कट्ठ पोत्थे य चित्तकम्मे लेप्पकम्मे सेले य दंतकम्मे य, पंचहि वणेहि अगसंठाण-संठियाई, गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमाणि य मल्लाई बहुविहाणि य अहियं नयण-मणसुहकराई, वणसंडे पव्वते य गामागरनगराणि य खुद्दिय-पुक्खरणि-वावी-दीहिय-गुंजालिय-सरसरपंतिय-सागर-बिलपंतियखातिय-नदि-सर-तलाग-वप्पिणी-फुल्लुप्पल-पउम' परिमंडियाभिरामे, अणेगसउणगण - मिहुणविचरिए, वरमंडव - विविहभवण - तोरण-चेतिय-देवकुल-सभप्पवावसह-सुकयसयणासण-सीय-रह-सगड-जाण-जुग्ग-संदण-नरनारिगणे य सोमपडिरूवदरिसणिज्जे, प्रलंकियविभूसिए, पुवकयतवप्पभावसोहम्गसंपउत्ते, नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय- वेलंबग-कहक-पवग - लासग-आइक्खग - लंख-मंखतुणइल्ल-तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि सुकरणाणि, अण्णेसु य एवमादिएसु रूवेसु मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिझियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं आवज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई" च मई च तत्थ कुज्जा। पुणरवि चक्खिदिएण पासिय रूवाइं अमणुग्ण-पावकाई, किं ते ? -- गंडि-कोढिक-कुणि-उदरि-कच्छुल्ल-पइल्ल-कुज्ज - पंगुल-वामण-अंधिल्लग - एगचक्खुविणिय-सप्पिसल्लग-वाहिरोगपीलियं, विगयाणि य मयककलेवराणि', सकिमिणकुहियं च दवरासि, अण्णेसु य एवमादिएसु अमणुण्ण-पावतेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निंदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं ° न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पातेउं । एवं चक्खिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, 'मणुण्णाऽमणपण-सुब्भिदुभि-रागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए । चरेज्ज धम्म । १६. ततियं-घाणिदिएण अग्घाइय गंधाति मणुण्ण-भद्दगाई, किं ते ? जलय-थलय-सरसपुप्फफलपाणभोयण-कोट-तगर-पत्त-चोय-दमणक-मरुय - एलारस-पिक्कमंसि-गोसीस-सरसचंदण-कप्पूर - लवंग-अगरु-कुंकुम - कक्कोल -उसीर- . सेयचंदण-सुगंधसारंगजुत्तिवरधूववासे उउय-पिडिम-णिहारिम-गंधिएसु, अण्णेसु १. खादिय (क, ग)। २. पउमसंड (ख, घ)। ३. रज्जियवं जाव न सई (क, ख, ग, घ)। ४. मतक° (ख, घ, च)। ५. सं० पा०--रूसियव्वं जावन। ६. सं० पाo--अंतरप्पा जाव चरेज्ज। ७. कुट्ठ (क, ग)। ८. पक्कमंसि (ख) विक्कमंसि (च)। ६. उदुय (क, घ)। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (पंचमं संवरदार) य एवमादिएसू गंधेसु मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिझियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं आवज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियन्वं न हसियव्वं ° न सति च मई च तत्थ कुज्जा । पुण रवि घाणिदिएण अपघाइय गंधाणि अमणण्ण-पावकाई, कि ते ?-- अहिमड-अस्समड-हत्थिमडगोमड-विग-सुणग-सियाल मणुय-मज्जार-सीह-दीवियमयकुहियविणट्ठकिविण-बहुदुरभिगंधेसु, अण्णेसु य एवमादिएसु गंधेसु अमणुण्णपावएसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियध्वं न वहेयव्वं न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पाएउ । एवं घाणिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुष्णाऽमणुण्ण-सुन्भि-दुब्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे ° पणिहिएंदिए' चरेज्ज धम्म ।। १७. चउत्थं -- जिभिदिएण साइय रसाणि उ मणुण्ण-भद्दकाई, किं ते ?... उग्गाहिम-विविहपाण-भोयण-गुलकय-खंडकय-तेल्लघयकय-भक्खेसु बहविहेस लवणरस संजुत्तेसु महु-मंस-बहुप्पगारमज्जिय-निट्ठाणग-दालियंब-सेहंब-दुद्ध-दहिसरय-मज्ज-वरवारुणी-सीहु-काविसायणक-साकट्ठारस-बहुप्पगारेसु भोयणेसु य मणुण्णवण्ण-गंध-रस-फास-बहुदव्वसंभितेसु, अण्णेसु य एवमादिएसु रसेसु मणण्णभइएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं 'न रज्जियव्वं न गिज्झियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्यायं ग्रावज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई च मई च तत्थ कुज्जा । पूणरवि जिभिदिएण सायिय रसाति प्रमणुण्ण-पावगाइं, किं ते ?अरस-विरस-सीय-लुक्ख-णिज्जप्प-पाण-भोयणाई दोसीण-वावण्ण-कुहिय-पयअमणुण्ण-विणट्ट-पसूय-बहुदुढिभगंधियाई तित्त-कडुय-कसाय-अंबिल-रस-लिंडनीरसाई, अण्णेसु य एवमाइएसु रसेसु अमणुण्ण-पावएसु न तेसु समणेण रूसियवं •न हीलियव्वं न निदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं न दुगंछावत्तिया व लभा उप्पाएउ । एवं जिभिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णाऽमणुण्ण-सुब्भि-दब्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहिति दिए ° चरेज्ज धम्म । १८. पंचमगं--फासिदिएण फासिय फासाइं मणुण्ण-भद्दकाई, किं ते ? - १. सं० पा०—सज्जियब्वं जाव न सति । २. सं० पा०-हीलियब्वं जाव पणिहिएदिए। ३. पिहियपंचेंदिए (ख)। ४. सं० पा०-सज्जियव्वं जाव न सई। ५.णिज्जंप (क, ख, ग)। ६. सं० पा०-रूसियब्वं जाव चरेज्ज । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१२ पहावागरणाई दगमंडव-हार-सेयचंदण-सीयलविमलजल - विविहकुसुमसत्थर-ओसीर - मुत्तियमुणाल-दोसिणा पेहुण उक्खेवग-तालियंट-बीयणग-जणियसुहसीयले य पवणे गिम्हकाले, सुहफासाणि य बहूणि सयणाणि पासणाणि य, पाउरणगुणे य सिसि रकाले अंगार-पतावणा य आयव-निद्ध-मउय-सीय-उसिण-लहुया य जे उदुसुहफासा अंगसुह-निव्वुइकरा ते', अण्णेसु य एवमादिएसु फासेसु मणुण्णभद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिझियव्वं न मुभियव्वं न विणिग्घायं प्रावज्जियब्वं न लुभियव्वं न अज्झोववज्जियध्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सति च मतिं च तत्थ कुज्जा। पुणरवि फासिदिएण फासिय फासाति अमणुण्ण-पावकाई, किं ते ?अणेगबंध-बह-तालणंकण-अतिभारारोहणए, अंगभंजण सूई नखप्पवेस-गायपच्छणण-लक्खारस-खारतेल्ल-कलकलतउ-सीसक-काललोहसिंचण - हडिबंधणरज्जु-निगल-संकल-हत्थंडुय' - कुभिपाक-दहण - सीहपुच्छण - उब्बंधण - सूलभेयगयचलणमलण -करचरणकण्णनासोट्टसीसछेयण -जिब्भंछण - वसणनयण हिययंतदंतभंजण-जोत्तलयकसप्पहार - पादण्हिजाणुपत्थरनिवाय - पीलण - कविकच्छुअगणि-विच्छ्य डक्क-वायातवदंसमसकनिवाते, 'दुट्टणिसेज्जा दुनिसीहिया" कक्खड-गुरु-सीय-उसिण-लुबखेसु बहुविहेसु, अरणेसु य एवमाइएस फासेसु अमणुण्ण-पावके सु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियब्वं न निदियध्वं न गरहियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न बहेयव्वं न दुगुंछावत्तियं च लभा उप्पाए। एवं फासिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, मणुण्णामणुण्ण-सुब्भि-दुन्भिरागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए चरेज्ज धम्म ॥ निगमण-पदं १९. एवमिणं संवरस्स दारं सम्म संवरियं होइ सुप्पणिहियं इमेहिं पंचहिवि कारणेहि ___ मण-वयण-काय परिरक्खिएहिं ॥ २०. निच्चं आमरणंतं च एस जोगो णेयव्वो धितिमया मतिमया अणावसो प्रकलुसो १. तान् स्पृष्ट्वा इति प्रकृतम् (वृ)। ५. हत्थंदुय (ख, ग)। २. पूर्ववर्तिषु १४-१७ सूत्रेषु एतत् पदं नास्ति। ६. कण्णनासोट्ट ° (क, ग, घ) ! तत्र लिपिकाले त्रुटितमथवात्र अतिरिक्त- ७. °हिययदंत • (क, ग); • हियएदंत ° (घ)। मस्ति । ८. दुणिसेज्जदुनिसीह्यि (क, ख, ग, घ, च) । ३. पच्छण (क, घ)। ६. कक्कड़ (क)। ४. सिंसक (क, ख, ग, घ, च)। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द समं अज्झयणं (पंचमं संवरदार) अच्छिद्दो अपरिस्सावी असंकिलिलो सुद्धो सव्वजिणमणुण्णातो ॥ २१. एवं पंचम संवरदारं फासियं पालियं सोहियं तीरियं किट्टियं पाराहियं 'प्राणाए अणुपालियं भवति । २२. एवं नायमुणिणा भगवया पण्णवियं परूवियं पसिद्धं सिद्धं सिद्धवरसासणमिणं आधवियं सुदेसियं पसत्थं-पंचमं संवरदारं समत्तं । –त्ति बेमि ॥ २३. 'एयाइं वयाति' पंचवि सुव्वय-महव्वयाइं हेउसय-विवित्त-पुक्कलाई कहिया अरहंतसासणे पंच समासेण संवरा, वित्थरेण उ पणवीसति । समिय-सहियसंवुडे सया जयण-घडण-सुविसुद्ध-दसणे एए अणुचरिय संजते चरमसरीरधरे भविस्सतीति। परिसेसो पण्हावागरणाणं एगो सुयक्खंधो, दस अज्झयणगा एक्कस रगा, दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जंति, एगतरेसु आयंबिलेसु निरुद्धेसु आउत्तभत्तपाणएणं । अंगं जहा पायारस्स ।। पण्हावागरणं दसम अंग सुत्तो समत्तं । ग्रन्थ परिमाण कुल प्रक्षर-४१३३८ अनुष्टुप् श्लोक-१२६१७० १६ १. अणुपालियं आणाए आराहियं (क, ख, ग, घ, च)। २. वताई (ख)। ३. वाचनान्तरे पुननिगमनमन्यथाऽभिधीयते यदुत एतानि पंचापि सुव्रत ! महावतानि लोकध्र तिव्रतानि श्रुतसागरदर्शितानि तपः संयमव्रतानि शीलगुणधरव्रतानि सत्यार्जब व्रतानि नरकतिर्यङ मनजदेवगतिविवर्जकानि सर्वजिनशासनकानि कर्म रजोविदारकाणि भवशतविमोचकानि दुःखशतविनाशकानि सुखशतप्रवर्तकानि कापुरुषदुरुत्तराणि सत्पुरुषतीरितानि निर्वाणगमनस्वर्गप्रयाणकानि पंचापि संवरद्वाराणि समाप्तानीति ब्रवीमि (व)। Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकहाओ संक्षिप्त-पाठ पूर्त-स्थल पूर्ति आधार-स्थल अंतिए जाव पव्वयामि २११०२५ १११।१०१ अंतेउरे य जाव अज्झोववणे ११६।४१ १२१६२८ अगडे वा जाव सागरे १८१५४ शक्षा१५४ अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे ११११११ १।१।१११ अग्घेणं जाव आसणेणं श१६१६७ १११६:१८६ अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे ११२१७६ ओ० सू०२ अज्जग जाव परिभाएत्तए । १।६।५ १।१।११० अज्जाओ तहेव भणंति तहेव साविया जाया तहेब चिंता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । १५१६।६८-१०४ १।१४।