Book Title: Adhik Mas Darpan
Author(s): Shantivijay
Publisher: Sarupchand Punamchand Nanavati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી યશોવિજયજી Ibollebic 1% છે દાદાસાહેબ, ભાવનગર, eeeheae-2eo : Inકે 0 | 5A2A૦ ૦૨ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARMER UEBREEL NEEDL DESI अधिक-मास-दर्पण. हस्व फरमायेश-जनाब-फेजमाब जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर न्यायरत्नमहाराज शांतिविजयजी. . PR प्रकाशक, शेठ सरुपचंदजी पुनमचंदजी नानावटी, IMAL साकीन, पेथापुर गुजरात-हाल मुकाम बंबई. सं० १९७५. सन १९९८. - - .. AEA . -:मुफ्त RAHARI H AR मोटोगमा Printeri by Ramchandra Yesu Shedge, at the "Nirnaya-sagar" Press, 23, Kolbbat Lane, Bombay. 2ublished by Suth Sarapchandji Punamchandji Nanavati, Seth Premclaud Kalyanchand Javeri's House, Dhanji Street, Bombay No. 3. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाचा. इस किताबको अवलसे अखीरतक पढलेना चाहिये, छ कइ महाशय ऐसे है जो पन्ने दो पन्ने बांचकर किताबको बैंकार समजकर रख देते है. मगर यह बात बेहत्तर नही. चर्चाकी किताब पढनेसे आदमीकों होशियारी आती है. इस किताबमें अधिकमहिनेके बारेमें इबारत लिखी हुइ है, इसलिये इसका नाम अधिकमासदर्पण रखा है. इस किताबमें अवल सभा करनेका तरीका शास्त्रार्थ करनेके नियम बतला दिये है. मेरा और खरतरगछके मुनि मणिसागर- ) जीका मिलना दादर मुकामपर और दुसरीदफे वालकेसरमें हुवा था, उसका बयान इसमें दर्ज है. जैन मुनिके उत्सर्गमार्ग और अंपवाद मार्गकी नव कलमें इसमें बतला दिइ है. चंद्रसंवत्सर और सूर्यसंवत्सरका मेल मिलानेके ) लिये बीचमेसे अधिकमहिना निकालना पडता है. इसकी कुल हकीकत इस किताबमें रोशन है. मेरी बनाइ हुइ % * किताब मानवधर्म संहिताके लेखकी अधिकमहिनेके बारेमें सत्यता इसमें बयान किइ है. तीर्थकर महाबीर स्वामीके पांच कल्याणिक मानना या छह मानना इसका बयान इसमें उमदातौरसे दिया है. पर्युषणपर्वकी संवत्सरी पंच. मीकी करना या चतुर्थीकी? दादाजीका प्रसाद खाना या केसे करना शास्त्रार्थके लिये दो दफे जाहिर सूचना वगेराके तमाम हालात इसमें दर्ज है, इस किताबकी कापी करने में * यतिवर्य श्रीयुत मनसुखलालजीने अछी मदद दिइ है. ) और किताब छपवाकर जाहिर करानेमें शेठ सरुपचंदजी Q पुनमचंदजी साकीन थापूर मुल्क गुजरात हाल मुकाम बंबइने द्रव्यकी मदद किइ है. इस किताबको आपलोग पढे शू ड) और सचका इम्तिहान करे. • मुकाम-थाणा ब-कलम-जैन श्वेतांबरधर्मोपदेष्टा विद्यासागर४ मुल्क-कोकन. S न्यायरत्न-मुनि-शांतिविजय. ब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NHA अधिक-मास-दर्पण. जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर स्वासरदर महाराज शांतिविजयजी तसं काम थाना-कोकन दोहा. नमुं देव अरिहंतको, गुरु नमुं निथू । स्याद्वादवानी नमुं, यही मुक्तिका पंथ । सुनकर वानी जैनकी, क्यों न धरे मनधीर । धर्मविना इस जीवकी, कौन हरे भवपीर ॥ २ ॥ १ इस किताबके तयार करनेका सबब यह है कि-खरतर गछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीने बंबइसे विज्ञापन नंबर सातमा-अपने हस्ताक्षरकी सहीसे लिखकर प्रकाशक हिरालालजीके नामसे जाहिर किया है. उसमे लिखा है. शांतिविजयजी सावधान ! शास्त्रार्थके लिये-जल्दी तयार हो. जबाब-शांतिविजयजी हमेशां सावधान है. जभी तो आपके लेखोंपर-पर्युषणपर्वनिर्णय-और-अधिकमासनिर्णयकितावें बनाकर बजरीये प्रकाशकके जाहिर करवाइ है. आप उन दोनों किताबोंके दरेक बयानपर पुरेपुरा जबाब दीजिये ! एक छोटासा विज्ञापन नंबर सातमा लिखकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. .....AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA... जाहिर करवाया-जिसमें एक भी जैनशास्त्रका पाठ नही दिया, इतनेसे मेरी किताबका जबाब नही हो सकता. अब शास्त्रार्थका जबाब सुनिये. शास्त्रार्थके लिये सभा करना दोनों पक्षके संघका काम है. क्योंकि यह चर्चा-जैनश्वेतांबरसंघके फायदेकी है, किसी एकके घरकी नही, तपगछवाले दुसरे भादवेमें पर्युषणपर्व करनेके पक्षमे हैं, खरतरगछ और अंचलगछवाले पहले भादवेमे पर्युषणपर्व करनेवाले हैं. दोनों पक्षवाले सलाहकरके अपने अपने गछके विद्वान् मुनिजनोंको आमंत्रण करे. जिससे पीछेसे कोइ एसा-न-कहसके कि-हम इस बातमें सामील नहीं, जो जो मुनिराज-न-आसकते हो-तों अपना अपना अभिप्राय लिखभेजें कि-हमको इस सभामें जो कुछ निश्चय होगा वो-मंजूर है. __ २ सभामें वादी-प्रतिवादी-सभादक्ष-दंडनायक-और साक्षी होने चाहिये, वादी-प्रतिवादी सामसामने बेठे, सभादक्ष यानी संस्कृत-प्राकृत विद्याके पढे हुवे पंडित-वादी-प्रतिवादीकी दलिलें लिखते रहें. दंडनायक कहनेसें राज्यकी तर्फसें कोइ अपसर असे अधिकारवाले सभामें आने चाहिये जो इन्साफकी बात बोले उसको बंद करे. साक्षी कहनेसे पठित विद्वान् षट्मतके जाननेवाले-जैन-या-कोइ दुसरे महाशय-मुकरर किये जाय, जो दोनोंपक्षके लिखाणको बांचकर इन्साफ देवें, और उनका नाम पहलेसे जाहिर करना चाहिये कि-इस सभामें अमुक महाशय मध्यस्थ रहेंगे, और इस बातका भी पहलेसे निर्णय होना चाहिये कि-तपगछ-खरतरगछ-निकसे पेस्तरके-सूत्र-सिद्धांत मंजूर रहे, और उनहीके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. पाठसे शास्त्रार्थ करना, जिस पक्षवालोंकी जित होवे वोअपना खर्चा प्रतिपक्षवालोंसे लेवे सभा करना-तो-ऐसी करना, नही तो फिर अपने अपने पक्षवाले एसा कहेंगे, हमारा पक्ष तेज है, इसमे कोइ नतीजा-नही निकलेगा, उपरलिखे मुजब दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे सभा होवे-और संघका आमंत्रण आवे-तो-में-अधिकमासके बारेमे शास्त्रार्थके लिये आनेको तयार-हूं, कोइ एक जैनमुनि कोइ श्रावक शास्त्रार्थके लिये आमंत्रण करे-तो-यह बात मंजूर नहीं हो सकती, संघका काम संघकी सलाहसे होना चाहिये... ३ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने . विज्ञापन नंबर तीसरेमें पुस्तकोंके बारेमें लिखते हैं-मेरेको इधरके जैनी पाटन-भावनगर-खंबायत-बडोदा-सुरत वगेरा .