Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

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Page 10
________________ अधिक-मास-दर्पण. विज्ञापन नंबर सातमे इस मजमूनको पेश करते हैं, वालकेश्वरमें जब हमारे गुरुजीके साथ आपकी मुलाकात हुइ थी, तब भी आपने झगडिया वगेरा तीर्थकी यात्रा जाकर आये बाद शास्त्रार्थ करनेको मंजूर किया था, सो आप यात्राकरके आगये, अब आमने सामने या लेखद्वारा-वा सभामें आपकी इच्छा हो वैसे शास्त्रार्थ करना मंजूर कीजिये. जवाब-शास्त्रार्थके लिये मुजे कोइ इनकार नही, मगर दोनोंपक्षके जैनसंघकी सलाहसे सभा हो, जैसा कि-इस किताबकी शुरुमे पहेली दुसरी कलममें लिखा है, नही तो अपने अपने पक्षवाले कहेंगे हमारा पक्ष तेज है. इससे कोइ नतीजा न निकलेगा, यह चर्चा संघके लिये है. जब दोनोंपक्षक संघ शामील नही हुवे तो फिर शास्त्रार्थ करनेका फायदा क्या हुवा ? में तीर्थ झगडिया पानसर और भोयणी वगेरा तीर्थोकी जियारतकरके सुरत होता हुवा दादर टेशन उतरकर यहां थाणे आया. और चार महिने राहदेख रहा हं, और बंबईके नजदीक ठहरा हुं, मगर आजतक सभाका तरीका मालुम हुवा नहीं, कोइ एक शख्स चाहे में सभा करुं तो यह बनसके नहीं, संघका काम संघकी सलाहसे होना चाहिये. ७ बंबइ-वालकेश्वरमें आपके और आपके गुरुजीके साथ जब मेरी मुलाकात हुइ थी, उसवख्त जो कुछ बातें हुई थीं, यहां लिखता हुँ, सुनिये ! गतवर्समें जब मेरा जाना दादर मुकामसे वालकेश्वरके जैनमंदिरमें हुवा था, उसवख्त बाबू___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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