४४-५० अज्झथिए० ११८७९ ११११४८ अज्झथिए किमण्णे जाव वियंभइ १।१६।२७२ १।१६।२७२ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था १।११५३,५६,१५४,१५५,१६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,११५।११८,१२४;११७२५; १।१६११८,२८५,२।११३८ शश४८ अज्झत्थिय जाव जाणित्ता ११६।२८६ ११११४८ अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव रयणि १११११५५ १११११५४ अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि २।८।१,२ २।२।१,२ अद्वाई जाव नो वागरेइ शश६६ १५६९ अट्ठाई जाव वागरेइ ११५२६६ प्रदायिं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए शक्षा२२६ शमा२२४ अड्डा जाव अपरिभूया ११५७ ओ० सू० १४१ अड्डा जाव भत्तपाणा ११३८ ओ० सू० १४१ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति १११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ ११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६ अणते जाव समुप्पण्णे ११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो ११।१६४ अणगारे जाव इहमागए ११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे २।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं १।१२।३ अणिवा जाव अमणामा ११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं १११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं १।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विउलं १८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज १।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए ११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए १॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए १११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए १।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि ११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए १११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए १३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे १३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं ११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा ११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए १।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए ११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए श११११२ ११८।२०५ १३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४ ११५२६६ ११११६१ ११११११७-११६ १।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४ १८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवरकंहा जान सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज • असक्काfरय जाव निच्छूढे असक्कारिया जाव निढा असणं जाव अणुवमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परिभुजेमाणी असणं जाव परिवेसे असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाद उन्ह व सुहाणं कुलघर जाव सम्माणिता असण जाव पसन्नं असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एतो अतिराए चैव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाय अगभूवभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उठबद्ध पीढ० विहरामि अहम्मिए जाव अहम्मकेक अहम्मिए जाव विहरइ महाकप्पं जाव किता अहापतिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवतेहि जाच मज्जपाणएम अहायुतं जाव सम्म अहिमवा जाव अतिराए अमणामतराए अहीण जाव सुरू अहो णं तं चैव आइगरे जाव विहरs आइण्ण वेदो १ १६ २७६ १५-१०१ १।१८१२ ११६२२० १८:१६६ १:१६।२४६ ११६/१७२ १४२११२ ११४३६ ११२ २० १२/१२,५३ १०१२१४ ११७३२२ १।१६।१५२ १।१६।५२ १.५४७६ ११५२७६ * १।५।१२४ १२१८१९ ११०११९ १।१।२०१ १|१|१७३१।१६।११ १।५।११६ १।१।२०१ ११८४२ १।१।१६ १।१२।१६ २११२० १।१७ १४ १।१६।२६२ १।५।२४-३८ १११६ १ १६ २१६ १।१६।२१ १।१६।२४५ १८१५६ १२१२ १।१४१३८ १/२/१४ ११२।२७,३८ १२ १४ १७१६ १।१६ १५१ वृत्ति १।१६।२३ १२५/७६ ११५२७६ १०५/११७,११८ वृत्ति १११८१६ १।१।११० १ १/४ ११५ ११५ १।१।१६५ वृत्ति ओ० सू० १५ १।१२।१३ १।१।१५ बति Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८.१६८ १।१२१२ १।१६।१८६ १।८।१७० ११८।१७० १।१६।१८६ १३१४१६० शक्षा१७० १११११५४ २१५४ २११६१ १७६ शश१०१ १।१।१०१ १।१।२० ११।१८६ आएहि य जाव परिणामेमाणा ११म१०४ आउक्खएणं जाव चइत्ता १।१६।१२३ आईति जाव पज्जुवासंति १११६:१८८ आढाइ' जाव तुसिणीए १।१२।७१।१६१५ आढाइ जाव तुसिणीया २१११३६ आढाइ जाव नो पज्जुवासह १२१६१६० आढाइ जाव भोगं १।१४१६१ आढाइ जाव संचिइ १।१६।३० आढायति १।१२१५५ आढायंति जाव संलवेंति १२१११५४ आपुच्छइ जाव पडिगए १६१६१२०० आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं १७४२ आपुच्छामि जाव पव्वयामि। १११२।३८ आपुच्छामि तएणं जाव पव्वयामि १।१६।१२ आरोग्गतुट्ठी जाव दिठे १।१।२६ आलंबे वा जाव भविस्सइ १।१६।३१२ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु १२३३१६ आलोएहि जाव पडिवज्जाहि १।१६।११५ आसयंति वा जाव तुयति १।१७१२२ आसाएइ जाव अणुपरियाट्टिस्सइ १११६४२ आसाएमाणीओ जाव परिभंजेमाणीओ ११२११७ आसाएमाणी जाव विहरइ १।२११४ आसाएमाणे जाव विहरइ १२१२१२२ आसायणिज्ज जाव सन्विदिय० १।१२।२० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० १।१२।१६ आसिय जाव गंधवट्टिभूयं शश६७ आसिय जाव परिगीयं ११७६ आसुरुत्ता जाब मिसिमिसेमाणा १।१६।२८ आसुरुते जाव तिवलियं ५८.१५६ आसुरुते जाव तिवलियं एवं १।१६२८६ आसुरुते जाव प उमनाभं १११६२८० आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे १६५१२२ आहारे वा जाव पव्वयामो ११८४१३ आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था ११४१६७ आहेवच्चं जाव पालेमाणे १११७१२२ १९४४ १११ १११८१ १।१।८१ १११२।४ १।१२।४ ११.३३ वृत्ति ११११६१ शा१०६ १८।१०६ १८१०६ १११११६१ १५६० १११.१५७ १११११८ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ १११११८ शश६ ११११४६ १.१६/४७ २०४६ ११११४६ ११११४८ १६१६४६ १११११४५ उवा० २१४० १।११४८ शश१६४ १।११६७,११५३५२ १३५१६:१।३४ आहेवच्चं जाव विहरइ ११३८ आहेवच्चं जाव विहइ १११८/२० आहेवच्चं जाव विहरसि १११११५७ इट्ठा जाव मणामा १११६७० इट्ठा तं चेव १६१६:४८ इट्टाहिं जाव आसासेइ ११६।१३१ इटाहिं जाव एवं १८१२०३ इटाहिं जाव वग्गूहिं १८६७ इट्ठाहि जाव समासासे इ १११।५० इठे जाव से णं ११५/२० इड्ढी जाव परक्कमे ११८७६११६२६५ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्या ११७१६:२।१११२ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १।१४।४० इहमागए जाव विहरइ ११५१५३ ईसर जाव नीहरणं १११४१५६ ईसर जाव पभितीणं १७६ ईहामिय जाव भत्तिचित्तं १।११८६१८४६ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं १४१८४० उक्किट्ठाए जाव देवगईए १।१६।२०४,२०६ उक्किट्ठाए जाए विज्जाहरगईए १४१६१६० उक्किट्ठाए प्फ कुम्मगईए १:४१२१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स २१३१ उक्खेवओ पढमझयणस्स २॥५॥३ उज्जलंजाव दुरहियासं १।११६३ उज्जला जाव दाहवरकंतीए १११११८७ उज्जला जाव दुरहियासा ११५१०६:१।१६।२०,११६४५ उज्जाणे जाव विहरइ १११६३२१ उत्तरपरस्थिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ श५८० उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो १८१७६ उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा । ११८१७८ उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए ११८१५१ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई १।२।१४ उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा १६१६४१२८ उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १८३८,११६।३७ १३११२५ ११८१६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २।२।१ २।२।३ शश१६२ १११११६२ १।१।१६२ १६१६१३१६ भ० २।५२,११५।५२ शक्षा१७७ ११५१७७ श८।१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि०१४।३६ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उम्मुकबालभावे जाव जोव्वणग० उरालस्स के सिध मं जाव सुमिणस्स उरालाई जाव भुंजमाणा उरालाई जाव विहरइ उरालाई जाव विहरिज्जामि उरालाई जाव विहरिस्सइ उराले जाव तेयलेस्से उराले तहेव जाव भासं उववेए जाव फासेणं उव्वत्तिज्जभरणे जाव टिट्टियावेज्जमाणे उब्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ उब्वेतेति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए उव्वत्तेंति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए एगदिसि जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्तए जाव लवणसमुद्द एज्जमाणि जाव निवे सेह एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहिं परियणेणं एवं कुलत्था वि भाणियश्वा । नवरं इम नाणत्तं - इत्थिकुलत्था य धन्नकुलत्था य । इत्यिकुलत्था तिविहा पण्णत्ता, तं जहा -- कुलबहुयाइ य कुल माउयाइ व कुलधूयाइ या धन्नकुलत्था तहेव एवं जहा मल्लिणाए एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं एवं जहेव तेलिणाए सुव्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणुपविट्टे तव जाव सूमालिया एवं जहेब राई तहेव रयणी वि एवं जाव घोसस्स एवं जाव सागरदत्तस्स एवं पत्तियामि गं रोएमि गं एवं पाएहि सीसे पोट्ट कार्यसि एवं पायंगुलियाओ पायंगुए वि horeaकुलीओ वि नासापुडाई ६ १।१४१२२ ११११६ १११२/४० १११४१२० १/१६/११३ १।१६ २०४ १।१६/१२ ११११२०४ १।१२४ १।३।२२ १।३।२६ १४११६ १।४।१२ १/८/६७ १/१७/५ १८१७१ १।