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अधिक-मास-दर्पण. यह बात बेशक! जैनशास्त्रके विरुद्ध कही जायगी, जैनशास्त्र कल्पमूत्रमें जैन मुनिकों श्वेतकपडे पहनना कहा. और साथमें यहभी फरमाया कि पंचमहाव्रत पालना चाहिये, कालांतरसे जब श्वेतकपडे पहननेवाले जैन मुनियोंमें चारित्रधर्मके बारेमें कुछ शिथिलता प्राप्त हुइ, श्रीयुत सत्यविजयजी महाराजने जैनशास्त्र निशीथसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्रके पाठसे कपडेको रंग देकर पहनना शुरु किया. और पंचमहाव्रत पालनेका क्रिया उद्धार किया, अगर जमाने हालमेंभी कोइ सफेद कपडे पहननेवाले जैन मुनि पंचमहाव्रत पालना मंजूर रखे तो उनको जैन मुनितरीके मानना चाहिये, श्रद्धा ज्ञान
और चारित्ररूप गुणसे काम है. जिसमेंभी श्रद्धागुण सबसे अवलदर्जेपर है. अकेले श्रद्धागुणसे मुक्ति हो सकती है, श्रद्धारहित अकेले द्रव्य चारित्रसे मुक्ति नही हो सकती, इसलेखका मतलब यह निकलाकि सफेद या पीलेकपडेसे आत्महित नही गुणसे आत्महित है.
२२ अंचल गछनायक श्रीमान् महेंद्रसिंहमूरि विरचित बृहत् शतपदीग्रंथका साररूप भाषांतर जो श्रावक रवजी देवराज कछकोडायवालोने छपवाया है, उसके पृष्ठ (१४९) पर जहां खरतरगछके श्रीमान् जिनवल्लभसूरिजीकी नयी आचरणाका बयान दिया है उसमें लिखा है,
"हरिभद्रसूरिये पंचाशकमां पांचज कल्याणिक कह्यां छे, अने अभयदेवमूरिये पण त्यां तेटलांज चर्चा छे. छतां जिनवल्लभसूरिये छटुं कल्याणिक प्ररुप्यु."
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