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घउत्थं अग्झरणं (च उत्थं प्रासवदार)
६६६ सुरगणस्त प्रभ-पद ३. तं च पुण निसेवंति सुरगणा समच्छरा मोह-मोहिय-मती, असुर-भयग'-गरुल
विज्जु-जलण-दीव-उदहि-दिस-पवण-थणिया । अणवणिय-पणवम्णिय-इसिवादिय-भूयवादियकंदिय-महाकंदिय-कहंड-पतगदेवा', पिसाय-भूय-जक्ख-रक्खसकिन्नर-किंपुरिस - महोरग - गंधब्ब - तिरिय- जोइस-विमाणवासि-मणुयगणा, जलयर-थलयर-खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता वितण्डा कामभोगतिसिया.तहाए बलवईए महइए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, प्रबंभे प्रोसण्णा. तामसेण भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंति
'अयणोणं सेवमाणा५ ।। चक्कट्टिस्स प्रबंभ-पदं ४. भुज्जो असुर-सुर-तिरिय-मणुय-भोगरति-विहार-संपउत्ता य चक्कवट्टी
सरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह-णग-णगर-णियम-जणवय-पूरवर दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संबाह-पट्टण-सहस्समंडियं थिमिय-मेयणियं एगच्छत्तं ससागरं भंजिऊण वसुहं नरसीहा नरवई नरिंदा नरवसभा मय-वसभकप्पा, अभहियं रायतेय-लच्छीए दिप्पमाणा सोमा रायवंस-तिलगा। रवि-ससि-संख-वरचक्क - सोत्थिय - पडाग-जव-मनछ-कूम्म-रहवर-भग-भवणविमाण-तुरय-तोरण-गोपुर-मणि-रयण-नंदियावत्त-मुसल-णंगल-सुरइयवरकप्परुक्ख-मिगवति-भदासण-सुरुचि - थूभ-बरम उड-सरिय - कुंडल-कुंजर-वरवसभदीव-मंदिर-गरुल-द्धय-इंदकेउ- दप्पण - अट्रावय - चाव-बाण-नक्खत्त-मेह-मेहलवीणा-जुग-छत्त-दाम-दामिणि-कमंडलु-कमल-घंटा-वरपोत-सुइ-सागर-कुमुदगारमगर-हार-गागर-ले उर-णग-णगर-वइर-किन्नर - मयुर-वररायहंस - सारस. चकोर-चक्कवागमिहुण-चामर - खेडग -पव्वीसग-विपंचि-वरतालियंट-सिरियाभिसेय-मेइणि-'खग्ग-ग्रंकुस"-विमलकलस -भिगार-वद्धमाणग-पसत्थ-उत्तमविभतवर-पुरिसलक्खणधरा। बत्तीसं रायवरसहस्साणुजायमग्गा चउसट्ठिसहस्सपवरजुवतीण णयणकता
१. भुयंग (क)।
५. अण्णमण्ण° (च)अण्णोपणस्स सेवणया २. दिसि (ख, च)।
(); अण्णोण्णं सेवमाणा (वृपा)। ३. पतंग (क, य, ग, घ, च)।
६. भरध (क, ग)। ४. अणुमुक्का (क, ख, ग, घ, च); आदर्गेषु ७. तुरत (क); तुरग (ख, घ, च)।
एतत् पदं लभ्यते. किन्तु नैतत् शुद्धमस्ति । ८. सुरुवि (क, घ, च) उन्मुक्तपदस्य प्राकृतरूपं 'उम्मुक्क' इति ६. खग्गंकुस (क, ख, ग, घ, च)। जायते ! न उम्मुक्का= अणुम्मुक्का । १०. वरराय ° (क, ग)।
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