१४।७७ ११५२७४ १।१६।२०० १११८१३१,३२ २।१।१५ ११६१६४-६७ २ १/५७-६० २।३।११ १।१६।८८- ६१ १।१।१०१ १।१।१५३ १०१४/२१ १११।२० ११/१६ १।१६।११३ १।१२/४० १।१६।११३ १।१६।११३ १।१/६ १।१ २०२ १/१२/३ १।३।२१ १।३।२१ १४१११ ११४।११ ११८/६२ ११८६६ १|१|४८; १।१६।१३१ ११४।७७ १।५।७३ १/८/१५४ १११८१२०, २२ राय० सू० ६६८ १११४१४०-४३ २१११४७-५० ठाणं २१३५६-३६२ १।१६/६३-६६ ११११०१ १।१।१५३ १।१४।२१ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।११७ १११११७ ११५॥७५ १२५७३; भ० १८।२१५-२१६ एवं पासत्थे कुसीले पमते एवं भासा वि । नवरं इमं नाणत----मास। तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कालमासा य अस्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा---सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरइ ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओयमण जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणि ओहयमणसंकप्पा० ओहयमणसंकप्पा जाब झियाइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओयमणसंकप्पा जाव झियायह ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ओयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्टेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कत्ता जाव भवेज्जामि कते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कटु जाव पडिसहेइ कट्ठस्स य जाब भरेति ११८८ १।१८८ २७६ २।७।२ २।८६ २१८२ १।१६२२५ १।१६:१६५ शश१२५ १६५।११७ १1८1१७१ ११११३४ १।३।२३ ११३४ १।१४।३८,१।१६।२०५ १११।३४ १११४१३८ ११११३४ श१३४ वृत्ति १३१४॥३७,१३१६६६२,८७,२०७ ११११३४ १शक्षा१५ ११११३४ १शमा१७३ १।११३४ १११६२६५ १५१०३४ १।१६.६४,६२,२०८ १।११३४ १।१७१० ११॥३४ ११११६८,१२१४१७७,१११७१८ ११।३४ १।१६।३२ १६१२३४ १।१७।६ १११।३४ १।१६।१२ १११०१ १११६३९७ १०१४।४३ १।१।१४५ १।१।१०६ १११११६२ वृत्ति १७.४२ ११५१० १११६।२५५ १११६१२५१,२५२ ११७२८ १।१७।२२ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणग जाव दलयइ कण जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्जं कणग जाब सिलप्पवाले कयकोउय जाव सवालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवसिकम्मं जाव सध्वालंकारविभूसियं कवलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कलिकम्मा जाव विपुलाई जाव विहरइ कवलिकम्मे जाय राय हिं कलिकम्मे जाव सरीरे araलिकम्मे जाव सब्दालंकार० करयल ० करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव एवं करवल जाव कट्टु करयल जान कट्टु तहेब जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पियंति करवल जाव परिणे करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्भावेति करमन जाव बढाता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चैव जाव समासोरह करयल तहत जेणेव करमलपरिग्गहियं जाव अंजलि १११६ १६८ १८१५० १२१८३८ १२१८:३३ १|१३-१ १।१३/२५ १।१६।७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२१५८ १.१.६६ ११४७ १।५।६८, १२३, १६७३८१,१८, १५८,१६०१ ४३१:१।१४।३१,५० ११८१२०३, २०४:१।१६।१३७, १६१, २१६,२६४;१।१७।११ १।१६१२४६ ११:५५, ६० १।१।२०६१।१६।१७०, २१२: १११६१३,४६,२११२० १९३१७,१११४१२७, २८:१११६१४३ १|१|११८१।१६।१३३,२।१।११ १।१६।१४२ १।१६।१३८ शा१६६ शा१६५ १।१५।१६ १।१६।२३६ १।१७।२६ १।८।१३१:१।१६।२४४ ११८१०७ १।१६ १३४ १।१४११३ ११११२१ १२१३९१ १८४१ ११११६१ १४१४६१ १।२।२६ १।१३१२५ ११८१ १।१/३३ १२६६ १।१८ १ १११।२७ १११११ ११.१९ ११/२६ ११३६ १३१ १९ १।१।२६ १।१।२१ १११/२६ १।१६ १३२ १।१६।१२७ शा१६५ १।१।२६ १|१|४८ १|१|४८ १११.३६ १|१|४८ १|१|४८ १।१६/१३२ १।५।१३ १।१।१६ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२६ ११११४८ ११११४८ ११११४८ १।१३६ वृत्ति करयलपरिग्गहियं जाव कटु करयलपरिगहियं जाव वद्धावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल बद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेत्ता जाव विगयसोया करेमो तं चेव जाव मेमो करेह करेत्ता जाव पच्चप्पिणह करेह जाव पच्चप्पिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसप्पहारेहि य जाव तण्हाए कसप्पहारेहि य जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीणे कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किण्हाणि य जाव सुक्किलाणि किण्होभासा जाव निउरंवभूया कभए एवं तं चेव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोट्टपुडाण य जाव अण्णेसि कोटामारंसि सकम्म सं कोडंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्तं जाव जुत्तामेव उवट्ठवेंति कोडुबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबियपुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति खंड जाब एडेह ११११३६ ११८१२६ १५५१२० १।८।१०५ १।१६।१५७ १।१४१४१,४२ १शक्षा१५ १११८।२७ १।१६।२८८ ।१।१२ १८४० शक्षा५१ १९५१२४ १।२।३३ १६२।६७ १२।४५ ११५।१० १११६।३२२ १२।६७ श१६।३० १११७१२२ १।१३।२० १७११३ १।८।१७४ ११७११७,१८ १११११११ १११७१२२ श७२५ १२।१४ ११९४८ १।१६।२८२ राय० सू०६ ११८५१ ११।२४ ११५१२४ १॥२॥३३ १४२१३३ १२२।३३ १११११६ ११२८४ वृत्ति १।१३।२८ १।१७।२३ १।१७।२३ ओ० सू०४ १।८१७३ १६७।१५,१६ १११११०७ २७७ ११८।५२ १११५७ ११११११७ १३१६६२ १११६७८ उवा० ११४७,११८१५१ १११॥६ ११११११६ १।१२३ १.१६७४ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एवमट्ठ खीरधाईए जाव गिरिकंदर मल्लीणा गंध जाव उस्मुक्कं गंध जाव पeिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधव्वेहि जग विहरति गज्जयं जाव थणियस दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउव्विहभंडगस्स गन्भस्स जाव विर्णेति गय० मवलगुलिये जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जब पटियए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपविस सि गामागर जाय आहिदह गिहामि जाब मग्गणगवेसणं गुणे० किं चाले जाव नो परिचय डएस जाय संवसावेड चउत्थ जाव भावेमाणे चत्व जाव विहरद चउत्थ जाव विहरति चउत्थस्स उस्खेवओ चंपनपायवे ० चच्चर जाव महापपहेसु चरणा वा जाब पञ्चप्पियंति चरमाणा जाव जेणेव चरमाणे जाव जेमेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरइ चवलं नहेहिं चारगसोहणं जाव ठिइपडिय to ११०१५ १।१८ १४ १ १६ २६ १२८/६४ E १६७/६ १।१६।१५२ १२२६६ १1१1८१ १/८/६६ १२/१७ १८६३ १६१६ १६३७ १।१८:३९ १।१८/२४ १ १६ २२९ १।१४/४३ : १।१७।१७ १९१२/२६ १२०/७१ १।१२।१९ १८१६ १।५।१०१:२।१।३३ १८१७,२५ २४११ २०१६/४१ १ १/६७ १:१५४७ १२६६ १२५ १० १५/१०८ १।४।१७ १।१४।३२,३४ १।१०१३ १११८/१० आधारचूला १५३१४ १११।३० १८१६० १1१1३० १।१६।१५० 815108 ११:२४ १२०६६ १/२/१७ १.१.६७ उवा० २।२२ १।९।१६ १११८/३८ १।१८२२ १८५८ ११५८ १।२।२७,२९ १८७४ १।१२।११ १।१।१९५ १।१।१६५ १।१।१९५ २२।१ १।१।१०५ १।१:३३ १/१५/६ ११११४ १।१४ ११०४ १।४।१४ १२१२७६-७६ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारुवेसा जाव पडिरूवा चालितए जाव विप्परिणामित्तए चिट्ठइ जाव उट्ठाए चिटुइ जाव संजमेणं चित्तेह जाव पच्चष्पिणह चेइए जाव अहापडिरूवं चेइए जाव विहरइ चेइए जाव संजमेणं चोक्खा जाव सुहासणवरगया चोरनायगं जाव कुडंगे चोरविज्जाओ य जाव सिक्खाविए ajaणं जाव विहरइ छछट्टे जाव विहरइ छछट्टेणं जाव विहरितए छट्ठम जाव विहरइ जणवयं जाव नित्थाणं जाव पज्जुवासई जाव सणियं जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे जाव हावभाव ११ ११२८ १८७६ १।१।१५१ १।१।१६३ ११११७ ११२६६ ११११६४ २१/३ १।१६।१५२ १११८१३० १।१८।२८ १।१३/३६ १।१६।१०८ १/१६/१०७ जहा पोट्टिला जाव परिभाएमाणी जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १११६/२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा ११७१११ १८३७ जहा महबले जाव परिवड्डिया जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १ । १७/६ जहा बद्ध माणसामी नवरं नवहत्युस्सेहे ० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए २११४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६/२० जायं च जाव अणुवड्ढे मि १२/१४ ११४ ४६ जाया जाब पडिलाभेमाणी जाव एवं चैव पल्हायणिज्जे १।१२।२३ जाव जहा १४१२२ १।५।१७ १।४।१६ १।१६ १०५ १११८३२ ११६/२ १५६३,६४ १८३१२१ १।१।१७ ११८१७६ १।१।१५० १।१ । १५१ १।१।२३ १ १/४ ११११४ १ । १४ १।२।१४ १११८२१ १।१८२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११।१६५ १।१८२२ १/१४/३८ १।५।११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १६६ ओ० सू० १६; वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ १।५।१०६ ११२।१२ १२५/४७ १।१२।२२ ११२/७६ ११२६६ १।४।१३ राय० सू० ६६३; ११५।४७ १८११७ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिमिय जाव सूइभूया जिमियत्तुत्तरागयं जाव सुहासण० ११२।१४ १।१६।२१६ १।८।१५४ ११११४ १।१७।२२ १।२।२७ हाए जाव पायच्छित्ते ११४१६४ हाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १११६/२६५ १२१७१ जोव्वणेण य जाव नो खलु झोडा जाव मिलायमाणा ठवेंति जाव चिट्ठति भिहिय जाव कुमारियाहि हाए जाव सुद्धप्पावेसाइं हायं जाव पुरिससहस्वाहिणीयं व्हाया जाव पायच्छित्ता हाया जाव बहूहि हाया जाव सरीरा हायाणं जाव सुहासण ० तइयज्झयणस्स उक्खेवओ सइयवग्गस्स निक्खेवओ तण से गए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव तं इक्छामि णं जाव पव्वइत्तए तं चैव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि तं चैव सव्वं भणड़ जाव अत्थस्स तं यणि चणं चोट्स महासुमिणा वण्णओ तक्करे जाव गिद्धे विव आमसभक्खी तन्वं दूयं चंपं नयरिं । तत्थ णं तुम कण्णं अंगराय सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह । उत्थं यं सोत्तिमहं नरं । तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुड करयल तहेब जाव समोसरह । पंचमं दूयं हथिसीसं नयरिं । तत्थ णं तुम दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । दुयं महुरं नयर । तत्थ णं तुम १३ १/१४/५३ ११२१६६; ११८११७६ १८।