Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चउत्थं अज्झयणं (चउत्थं आसवदार)
६७३ निरुवलेवा पमुइयवरतुरग-सोह-अतिरेगवट्टियकडी' साहतसोणंद-मुसल-दप्पणनिगरियवरकणग-च्छरुसरिस-वरवइरवलियमझा उज्जुग-सम-सहिय-जच्चतणु-कसिण-णिद्ध-प्रादेज्ज-लडह-सूमाल-मउयरोमराई झस-विहग-सुजातपोण. कुच्छो झसोदरा पम्हविगडनाभा सन्नतपासा संगयपासा सुंदरपासा सुजातपासा मितमाइय-पीणरइयपासा अकरंडुय-कणगरुयगनिम्मल-सुजाय-निरुवह्यदेहधारी कणगसिलातल-पसत्थ-समतल-उवइय-विच्छिण्णपिहुलवच्छाजुयसलिभपीणरइयपीवरपउट्ठ-संठियसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसुनिचितघणथिरसुवद्धसंधी पुरवरफलिह'. वट्टियभुया भुयईसरविपुल भोग-प्रायाणफलिह-उच्छृढदीहबाहू रत्ततलोवइयमउय-मंसल-सुजायलक्खण-पसत्थ-अच्छिद्दजालपाणी पीवरसुजायकोमलवरंगुली तंबतलिणसुइरुइल निद्धनक्खा निद्धपाणिलेहा चंदपाणि नेहा सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोवत्थियपाणिलेहा' 'रवि-ससि-संखवरचक्क-दिसासोवत्थिय विभत्त-सुविरइय-पाणिलेहा" वरमहिस-वराह-सीहसर्दुल-रिसह-नागवर-पडिपुण्णविउलखंधा चउरंगुलसुप्पमाण-कंबुवरसरिसगीवा अवट्ठिय-सुविभत्त-चित्तमंसू उवचिय-मंसल-पसत्य-सर्दूलविपुलहणुया ओयवियसिल-प्पवाल-बिंबफलसन्निभाधरोट्ठा पंडुरससिसकल -विमलसंख-गोखीर-फेणकुंद-दगरय-मुणालिया-धवलदंतसेढी अखंडदंता अप्फुडियदंता अविरलदंता सुणिद्धदंता सुजायदंता एगदंतसेढिन्य अणेगदंता हुयवहनिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा गरुलायत-उज्जुतुंगनासा अवदालियपोंडरीयनयणा कोकासियधवलपत्तलच्छा आणामियचावरुइल-किण्हब्भराजिसंठिय-संगयायय-सजाय. भुमगा अल्लीणपमाणजुत्तसवणा सुसवणा पीणमंसलकवोलदेसभागा अचिरुग्गयबालचंदसंठियमहानिडाला उडुवतिरिव पडिपुण्णसोमवयणा छत्तागारुत्तमंगदेसा" घणनिचियसुबद्धलक्खणुण्णयकूडागारनिपिडियग्गसिरा' हुयवहनिद्धंतधोयतत्ततवणिज्ज-रत्तकेसंतकेसभूमी सामलीपोंडवणनिचियछोडिय-मिउ-विसद-पसत्थसुहुम-लक्खण-सुगंध-सुंदर-भुयमोयग-भिंग-नील - कज्जल - पहट्ठभमरगण- निद्ध
१. कडी गंगावत्त-दाहिणावत्त-तरंगभंगुर-रवि. नास्ति। किरण-बोहियविकोसायं तपम्ह - गंभीरविगड. २. °वरफलिह (ग)। नाभा (क,ख,ग,घ,च); वृत्तिकृता किञ्चित- ३. दिसामुट्ठिय० (क) । पुरोवर्तिनः 'पम्हविगडनाभा' इति पाठस्य ४. ४ (क)। व्याख्यायां विकृतमिदम् –इद च विशेषणं न ५. पंडर ० (क, ग, घ)। पुनरुक्तम् । पूर्वोक्तस्य नाभिविशेषणस्य ६. ४ (क, ख, ग)। बाहुल्येनापाठादिति (ब)। एतेन प्रतीयते केषु ७. रुत्तिमंग ° (क, ग)। चिदादर्शषु नाभिवर्णकं पाठद्वयमुपलभ्यते, ८. ° सन्निभ° (क)। किन्तु बहुलेषु आदर्शेषु असौ टिप्पणगतः पाठो ६. नेलग (क); नेल (ख)।
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