Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पंचमं अज्झयणं (पंचमं आसवदार)
६५१ ७. परिग्गहे चेव हांति नियमा सल्ला दंडा य गारवा य कसाय-सण्णा य कामगुण
अण्हगा य इंदियलेसाप्रो। सयण-संपयोगा सचित्ताचित्तमीसगाई दव्वाई अणंतकाई इच्छंति परिधेत्तुं । सदेवमणुयासुरम्मि लोए लोभपरिग्गहो जिणवरेहि भणियो, नस्थि एरिसो
पासो पडिबंधो' सव्वजोवाण सव्वलोए । परिग्गहस्स फलविवाग-पदं ८. परलोगम्मि य नट्ठा' तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे,
तसथावर-सुहुमवादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग- साहारणसरीर-पत्तेयसरी रेसु य, अंडज-पोतज - जराउय-रसज-ससेइम-समुच्छिम-उब्भिय-उववाइएसु य, नरगतिरिय-देव-माणुसेसु, जरा - मरण-रोग-सोग-बहुले, पलिनोवम-सागरोवमाई अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अणु परियटृति जीवा
मोहवससणिण विट्ठा ॥ ६. एसो सो परिग्गहस्स फलविवाग्रो इहलोइनो पारलोइयो' अप्पसुहो बहुदुक्खो
महब्भनो बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असानो वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता' अत्थि हु मोक्खोत्ति-एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो उ
वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं ।। निगमण-पदं १०. एसो सो परिग्गहो पंचमो उ नियमा-नाणामणि-कणग-रयण-महरिह परि
मल-सपुत्तदार-परिजण-दासी - दास-भयग-पेस-हय-गय-गो-महिस-उट्ट-खर-अयगवेलग - सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग-संदण-सयणासण-वाहण-कुविय-धण-धण्णपाण-भोयण-अच्छायण-गंध-मल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहुविहीयं, भरहं णग-णगर-णियम-जणवय- पुरवर-दोणमुह-खेड-कब्बड-मडंब-संवाह-पट्टणसहस्समंडियं थिमियमेइणीय, एगच्छत्तं ससागरं भुंजिऊण वसुहं अपरिमियमणंततण्हमणगय-महिच्छसार-निरयमूलो, लोभकलिकसाय-महवखंधो, चितासयनिचियविपूलसालो, गारव-पविरल्लियग्गविडवो, नियडि-तयापत्तपल्लवधरो, पूप्फफलं जस्स कामभोगा, प्रायासविसरणाकलह-पकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो. बहजणस्स हिययदइयो° इमस्स मोक्खवर-मोत्तिमग्गस्स फलिहभूयो। चरिम अधम्मदारं समत्तं ।
१. पडिबंधो अस्थि (ख, ग, घ, च)। २. ४।१३ सूत्रे अतः प्राग् 'इहलोए ताव नट्ठा'
पाठो विद्यते, अत्र तु स न दृश्यते । ३. सं० पा.-एवं जाव परियति ।
४. परलोइओ (ख, ग, घ, च)। ५. अवेतित्ता (ग)। ६. सं० पा०-एवं जाव इमस्स ।
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