१६८ १।३।११ १।१६।८ २१११५६ २।३।१२ १।१६ १४३, १४४ १।१।१११ १११।१०७ १११८५२ १८२६ १२३३ १११।८१ १।२३१४ शाह ११११/२ १।१७।२२ ११२।२५ १११।२७ १।१६।२६४ १।१।१२४ १|१४|१८ १।१।२७ १८१७६ १।१।२७ १८७६ २ १/४६ २ १/६३ १।१६।१३४-१४१ ११११०४ १।१।१०६ १।१८।५१ कल्पसूत्र ४ १।२।११ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ धरं रायं करयल जाव समोसरह । सत्तमं दूयं रायगिहं नयरं । तत्थ णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह । अट्रमं दुयं कोडिपणं नयरं। तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगसुयं करयल तहेव जाव समोसरह । नवमं दूयं विराटं नार। तत्थ णं तुमं कीयगं भाउसयसमग्गं करयल जाव समोसरह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरेसु अणेगाइं रायहस्साइं जाव.समोसरह । तए णं से दूए तहेव निग्गच्छइ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्चं पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे० तत्थे जाव संजाय भए तयावर ईहापूह जाव सण्णिजाइसरणे तलवर जाव पभितओ तलवर जाव सत्थवाह तहत्ति जाव पडिसुणेति तहारूवेहिं जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया तं चेव सर्व जाव अंतं तहेव सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ जाव अरहो अरिटुने मिस्स छत्ताइछत्तं पडागाइपडाग पासइ २ त्ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्खुत्तो जाव एवं तिग जाव पहेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुक्कबंधणे तुट्ठी वा जाव आणंदो तुभण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेश्य १६१६.१४५ ११४३५ १।१२।३१ १२१४।७७ १११६८ १८१८१ १११४१६५ १।५।६ ११५४१३ १२१२२१५ शा१३६,१३७ ११६।१३२-१३४ श१६३५ १।१२।१६ २१४१७६ ११११६० १६११६० १।२६ ओ० सू० ५२ ११११२६ १।१२०६ १८१६६,१०० २२११५१-५४ २१११३२-४४ १२।२५,२६ १११६१३२६ श१९३४ ११५।२६ १११६२६ १६४ १२।६४ १।१२।४३ १८१६६ ११११२६,१४४,६६ १।१।२१२ १।१९२६ ११११३३ १॥५॥५३ ११२।६३ १६१११०४ १।४।१४ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभयं श१६।१५५ तेसि जाव बहूणि १1१७१६ थलय ११मा४६ थलय जाव दसद्धवणं १८१३१ थलय जाव मल्लेणं ११८१३२ थावच्चापुत्ते जाव मुंडे ११५१८० थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा १८८ थेरा जाव आलिते १५१६३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३१२४ दसमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।१०।१,२ दाणधम्मच जाव विहरइ १८.१४११५२ दारियं जाव झियायमाणि १।१६।६४ दासचेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी शमा१४७ दाहिणड्डभरहस्स जाव दिसं १२१६।२६६ दिट्टे जाव आरोग्य १।१२० दित्ते जाब विउल भत्तपाणे १।२।७ दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ १२२१७६ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ ११८१२६ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ १।१७४१३ दुरुहंति जाव कालं १।१६।३२३ दुरूढा जाव पाउन्भवति १८।१४ दूइज्जमाणा जाव जेणेव १४१६३२१ दुइज्जमाणे जाव विहर १११६४३२० देवकन्ना शा१५४ देवकन्ना वा जाव जारिसिया शा८६,१११ देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए १२८१२८ देवलोगाओ जाव महाविदेहे १।१६।२४ देवाणुप्पिया जाव कालगए १।१६३२३ देवाणु प्पिया जाव जीवियफले ११८७६ देवाणुप्पिया जाव नाइ १२१६२६५ देवाणु प्पिया जाव पव्वतिए १११६४३४ देवाणु प्पिया जाव साहराहि श१६।२४२ देवाणुपिया जाव सुलद्धे १९१६२६ देवी जाव पंडुस्स १।१६।३०१ १२२२ ११८७१ १८.३० १८.३० १३० ११५१३४ १८।१२ १११११४६ सूय० २६२१७८ ११३१२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६६२ १४८.१४६ १।१६।२६७ ११०२० वृत्ति १।२।६७ ११८.११६ ११११०२ १११६६३२३ १९५६१ ११११४ ११।४।१।१६।३१६ शा८६ वृत्ति ११८१२६ १११२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० ११५१२३ १११६२६ ११६२४० १११६२६ १।१६।२६२ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ १२१६१२३६ १११६१२३३ देवी जाव साहिया श१६/२४० १११६०२०८ देवेण वा जाव निग्गंथाओ १९७५ उवा० २।४५ देवेण वा जाव मल्लीए ११८१३५ १९७५ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवयो २।२।१ २११६ घण कणग जाव परिभाएउं २११४९२ १११०६१ धण जाव सावएज्जस्स १७१३४ १९१ धण जाव सावएज्जे १११६६ ११६१ धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ १।१३।१५ १।११३३ धम्म सोच्चा जं नवरं ११५८७ १२१११०१ धम्म सोच्चा जहा णं देवाणु प्पियाणं, अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरणं जाव पव्वइया तहा गं अहं णो संचाएमि पवइए १।१४५ राय० सू० ६६५ धम्मकहा भाणियब्बा १९५७८ १६५१६३ धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स श।७५ शरा६४ धोबसि जाव आसयसि २।१३५ २।११३४ धोवेइ जाव आसयइ २।११३८ २।११३४ धोवेइ जाव चेएइ १।१६१११९ १।१६११४ धोवेसि जाव चेएसि १११६।११५ १११६।११४ नंदीसरे अट्टाहियं करेंति जाव पडिगया १८१२२४ जंबू० वक्ष०५ नगरगिहाणि १६७ १८१५८ नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि श११११८ नच्चासन्ते जाव पज्जुवासइ १२१४/८५ ११६६ नट्टा य जाव दिन्न १५१३२२० नठमईए जाव अवहिए १।१७।१० १२१७१८ नरि अणुपविसह १६१६२१६ १११६१२१८ नवमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ राक्षा१,२ २।२।१,२ नवरं तस्स १७२८,२६ ११७८,२५,२६ ताइ० ११५।२६:११७४६,६,२२,२६,४२१११५।११:१।१६।५०,५४,१।१८,५१,५६ श१८१ नाइ० १३१४११८,१।१५।१६ १३२२० ओ० सू० ६८ ओ० सू० १ Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाइ उष् य कुल जान विहराहि ११७२५ नाइ जाव आमंत १११४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ नाइ जान परियणं नाइ जान परियणेण नाइ जाव परिवुडे नाइ बाब संपरिवुडे नाम का जाव परिभोग नाम जान परिभोग नासानीसासवायवोज्भं जाव हंस लक्खणं निक्लेव निक्लेवओ प्रभवगस्स निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ दस मवग्गस्स निक्लेव पढमभयणस्स निक्लेवओ विश्वग्गस्स निगंधा जान पडिसुर्णेति निधाणं जाव विहरितए निगंधी वा निग्गंधी वा जाव पव्वइए निग्गंथे वा जाव पव्वइए निचो वा निग्गंधी वा जाव पंचसु निम्गंध वा २ जाव विहरिस्स निट्ठियं जाव विज्झायं निप्पाणे जाव जीवविप्पज ढे नियग० निम्बतियनामधेन्वे जाव चाउदंते निव्वाचासि जाव परिबडइ निसंते जाव अभण ण्णाया निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि निसीब जार कुमलोदतं ११२:१६ १०१४११९ ११६४८ १६ १।१६।५० १।१३।१५. ९।१४।५३ १।१६।९७ १०१४१३७ १।१।१२६ २२४६ शराब २४६ २११०१७ २३३६ २१२११० १।१६।२३ १।५।१२४ १२१८६१ १७१२७१।२०१३ १।११।३,५ १।२।७६ १११७/२५,३६ १।१५।१४ १।५।१२६ १११।१८४ १११८१५४ १२७/६ १।१।१६७ १।१६/३६ १।१४।५० PISIS १।१६।११५ ११७१६ ११७१६ ११२।१२ ११११८१ १।१८ १ १५२० ११५२० १।१४।३६ १।१४:३६ आधारचूला १५२८ २२१२४५ २।१।४५ २१६३ २।१।६३ २।११४५ २।१।६३ १।१।२६ ११५३११४ ११२६८ ११२२६८ ११२२६६ ११२६८ १।३।२४ १।२१७६ १|१|१८३ १।२३२ १२१८१ १।१।१५६ राय० सू० ८०४ १।१।१०४ 818150 १.१६/१८७ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्संचारं जाव चिट्ठति नीलुप्पल ० नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाव खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाणिता जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुते तहेव सिद्धा० पंचमरस उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियव्वं पंचणं जाव पूरियं पंचाणुव्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाण पंडवा० पंथण जाव विहरइ पगइभहए जाव विणीए पच्चखाए जाव आलोइय० पंच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूय कल्ला पन्वइस्स सि पञ्चपिणह जाव पच्चप्पियंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पडागे जाव दिसोदिसि पsिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल० पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुर्णेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्खेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कूवं पण्णत्ते जाव सग्गं १७ ११८१७२ १११८४६ १।१४।७३ १११४/७७ १।१६।२८७ १।५।१२७,१२८ २५११, २ ११७/३३ १।१६।२७६ १।५।४५-४७ १।१६।३१३ १।५।१२६ १११।२०६१।१६।२४ १।१६।४६ १११३।४२ १।१।१११ १११।७७ १२/३२ १११६/२५२ १।१६ / ६५ ११८३६ १८४७ ११५।५६ १११६।२३ २७३२८१३२/६३ २१०१३ १।१६।२४४ ११५२६० १८१६७ १६ १६ १।६।१६ १।१४।७३ १।१६।२८५ ११५८३, ८४ २२ १,२ ११७ २५,६ १।१६।२७५ वृत्ति, ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १।५।१२४ ओ०सू०११६ १/१/२०६ १११ २०६ १११।११० १।१।२३ राय०सू० ६६४ वृत्ति १/१६/६२ ११८१२७ १|१|३६ १/५/५२ १।५।११३ २/२३ रारा३ १।१६।२४३ १।५।५५ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६२ १७.१५ पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६ १।१६।५६ ११७११४ १११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८ १।२१७६ ११८।१०७ १११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६० १।४।