शहरोंके ज्ञान भंडारके रक्षकलोक पक्षपातसे या अपनी भूल प्रगट हो जानेके भयसे-या. किसी मुनिके मनाइ करनेसे बहुत वार लिखनेपर भी नही भेजते. जवाब-आपकों इधरके जैनी-पुस्तक नही भेजते-तो इसमें कोइ क्या करे ? अपने लिये पुस्तक चाहे वहांसे मंगवालो, जैन पुस्तक बंबइमें भी होवेंगे, पुस्तकोंकी कौन कमी है, और फिर आप लिखते हों-ज्ञानभंडारके रक्षकलोग पक्षपातसे-या अपनी भूल प्रगट हो जानेके भयसे पुस्तक नही भेजते, जवाबमें मालुम हो, विना सभा-या शास्त्रार्थ किये किसकी भूल है, इसकी खातरी कौन करेगा, अपने मन सेही अपनी बात सच समजना और दुसरोंकी भूल कहना ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. वृथा है, दुसरे जैन मुनि-उन-ज्ञानभंडारके रक्षकोंको मना क्यौं करे, जैनपुस्तक दुसरे शहरोंके जैनपुस्तकालयोंमें मौजूद है, जहांसे मिले आप मंगवा लीजिये. ४ फिर खरतरगछके मनि श्रीयत मणिसागरजी-अपने विज्ञापन नंबर सातमें तेहरीर करते हैं, आपकी बनाइ हुइ पर्युषणपर्व निर्णयकी शास्त्रकारोंके अभिप्राय विरुद्ध-जिनाज्ञाबाहिर और कुयुक्तियोंसे भोले जीवोंकों उन्मार्गमें गेरने. वाली है. जवाब-मेरी किताबमें कौनसी बात शास्त्रकारोंके अभिप्रायसे विरुद्धथी- जबतक शास्त्रसबुतसे बतला सकते नहीं, एसा कहना फिजहुल है, आपको मुनासिब था, . पूर्वपक्ष-लिखकर उत्तरपक्षमें जैनशास्त्रका पाठ देना, और फिर कहना था कि-देखिये! यह बात विरुद्ध है, जिनाज्ञाबाहर कौनसा लेख था-वतलाया क्यों नहीं ? और कौन कानैसी कुयुक्तियें थी-जो-भोले जीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली थी जैनशास्त्रके पाठ देकर बतलाना चाहिये था, जबतक एसा बतलाते नही तबतक शास्त्रविरुद्ध कहना बेहत्तर नही, आपके कहनेसे मेरी किताब शास्त्रकारोंके अभिप्रायसे विरुद्ध नही हो सकती, शांतिविजयजी किसीके लेखका जबाब-न देवे-और मौनकरके बेठे रहे-यह-कभी-न-होगा, जिसके पास शास्त्रसबुतसे जबाब देनेकी ताकत है-वो-मौनकरके क्यों बेठे. ५ जब-में-पुनेका चौमासाकरके संवत् (१९७४) के पौष महिनेमें दादर-मुकामपर आया था, और-शेठ-हेमचंदजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. अमरचंदजीके बंगलेमें ठहराथा, बंबइ वालकेश्वरसे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीने एक आदमीके साथ मेरेपास एक चीठी लिखकर भेजी थी, उसमे लिखा था, मेने आपका आना दादरमें सुना है, इसमें आपकों में सूचना देता हूं कि-आपने पर्युषणपर्वनिर्णय-और अधिकमासनिर्णय दोनों पुस्तकोंमें बहुत जगह शास्त्रविरुद्ध होकर उत्सूत्रप्ररूपणारूप लिखा है, शास्त्रार्थ किये विना चले जाओगे तो जूठे समजे जाओगे. जवाब-विना शास्त्रसबुत मेरे लेखको शास्त्रविरुद्ध कहदेना कौन अकलमंद मंजूर करेंगे? मेरी किताबके दरेक • बयानको लिखकर जैनशास्त्रोंके पाठसे पुरेपुरा जबाब दीजिये, विना जबाब दिये एसा कह देना मुनासिब नही. शास्त्रार्थके •लिये सभाकातरीका इस किताबकी शुरुवातमें पहेली दूसरी कलममें लिख दिया है उसको पढ़ लीजिये.. यह चर्चा जैनश्वेतांबरसंघके फायदेकी है. किसी एकके घरकी नही, दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे सभा होना चाहिये, संघका आमंत्रण मेरेपर आवे तो-तपगछवालोंकी तर्फसे अधिकमासके बारेमें शास्त्रार्थके लिये आनेको-में-तयार हूं: जाहिर चर्चाके विषयकी हस्ताक्षरसे लिखी हुइ खासगी चिठीका जवाब देना-में-गेरइन्साफ समजता हुँ, मेने उस चीठीका जवाब नही दिया. दुसरे रौज आप दादर मुकामपर आये, और शेठ-हेमचंदजी अमरचंदजीके बंगलेमें मुझको रुबरु मिले, उसवख्त आपके साथ-श्रीयुत लब्धिमुनिजी ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक मास-दर्पण. ..............~rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. और अंचलगछके मुनिश्रीयुत दानसागरजी वगेरा तीन मुनिराज थे, मेने सबके रुबरु आपको कहा था-मेरी बनाइ हुइ किताब पर्युषणपर्वनिर्णय और अधिकमासनिर्णयमें कौनसी बातें शास्त्रविरुद्ध होकर उत्सूत्रप्ररूपणारूप लिखी हैं, आपने जैनशास्त्रके पाठ देकर बजरीये छापेके जाहिर क्यों नही किइ ? बगेरा बातें हुइ जब आपने कहा था. सबका जवाब दूंगा. फिर उसवख्त मेने यह भी कहा था कि-धर्मचर्चाकी हरेक बातके निर्णय करनेका यह तरीका है, एक तरीका दोनोंपक्षके जैनसंघकी सलाहसे वादी-प्रतिवादीसभादक्ष दंडनायक और साक्षीके जरीये सभा भरना, और शास्त्रार्थ करना, सभा इस लिये किइ जाति है कि बोलनेवाले बोलकर फिर बदल न सके, दूसरा तरीका बजरीये छापेके मेरे लेखका जवाब आपदेवे, और आपके लेखका जवाब में दूं. ये बातें मेने उसवख्त कहीं थीं, आपको याद होगी, फिर आप दुफेरको मेरे पाससे उठकर दादरके जैनमंदिरके पास जहां ठहरेथे, वहां गये. शामको फिर आप और श्रीयुत लब्धिमुनिजी मेरेपास तशरीफ लाये, और दुसरे रोज दुफेरतक रहे थे, ज्ञानकी बातें हुई थी. और फिर बंबइ लालबागको गये थे, में मुकाम दादरमें (२०) रौजतक समाके लिये ठहरा, मगर दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे सभा हुइ नहीं, फिर में मुकाम दादरसे रवाना होकर तीर्थ झगडिया-पानसर और भोयणीतर्फ जियारतको गया. ६ आगे खरतरगछके मुनिश्रीयुत-मणिसागरजी अपने ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. विज्ञापन नंबर सातमे इस मजमूनको पेश करते हैं, वालकेश्वरमें जब हमारे गुरुजीके साथ आपकी मुलाकात हुइ थी, तब भी आपने झगडिया वगेरा तीर्थकी यात्रा जाकर आये बाद शास्त्रार्थ करनेको मंजूर किया था, सो आप यात्राकरके