Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati

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Page 31
________________ २८ अधिक-मास-दर्पण. प्रसाद लेगये हो वो पुरेपुरा चढा देना, जो जो श्रावक धन दौलत पुत्रपरिवार वगेराके लिये वंदन नमन करते है प्रसाद चढाते है यह ठीक नही. दादाजीको यानी धर्मगुरुको मोक्ष निमित्त मानना चाहिये. संसारके कार्यके नही. खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीके विज्ञापन नंबर नवमेका जवाब और अधिकमासके बारेमें शास्त्रार्थके लिये जाहिर सूचना. १ खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर नवमें लिखते हैं, "न्यायरत्नजी शांतिविजयजी हारगये." __ जवाब-सभा हुइ नहीं, शास्त्रार्थ किया नहीं, फिर हार जितके ठहरावका पास किसने कर दिया, अपने आपसे किसीको हार गये कह देना गेर इन्साफ है, दुनिया जूठ सचके देखनेके लिये एक आइना हैं, जाननेवाले बखूबी जान सकेंगे कि सभा हुइ नहीं, फिर हारजीत कैसे हो सके. २ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर नवमें बयान करते हैं, शास्त्रार्थ आपका और मेरा है, इसमें बंबइके संघको वा आगेवानोंको बीचमें लानेकी जरुरत नहीं.. जवाब-शास्त्रार्थ करना और फिर जैनसंघकी जरुरत नहीं, यह कैसे बन सकेगा, श्रीयुत मुनि मणिसागरजी कहते है, संघकी जरुरत नहीं में कहता हूं, यह चर्चा सब जैनसंघके फायदे की है, कीसी एकके लिये नहीं फिर संघकी जरुरत क्यों नहीं. मेरे खयालसे संघकी निहायत जरुरत है, ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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