Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नक्खा लडहभडहजाणुए विगयभागभुगभुमए (असिभूसगमहिसकालए भरियमेहवण्णे लंबोटे निग्गयदंते पा० ) अवदालियवयणविवरनिल्यालियग्गजीहे सरडक्यमालियाए उन्दुरमालापरिणद्धसुक्यचिंधे नउलकयण्णपूरे सप्पक्यवेगच्छे अफोडन्ते (भूसगकय भुलएविच्छुयकयवेयच्छे सप्पकयजण्णोवइए अभिन्नमुहनयणनक्खवरवग्धचित्तनियंसणे पा० ) अभिगजन्ते विमुक्कट्टहासे नाणाविहपञ्चवण्णेहिं लोमेहिं उवचिए एगंभहं नीलुप्पलगवलगुलियअयसिकुसुमप्पासं असिं खुरधारं गहाय जेणेव पोसहसाला जेणेव कामदेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइत्ता आसुरुत्ते रुढे कुविए चण्डिकिए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं व०- भो कामदेवा समणोवासया! अपत्थियपत्थिया दुरन्तपन्तलक्खणा हीणषुण्णचाउद्दसिया सिरिहिरिधिइकित्तिपरिवजिया धमकामया पुण्णकामया सग्गकामया भोक्खकामया धमकड़िया० धम्मपिवासिया० नोखलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया! जंसीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खण्डित्तए वा भञ्जित्तए वा उज्झित्तए वा परिचइत्तए वा, तंजइ णं तुझं अज्ज सीलाई जाव पोसहोववासाई न छड्डसि न भ सि तो ते अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया! अदुहट्टक्सट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविजसि, तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं पिसायरवेणं एवं कुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुविगे अक्खुभिए अचलिए असम्भन्ते तुसिणीए धमझाणोवगए विहरइ।१९।तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेव समणोवासए अभीयं जाव धम्म-झाणोवगयं विहरमाणं पासइ त्ता दोच्चंपि तच्चपि कामदेवं एवं व० -हंभो कामदेवा समणोवासया! ॥ उपासकदशांगं सूत्र॥ | पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal

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