Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
१।१६।६२ १७.१५
पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा
१।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६
१।१६।५६ ११७११४
१११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८
१।२१७६ ११८।१०७
१११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६०
१।४।१६ श१७१२२
११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२
शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१
१११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६
१.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१
१११११०१ १.११८६
भ० २१५२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176