Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Panhavagarnaim Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 85
________________ ६७४ पण्हावागरणाई निगुरुव-निचिय कुंचिय-पयाहिगावत्त-मुद्धसिरया सुजात - सुविभत्त-संगयंगा लक्खणवंजणगुणोववेया पसत्यबत्तीसलक्खणधरा हंसस्सरा कुंचस्सरा दुंदुभिस्सरा सीहस्सरा 'ग्रोधस्सरा' मेघस्सरा" सुस्सरा सुस्सरनिग्धोसा वज्जरिसनारायसंघयणा समचउरंस संठाणसंठिया छायाउज्जोवियंगमंगा छवी निरातंका कंकरगहणी कोतपरिणामा सउणिपोस - पिट्ठतरोरुपरिणया पउमुप्पलसरिसगंधसास सुरभिवयणा ग्रगुलोमवाउवेगा अवदाय- निद्ध-काला 'विग्गहिय-उष्णयकुच्छी' श्रमय र सफलाहारा तिगाउय-समूसिया तिपलियोनमट्टितीका तिष्णि य पलियोमाई परमाउं पालयित्ता ते वि उवणमंति मरणधम्मं, अवितित्ता कामाणं ॥ जुग लिणीनं लावण्णनिरूवणपुरस्सरं प्रबंभ-पदं ८. पमया विय तेसि होंति - सोम्मा सुजाय सव्वंग सुंदरीश्रो पहाणमहिलागुणेहिं जुत्ता' प्रतिकंत विसप्पमाण-मउय सुकुमाल कुम्मसंठिय-सिलिटुचरणा उज्जुमउय-पीवरसुसंहतंगुलीओ' ग्रब्भुण्णत - रतिद-तलिण-तंत्र-सुइ-द्विनवखा रोमर िवसंठि जण पसत्थ-लक्खण-प्रकोप्प- जंघजुयला सुणिम्मित- सुनिगूढजण्णू मंसल-पसत्थ- सुबद्ध-संधी कयलीसंभातिरेकसंठिय- निव्वणसुकुमाल-मउयकोमल- श्रविरल- सम-सहित वट्ट- पीवर निरंतरोरू अट्ठावयवी चिपसंठियपसत्थविच्छिण्णपिहुलसोणी वयणायामप्पमाणदुगुणिय-विसाल मंसल सुवजहणवरधारिणीश्रो वजविराइय-पसत्यलक्खण निरोदरीयो तिवलिवलित-तणुनमियमझियाश्रो उज्जुय-सम-सहिय- जच्च-तणु-कसिणनिद्ध-श्रादेज्ज-लडहसुकुमाल-मउय सुविभत्तरोमराई" गंगावत्तग-पदाहिणावत्त-तरंगभंग- रविकिरणतरुण-वोधितको सायं तपउम गंभीरविगडनाभी अणुव्भडपसत्थजातपीकुच्छी सन्नतपासा संगतपासा सुंदरपासा" सुजातपासा मियमायिय-पीपरइतपासा प्रकरंडुय"-कणगरुयगनिम्मल सुजाय - निरुवहयगायलट्ठी कंचणकलसपमाण-सम १. उज्जरस ( ग ) ! २. मेघस्सरा ओघस्सरा (घ ) । ३. वाचनान्तरे सिघोसादिकानि विशेषणानि १०. ० वरजहण ( क ) । पठ्यन्ते (वु) । ११. रोमराती (क); • रोमरातीओ (ग) i ४. मुद्रितवृत्ती पसयच्छवि, हस्तलिखितवृत्ती- १२. x ( क, ख, ग, घ, च) ; सन्नतपार्वादिविशेषणानि पूर्ववत् (a); वृत्तिसङ्केतानु छवित्ति प्रशस्तत्वचः । सारेणासौ पाठः स्वीकृतः । ५. सगुण ० ( क ) । ६. विग्महितुण्णय ० ( ख, ग ) 1 13. संजुत्ता ( क ) । Jain Education International ८. सुमाहतंगुलीओ (क, ग, घ, च) 1 ६. पट्टिसंठिया ( क ) ; ० पडिसंठिय (ख, घ) १३. अकरंदुय (क, ख ) । १४. ० रुपि ० ( ख ). ° रुय ० (घ) 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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