आगये, अब आमने सामने या लेखद्वारा-वा सभामें आपकी इच्छा हो वैसे शास्त्रार्थ करना मंजूर कीजिये. जवाब-शास्त्रार्थके लिये मुजे कोइ इनकार नही, मगर दोनोंपक्षके जैनसंघकी सलाहसे सभा हो, जैसा कि-इस किताबकी शुरुमे पहेली दुसरी कलममें लिखा है, नही तो अपने अपने पक्षवाले कहेंगे हमारा पक्ष तेज है. इससे कोइ नतीजा न निकलेगा, यह चर्चा संघके लिये है. जब दोनोंपक्षक संघ शामील नही हुवे तो फिर शास्त्रार्थ करनेका फायदा क्या हुवा ? में तीर्थ झगडिया पानसर और भोयणी वगेरा तीर्थोकी जियारतकरके सुरत होता हुवा दादर टेशन उतरकर यहां थाणे आया. और चार महिने राहदेख रहा हं, और बंबईके नजदीक ठहरा हुं, मगर आजतक सभाका तरीका मालुम हुवा नहीं, कोइ एक शख्स चाहे में सभा करुं तो यह बनसके नहीं, संघका काम संघकी सलाहसे होना चाहिये. ७ बंबइ-वालकेश्वरमें आपके और आपके गुरुजीके साथ जब मेरी मुलाकात हुइ थी, उसवख्त जो कुछ बातें हुई थीं, यहां लिखता हुँ, सुनिये ! गतवर्समें जब मेरा जाना दादर मुकामसे वालकेश्वरके जैनमंदिरमें हुवा था, उसवख्त बाबू___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक मास-दर्पण. अमीचंदजी पंनालालजी जहोरीके जैनमंदिर के पास उपाश्र में आप और आपके गुरुजी वहां तशरीफ लाये थे, जब में जिनमंदिर के दर्शन करके बहार निकला, आप उपाश्रय के बहार आकर मुजको मिले थे, और कहा था, भीतर चलिये, में भीतर आया था, उसवख्त यतिवर्य श्रीयुत मनसुखलालजी और श्रावक चुनिलालजीकानुनी वगेरा भी शाथ थे. ८ अवल स्वागत वगेराकी बातें हुइ फिर मेने कहा, पुनेसे तीर्थ झगडिया - पानसर वगेराकी जियारत के लिये चला हूं. फिर जैन मुनिजनों के बारेमें बातें चलीं थीं, जैनशास्त्रों में जैन मुनियोंके और श्रावकोंके लिये दो तरह के मार्ग तीर्थंकर देवोने फरमाये, एक उत्सर्गमार्ग दुसरा अपवादमार्ग उत्सर्ग मार्गका दूसरा नाम कठिनमार्ग और अपवादमार्गका दुसरा नाम शिथिलमार्ग है. उत्सर्गमार्ग में जैनके पंचमहात्रतधारी क्रियावान् साधु या साधवीकों विहारमें भी किसीकी सहायता नही लेना चाहिये, सहायक होकर विहार करना चाहिये, अगर कोइ जैनमुनि तीर्थसमेत शिखरजीकी जियारत जाते वख्त या बनारस जैनपाठशाला वगेरामें विद्या पढनेके लिये जातेसमय या मुल्क, मारवाड, मेवाड, सिंध, पंजाब, राजपुताना, बंगाल, मध्यप्रदेश, वराड, खानदेश या दक्खनहैदराबादतर्फ जाते वख्त श्रावक-श्राविका या नोकर चाकर साथ चले उन श्रावक-श्राविका और नोकरचाकरोंके लिये बेलगाडी भी साथ रहे, जैनमुनि खुद जानते होने की ये सब लोग हमारे विहार के सबब साथ चले हैं, और एसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. सहायता लेवे तो यह बात मुताबिक जैनशास्त्रके उत्सर्गमार्गमें समजना या अपवादमार्गमें ? इसपर कोइ कहे जमाना पहले जैसा नही रहा, शरीरकी ताकत कम हो गई इस लिये जमाने हालमें जैनमुनिकों इरादेधर्मके एसी सहायता लेनी पडती है, तो जवाबमें मालुम हो यह उत्सर्गमार्ग नही रहा, शिथिल मार्ग कहना चाहिये, शिथिलमार्गपर चलकर कोइ अपनी धर्मक्रियाकी महत्वता करे तो यह मुनासिब नही, जहांतक शरीरकी मूर्छा प्रबल रहे उत्सर्गमार्गपर चलना दुसवार है, अगर विहारके वख्तभी असहायक होकर विहार करे तो अछी बात है. कलम दूसरी-जैनशास्त्रोंमे जैनमुनिको नवकल्पी विहार करना कहा. अगर कोइ जैनमुनि या जैनसाधवी विद्या पढ.नेके लिये किसी गांवनगरमें या जैनपाठशाला वगेरामे दो दो चारचार वर्सतक ठहरे तो बतलाइ ये! यह बात उत्सर्गमार्गमें समजना या अपवादमार्गमें? अगर कहा जाय, इरादे विद्यापढनेके लिये एक गांवनगरमें ज्यादा ठहरना कोई हर्ज नही, तो सोचो! विद्यापढने के लिये विहार में शिथिलमार्गका सहारा लेना पडा या नहीं? फरमान तीर्थकर गणधरोंका देखो तो विद्या भी पढते रहना, और नवकल्पी विहारभी करते रहना चाहिये, पंचमहाव्रतधारी उत्कृष्ट क्रियावान्को विद्यापढनेके लिये चारित्रमें शिथिलता क्यों करना? कलम तीसरी, जैनशास्त्रोंमें लिखा है, जैनमुनिको उत्सर्गमार्गमें उद्यान बनखंड बागबगीचे या पहाडोंकी गुफामे रहना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० अधिक-मास-दर्पण. चाहिये, आजकलके मनुष्योंकी एसी ताकत नही रही, इस लिये इरादे देहरक्षा और संयमरक्षाके गांवनगरमें रहनेका शिथिलमार्ग इख्तियार करना पडता है, कलम चौथी, जैनशास्त्र उत्तराध्ययनमें लिखा है, जैनमुनिको और जैनसाधवीकों उत्सर्गमार्गमें दिवसके तिसरे प्रहर गोचरी जाना. पाठ सूत्र उत्तराध्ययनका अध्ययन ३६, गाथा १२. पढमं पोरिसि सझायं, बियियां झाणं झियायइ । तइयाए भिखायरियं, चउथी भुजोवि सझायं ॥ पहले प्रहरमें स्वाध्याय करे दुसरे प्रहरमें ध्यान करे और तीसरे प्रहरमें भिक्षाको जावे, अगर कोई इस दलिलको पेंशकरे दिवसके तीसरे प्रहरमें भिक्षाको जायगें तो भिक्षा . मिलना दुसवार होगा, तो फिर कुबुल करना चाहिये कि अाजकल उत्सर्गमार्गको छोडकर अपवादमार्गमें चलना पडता है, और दिवसके पहले प्रहरमें चाहदुधकी गवेषणा करना पडती है, दिवसके दुसरे प्रहरमें भिक्षाको जाना पडता है, अगर कोइ जैनमुनि उत्सर्गमार्गमें चलना चाहे तो दिवसके तीसरे प्रहर भिक्षाको जावे, और जो कुछ निरसाहार मिले उसपर संतोष करे, विहारके वख्तभी कंतानके मौजे न पहने. ___ कलम पांचमी-दशवैकालिक सूत्रके छठे अध्ययनमें लिखा है, जैनमुनि दिनमें एकदफे आहार खावे, उसका पाठ यह है. , अहो निच्चं तवो कम्मं, सव्वबुद्धिहिं वन्नि । जायलज्जा समा वित्ति, एगभत्तं च भोयणं ॥ २३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. www.www.www.wwwxxmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwer देखिये ! जैनमुनिको एकदफे आहार खाना कहा, इसपर अगर कहा जाय शरीरकी स्थिति पहले जैसी नही रही, इस लिये दिनमे दोदफे आहार खाना पडता है, और सवेरे चाहदुधका सहारा लेना पडता है, तो सबुत हुवा इरादे शरीरस्थितिके आजकल शिथिलमार्ग इख्तियार करना पड़ता है. जैनशास्त्र में जैनमुनिको दिनमें नींदलेना नही कहा. क्षुधा तृषा वगेरा बाइस परिसह सहन करना कहा. और शरीरपर ममत्वभावका त्याग करना फरमाया, चाहे कोइ जैनमुनि हो साधवी हो श्रावक हो या श्राविका हो जबजब उपवासव्रत करे तो पहले रौज एकाशना करे और पारनेके रौजभी एकाशना करे आजकल एसा बरताव बहुत थोडे शख्श करते होंगे एसा बरताव करे नही और अपने आपको उत्सर्ग . मार्गपर चलनेवाले बोले तो इस बातको जैनशास्त्र कबुल नही करते. कलम छठी जैनशास्त्रोंमें योग उपधान वहन करना उसका नाम है, जिस जैनशास्त्रका योग वहना हो, उस जैनशास्त्रको मय अर्थके कंठाग्र करे, और श्रावकको जिस जिस सामायिक प्रतिक्रमणके विभागका उपधान वहना हो, उस उस विभागको मय अर्थके कंठाग्र करे. कोरा तप करनेसे योग उपधान हो गया समजना गलत है. ___ कलम सातमी-जैनशास्त्रों में लिखा है, जैनमुनि किसीके लडकेको विना हुक्म उसके वारीशोंके दीक्षा न देवे, अगर कोइ शख्श दीक्षा लेनेका इरादा बतलावे तो जैनमुनि उसके मातापिता वगेरा रिस्तेदारोंको खबर देवे, उनके रिस्तेदार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. अगर रुबरु मिलकर जैनमुनिको आज्ञा देवे तो उसको दीक्षा देना मुनासिब है, दीक्षा पालना सहज नही, कलम आठमी, अगर कोइ जैनमुनि आचार्य उपाध्याय गणीप्रवर्तक वगेरा पदवीके धारक बने तो पहले उनको यह सौच लेना चाहिये मेने उस पदवीके गुण हासिल किये है या नहीं, कलम नवमी, अगर कोइ जैन यतिजी हो तो उनकोभी पंचमहाव्रत पालना चाहिये, जैनशास्त्रोंमें पाठ है, जो शख्श पांच इंद्रियोंको जीते और पंचमहाव्रत पाले उसको जैनयति कहे हैं, तीर्थकर गणधरोंके दरबारसे छुट नही मिली है कि पंचमहाव्रतसे जुदा बरताव करना. यति मुनि साधु संयमी अणगार श्रमण निग्रंथ ये सब मुनिपदके पर्याय नाम है. खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीको याद होगा कि उपर लिखी हुइ नव कलमके वारेमें बातें मेरी और आपके गुरुजीकी मुलाकातके वख्त हुइ थीं, उस वख्त जो यतिजी और श्रावक वगेरा साथ थे, उनसेभी दरयाफ्त किया जाय. . ९ अगर कोइ जैन मुनि या जैनश्वेतांबर श्रावक एसा कहे कि शांतिविजयजी रैल विहार करते है, इस लिये हम उनको नही मानते, तो जवाबमें मालुम हो जिनकी जैसी मरजी हो, वैसा वरताव करे. शांतिविजयजी किसी बातसे नासज नही, शांतिविजयजीको माननेवाले जैन समाजमें बहुत हैं, कोइ न माने तो क्या हुवा ? शांतिविजयजी रैल विहार करते हैं तो भी शहरबशहरमें जहां जैन समाजकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. nararrnama आबादी है. वहां मय बेंडबाजा वगेरा जुलुसके उनकी पेंशवाइ करते हैं, उनका व्याख्यान सुनते हैं, चौमासा ठहरानेकी मिन्नत करते हैं, रैलकिराया देकर आदमीको साथ भैजते हैं. ताजीम करते हैं, और खिदमत करते हैं, इससे ज्यादा और क्या रुतबा होगा. धर्म और प्रीत जोराजोरी नही होती. शास्त्रार्थ और रैल विहारका क्या संबंध है ? जैनशास्त्रों में सम्यक्दर्शन ज्ञान और चारित्र ये तीन गुण काबिल अदबके हैं, जिसमें एतकात सबसे बडा कहा, उत्तराध्ययनसूत्र में एतकात बडा फरमाया, बाद उसके ज्ञान और तीसरे दर्जे चारित्र कहा, अकेला एतकात मुक्ति दे स.कता है, विना एतकात अकेला चारित्र मुक्ति नही दे सकता, और न इस रुहको फायदा पहुचा सकता, ज्ञान सर्व आराधक कहा और क्रिया देश आराधक कही. मगर शर्त यह है, अगर वो एतकातके साथ हो, इसमें कोई खिलाप जैनशास्त्रके लिखा हो, तो अकलमंद लोग इसपर टीका करे में उसका जवाब दूंगा. मेने संवत् (१९३६) में मुल्क पंजाब शहर मलेरकोटमें दीक्षा इख्तियार किड, बीस वर्सतक मुल्क-ब-मुल्क पैदल सफर किया. संवत् (१९५६) में जब मेरा चौमासा शहर लखनउमें हुवा, तीर्थसमेत शिखरजीकी जियारतके लिये जानेकी तयारी किइ-ब-सवारी रैल सफर करना शुरु किया और वही बरताव अबतक जारी है. जैनसमाजमें जो इज्जत मेरी पहले थी, अबभी है, यूं तो तीर्थकर देवोंको भी कई ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ अधिक-मास-दर्पण. लोग तीर्थकर तरीके नही मानते थे, तो आजकल मुजे कोइ जैन मुनितरीके न माने तो कौन ताज्जुबकी बात है ? मानना न मानना अपनी मरजीके ताल्लुक है, शांतिविजयजीको जोजो श्रावक मुनितरीके मानकर वंदन करते हैं, उनको धर्मलाभ देते हैं, जो जो श्रावक नही मानते, और वंदन नही करते, उनको धर्मलाभ नही देते, जैनशास्त्रोंमें जैनमुनिके जो जो गुण और व्रत बयान किये हैं. और इसीतरह श्रावककें भी जो जो गुण व्रत लिखे हैं उसपर बरताव करनेवालोंको जैनमें मुनि और श्रावकतरीके मानना मुनासिब फरमाया. जैनशास्त्रोंका जो कुछ फरमान था, इतनेमें आगया अकलमंद लोग गौर फरमावे. १० आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर सातमें तेहरीर करते हैं, मेरे बनायेहुवे लघु पर्युषणानिर्णयके प्रथम अंकके सब लेखोंका न्यायसे पुरेपुरा उत्तर देनेकी आपमें ताकात नही. यदि होती तो अधिक मासमे सूर्य चार न होवे, वनस्पति न फुले, वगेरा बातोका खुलासा क्यों नहीं दिया? जवाब-अगर अधिकमासमें सूर्य चाल चलता है और वनस्पति फुलती है, इस सबबसे आप अधिकमासको गिनवीमे लेना चाहते हो, तो आपलोग खुद जब दो आषाढ आवे पहले आषाढको चातुर्मासिक व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमे क्यों नही लेते ? दो पौष महिने आवे जब तीर्थकर पार्थनाथमहाराजका जन्म कल्याणिक एक पौषमें करते हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. या दोनोंमे ? अगर एक पौषमें करते हो तो कल्याणिकपर्वकी अपेक्षा एक पौषको आपलोगोंने गिनतीमेसे क्यों छोडा ? अन्यमतके पंचांगके आधारसे जब दो चैत आवे सिद्ध चक्रजीका तप एक चैतमें करते हो, और एक चैतको क्यों छोड देते हो? जब दो वैशाख