Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 146
________________ पीsari जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया पीढ़ पुच्छणाए जाव एमहालिय पुढवि जाव पाओवगमणं पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स पुप्फ जाव मल्लालंकार पुफिया जाव उवसोभेमाणा पुरापोरानं जाव पचणुभवमाणी पुरापोराण जाव विहरइ पुवभवपुच्छा एवं पोक्खरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ पोसहसा जाव पुव्वसंगइयं पोसहसा लाए जाव विहरइ फलिया जाव उवसोभेमाणा फासु एस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं फासूयं पीढ जाव विहरह बंधित्ता जाव रज्जू बहिया जाव खणावेत्तए बहिया जाव विहरति वहिया जाव विहरितए बहुना ओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे बहूई जाव पडिगयाई वहूणि गामाणि जाव गिहाई बहूहिं जाव चत्थ विहरइ बसु जाव विहरेज्जाह बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चपिति पंडुस्स जहा बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगस मत्थे बासट्ठि जाव उत्तरड़ बास जाव उत्तिणा fateharta freखेवओ बुज्झिहि जातं Jain Education International १६ १।३।३१ २।११११ ११५।११७ १११११५४,१५५ १।५।८३ १।२५६, ६४ ११२१४ १।१३/१६ १।१६६२ १।१६।११३ २।१।५० १।१३।१५ १११६१२०१ २०३ १।१३/१४ १।११।४ ११५।११४ १।५।११३ १११४। ७७ १।१३|१५ १।५।११८ १।५।११७ १।१६।६७ १११६।१८२ १।१६ १६६ ११५१३८ ११६/२० १।१६।२२३,२२४ १।१६।३०८,३०६ १११६।२८७ १।१६।२८७ २१।५५ १।१३।४४ For Private & Personal Use Only १/१/३० १|१|१६ ११५।११० १११५३ १११/२०६ ११२.४० १।२११२ १।११।२ वृत्ति १ १६ २ २।१।१५ राय० सू० १७४ १।१६।२३७-२३६ १।१।५३ १/११/२ ११५ ११० १।५।११० १।१४।७३ १।१३।१५ १|१|१६६ ११/१९६ १|१४|४३ १८१६१ १८५८ ११/१६५ ११६३२० १।१६/२१३,२१४ १११२८४, ८५ १।१६।२८५ १।१६।२८५ २०१४५ १।१।२१२ www.jainelibrary.org

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