१६ श१७१२२ ११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२ शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१ १११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६ १.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१ १११११०१ १.११८६ भ० २१५२ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीsari जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया पीढ़ पुच्छणाए जाव एमहालिय पुढवि जाव पाओवगमणं पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स पुप्फ जाव मल्लालंकार पुफिया जाव उवसोभेमाणा पुरापोरानं जाव पचणुभवमाणी पुरापोराण जाव विहरइ पुवभवपुच्छा एवं पोक्खरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ पोसहसा जाव पुव्वसंगइयं पोसहसा लाए जाव विहरइ फलिया जाव उवसोभेमाणा फासु एस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं फासूयं पीढ जाव विहरह बंधित्ता जाव रज्जू बहिया जाव खणावेत्तए बहिया जाव विहरति वहिया जाव विहरितए बहुना ओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे बहूई जाव पडिगयाई वहूणि गामाणि जाव गिहाई बहूहिं जाव चत्थ विहरइ बसु जाव विहरेज्जाह बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चपिति पंडुस्स जहा बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगस मत्थे बासट्ठि जाव उत्तरड़ बास जाव उत्तिणा fateharta freखेवओ बुज्झिहि जातं १६ १।३।३१ २।११११ ११५।११७ १११११५४,१५५ १।५।८३ १।२५६, ६४ ११२१४ १।१३/१६ १।१६६२ १।१६।११३ २।१।५० १।१३।१५ १११६१२०१ २०३ १।१३/१४ १।११।४ ११५।११४ १।५।११३ १११४। ७७ १।१३|१५ १।५।११८ १।५।११७ १।१६।६७ १११६।१८२ १।१६ १६६ ११५१३८ ११६/२० १।१६।२२३,२२४ १।१६।३०८,३०६ १११६।२८७ १।१६।२८७ २१।५५ १।१३।४४ १/१/३० १|१|१६ ११५।११० १११५३ १११/२०६ ११२.४० १।२११२ १।११।२ वृत्ति १ १६ २ २।१।१५ राय० सू० १७४ १।१६।२३७-२३६ १।१।५३ १/११/२ ११५ ११० १।५।११० १।१४।७३ १।१३।१५ १|१|१६६ ११/१९६ १|१४|४३ १८१६१ १८५८ ११/१६५ ११६३२० १।१६/२१३,२१४ १११२८४, ८५ १।१६।२८५ १।१६।२८५ २०१४५ १।१।२१२ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भगवओ जाव पव्वइत्तए भड० भवणवइ० तित्थयर० भवित्ता जाव दोद्दसपुवाई भवित्ता जाव पवइत्तए भवित्ता जाव पव्वइस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणियवाओ जाव महाधोसस्स भारहाओ जाव हथिणारं भाव जाव चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजायभए भीया जाव संजायभया भीया वा भीया सजायभया भुंजावेंति जाव आपुच्छति भुतुत्तरागए जाव सुइभूए भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छ भोगभोगाई जाव विहरई भोगभोगाई जाब विहरति भोगभोगाइं जाव विहरा हि मइविकप्पणाहि जाव उवणेति मज्झमझेणं जाव सयं मट्टियाए जाव अविग्घेणं मट्टियालेवे जाव उप्पतित्ता मणपणे तं वेव जाब पल्हायणिज्जे मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए मयूरपोयग जाव नदुल्लग महत्थं० महत्थं जाव उवणेति महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं महत्थं जाव निक्खमणाभिसेय महत्थं जाव पडिच्छइ ११११११३ १३१४१०४ ११९:१४ ११८५७ १९३६ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० ११८२०४;२१११२७ ११११०४ १११२४० १११११०१ ११८१८६११६६३१० २१४१५ ठाणं० २:३५५-३६२ १।१६।२४० १।१६।२५४ ११।११८ ११८११७ ११।३५-३७ वृत्ति १२१२१३६ ११५१२१ १११४१६६ १११११६० १६२५,२७ १११११६० ११८७६ ११८७३ ११८७२ ४११६० ११८६६ १८६६ १।१२।४ १२।१४ १६१६२२ ११५।११० ११११६६ १।१।१७ १११६१८३ १।१६।२०० ११११३२ १११६।२४७ ओ० सू० ५७ १।१६।१६६ १२१६२१८ ११८१४३ ११५४६० ११६४ १६६४ १११२स १५१२६४ ११८४१,४२ ११८।४१ ११३१२८ ११३१२७ शा८१ १९८१ १८.८४ ११८८१ १८ा२०५ शश११६ ११५६८ १११७११७ दा८२ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मित महत्थं जाव पाहुडं १११७११६ ११२२० महत्थं जाव पाहुडं रायारिह १११३१५ ११५२० महत्थं जाव रायाभिसेय ११श६२११६।३७ ११११११६ महब्बले जाव महया १८।१६ १॥५॥३४ मयाहय जाव विहरह २।११० राय० सू०८ महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि १११४१७७ १।१४।७५ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि ११११११० १।१।१०६ महिडीए जाव महासोक्खे सूय०२।२।७३ महुरालाउयं जाव नेहावागाद १११६ १।१६८ माणुस्सगाई जाव विहरइ ११५१६ १६११६७ माया इ वा जाव सुण्हा ११४१७१ सूय० २।२७ मासाणं जाव दारियं १।१६।१२४ ११२।२० माहण जाव वणीमगाण १११४१३८ आयारचूला १।१६ माहणी जाब निसिरइ ११६२४ १।१६।१४ १७।२२ ११२८१ मित्त जाव चउत्थ १७:१० १९७६ मित्त जाव बहवे १७।३० ११७२५,११ मित्त जाव संपरिवुडा ११।२० १॥२।१२ मित्त नाइ गणनायग जाव सद्धि १।२८१ शश८१ मित्तपक्खं जाव भरहो १११११८ मुडावियं जाव सयमेव १६११६१ १।१।१४६ मुंडे जाव पव्वयाहि १।१६।१४ १५१११०१ मुच्छिए जाद अज्झोववण्णे १।१६।२६ १११६२८ मेहे जाव सवणाए ।१५४ १।१।१०६ य णं जाव परमसुइभूए १।१२।२२ ११८१ रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय. १११६६४६ १२१७४२५ रज्जं च जाव अंतेउरं १११६।२६ १।१।१६ रज्जे जाव अंतेउरे १।१४।६० १।१४।२१ रज्जे य जाव अतेउरे श८.१५१:१।१६।१८७१।१६।२६ १११११६ रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ १११४१२२ १।१४।२१ रज्जे य जाव वियत्तेइ १३१४१२२ १।१४।२१ रणो जाव तहत्ति श१६१३०३ १८५१०४ रणो वा जाव एरिसए १८.१५३ १।८।६७ रयण जाव आभागी १।१८५६ १११६१:१११८१५१ वृत्ति Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वायणाए जाव धम्माणओगचिताए १३१२१८६ वाराओ तं चेव जाव नियघरं १६।४ वावीस य जाव विहरेज्जाह १९२० वासाई जाव दति १।२।१२ वासुदेवपामोक्खे जाव उवागए २१६६१७७ वासुदेवे धणुं परामुसइ वेढो १।१६।२५८ वासे जाव असीइंच सयसहस्सा दल इत्तए शक्षा१६४ विउला पगाढा जाव दुरहियासा १।१६।४० विगोवइत्ता जाव पब्वइए १।१६।२६ विजया जाव अवक्कमामो १।२।४७ विणिम्मुयमाणी २ एवं श५।३३ वेज्जा य जाव कुसलपुत्ता १।१३१३० सई वा जाव अलभमाणा १९२२,२४ सई वा जाव जेणेव १।६।२३ संकामेत्ता जाव महत्थं पाहुडं शा८४ संकिए जाव कलुससमावणे १३।२४ संगयगयहसिय० ११३१८ संचाएइ जाव वित्तिए संचाएंति० करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति २४।१४,१५ संजत्तगाणं जाव पडिच्छइ १८८२ संता जाव भावा १२१२१३२ संताणं जाव सब्भूयाणं १।१२।२६ संते जाव निविणे १८७६ संते जाव भावे १।१२।२६ संपरिबुडे एवं जाव विहरइ १०८।१४७ संभग्गं जाव पासित्ता १।१६।२६३ संभग्गं जाव सण्णिवइया १३१६१२७८ संभागं तोरण जाव पासह १।१६।२७८ संसारभउविम्गा जाव पब्वइत्तए १.१४१५३ संसारभउब्विग्गे जाव पव्वयामि १३५१ सकोरेट जाव सेयवर० शपा५७ सकोरेंटमल्लदाम जाव सेयवरचामराहि महया १८११६१ सकोरेंट सेयचामर हयगयरहमहयाभडचडगरेण जाव परिक्खित्ता १।१६।१५३ १।१।१५३ १२३४ १९२० १।२।१२ १२१६१७६ वृत्ति ११८१६४ १११११६२ ओ० सू० ५२ ११२।४४ १।१।१४८ १।१३।२४ १।६।२१ १६२१ ११८८१ ११३।२१ १११११३४ ११५११७ ११४:११,१२ १८८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १२४।१२ १।१२।१६ १२१६११७८ १२१६।२६२ १११६१२६२ १२१६।२६२ १११११४५ १११११४५ ११८५७ १८५७ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ १।१६।१५७ ११२५ शक्षा२०३ १०६४ १११५११६ १३१६२४८ ११६:१३४२१८३५ श१६२५१ १।१६।२३६ ११३७ १०८१५७ १॥श२४ ११८७६ १४११५६ २३१२४ ११।३२ शरा३२ १।२।३२ १४२०३२ शहा३६ ११८७३ श८७७ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउससिरी सज्जइ जाव अणु परियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण्णद्ध जाव गहिया सण्णद्ध जाद पहरणा सण्णद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तट्ठ जाव उप्पयइ सत्तटुतलाई जाव अरहन्नगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स सत्थवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधाणं सहफरिसरसरूवगंधे जाव भुजमाणे सदहति जाव रोएंति सद्दावेइ जाव जेणेव सद्दावेइ जाव तं सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ सद्दावेइ जाव पहारेत्थ सद्दावेह जाव सद्दावेंति सद्देणं जाव अम्हे समणस्स जाव पवइत्तए समणस्स जाव पव्वइस्ससि समणाउसो जाव पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाव माणुस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं समणाणं जाव वीईवइस्सइ समणाणं जाव सावियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जइ समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २१७११,२ २।२।१,२ ११११६ ओ० सू० ८२ १।१६।३१ १।१६३१ ४१११७२ १।१७।२२ ११५४९ ओ० सू० १५ १११११०१ १८१६६,१०० १।८।६२,६३ १७४१० ११७१६,७,६ ११८११२,११३ १८६६,१०० १८११५५,१५६ ११८।६६,१०० ११११३६ १११११३८ श३।१६ २३११८ ११।१०७ १११११०४ १।११०८,११२ १।११०६ ११७२७ १।१०।५१।१८४८,१११६।४२,४७ १।३।२४ शा५३ शहा४४ १११११८ ११५।११७ १।३३४ १।२१७६ १४१७१३६ ११२१७६ ११।२०० १८१६६,१६७ २१६।१४० ओ० सू० ६३ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ १२१५६ शरा१७ १.१६११६७,१६८ ११।४ '१११२२ ११११२२ १।१४।१६ १६१६१४६ ११८४१ १११११०८ १।१६।२३ १.१६१४५-१४७ ओ० सू० ६७ १११११५ समाणा जाव चिटुंति १२१५१० समाणी जाव विहरित्तए ११२११७ समोवइए जाव निसीइत्ता २११६१२२७,२२८ समोसरणं ११५८५ सम्मज्जिवलितं जाव सुगंधवरगंधियं २११३३ सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलियं १॥३॥ सम्माणइ जाव पडिविसज्जेइ १२१६।३०० सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्खइ १२१११५० सरिसगं जाव गुणोववेयं शपा१२० सरिसियाओ जाव समणस्स पब्वइस्ससि १६१६१०६ सम्वओ जाव करेमाणा १।१६।२३ सव्वं तं चेव आभरणं १।५।