महिने आवे अक्षयतृतीयापर्व एकमें करते हो या दोनोंमे ? अगर एकमें करते हो तो एक वैशाखको आपलोग गिनतीमेंसे क्यों छोड देते हो? इसका जबाव दीजिये क्या! इन दिनोमें सूर्य चलता नही है ? क्या! वनस्पति फुलती नही हैं? क्या इन महिनोंमे पाप नही लगता ? इसका भी जवाब दीजिये! जवाब देनेकी ताकात किसमें नही है मेरेमें या आपमें ? दुसरेकों कहते हो अधिक महिना गिनतीमें लेना, और आप लेते नही. इसकी क्या -वजह है ? अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महिनेका होता है, और निशीथचूर्णिमें अधिक महिनेको कालचूला कही, कहते हो, मगर जिस बातकी चर्चा चलती है उसके लिये क्या जबाब देते हो? चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमे लेना एसा किस जैनशास्त्रका पाठ है ? पूर्वपक्षमें पाठ देते जाइये और उत्तरपक्षमे मेरेसे पाठ लेते जाइये, जबतक पूर्वपक्षमें पाठ जाहिर न हो तबतक उत्तरपक्षमें पाठ जाहिर करना गैरइन्साफ है बस! यह बात मुद्देकी है, अगर इसको अच्छी तरहसे समज लिइ जाय तो कोई शक पैदा न होगा. में खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीसे पुछता हुं आप अगर अधिक महिना दिनोंकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. गिनतीमे लेनेका पक्ष करते हो तो गयेवर्स दो भादवे मानकर पांच महिनेका चौमासा क्यों माना? और चौमासी प्रतिक्रमण पांचमें महिनेके अंतरेसे क्यों किया? एक महिने पहलेसे चौमासी प्रतिक्रमण करना था. और एक महिने पहलेही चौमासा खतम करके विहार कर देना था, चौमासी प्रतिक्रमण पांचमें महिने किया फिर अधिक महिना गिनतीम लिया कहां सबुत हुवा ? जेसा कहना वेसा बरताव करना चाहिये.. ११ फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने बनायेहुवे लघुपर्युषण निर्णयग्रंथके पृष्ठ (२५) पर इस दलिलको पेश करते हैं, दुसरे आषाड में चौमासी प्रतिक्रमण करनेसे अधिक मास गिनतीमेसे निषेध नही हो सकता. (जवाब) दुसरे आषाढमें चौमासी प्रतिक्रमण करनेसे चातुर्मासिक व्रत नियमकी अपेक्षा आपकेही कथनसे निषेध हो गया, अगर कहाजाय पहेला आषाड ग्रीष्मऋतुमें चला गया तो फिर आपके कहनेसे ग्रीष्मऋतुका चौमासा पांच महिनेका हो गया, और चौमासा चार महिनेका होना चाहिये, आप तो लिखते हो निशीथचूर्णिमें और दशवैकालिकबृहवृत्तिमें अधिकमास दिनोंकी गिनतीमें सिद्ध करके बतलाया है, फिर यहां पहले आषाडको चातुर्मासिक व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमेसे क्यों छोडा? दुसरोंको कहना अधिकमास गिनतीमें लेना चाहिये, और आप उस बातपर अमल नही करना यह भी कोइ इन्साफ है ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. १२ हरेक महिनेके दिन तीस पुरे गिने जाते है, और उसी गिनतीपर धर्मक्रिया किइ जाती है, मगर किसी महिनेमें तीस दिन आते है, किसीमें नहीं आते, वर्सके बारा महिनेमें और चौमासेके चार महिनेमें सब महिनेके पुरे तीस तीस दिन आते नही. और इस आधारसे किसी चौमासेमें (१२०) दिन पुरे हो सकते नही फिर पचासदिन संवत्सरीके पहलेभी नही रह सकेगें. और इसीतरह संवत्सरीके पीछेभी सीतेरदिन नही रह सकेगें पचास और सीतेरदिनका मेल मिलानेके लिये चाहे उनंतीस दिनका मास आवे उसकेभी तीसदिन और कभी पनराहदिनसे कम दिनका पक्ष आवे तोभी उसके पनरांह दिन गिने जाते है, अगर एसा न करे तो पचास और सीतेर दिनका मेल आता नही, • अंन्यमतके पंचांगसे कभी सोलह दिनका पक्ष आजाता है, तो उसकोभी पनरांही दिन गिने जाते है, कभी चौदहदिनका पक्ष आजावे तो उसकोभी पनरांह दिन गिने जाते है, सबुत हुवा कि क्षयतिथि और वृद्धितिथि गिनतीमें नही लिइ जाती. खरतरगछवालेभी इसी सडकपर चलते है, इसीतरह अधिकमहिनाभी गिनतीमें नहीं लिया जाता, यह एक सिद्धि बात है, इस वातकों खयालमें लाना नही और कोरापक्ष पकडना क्या फायदा. १३ अगर चंद्रसंवत्सरपर चलो, तो तीर्थंकर महावीरस्वामीका निर्वाण कार्तिकवदी अमासको हुवा. उस दिन: खातिनक्षत्र था, और दुसरे वर्सके निर्वाणका दिन तीनसो ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अधिक-मास-दर्पण. चोपन दिनसे आयगा, फिर तीनसो साठ दिन वर्सके किस गिनतीसे गिनोगे ? उसके बारेमें खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीके पास किसी जैन आगमका सबुत हो तो पेंश करे. अगर सबुत नहीं है तो-मंजुर करना पडेगा उनंतीस दिनके महिनेकोभी तीस दिनका महिना गिनना पडता है. और (१२०) दिनका एक चौमासा गिनना पडता है. १४ अगर सूर्यसंवत्सरपर चलो तो एक मासकी संक्रांति गिनी जाती है, और सूर्यकी चालका एक महिनेका प्रमाण है. कभी एकतीस दिन आ जाते है, जबभी उसको महिना गिनना पडता है, उस जगहभी खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीको कुबुल करना पडेगा कि महिनेके तीस दिन गिननेका प्रमाण है. इस लिये एकतीस दिनकोंभी तीस दिन गिनते है. तीनसो सवापांसट दिनका एक सूर्यसंवत्सर होता है. उस अपेक्षाभी तीनसो साठ दिन गिननेका नही बन सकता. असलमें सूर्यसंवत्सर और चंद्रसंवत्सरका मेंल मिलानेके लिये बीचमेसें अधिक महिना निकालना पडता है, सबुत हुवा जैसे अधिक दिनकों और कम दिनकों व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमे लेते नही. इसीतरह अधिकमहिनेकोंभी चातुर्मासिक वार्षिक और कल्याणिकपर्वके व्रतनियमकी अपेक्षा गिनतीमें नही लेना, यह एक इन्साफकी बात है, खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी इस बातको खयालमें लेते नही और कह देते है अधिक महिना गिन___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. तीमें लिया है. बस! यही बात समजनेकी है, अगर कोई न समजे उसका क्या किया जाय, अकलमंद लोग इस बातकों समज लेवे और सत्य क्या चीज है, उसका इम्तिहान करे. १५ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपनी बनाइ हुइ लघुपयूषणनिर्णय किताबके पृष्ठ (७) पंक्ति (१२) पर बयान करते है. प्राचीनशास्त्रोंमें दो-चौदसको दो-तेरस बनाना किसी जगह नही लिखा. जवाब-आप लोग दो-चतुर्दशी आवे जब दो चौदस मानते हो या एक ? अगर एक मानते हो तो तपगछवालोंके मंतव्यपर आना पडेगा, अगर दो मानते हो तो फिर जब दो चतुर्दशी आती है, तब दोनों चतुर्दशीके रौज दो दिनके उपवासव्रत क्यों नही करते? और दोनों दिन पाक्षिक प्रतिक्रमण क्यों नही करते ? पाक्षिक प्रतिक्रमण एकही रौज करना, उपवासभी एकही रौज करना, फिर दो चौदस मानी एसा किसप्रमाणसे कह सकते हो? दो-एकादशी तिथि आती है, तो दो-दिन उपवासव्रत क्यों नहीं करते? जब दो पंचमी तिथि आती है तो ज्ञानपंचमीके दो-उपवास क्यों नही करते ? सबुत हुवा आप लोगभी एकपर्व तिथिको व्रतनियमकी अपेक्षा आराधन करते हो दुसरीको नही करते, फिर बात क्या हुइ ? बात यही हुइ जो तपगछवाले मानते है, आपके लघुपर्युषणा निर्णयके पृष्ठ (२५-२६) वगेरा सब मेने देख लिये है. उनमे किसीजगह आपने यह नहीं वतनियरत ? सबुतर तो ज्ञानपंच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. बतलाया कि चातुर्मासिक-वार्षिक और कल्याणिकपर्वकी अपेक्षा गिनतीमे लेना जबतक यह नही बतलासकेगे तबतक आपका कहना कोइ किस इन्साफसे कुबुल करेगा. १६ फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर सातमें तेहरीर करते है, आपका उत्सूत्रप्ररूपणाका और प्रत्यक्ष अयुत वा मिथ्या लेखको पीछा खेंच लिजिये, और मिछामिदुकडं प्रगट किजिये, नही तो सभामें शास्त्रार्थ करनेको तयार हो जाइये. जवाब--इस किताबकी शुरुआतमें लिखीहुइ पहेली दुसरी कलमके मुताबिक दोनों पक्षके संघकी सलाहसे वादी प्रतिवादी सभादक्ष और दंडनायकके जरीये सभा होवे और संघका मेरेपर आमंत्रण आवे तो में सभामें शास्त्रार्थ करनेके लिये अानेको तयार हुँ मेरा कौनसा लेख उत्सूत्रप्ररूपणाका अयुत वा मिथ्या था जैनशास्त्र पाठ देकर बतलाया क्यों नही, इन्साफ कहता है, आप-अपने ऐसे लेखोंको पीछा खेंच लिजिये, और मिछामीदुकडं प्रगट किजिये, उत्सूत्रप्ररूपणा किसकी है, इसपर खयाल किजिये, आप हरवख्त लिखते हो कि अधिकमास गिनतीमें लिया है. फिर आप खुद दो आषाड आवे जब एक आषाडको चातुर्मासिक व्रतकी अपेक्षा क्यों छोड देते हो ? पार्श्वनाथ भगवानके जन्मकल्याणिककी अपेक्षा एक पौषकों क्यों छोडते हो, दो चैत श्रावे जब सिद्धचक्रजीके तपकी अपेक्षा पहले चैतको क्यों छोड देते हो? दो वैशाख आवे जब अखात्रीजपर्वकी अपेक्षा एक ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com खुद दो आयो छोड देते हो क्यों छोडते हो, Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. २१ वैशाखकों क्यौं छोड देते हो? गतवर्षमें अन्यमतके पंचांगके आधारसे दो भादवे मानकर पांच महिनेका चौमासा क्यों माना ? खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी मेरे लेखोंके बारेमे हरवख्त लिख देते है कि आपकी किताब पर्दूषणापर्व शास्त्रकारों के अभिप्रायसे विरुद्ध है. जिनाज्ञाबहार है, और कुयुक्तियोंसे भोलेजीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली है. मगर में पुछता हुं. इन बातोंकी साबीती क्या है? साबीती कर सकते नही, वृथा लिखना, कौन अकलमंद मंजुर करेगा. १७ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर सातमें इसमजमूनकों पेंश करते है कि मानवधर्मसंहिताके पृष्ठ (८००) पर लिखा है अगर अधिकमहिना गिनतीमें लिया जाता हो तो पर्युषणापर्व दूसरे वर्स श्रावणमें और इसीतरह अधिकमहिनोंके हिसाबसे उक्तपर्व हमेशां फिरते हुवे चले जायगे, यह लेखभी उत्सूत्रप्ररूपणारूपी है. क्योंकि जिनेंद्रोने अधिकमहिना आने परभी वारुतुमें प]षणा करना फरमाया है. जवाब-मेरी बनाइ हुइ मानवधर्मसंहिता किताबका लेख उत्सूत्रप्ररूपणारूप नही, क्योंकि अधिकमहिना गिनतीमें लेवे तो पर्युषणापर्व बारह महिनेको कैसे आयगें? तेरह महिनेमे आयगे. आप लोगोंके खयालसे तो बारह महिनेपर आना चाहिये, क्यों कि एकवर्सके चौमासे तीन होते हैं, दरेक चौमासेके चार महिने गिने जाते हैं. और आपके खयालसे एक चौमासेमें पांच महिने आयगें, या तो ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अधिकमास-दर्पण. बारह महिनोंका वर्स कुबुल करो या अभिवर्द्धित संवत्सरका एक महिना गिनतीमेंसें छोडदो, अगर जैनशास्त्रपर चलते हो तो जिनेंद्रोंने फरमाया है मुताबिक जैनज्योतिषके वर्षा ऋतु में अधिकमहिना नही आता. फिर आपने अन्यमतके पंचांगपर चलकर गतवर्समें दो भादवे क्यों माने? जैनशास्त्रपर चलना तो जैनज्योतिषको मंजुर रखना चाहिये, अब उत्सूत्रप्ररूपणा किसकी है? इसपर खयाल किजिये, मेरी बनाइ हुइ मानवधर्मसंहिताका लेख इस बातपर है कि अधिकमहिना वार्षिकपर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नही लेना. १८ फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर आठकी सूचनामें दुसरेको लिखते है, न्यायरत्नजी शांतिविजयजीकी भूलोंका प्रकाश होगया है. बांचने लायक है. जबाब-न्यायरत्न-शांतिविजयजीकी कौन कौनसी भूले थी, शास्त्र सबुतसे पाठ देकर बतलाइ क्यों नही? दुसरेके लेखोंको बिना सबुत पेंश किये भूलवाले कहना. अमूक शख्शकी भूलोंका प्रकाश होगया कहना सहज है, मगर साबीत करके बतलाना सहज नहीं है, जैनशास्त्रके पाठ देकर न्यायरत्नकी भूल साबीत किजिये. . १९ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर छठेमें इस मजमूनकों पेश करते है, अनेक गछोंके अनेक पूर्वाचार्योंने सामायिकमें प्रथम करेमिभंते उच्चारण किये बाद इरियावही करनेका पाठ कहा है, उसShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक मास-दर्पण. २३ .~rmammmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwmmmmmm संबंधी आवश्यक बृहद्वत्ति वगेरा सोलह शास्त्रके प्रमाण विज्ञापन नंबर पांचमें प्रगट किये है. जवाब-अकेला नाम प्रगट करनेसे क्या हुवा ? पाठ तो एकभी शास्त्रका नही दिया, अगर आप कोइ जैनशास्त्रका पाठ जाहिर करेंगे तो मेंभी उसके जबाबमे पाठ जाहिर करुंगा. पूर्वपक्षमें पाठ दिये हो तो उत्तरपक्षमें पाठ देना इन्साफ है. __२० फिर खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर आठमें लिखते है, पंचाशकके पूर्वापर संबंधवाले संपूर्ण सामान्य पाठको छोडकर शास्त्रकार महाराजके अभिप्रायको समजेविना थोडासा अधुरा पाठ भोले जीवोंको दिखलाकर वीरप्रभुके विशेषतासे आगमोक्त छह कल्याणि. कोंका निषेध करना इत्यादि अनेक बातें आपकी दोनों किताबोंमें शास्त्रविरुद्ध भरीहुइ हैं. जवाब-मेरी दोनों किताबोंमें कौन कौनसी बातें जैनशास्त्रके विरुद्ध थी. जैनशास्त्रके पाठ देकर बतलाइ क्यों नही, पंचाशकसूत्रमें तीर्थंकर महावीर स्वामीके पांच कल्याणिक सामान्यतासे कहे है, एसा पाठ जाहिर क्यों नही किया ? पूर्वापरसंबंधवाले संपूर्ण पाठ लिखे क्यों नहीं? मेने अधुरा पाठ दिया था, तो आपने संपूर्णपाठ लिखकर बतलाया क्यौं नहीं कोरी बाते बनादीइ इसको कौन अकलमंद मंजुर करेगा, दुसरी दलिल यह है कि पंचाशकसूत्रका पाठ अगर सामान्यताका होता तो क्या आपके खरतरगछके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अधिक-मास-दर्पण. आचार्य श्रीमान् अभयदेवमूरजी इस बातकों नही जानते थे? अगर कहा जाय जानते थे तो फिर उनोंने अपनी बनाइ हुइ पंचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थंकर महावीरस्वामीके पांच कल्याणिक क्यौं फरमाये? और एसा क्यों नही लिखा कि तेइस तीर्थंकरोंके पांच पांच कल्याणिक है, मगर तीर्थकर महावीरस्वामीके छह कल्याणिक जानना, मगर कैसे लिखे ? जो बात मूलपाठमें न हो वो टीकामें कहांसे लावे? कल्पसूत्र आचारांगसूत्र या स्थानांगसूत्रमें अगर गर्भापहारकों छठा कल्याणिक कहा होता तो प्राचीन टीकाकार छह कल्याणिक जरूर लिखते, श्रीमान् हरिभद्रसूरि और श्रीमान् अभयदेवमूरिभी लिखते, में खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीकों पूछता हूं आपको अपने खरतरगछके आचार्य श्रीमान् अभयदेवसूरजीके वचन प्रमाण है या नही? अगर प्रमाण है तो पांच कल्याणिक मानना मंजुर करो, अगर प्रमाण नही है, तो बजरीये छापेके अपने हस्ताक्षरकी सहीसे जाहिर करो कि मुजको श्रीमान् अभयदेवसूरिजीके वचन प्रमाण नहीं. __ २१ जैनशास्त्रोंमें पंचमीकी संवत्सरी करना कल्पसूत्रके पाठसे ठीक है, और उसी कल्पसूत्रके अंतराविसे कप्पइ इस पाठसे चतुर्थीकी संवत्सरी करनाभी ठीक है, दोंनों पक्षमे कोइ पक्ष जूठा है. एसा कहना नही बन सकता, जैनशास्त्र कल्पसूत्रकी अपेक्षा दोंनों बात ठीक है. अगर कोइ महाशय पंचमी तिथि उलंघनकरके छठके रौज संवत्सरी करे तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ .rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrry अधिक-मास-दर्पण. यह बात बेशक! जैनशास्त्रके विरुद्ध कही जायगी, जैनशास्त्र कल्पमूत्रमें जैन मुनिकों श्वेतकपडे पहनना कहा. और साथमें यहभी फरमाया कि पंचमहाव्रत पालना चाहिये, कालांतरसे जब श्वेतकपडे पहननेवाले जैन मुनियोंमें चारित्रधर्मके बारेमें कुछ शिथिलता प्राप्त हुइ, श्रीयुत सत्यविजयजी महाराजने जैनशास्त्र निशीथसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्रके पाठसे कपडेको रंग देकर पहनना शुरु किया. और पंचमहाव्रत पालनेका क्रिया उद्धार किया, अगर जमाने हालमेंभी कोइ सफेद कपडे पहननेवाले जैन मुनि पंचमहाव्रत पालना मंजूर रखे तो उनको जैन मुनितरीके मानना चाहिये, श्रद्धा ज्ञान और चारित्ररूप गुणसे काम है. जिसमेंभी श्रद्धागुण सबसे अवलदर्जेपर है. अकेले श्रद्धागुणसे मुक्ति हो सकती है, श्रद्धारहित अकेले द्रव्य चारित्रसे मुक्ति नही हो सकती, इसलेखका मतलब यह निकलाकि सफेद या पीलेकपडेसे आत्महित नही गुणसे आत्महित है. २२ अंचल गछनायक श्रीमान् महेंद्रसिंहमूरि विरचित बृहत् शतपदीग्रंथका साररूप भाषांतर जो श्रावक रवजी देवराज कछकोडायवालोने छपवाया है, उसके पृष्ठ (१४९) पर जहां खरतरगछके श्रीमान् जिनवल्लभसूरिजीकी नयी आचरणाका बयान दिया है उसमें लिखा है, "हरिभद्रसूरिये पंचाशकमां पांचज कल्याणिक कह्यां छे, अने अभयदेवमूरिये पण त्यां तेटलांज चर्चा छे. छतां जिनवल्लभसूरिये छटुं कल्याणिक प्ररुप्यु." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ अधिक-मास-दर्पण. देखिये ! इस लेख में तीर्थंकर महावीरस्वामीके पांच कल्याणिक लिखे हैं, पंचाशकसूत्रके मूलपाठमें आचार्य श्रीमान् हरिभद्रमूरिजीभी पांच कल्याणि फरमाते हैं. श्रीमान् अभयदेवसूरिजी जिनको खरतरगछवाले अपने गछमें हुवे बतलाते हैं. वेभी पांचकल्याणिक लिखते है, आचारांगसूत्रकी टीकामें या कल्पसूत्रकी पुरानीटीका जो कि खरतरगछतपगछके निकलेके पहलेकी बनी हुइ हो उनमें किसीमेंभी तीर्थकर महावीरस्वामीके छह कल्याणिक नहीं लिखे अगर लिखे हैं तो कोइ बतलावे. २३ खरतरगछके साधु-साधवी श्रावक-श्राविका प्रतिक्रमणमें उनके गछके जंगमयुगप्रधानश्रीजिनदत्तसूरिजी और . श्रीजिनकुशलमूरिजीके नामसे कायोत्सर्ग करते हैं, मगर इन्साफ कहता है, इनसे बडे जो गौतमस्वामी सुधर्मस्वामी जंबूस्वामी देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण हरिभद्रमूरि सिद्धसेनदिवाकर और हैमचंद्राचार्य वगेरा कइ जैनाचार्य होगये उनका कायोत्सर्ग क्यों नहीं करते ? अगर कहा जाय श्रीमान् जिनदत्तसूरिजीने कइ महाशयोंको धर्मोपदेश देकर जैनधर्मी बनाये हैं तो जवाबमें मालुम हो क्या? दुसरे जैनाचार्यों ने नही बनाये ? उनसे बडेबडे जैनाचार्य होगये जिनोंने जैन संघपर बडा उपकार किया है. श्रीमान् जैनाचार्य रत्नप्रभसूरिजीने ओशियाननगरीमें लाखों जैनश्रावक बनाये उनका कायोत्सर्ग क्यों