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________________ ७०६ पावागरणाई सव्वजग-जीव- वच्छलेहि तिलोय महिएहि जिणवरिदेहिं एस जोणी जगाणं दिट्ठा न कम्पते' जोणिसमुच्छेदोत्ति, तेण वज्जति समणसीहा || अस णिहि-पदं - ६. जंपि य ओदण - कुम्मास गंज- तप्पण-मंथु भुज्जिय- पलल- सूप - सक्कुलि-वेढिम-वरसरक'- चुण्णकोसग - पिंड - सिरिणि वट्ट- मोयग खीर- दहि- सप्पि - नवनीत तेल्लगुड' - खंड-मच्छंडिय· मधु मज्ज-मंस-खज्जक वंजणविधिमादिकं पणीयं उवस्सए परघरे व रण्णे न कप्पति तंपि सणिहि काऊण सुविहियाणं ॥ प्रकप्प भोयण-पदं ७. जंपि य उद्दिठविय-रचितग-पज्जवजात-पकिण्ण पाउकरण पामिच्चं, मीसककीयकड पाहुडं वा, दाण- पुण्णपगडं, समण-वणीमगट्टयाए व कयं पच्छाकम्म पुरेकम्मं नितिकं मक्खियं अतिरित्तं मोहरं चेव सयंगाहमाहङ" मट्टियोवलित्तं, अच्छेज्जं चेव प्रणीसट्टं, जं तं तिहीसु' जण्णेसु ऊसवेसु य अंतो व्व बहि व होज्ज समणट्टयाए ठत्रियं हिंसा सावज्ज-संपत्तं न कप्पति तंपि य परिधेत्तुं ॥ कपभोयण-पदं ८. ग्रहकेरिसयं पुणाइ कप्पति ? जं तं एक्कारसपिंडवायसुद्धं किणण-हणण-पयण कयकारियाणुमोयण-नवकोडी सुपरिसुद्ध, दसहि य दोसेहि विप्पक्कं उग्गम उप्पायनेसणासुद्धं, ववगय-चुय-चइय-चत्तदेहं च फासूयं च ववगयसंजोगमणिगालं, विगयधूमं, छट्टा निमित्तं, छक्कायपरिरक्खणट्ठा हणिहणि फासुकेण भिक्खेण वट्टियव्वं ॥ रोगाविस णिहि-पदं ६. जंपि य समणस्स सुविहियस्स उ रोगायंके बहुप्पकारंमि समुप्पण्णे, वाताहिकपित्त संभाइरित्तकुविय तहसण्णिवायजाते, उदयपत्ते उज्जल-वल- विउल-तिउलकक्खड-पगाढ-दुक्खे, असुभ - कडुय - फरुस - चंडफलविवागे महन्भये जीवियंतकरण सव्वसरीर-परितावणकरे न कप्पति" तारिसे वि तह अप्पणी परस्स वा प्रोसहभेसज्जं भत्त-पाणं च तंपि सणिहिकयं || १. कप्पती (क, ग, घ, च) । २. विसारक ( क ) । ३. गुल ( ग, घ, ४. काउ ( ग ) | ५. सयगाह ० (घ, च) | Jain Education International F ६. तिहिसु ( क च ) | ७. चयिय ( क ) ; चविय (घ ) | ८. हणि-हणि (क, ग, घ ) । • जाते ब्व (क, ग, घ, च) | ε. १०. कप्पती ( क ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003566
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages176
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_prashnavyakaran
File Size3 MB
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