Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 144
________________ निस्संचारं जाव चिट्ठति नीलुप्पल ० नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाव खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाणिता जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुते तहेव सिद्धा० पंचमरस उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियव्वं पंचणं जाव पूरियं पंचाणुव्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाण पंडवा० पंथण जाव विहरइ पगइभहए जाव विणीए पच्चखाए जाव आलोइय० पंच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूय कल्ला पन्वइस्स सि पञ्चपिणह जाव पच्चप्पियंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पडागे जाव दिसोदिसि पsिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल० पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुर्णेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्खेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कूवं पण्णत्ते जाव सग्गं Jain Education International १७ ११८१७२ १११८४६ १।१४।७३ १११४/७७ १।१६।२८७ १।५।१२७,१२८ २५११, २ ११७/३३ १।१६।२७६ १।५।४५-४७ १।१६।३१३ १।५।१२६ १११।२०६१।१६।२४ १।१६।४६ १११३।४२ १।१।१११ १११।७७ १२/३२ १११६/२५२ १।१६ / ६५ ११८३६ १८४७ ११५।५६ १११६।२३ २७३२८१३२/६३ २१०१३ १।१६।२४४ ११५२६० For Private & Personal Use Only १८१६७ १६ १६ १।६।१६ १।१४।७३ १।१६।२८५ ११५८३, ८४ २२ १,२ ११७ २५,६ १।१६।२७५ वृत्ति, ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १।५।१२४ ओ०सू०११६ १/१/२०६ १११ २०६ १११।११० १।१।२३ राय०सू० ६६४ वृत्ति १/१६/६२ ११८१२७ १|१|३६ १/५/५२ १।५।११३ २/२३ रारा३ १।१६।२४३ १।५।५५ www.jainelibrary.org

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