Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 121
________________ ७१० पण्हावागरणाई १५. बितियं-चक्खुइंदिएण पासिय रूवाणि मणुष्णाई भद्दकाई, सचित्ताऽचित्त मीसकाई–कट्ठ पोत्थे य चित्तकम्मे लेप्पकम्मे सेले य दंतकम्मे य, पंचहि वणेहि अगसंठाण-संठियाई, गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमाणि य मल्लाई बहुविहाणि य अहियं नयण-मणसुहकराई, वणसंडे पव्वते य गामागरनगराणि य खुद्दिय-पुक्खरणि-वावी-दीहिय-गुंजालिय-सरसरपंतिय-सागर-बिलपंतियखातिय-नदि-सर-तलाग-वप्पिणी-फुल्लुप्पल-पउम' परिमंडियाभिरामे, अणेगसउणगण - मिहुणविचरिए, वरमंडव - विविहभवण - तोरण-चेतिय-देवकुल-सभप्पवावसह-सुकयसयणासण-सीय-रह-सगड-जाण-जुग्ग-संदण-नरनारिगणे य सोमपडिरूवदरिसणिज्जे, प्रलंकियविभूसिए, पुवकयतवप्पभावसोहम्गसंपउत्ते, नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय- वेलंबग-कहक-पवग - लासग-आइक्खग - लंख-मंखतुणइल्ल-तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य बहूणि सुकरणाणि, अण्णेसु य एवमादिएसु रूवेसु मणुण्ण-भद्दएसु न तेसु समणेण सज्जियव्वं न रज्जियव्वं न गिझियव्वं न मुज्झियव्वं न विणिग्घायं आवज्जियव्वं न लुभियव्वं न तुसियव्वं न हसियव्वं न सई" च मई च तत्थ कुज्जा। पुणरवि चक्खिदिएण पासिय रूवाइं अमणुग्ण-पावकाई, किं ते ? -- गंडि-कोढिक-कुणि-उदरि-कच्छुल्ल-पइल्ल-कुज्ज - पंगुल-वामण-अंधिल्लग - एगचक्खुविणिय-सप्पिसल्लग-वाहिरोगपीलियं, विगयाणि य मयककलेवराणि', सकिमिणकुहियं च दवरासि, अण्णेसु य एवमादिएसु अमणुण्ण-पावतेसु न तेसु समणेण रूसियव्वं न हीलियव्वं न निंदियव्वं न खिसियव्वं न छिदियव्वं न भिदियव्वं न वहेयव्वं ° न दुगुंछावत्तिया व लब्भा उप्पातेउं । एवं चक्खिदियभावणाभावितो भवति अंतरप्पा, 'मणुण्णाऽमणपण-सुब्भिदुभि-रागदोस-पणिहियप्पा साहू मण-वयण-कायगुत्ते संवुडे पणिहितिदिए । चरेज्ज धम्म । १६. ततियं-घाणिदिएण अग्घाइय गंधाति मणुण्ण-भद्दगाई, किं ते ? जलय-थलय-सरसपुप्फफलपाणभोयण-कोट-तगर-पत्त-चोय-दमणक-मरुय - एलारस-पिक्कमंसि-गोसीस-सरसचंदण-कप्पूर - लवंग-अगरु-कुंकुम - कक्कोल -उसीर- . सेयचंदण-सुगंधसारंगजुत्तिवरधूववासे उउय-पिडिम-णिहारिम-गंधिएसु, अण्णेसु १. खादिय (क, ग)। २. पउमसंड (ख, घ)। ३. रज्जियवं जाव न सई (क, ख, ग, घ)। ४. मतक° (ख, घ, च)। ५. सं० पा०--रूसियव्वं जावन। ६. सं० पाo--अंतरप्पा जाव चरेज्ज। ७. कुट्ठ (क, ग)। ८. पक्कमंसि (ख) विक्कमंसि (च)। ६. उदुय (क, घ)। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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