३०-३२ सव्वज्जुईए जाव निग्धोसनाइयरवेणं सव्वट्ठाणेसु जाव रज्जधुराचिंतए १३१४१५६ सहइ जाव अहियासेइ १११११३ सहजायया जाव समेच्चा १११०,११ सहियाणं जाव पुवरत्ता ११५१११८ साइमं जाव परिभाएमाणी १.१६९३ सामदंड० १८.४५,१११४१४ सालइएणं जाव नेहावगाढेणं १।१६।२५,२६ सालइयं जाव आहारेसि सालइयं जाव गोवेइ . १।१६८ सालइयं जाव नेहावगाढं २१६:१६,१९,२० सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स १।१६।२२ सालइयस्स जाव एगंमि १।१६।१६ साहरह जाव ओलयंति ११८६२ सिंमारा जाव कुसला १११।१३६ सिंगारागारचारूवेसाओ जाव कुसलाओ १।१११३५ सिंघाडग० ११५:५३ सिंघाडग जाव पहेसु १४३३३१११३१२६११६१५३;१।१८।१६ सिंघाडग जाव बहुजणो ११७४११शा२००१११३१२६ सिंघाडग जाव महया सिक्खावइए जाव पडिवण्ण ११३१३६ सिज्झिहिइ जाव मंतं १.१५।२१ १।३१७ ११६।१२ १११६८ १११६८ १।१६।८ १।१६।१६ ११८४८ १११११३४ १११११३४ १।११३३ ११५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० १४५ १११।२१२ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।४६ ११५१८४ १८.७४ ११८७७,७८ शक्षा६७ श१८३५ १।९।३७ श१६।२१५ १११६।२२१ १४१६२२६ ११५८ १।१५।१३ १।८।२६ सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण. सिद्धे जाव पहीणे सीलब्वय जाव न परिच्चयसि सीलब्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीहनाय जाव रवेणं सोहनाय जाव समुद्दरवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवल द्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाब पसन्न सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सुमाल निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाब गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पब्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोगियासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स हए जाव पडिसेहिए हट्ट जाव हियया हट्ठतु? जाव पच्चप्पिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हट्टतुटु जाव हियए हत्थाओ जाव पडिनिज्जाएज्जासि हत्थिखंध जाव परिवुडे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए १११२१२ ठाणं ११२४६ शपा७४ ११८।७४,७५ ओ०सू० ५२ श८।६७ ११२१२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६२१२ ओ०० १४३ १११५।११ १११:३२ १।१०२६ १२१६११४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ ११८५७ १।१८।३३ १११६१३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१६।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १९१८१६१ १९१८।४८ १।१६।२५७ २।१२०,२१,२४,२५ ११११२३ १५१३ १।१।२०७१।१६३१३५ ११७।६ १४१६४१४६ ११८१६३ ११६।२०३ १।१।१८५ १११।१०६ १।१।१०६ शबा१६५ ११।१६ १६१६१६,२२ १६१।२६ १११११६ ११६ १११६३१४६ ११८५७ १४१६१२०० १११११५७ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिबुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगड्या ह्य जाव सेणं यमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमयि जाव पडिसे हित्ता हयमहिय जाव पडिसे हिया हयमयि जाव पडिसे हेइ हयमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियताए हिरण्यं जाव वइर हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे होलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ १११११६८ १५१११५८ ११६।२४८ १११६११३६ १११६१५६ १।११६६ १।१६।३०३ १११६।१७४ ११६१३८ श८१६२ १।१६।२८५ श८१६६,१११६१२५६ १११६१२८६ ११८१४२ १४१८१२४ १।१८।४१ १११।१६१ १११।१२६ १।१३।३८ १११७११६ १११७११८ १४।१८ ११।१२५ १।१६।११८ १३१६।११७ १११११५७ १११११५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ ११८५७ १।११६७ ११८५७ १८५७ ११।१५ शा५७ १८।१६५ १८।१६५ १८.१६५ ११८।१६५ १।८।१६५ १८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १११७:१६ १।१७।१४ १३।२४ १।३।२४ १।६।११७ ११३।२४ १११११७ उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवणे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७१७ ५।२,२१ ७।१० ३३२०,२१ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्गमित्ताए वा जाव विहङ अन्य जाय ववरांविज्जसि असा जाय खओवसमेण अहि य जाव वागरणेहि अट्ठेहि य जाव निष्पट्ट अड्ढे चत्तारि अड्डे जहा आनंदो नवरं अहिरणको डीओ सकसान निहाणपउताओ अट्ठहि अहि ससाओ पवि अदुवा दस गो साहस्सिएणं वर्ण अड्डे जाव अपरिभू अारए जहा चुलीपिया तहा चिलेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ अणारिए जाव समाचरति अणे जाव अरिसक्का रपरककमेणं अण्णा कदाइ बहिया जाव विहरइ अपच्छिम जाव अणवखमाणे अपच्छिम जाव भक्त्तपाण अपच्छिम जाय भूरियरस अपच्छिम जाव बागरितए अभगुणाएतं बेबस कहे जान अभिगयजीवाजीवे जान पडिकामाणे अभिगयजीवाजीने जाव विहरइ अभिगयजीवेजी णं जाव अण इक्कमणिज्जेणं अभीए जाव विहरद अभीयं जाव धम्मभाणोवगयं अहीण जाव सुरुवा अहीण जाव सुरुवाओ २८ ७/२६ ३४४ ८१३७ 91%E ६१२५ ६१३,४,१०१३, ४ ८/३-५ १।११ ५४२ ३४४,४२४२ ६१२१,२२,२३,७१२३,२४ १६५४. १।७२ ८१४६ ८४६ ८४६ १1३६ १०५५ ८।१६ ११३१ अभीयं जाव पासइ २४०३।२३ अभीयं जाव विहरमाणं २१२८,३० अवहरद वा जाव परिवेश ७/२६ ! अस्सिणी भारिया सामी सामास जहा आणंदो तहेब गिम्मिं पडिज सामी बहिया विहरह असोगणिया जाव विहरसि 1 १।५-१५. ७११७ १|१४ 디 २०२६,३५ ३२२ २१२४ ७।२६ २/२२ १।६६ ६४२८ ६।२८ २/३,४ १।११-१३ ओ०सू० १४१ ३१४२ ३०४२ ६।२० ना० १।१।१६६ १/६५ १/६५ १०६५ ८।४६ ११७१-७८ ओ० १० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० ० सू० १६२ २।२३ २/२३ २।२४ २१२४ ७/२५ २।५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आओसेसि वा जाव ववशेवेसि आपुच्छिता जेणेव पोसहसाला तेव उवागच्छर २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २।११ आलोइज्जइ जाव तवोकम्मं ११७८ आसोइज्जइ जान पडिवज्जिद १२७८ ८५० ३१४६ ११८० ११७८ ८४६ १४७७ आलोएड जाव जहारिहं आलोएड जाव पडिवज्जइ आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं आलोएह जाव पडिवज्जेह आलोएहि जाव अहारिहं आलोएहि जाय तयोकम् आलोएहि नाव पडिवज्जाहि इसे जाव पंचविहे हड्डी जाव अभिसमण्णागए इमे जाव धर्माणिसंतए इमेयावे जाव समुप्पज्जिस्था उक्खेवो उज्जलं जाव अहियासेइ उज्जलं जान अरियानेमि उजले जाव दुरहिया उट्टाइ वा जाव अणियना उट्टाइ वा जाव नियता उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे उट्टाइ वा जाय सिक्कार० उट्टागंणं जाव परक्कमेणं उट्टा जाब पुरिसक्कारपरक्कमेणं उद्घाविए कहा चुलगी पिया तब स भागियव्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं कोवा गुणिता भणद से जहा | चुलणीपिया वक्तव्वया सव्वा नवरं अरुणच्चए विमाणे उबवानो जाब महाविदेहे उद्घाविए जहा सुरादेवो तहेब भारिया पुच्छ, तब कहे से जहा नुसणीपियरस जाव सोहम्मे 1 २१ ७ २६ |१|१८३।४५८।४१ ३॥४४ २।२७ ६/२१,२३ ६।२१,२३:७।२६ १।१४ २४० १८६५ ३१४२ २०१:४१: ५।१:६।१७११:८११:६१.१०११ २।३३,३६:३।२६ ६।२०, २३७।२६ ७१२४ ६।२३ ६४२१,७१२३ ७१७८-८८ ५।४२-५२ ७।२५ १६० ठा० ३१३४८ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृति अ० ३ वृत्ति अ० ३ बसि अ० ३ ओ० सू० १५ २४० १/६४ १८७३ २।१ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ६१२० ६।२० ६।२० ६।२० ६।२० ६१२० ३।४२-५२ ३१४२-५२ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७/१० ८२७ ८.१८ ३१५०-५२ पा३५ पा१६ ८.१८ २१५३-५५ ११६४ ११६२ ६।३५.४१ २१५०-५६ ३१२७-३८ ३१४४ १९६६,८१३७ उप्पण्णणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाइं जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाब किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमजाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आईचइ । अहं तं उज्जलं जाद अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्कक्के पंच सोल्लया ! तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्केके पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिग्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ कज्जेसु य आघुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स निरवसेस जाव सोहम्मे कल्लं जाव' जलते ४।४१ ४।३६ ४/२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ १६५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १११३ २।१८,१६ ওও ७७ ७।२२ ४।४५-५२ १५७,७११२ ३१४५.५२ ओ० सू० २२ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ १:५६ ७।१४ ७.५० ४।४२ १६५७ ७।१५ ७.३५ ११५७ ७।१५ १९२० ७.३५ राय० सू० १२ ३१४२ ११५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ११५७ ५.४० ५४१ जाया जाव पडिलाभेमाणी जाव पज्जुवासइ जुगवं जाव निउण सिप्पोवगए जेट्टपुत्तं जाव कणीयसं जाव आइंचइ ठावेता जाव विहरित्तए । णमंस इ जाव पज्जुवासइ णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ णाइटूरे जाव पंजलियडा पहाए जाव अप्पमहग्धा० बहाए जाव पायच्छित्ते ण्हाए सुद्धप्पावेस अप्प० बहाया जाब पाच्छित्ता तं मित्त जाव विउलेणं पुष्फ ५ सक्कारेइ सम्माणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाव पुरओ तञ्च पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि तत्थ णं बाणारसीए चूलणी पिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ अट्ठ वडिप० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणंदो ईसर जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था तव जाव कणीयसं तिक्खुतो जाव वंद तीमे य जाव धम्मकहा सम्मत्ता तुम जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव ववरोविज्ज सि देवराया जाव सबकसि देवाणुप्पिए समग्रे भगवं महावीरे जाव समोसढे तं देवाणुधिया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स नाममुद्दगं च तहेव जाव पडिगए ३.