Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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मच्छरिया, तयाणन्तरं च णं अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझूसणाराहणाए पञ्च अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं०-इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसम्पओगे जीवियासंसम्पओगे मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे । ७ । तए णं से आणन्दे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवजिता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ ता एवं व्यासी नो खलु मे भन्ते ! कप्पइ अज्जम्पभिइ अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थियदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिंग्गहियाणि अरिहंतचेइयाई वा वन्दित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा | साइमं वा दाउँ वा अणुष्पदा वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकन्तारेणं, कप्पड़ मे समणे निग्गन्थे फासुएणं एसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थपडिग्गहकम्बलपायपुञ्छणेणं पीढफलगसिज्जासंथारएणं | ओसहभेसज्जेण य पडिला भेमाणस्स विहरित्तएत्तिकट्टु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ ता परिणाई पुच्छइ ता अट्ठाई आदियइ ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वन्दइत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियाओ दूईपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ ता जेणेव वाणियगामे नयरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ ना सिवानन्दं भारियं एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिये! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्ति धम्मे निसन्ते, सेविय धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, तं गच्छ णं तुमं देवाणुम्पिया ! समणं भगवं महावीरं वन्दाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं
॥ उपासक दशांगं सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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