Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहा अहामागं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ किट्टे आराहेइ तए णं से आणंदे| समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं एवं तच्चं चउत्थं पञ्चमं छठें सत्तभं अमं नवमं दसम एक्कारसमं जाव आराहे ॥१३॥ तए णं से आणंदे समगोवासए इमेणं एयारुवेणं उरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पगहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के जाव किसे धमणिसन्तए जाए, तए णं तस्स आणन्दस्स समणोवासगस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्ता जाव धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झस्थि५० एवं खलु अहं इमेणं जावधमणिमन्तए जाए तं अत्थिता भेट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे सद्धाधिइसंवेगे तंजावता मे अस्थि उट्ठाणे सद्धाधिइसंवेगे जाव य मे मायरिए धम्भोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ तावता मे सेयं कल्लं जाव जलन्ते अपच्छिममारणन्तियसंलेहणाझूसणाझूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स कालं अणवकङ्खमाणस्स विहरित्तए, एवं सभ्पेहेइ त्ता कल्लं पाउ जाव अपच्छिममा गन्तिय जाव कालं अणवकङ्खमाणे विहरइ, तए णं तस्स आणन्दस्ससमणोवासगस्सअन्नया कयाई सुभेणं अन्झवसाणेणं सुभेणं (प्र० सोहणेणं) परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तदावरणिजाणं कमाणं खओवसमेणं ओहिनाणे समुष्पन्ने, पुरथिमेणं लवणसमुद्दे पञ्चजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ एवं दक्खिणेणं पञ्चस्थिमेण य उत्तरेणं जाव चुल्लहिमवन्तं वासघरपव्वयं जाणइ पासइ उडे जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ अहे जाव इभीसे रयणप्यभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सटिइयं जाणइ पासइ। १४। तेणं कालेणं० सभणे भगवं महावीरे सभोसरिए. परिसा निग्गया जाव पडिगया, तेणं कालेणं० समणस्स भगवओ । ॥ उपासकदशा सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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