३-६ ३२४५ ७१३५ २।४४ ३.४४ ७७५ २१४० २॥३-६ ३२४४ ११२० २०११ २।२२ २०२२ वृत्ति ११४५ ७.४४ ७.३१ ७.४६ ७.५० ७१५१ ७१५० ६०२०-२४ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहरद्द नवरं निश्वस एक्कारस्स वि उवास गपडिमाओ तहेब भाणियव्वाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाय सोहम्मे फलग जव ओगिव्हिला फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दग्भसंथारोव गए बंभवारी समणस्स बहूहि जाव भावेता बहूणं राईसर जहा वितियं जाव विहरितए बहूहि जाव भावेमाणस्स भविता जाव अह भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अझोववण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मका समता महावीरे जाव विहरद महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तुच्च पि एवं वयासी हंभो तहेब मारणंतिय जाव कालं - मिल जाव मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहम्माथ जाव एवं व्यासी तहेब जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्यवाहाणं राईसर जाव सदस्स लठ्ठे जहा कामदेवो तहा निम्मद जाव पज्जुवास | धम्मका वदणिजे जव जुवासविजे वंदामि जाव परजुवासामि ३४ १०।५-२५ ७।५१ ७१६ २४० ३।१६ २१५५ १८५७ ६/३३ ७।३७ ७/७८ ७३७ ८ २० ८३८ ८४६ ७१६ २४२ २४३७११५ ११७३७११२ ८३८-४० १/६५ १।५७ ११५६ ११२३.५३ ८४६ १।१३ १।५७ ६/२६,२७ ७।१० ७११५ २५-११.५०-५५ १।४५ ११४५ १/६० ११६० १९८४ १/५७ २१८ १।२३ ७७५ ओ० सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८२७ २।११ १।१७ १/२० ओ० सू० ११-२२ ८।२७-२१ १।६५ १।५७ १।५७ १० सू० ५२ ओ० २७-२१ १/२३ १।१३ २२४३, ४४ ओ० सू० २ ओ० सू० ५२ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि ११४५:७।३१ ओ० सू० ५२ वंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि ७११ ओ० सू० ५२ वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि ७।१० ओ० सू० ५२ वयासी जाव उववज्जिहिसि ८४६ ८.४१ वाताहतं वा जाव परिवेइ ७१२६ ७२५ विणस्स माणे जाव विलुप्पमाणे ७.४७,४६ विहरइ । तए गं २१५१-५४ ११६२-६५ वीइक्ताई तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ । धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियाग नाणत अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ६।१८-२६ २११८,१६,५०-५६ वीइक्कता एवं तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्ति पा२५,२६ २०१८,१६ संचाएइ जाव सणियं २१३४ २१२८ संताणं जाव भावाणं १७८ १७८ संतेहिं जाव वागरित्तए ८.४६ ८।४६ संतेहिं जाव वागरिया ८.४६ ८.४६ सखिखिणियाई जाव परिहिए २१४० सद्दहामि णं जाव से जहेयं १२३ रा० सू० ६६५ सद्दालपुत्ता तं चेव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि ७१७ ७।१०,११ समएणं अज्जसहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुबासमाणे ११३-५ रा० सू० ६८६; ओ० स० ८२,८३ समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि १।२० ओ० सू० ५२ समणोवासाए जाव अहियासेइ ५।३८ २०२७ समणोवासा जाव विहरइ ४।४०,५।३८ ३१२२ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया जाव न भंजेसि ३१४४,७७५ २१२२ समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३२१ २२२२ समणोवासया ! जाव न भंजेसि २।३४;५।२१,३६ २।२२ समणोवासया ! तं चेव भणइ ७७७ ७७४ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ ३१२३,२४ ३१२१,२२ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३।२३-२५ ७.१० ३१४४ Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ २०२२ ७७८ ३.४२ श१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २२७ भ० ३१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३६४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि ॥२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिबज्जइ । साचेव वत्तव्बया जाव जेट्टपुत्तं २१७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहति जाव अहियाति २०४६ सहितए जाव अहिया सित्तए २०४६ साइमं जहा पुरणो जाव जेट्टपुत्तं - १५७ सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३१७-१६ सामी समोसहे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जद्द । सा सव्वेव वत्तब्बया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६१७-१७ साहस्सीण जाव अधणेसि २१४० सिंघाडग जाव पहेम ५१३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलब्बय-गुणेहिं जाव भावेत्ता ८.५३ सील जाव भावमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स बा२५ सीलाई जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाई जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छई सि तो जीवियाओ रा२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सुद्धप्पावेसाईजाव अप्पमहरघा ७.१५,३५ सुरादेवे गाहावइ अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएण २१७-१६ २१७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५०३६ ११८४ ११५७ ११५७ ७१५४ २१२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६२ ३१२३ ३१८६ ३।१०२ ३१७४ ५।११ ८८ ६१६५ १११६ ३।१०१ १।१४ ३११०१ १११४ ६७६ ६५५५ ३१२६,३० अणुत्तरे जाव केवल अतुरियं जाव अडंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे जाव पव्वाहि अरिटुनेमिस्स जाव पन्वइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि० आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं आसुरुत्ते जाव सिद्धे आहेवच्चं जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जित्ता ईसर जाव सत्थवाहाणं उच्च जाव अडई उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाव अडामो उच्च जाव पडिलाभेइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर उम्मुक्क जाव अणुप्पत्ते उरालेणं जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदंसेइ उवागच्छित्ता जाव बंद ओहय जाव झियाइ ओहय जाव झियायइ करयल करेइ जहा गोयमसामी जाव अडइ काएणं जाव दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहियव्वा कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं वृत्ति भ०२।१०८ उवा०२१२२ ३१८६ ३.७० ३७६ ठा० ७११३ नाभ ११११११४ ना०श८७ ३८६-६२ ना० १शश६ ३१८७,८८ ना० ११५६ भ० २।१०८ भ०२।१०६ ३१२४ २१२४ ३१२३ ३१२४,२५ ना० १११६६ ना० १११।१६२ २२६ ना० ११०२० भ० २०६४ ६६५७ ६८० ३१२८,२६ ३.६१ ३३९० ६।५२ ३१५० ८।१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३२४३ ५।२२,६१३५,४१ ६५४ ३२८८ ३१७६ १११६ દાદ ३४३ ना० ११॥३४ ना० १११।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १११११०६ रायः सू० ६८ ५३१ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ८.३३ ११२१ ४७ ३२२१ ३२१७ ६।१,२ ५॥३१ ५।३१ १।२५ ३२० .३।३ ८.१७,१८ १।५,६ १७ ७।१,२ ३११ ८.१६ २११,२ ११५,६ ११५ ११७ १५,६ चउत्थ जाव भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थस्स वग्गरस निक्खेवग्रो छटुंछट्टेणं जाव विहरंति जइ उक्खेवओ अट्ठमस्स जइ छुट्टस्स उक्खेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अट्ठमस्स बगस्स उक्खेवओ जाव दस जइ णं भंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वगस्स उक्खेवओ जाव तेरस जइ तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसे इ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव सलेहणाकालं पहाए जाव विभूसिए व्हाया जाव पायच्छित्ता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे य धम्मकहा तीसे य धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सीहं सुमिणे नमसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडित्तए नवमस्स उक्खेवओ निगया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महब्बलस्स जाव तमाणाए तहा जाव संजभइ ३।४७-४६ ६५७ ३।२२ ८.३६ ३४४ ना०१।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६।५३ ८.१५ ओ० सू०७० ओ० सू० २० १११९,२० राय० सू० ६६३ ना० १११।१०० वृत्ति ३११३ ३१६२ ६१५०,८८ ३१६५ ३।११६ ३१२२ ३१११२ ओ० सू० ५२ भ० २११०७ ३३३ ना० १।१६५ ३१७८-८५ भ०११४१६८,ना०१११११५-१५१ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६४ ५८ ५२८ ८६ ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३।२६,२७ ६१९४ रायसू० ६६३ ना० १११११५० ८१८ ना० ११११०१ ३।९५ ३१२२,२३ ना० १११११४ ३१२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५.१२ ५।१४ ५।१३ ६।२८ नेरइय जाव उववज्जति पउमावईए य धम्मकहा पव्वावेइ जाव संजमियब्वं पारेइ जाव आराहिया पाक्यणं जाव अब्भुट्टेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहि जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पव्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्सति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाब सिद्ध मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाद अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहि जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छ?स्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाब विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ना० १११८४ ३।२० ३१२० ३।