Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

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Page 26
________________ अधिक मास-दर्पण. २३ .~rmammmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwmmmmmm संबंधी आवश्यक बृहद्वत्ति वगेरा सोलह शास्त्रके प्रमाण विज्ञापन नंबर पांचमें प्रगट किये है. जवाब-अकेला नाम प्रगट करनेसे क्या हुवा ? पाठ तो एकभी शास्त्रका नही दिया, अगर आप कोइ जैनशास्त्रका पाठ जाहिर करेंगे तो मेंभी उसके जबाबमे पाठ जाहिर करुंगा. पूर्वपक्षमें पाठ दिये हो तो उत्तरपक्षमें पाठ देना इन्साफ है. __२० फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर आठमें लिखते है, पंचाशकके पूर्वापर संबंधवाले संपूर्ण सामान्य पाठको छोडकर शास्त्रकार महाराजके अभिप्रायको समजेविना थोडासा अधुरा पाठ भोले जीवोंको दिखलाकर वीरप्रभुके विशेषतासे आगमोक्त छह कल्याणि. कोंका निषेध करना इत्यादि अनेक बातें आपकी दोनों किताबोंमें शास्त्रविरुद्ध भरीहुइ हैं. जवाब-मेरी दोनों किताबोंमें कौन कौनसी बातें जैनशास्त्रके विरुद्ध थी. जैनशास्त्रके पाठ देकर बतलाइ क्यों नही, पंचाशकसूत्रमें तीर्थंकर महावीर स्वामीके पांच कल्याणिक सामान्यतासे कहे है, एसा पाठ जाहिर क्यों नही किया ? पूर्वापरसंबंधवाले संपूर्ण पाठ लिखे क्यों नहीं? मेने अधुरा पाठ दिया था, तो आपने संपूर्णपाठ लिखकर बतलाया क्यौं नहीं कोरी बाते बनादीइ इसको कौन अकलमंद मंजुर करेगा, दुसरी दलिल यह है कि पंचाशकसूत्रका पाठ अगर सामान्यताका होता तो क्या आपके खरतरगछके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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