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अधिक-मास-दर्पण.
अपने खरतरगछके जैनाचार्य श्रीजिनदत्तमूरिजी और श्रीजिनकुशलमूरिजीका करते हो तो यह एक तरहका पक्षपात हुवा सावीत होगा. ___ २४ खरतरगछके दादाजी श्रीजिनदत्तमूरिजी और श्रीजिनकुशलमूरिजीके चरणोंकी छत्रीयें कइ जगह बनी हुइ हैं. कइ श्रावक श्राविका दादाजीके नामसे प्रसाद चढाना बोलते है. और वो बोला हुवा दादाजीका प्रसाद थोडासा उनके चरणों के सामने चढाकर बाकीका श्रावकोंको बांट देते है. इसी तरह नारियल तोडकर थोडासा टुकडा चढाकर बाकीका बांट देते है. जैनशास्त्रोंमें देवद्रव्य गुरुद्रव्य और धर्मद्रव्य आप नही खाना चाहिये. साबीत नारियल या शेर दोशेर पांचशेर मिठाइ जितनी चीजे दादाजीके निमित्त लाये हो वो पुरेपुरी चढा देना चाहिये क्यों कि वो चीज गुरुद्रव्य हो गइ. उसका खाना जाइज नहीं. अगर कहा जाय दादाजी मुक्ति नही पाये हैं. देवलोग गये हैं. उस भावनासे हम मानते हैं. और नैवेद्य (प्रसाद) चढाते हैं तो यह बात जैनशास्त्रसे खिलाफ है, जैनशास्त्रमें धर्मगुरुको धर्मगुरुकी भावनासे मानना कहा. देवलोक गये इस भावसें मानना नही कहा. बल्कि ! दादाजीने मनुष्य भवमें जो सम्यक् दर्शनज्ञान और चारित्र पाला था उस भावनासे धर्मगुरु समजकर मानना कहा. इस लिये जब उसके चरनोंके सामने जाना तब इछामिक्षमाश्रमण कहकर तीन दफे वंदना करना. अभुठीयो अभ्यंतर खामना और जो नैवेद्य यानी
गुरुद्रव्य होगापुरी चढा देना चीजे दादाजी
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