Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ अधिक मास-दर्पण. ..............~rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. और अंचलगछके मुनिश्रीयुत दानसागरजी वगेरा तीन मुनिराज थे, मेने सबके रुबरु आपको कहा था-मेरी बनाइ हुइ किताब पर्युषणपर्वनिर्णय और अधिकमासनिर्णयमें कौनसी बातें शास्त्रविरुद्ध होकर उत्सूत्रप्ररूपणारूप लिखी हैं, आपने जैनशास्त्रके पाठ देकर बजरीये छापेके जाहिर क्यों नही किइ ? बगेरा बातें हुइ जब आपने कहा था. सबका जवाब दूंगा. फिर उसवख्त मेने यह भी कहा था कि-धर्मचर्चाकी हरेक बातके निर्णय करनेका यह तरीका है, एक तरीका दोनोंपक्षके जैनसंघकी सलाहसे वादी-प्रतिवादीसभादक्ष दंडनायक और साक्षीके जरीये सभा भरना, और शास्त्रार्थ करना, सभा इस लिये किइ जाति है कि बोलनेवाले बोलकर फिर बदल न सके, दूसरा तरीका बजरीये छापेके मेरे लेखका जवाब आपदेवे, और आपके लेखका जवाब में दूं. ये बातें मेने उसवख्त कहीं थीं, आपको याद होगी, फिर आप दुफेरको मेरे पाससे उठकर दादरके जैनमंदिरके पास जहां ठहरेथे, वहां गये. शामको फिर आप और श्रीयुत लब्धिमुनिजी मेरेपास तशरीफ लाये, और दुसरे रोज दुफेरतक रहे थे, ज्ञानकी बातें हुई थी. और फिर बंबइ लालबागको गये थे, में मुकाम दादरमें (२०) रौजतक समाके लिये ठहरा, मगर दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे सभा हुइ नहीं, फिर में मुकाम दादरसे रवाना होकर तीर्थ झगडिया-पानसर और भोयणीतर्फ जियारतको गया. ६ आगे खरतरगछके मुनिश्रीयुत-मणिसागरजी अपने ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38