२० ३१२० ३२० ना० १११११६ श२४ ३१३०,५।११ ५।२१,२२ ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३१३१ ६.४५ ६।८४ ८.१४ ३३१३ ६.१०२ ना० १।१६।१३३ मा१४ श२४ ४१७ ३३२० ना० १।१० ३११६ ना० १२१२६० ३।१२ ३१३० ३३१० ५।१४ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ०६।३३,११,११ना० १११,११५ ना० ११११९३ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । मुच्छिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाएइ जहा यावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपुच्चइ। छत्त चामराओ । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेति जहा थाबच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पब्वइए अणगारे जाए--इरियासमिए जाव गुत्त बंभयारी ३।११-२१ जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चिट्ठइ ३२५१ तरुणिया एवामेव ३१४८ बिलामिव जाव आहारेइ ३२५७ मुंडावली इ वा मुंडे जाव पवइए सजमेणं जाव विहरइ ३६६ संजमेणं जाव विहरामि ३१५७ सुक्कं० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए ३१३२ सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे ३१५८ सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए १८ ३।२७ ३।३१ ३१२२ ३२७ ३१२७ ३।३१ ३१५८ ना०२१२११ पण्हावागरणाई १०।१४ १०११५ ५।१० ३१२६ ४१३ अंतरप्पा जाव चरेज्ज एवं जाब इमस्स एवं जाव चिरपरिगत० एवं जाव परियट्टति पत्थणिज्ज एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियव्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिदिए ५८ ४|१५ १०११७ ४१ १०।१५ १०।१७ १०.१६ १०.१६ १०।१४ १०११४ १०.१४ १०११४ १०११४ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ विवागसुयं ११८।१,२ १।४।२८ श२८ १।२।१,२ १।२१६४ वृत्ति वृति १७७ १।२।२४ १।३।१३ श२१२६ १२६२३ १.१४४७,१४३११६ १३।७ ११११७० ११११२ अं०६५७ ना० ११११३३ ११२।१४ श।२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ अट्ठमस्स उक्वेवओ अट्रि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड़ अब्भणुण्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्जमाणं अविणिज्जमाणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुष्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापडिरूव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिट्रतराए चेव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरूवे आसि जाव पच्चणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुत्ते जाव साह? आहेवच्चं जाव विहर इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निरगच्छति इगुरूवे जाव सुरूवे इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उबरदत्ते निच्छुढे जहा उज्झियए उक्किट्टि जाव करेमाणे उक्किट्टि जाव समुद्द० १।१।३६ ११६२ १।२७ १२।१० श।१६ ११३३१६ ११३१४१ ११६।३५ शरा७:१३१७ ११।१६ ११०२० २।१२१५ ना० ११८६४२ २०४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ ११११४२ १।२।६४ ११२१६४ वृत्ति ना० १११६६ ना० १११११७ २११११५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ ११२६५६ १।३।२४ ओ०सू० ५२ १।१७० २।१।३१ २७३४ श३४३ १।३।२४ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनकोस नेरइएस उत्ति जाव सू० उपसेवनमस्स उक्खेवओ सत्तमस्स उग्घोसिज्ज माणं जाव चिंता उज्जला जाव दुरहियाता उम्मुक्क जाव जोव्वणग० उम्मुक्तबालभावा जोव्वषेण स्वेण लावण्णेण य जाव अईव उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ उराले जाव लेस्से उवगिज्जमाणे जाव विहरद उस्वकं जाय दसर एवं परमाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ओहय० प्रोह जाब झियाइ ओह जाव भासि ओह जाव पासइ करयल० कर्यल० करयल जाव एवं करयल जाव एवं करयल जान पडिसुर्णेति करयल जाव वद्भावेड़ करेइ जाव सखोवाडिए कुमारे जाव विहरद ● खुत्तो० गंगदत्ता वि गामागर जाव सण्णिवेसा गाहावई जाव तं धणे गिण्हावेइ जाब एएणं घाएति २ उत्तरेणं इमेयावे चउत्पस्स उस्सेव ४४ १४३।६५ १६६ ११६१,२ १२७३१,२ ११४:१२,१३ १०१/५६ १.१.७० १।६।३४ ११६२६ २११।२० ११६४८ १।३।५२ १|१|५० ११२।२७ १।२।२४; १|१|१६ १।२।२५; १।१।१७ १।२।२५: १।९।१७ १।३।४०, ५५, ५१; १।६।३८ १।३।५० १२३४४; १।४।२८ १।३।५२, ५३: १।६।२४ १।३।५३, ६२, १६ । ३४; ११६ २०,४० १०२४४५ १।६।२३ १।६।३६ १११।७० १४७३३ २११३१ २१२३ १।५।२७ १।३।१४ १/७/१०, ११ १९४१,२ ११.७० १।२।१४ १२/१, २ १।२।१,२ १।२।१४, १५ वृत्ति वृत्ति १२४३६ १।४।३५ ओ० सू० ८२ ना० १।१।२३ वृत्ति १।१.५० १।२।२४ वृत्ति १।२।२४ १२/२४ १ १/६६ १।३।४० १।३।४० १।१/६६ ओ० सू० ५६ १।३।५५ वृत्ति १।१८६९ १०१/७० ११२।५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १/२/६४ १।३।१४ १४७१६; १/२०१५ १।२।१,२ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ओ० सू० ८३ छुटुंछद्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १४२११२-१४ भ० २११०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १५६।१,२ १९२११,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं शश२८ शरा२४ जणसह च जाव सुणेत्ता १११।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजय मित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ ११२१५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेते १६११६४ ११।१४ जायसड्ढे जाव एवं ११११२५ जाव पुढवी ११३।६५१।४३६ ११११७० द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ १११७० ११११५७ हाए जाव पायच्छित्ते ११३।४७,५५,१११।४५ शश६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए १।५० १५२।६४ हायाओ जाव पायच्छित्ताओ ११७।२० १॥२०६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता १।३।२४ ११२१६४ तं चेव जाव से णं १३।१५ १।२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १६६०२३ ११६।१८ तं महया जहा पढम तहा २।११३२ २११:१२, भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो ११३३१,२ श२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणति १।३१४६ शश६६ ताओ जाव फले १७।२३ १२७११६ तीसे य० १२१२२३ ना० १११११०० तेगिच्छियपुत्तो वा जाव उग्घोसेंति १६१०११३,१४ ११८।२१,२२ तो णं जाव' ओवाइणइ ११७।२१ ११७११६ दसमस्स उक्खेवओ १११०११,२ १२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते शश२६ १११।१४ नगरगोरूवा जाव भीया १२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरपोरूवाणं जाव वसभाण शरा२८ ११।२४ नगर जाव विणिज्जामि ११२।२४ ११।२४ निक्खेवओ ११३१६६ १११७१ निक्खेवो १।२१७४;११४१४०, ११५।३०।१।६।३८:१७४३६१।८।२८,१९६० १११७१ निच्छ्भेमाणे अन्नत्य कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिह १।४।२६,२७ ११२१६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उवखेवओ ११५।१,२ ११२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।१।३१ सश१३ पज्जेइ जाव एलमुत्त ११६२३ १।६१४ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति वृत्ति मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवुडाओ मित्त जाव परिवूडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मित्त जाव सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति रटुं च रट्रेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियो सईसर जाव प्पभियओ राईसर जाव सत्थवाह. राईसर जाव सत्थवाहाण राईसर जाव सत्थवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि सगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सण्णद्ध जाव पहरणे सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहरइ समाणे सिंघाडग तहेव जाव सूदरिसणाए समुप्पणे जाव तहेव निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव पहेसु संदरथण सुबहुं जाव समज्जिगित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं हट्ठतुहियया हय जाव पडिसेहिए ११२।५४ १॥२३७ ११७४२३ ११७११६ १।३१५५ २।३७ १७/२६ १७.१६ १७.२३ १।७।१६ ११६।४५ १।२।३७ १।१।२६ १२१११५ २११६३१ २।१।१३ ११११५७ १५११५७ ११११५७ २१११३ ११२१७२ ११५० १।१०१७ १.१५० १६५२२,२३ ११११५० ११११५० ओ०सू० ५२ १९५७ १।१३५० १।९।३७ १६६२३ श२४७ शरा२४ १।२।२० १२।२८ १२।१४ ११३।४७ १।२।१४ १२३।२४ ११२।१४ १२६१२२ १६१०२० ना० १११९ ११४१२२-२४ ११२।५७-५६ १।३।१५ १४२११५ १६१७० १।११५७ १११०।१३ १६११५३ १।२।५७,१८२१:२।११२३ ११११५३ १२।७ वृत्ति १८११३११६१२६७१।१०१८ शा५१ २।१११०,११ ओ०सू० १४८,१४६ १।१।२६ ओ०सू०२० ११३१५० ११३१४६ वृत्ति Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० ८ ५७ ६० १७७ २०६ ३०६ ४२६ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ ५७५ ५६८ ६१६ ७३० ७३८ ७३६ १६ ૪; ५२२ 11 पंक्ति 2 x mm o w २० १२ २२ ३ १० १६ १६ १५ ७ १६ ७ १६ १२ ६ २० ७ १२ पा० ६ पा० ४ पा० २ २४ शुद्धि-पत्र मूलपाठ अशुद्ध • मणप्पते जहेसु हत्थ कट्ट विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवा सण्णयाए देवसंस तुम ताइ • समुदणं सस्सिरीएण दसं खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियादे पाठान्तर पटसि पिणद्धति आसुरुत परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं शुद्ध • पत्ते ० जूहे हत्थी कट्टु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस तुमं ताई ● समुदण सस्सिरी एण दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणंदे पट्टसि पिणद्धेति आसुरु अभिगयजीवाजीवेणं Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम