Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 110
________________ नवमं अज्झयणं (च उत्थं संवरदार) पडिय-खंडिय-परिसडिय-विणासियं विणयसीलतवनियमगुणसमूह, तं बंभ भगवंतंगहगण-नक्खत्त-तारगाणं वा जहा उडुपती', मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-रत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो, वेरुलियो चेव जह मणीणं, 'जह मउडो चेव भूसणाणं, वत्थाणं चेव खोमजुयलं, अरविदं चेव पुष्फजेहूँ, गोसीस चेव चंदणाणं, हिमवंतो चेव प्रोसहीणं, सीतोदा चेव निन्नगाणं, उदहीसु जहा सयंभुरमणो, रुयगवरे चेव मंडलिकपव्वयाण पवरे, एरावण इव कुंजराणं, सीहो व्व जहा मिगाणं पवरो, पवकाणं चेव वेणुदेवे, धरणो जह पण्णगइंदराया', कप्पाणं चेव बंभलोए, सभासु य जहा भवे सुहम्मा, ठितिसु लवसत्तम व्व पवरा, दाणाणं चेव अभयदाणं, किमिराम्रो चेव कंबलाणं, संघयणे चेव वज्जरिसभे, संठाणे चेव समचउरसे, झाणेसु य परमसुक्कज्झाणं, णाणेसु य परमकेवलं तु सिद्ध, लेसासु य परमसुक्कलेस्सा, तित्थकरो चेव जह मुणीणं, वासेसु जहा महाविदेहे, गिरिराया चेव मंदरवरे, ३. पण्णइंदराया (क, घ, च)। १. उलूपती (क); उदूपती (ग, ध)। २. जहा (ख, ग)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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