Book Title: Adhik Mas Darpan Author(s): Shantivijay Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati View full book textPage 5
________________ अधिक-मास-दर्पण. .....AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA... जाहिर करवाया-जिसमें एक भी जैनशास्त्रका पाठ नही दिया, इतनेसे मेरी किताबका जबाब नही हो सकता. अब शास्त्रार्थका जबाब सुनिये. शास्त्रार्थके लिये सभा करना दोनों पक्षके संघका काम है. क्योंकि यह चर्चा-जैनश्वेतांबरसंघके फायदेकी है, किसी एकके घरकी नही, तपगछवाले दुसरे भादवेमें पर्युषणपर्व करनेके पक्षमे हैं, खरतरगछ और अंचलगछवाले पहले भादवेमे पर्युषणपर्व करनेवाले हैं. दोनों पक्षवाले सलाहकरके अपने अपने गछके विद्वान् मुनिजनोंको आमंत्रण करे. जिससे पीछेसे कोइ एसा-न-कहसके कि-हम इस बातमें सामील नहीं, जो जो मुनिराज-न-आसकते हो-तों अपना अपना अभिप्राय लिखभेजें कि-हमको इस सभामें जो कुछ निश्चय होगा वो-मंजूर है. __ २ सभामें वादी-प्रतिवादी-सभादक्ष-दंडनायक-और साक्षी होने चाहिये, वादी-प्रतिवादी सामसामने बेठे, सभादक्ष यानी संस्कृत-प्राकृत विद्याके पढे हुवे पंडित-वादी-प्रतिवादीकी दलिलें लिखते रहें. दंडनायक कहनेसें राज्यकी तर्फसें कोइ अपसर असे अधिकारवाले सभामें आने चाहिये जो इन्साफकी बात बोले उसको बंद करे. साक्षी कहनेसे पठित विद्वान् षट्मतके जाननेवाले-जैन-या-कोइ दुसरे महाशय-मुकरर किये जाय, जो दोनोंपक्षके लिखाणको बांचकर इन्साफ देवें, और उनका नाम पहलेसे जाहिर करना चाहिये कि-इस सभामें अमुक महाशय मध्यस्थ रहेंगे, और इस बातका भी पहलेसे निर्णय होना चाहिये कि-तपगछ-खरतरगछ-निकसे पेस्तरके-सूत्र-सिद्धांत मंजूर रहे, और उनहीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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