Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar SamitiPage 16
________________ ॥श्री वीतरागाय नमः॥ श्री जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री घासीलालबतिविरचितया प्रमेयचन्द्रिकाख्यया व्याख्यया समलङ्कृतम् ॥श्री-भगवतीसूत्रम्॥ (पञ्चदशोभागः) अथ द्वादशोद्देशकः प्रारभ्यते एकादशो देशकं निरूप्य द्वादशोदेशकः क्रमप्राप्तः मारभ्यते पृथिवीकायिकविषये सूत्रमाह-पुढवीकाइयाण' इत्यादि, मूलम्-पुढवीकाइया गं भंते! कओहिंतो उववज्जंति किं नेरइएहितो उववज्जति तिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति मणुस्सेहितो उपवज्जति देवेहिंतो उववज्जति गोयमा! नो नेरइएहितो उववज्जति तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजति मणुस्से हिंतो उववज्जंति देवेहितो वि उववज्जंति। जइ तिरिक्ख. जोणिएहितो उववज्जंति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति एवं जहा वक्रतीए उववाओ जाव, जइ बायर पुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति किं पजत्तबायर जाव उववजांत, अपज्जत्तबायरपुढवीकाइयएगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति ? गोयमा! पज्जत्तबायरपुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जंति अपज्जत्तपायरपुढविक्काइयएगिदियतिरिक्खजोणिपाहतो उववज्जंति । पुढवीकाइएणं भंते! जे भविए पुढवीकाइएसु उववज्जित्तए, से गं भंते! केवइयकालटिइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुत्तदिइएसु उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सटिइएसु उववज्जेज्जा। ते गं भंते जीवा एगसमएणं पुच्छा अणुसमय अविरहिया असंखेज्जा उववजंति। छेवट संघयणी सरीरोगाहणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫Page Navigation
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