________________
455
सूत्रम
॥२४२
P| आकाशनो अनुक्रमे गति, स्थिति, अने अवगाह लक्षणरूप छे; सादि, (आदीवाळो) परिणामिक देखावभाव ते, आकाशमां वादळानु । आचा०/ इंद्रधनुष्य विगेरेनो देखाव छे, तथा परमाणुओर्नु रूप विगेरेमां वीजु गुणपणुं वदलाय छे. हवे आ प्रमाणे गुण कहीने मूळनो निक्षेपो कहे छे. ॥२४२॥ मूले छक्कं दवे ओदइ उवएस जाइमूलं च । खित्ते काले मूलं भाव मूलं भवे तिविहं ॥ १७३ ॥ ( मूळ शब्दनो छ प्रकारे नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव एम निक्षेपा छे. नाम स्थापना जाणीता छे.
द्रव्यमूळ, द्रव्यमूळमां ज्ञ शरीर, भव्यशरीर, अने ते शिवाय (१) औदयिकमूळ, (२) उपदेशमूळ, (३) आदिभूळ. एम त्रण प्रकारे छे. वृक्षना मूळपणे जे द्रव्य परिणमे ते औदायिकमूळ जाणवू तथा वैद्य रोगोने तेनो रोग दुर करवा जे मूळनो उपदेश करे; ते उपदेशमूळ-पिपरीमूळ विगेरे जाणवां; आदिमूळ वृक्षोनां मूळनी उत्पत्तिमा जे पहेलं कारण छे ते जेमके, स्थावरनाम गोत्र प्रकृतिना संबंधथी तथा मूळ निर्वर्तन उत्तर प्रकृतिना प्रत्ययथी जे मूळ उत्पन्न थाय; तेनो भावार्थ कहे छे, ते मूळनो निर्वाह करनार पुद्ग
लोना उदय आवतां कर्मण शरीर छे, ते औदारिक शरीरपणे परिणमतां पहेलं कारण छे... ल क्षेत्रमुळ-जे क्षेत्रमा मुळ उत्पन्न थाय छे, अथवा जे क्षेत्रमा मुळचें वर्णन थाय ते जाणवू. M काळमुळ-क्षेत्रमुळ प्रमाणे एटले जे काळमां उत्पन्न थाय; अथवा वर्णन कराय; ते काळ मुळ छे. भावमुळ त्रण प्रकारे छे.
भावमूळ.
SAMR55519
5754-HRS