नहीं करते! जिनोंने जैन संघपर बडा उपकार किया, अगर उनका कायोत्सर्ग नहीं करते और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. अपने खरतरगछके जैनाचार्य श्रीजिनदत्तमूरिजी और श्रीजिनकुशलमूरिजीका करते हो तो यह एक तरहका पक्षपात हुवा सावीत होगा. ___ २४ खरतरगछके दादाजी श्रीजिनदत्तमूरिजी और श्रीजिनकुशलमूरिजीके चरणोंकी छत्रीयें कइ जगह बनी हुइ हैं. कइ श्रावक श्राविका दादाजीके नामसे प्रसाद चढाना बोलते है. और वो बोला हुवा दादाजीका प्रसाद थोडासा उनके चरणों के सामने चढाकर बाकीका श्रावकोंको बांट देते है. इसी तरह नारियल तोडकर थोडासा टुकडा चढाकर बाकीका बांट देते है. जैनशास्त्रोंमें देवद्रव्य गुरुद्रव्य और धर्मद्रव्य आप नही खाना चाहिये. साबीत नारियल या शेर दोशेर पांचशेर मिठाइ जितनी चीजे दादाजीके निमित्त लाये हो वो पुरेपुरी चढा देना चाहिये क्यों कि वो चीज गुरुद्रव्य हो गइ. उसका खाना जाइज नहीं. अगर कहा जाय दादाजी मुक्ति नही पाये हैं. देवलोग गये हैं. उस भावनासे हम मानते हैं. और नैवेद्य (प्रसाद) चढाते हैं तो यह बात जैनशास्त्रसे खिलाफ है, जैनशास्त्रमें धर्मगुरुको धर्मगुरुकी भावनासे मानना कहा. देवलोक गये इस भावसें मानना नही कहा. बल्कि ! दादाजीने मनुष्य भवमें जो सम्यक् दर्शनज्ञान और चारित्र पाला था उस भावनासे धर्मगुरु समजकर मानना कहा. इस लिये जब उसके चरनोंके सामने जाना तब इछामिक्षमाश्रमण कहकर तीन दफे वंदना करना. अभुठीयो अभ्यंतर खामना और जो नैवेद्य यानी गुरुद्रव्य होगापुरी चढा देना चीजे दादाजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ अधिक-मास-दर्पण. प्रसाद लेगये हो वो पुरेपुरा चढा देना, जो जो श्रावक धन दौलत पुत्रपरिवार वगेराके लिये वंदन नमन करते है प्रसाद चढाते है यह ठीक नही. दादाजीको यानी धर्मगुरुको मोक्ष निमित्त मानना चाहिये. संसारके कार्यके नही. खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीके विज्ञापन नंबर नवमेका जवाब और अधिकमासके बारेमें शास्त्रार्थके लिये जाहिर सूचना. १ खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर नवमें लिखते हैं, "न्यायरत्नजी शांतिविजयजी हारगये." __ जवाब-सभा हुइ नहीं, शास्त्रार्थ किया नहीं, फिर हार जितके ठहरावका पास किसने कर दिया, अपने आपसे किसीको हार गये कह देना गेर इन्साफ है, दुनिया जूठ सचके देखनेके लिये एक आइना हैं, जाननेवाले बखूबी जान सकेंगे कि सभा हुइ नहीं, फिर हारजीत कैसे हो सके. २ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर नवमें बयान करते हैं, शास्त्रार्थ आपका और मेरा है, इसमें बंबइके संघको वा आगेवानोंको बीचमें लानेकी जरुरत नहीं.. जवाब-शास्त्रार्थ करना और फिर जैनसंघकी जरुरत नहीं, यह कैसे बन सकेगा, श्रीयुत मुनि मणिसागरजी कहते है, संघकी जरुरत नहीं में कहता हूं, यह चर्चा सब जैनसंघके फायदे की है, कीसी एकके लिये नहीं फिर संघकी जरुरत क्यों नहीं. मेरे खयालसे संघकी निहायत जरुरत है, ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. २९ -rrrrrrrrr ~~ अकेले बेठकर शास्त्रार्थ किया तो संघको क्या फायदा हुवा, अगर संघकी जरुरत नहीं तो फिर विज्ञापन वगेरा लेख किनको दिखलानेके लिये छपवाये जाते है इस लिये वादी प्रतिवादी सभादक्ष दंडनायक और साक्षीके जरीये सभा किइजाय और संघका मेरेपर आमंत्रण आवे तो में सभामें शास्त्रार्थके लिये आनेको तयार हूं, चौमासेके लिये दुसरे शहरकी विनति है. हिंदी आषाढवदी गुजराती जेठवदी त्रयोदसीके रौज दुसरी जगह जाना होगा. ३ सभा होनेपर हारजीत किसकी होती हैं और मरीचि तथा जमालिकी तरह उत्सूत्र प्ररुपणा किसकी है मालुम हो जायगा. जाहिर चर्चाके विषयकी हस्ताक्षरसे लिखी हुइ खासगी चिठीयोंके जवाब देना में गेर इन्साफ समजता हूं, • इसीलिये आपकी रजिष्टरी किइ हुइ चिठीकाभी जवाब मेंने नहीं दिया था ब-जरीये छापेके जो कुछ पुछा होता तो जवाब देता आगे आपने अपने विज्ञापन नंबर नवमें लिखा है ताकात हो तो बंबइकी पुलिसचोकी कोतवालीमें शास्त्रार्थ करनेको आवो. जवाब-कोतवालीमें और पुलिसचोकीमें शास्त्रार्थ करना आप मुनासिब समजते होगे मुजे तो बंबइके जैनसंघकी सलाहसे धर्मस्थानमें पंडितोंकी सभामें शास्त्रार्थ करना मुनासिब दिखाई देता है. ४ मेरी बनाइ हुइ किताब पर्युषण पर्वनिर्णय छपेको आज करीब नव महिने हो गये और दुसरी किताब अधिक___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अधिक-मास-दर्पण. मासनिर्णय छपेको पांच महिने हो गये दोंनो किताबोंके पृष्ठ (५६) हुवे हैं इनके दरेक बयानका पुरे पुरा जवाब दीजिये. एक दो छोटे छोटे विज्ञापन छपवा दिये इससे मेरी किताबका जवाब नहीं हो सकता. ५ मेरी तर्फसे बनी हुइ तीसरी किताब बंबइमें छप रही है, थोडे रौजमें आप लोगोंके सामने आ जायगी, उसकाभी माकुल जवाब दिजिये गा. दुसरी दफे-जाहिर सूचना. १-कलम पहेली,-आम जैनश्वेतांबरसमाजको मालुम होगा, मेने-अधिकमहिनेके वारेमें शास्त्रार्थकरनेके लिये पनरांह रौजकी मुदत देकर एक इस्तिहार छपवाया था, और शहर बंबइमें बांट दिया था, हिंदके बडे बडे शहर में ब-जरीये डाकके रवाना करके मुस्तहेर करवा दिया था, और अखवारे जैनमें उसकी जाहिरातभी देदिइथी, जिससे आम जैन श्वेतांबरसमाजकों मालुम हो गया होगा, अधिकमासके बारेमें सभा हुइ नही, शास्त्रार्थ हुवा नही फिर किसीकी हार जीतका कहना अकलमंदोंके नजदीक गेरमुमकीन है. २-कलम दुसरी,-मेरा कयाम चौमासे भर थानेमे रहेगा, चुनाचे! दुसरे दो-शहरोंके श्रावकोंकी आर्जू थी मगर मेने यहां थानेमेंही वारीश गुजारना मुकरर किया है, दुसरा सबब-थानेके जैन श्वेतांबरश्रावकोंका इरादा है कि-यहां-जोथाने में पुराना जैनतीर्थ जमाने श्रीपालजीके था, वो जमीनदोस्त हो गया, उसका फिर उद्धार कराना, इसलियेभी मेरा कयाम यहां रहेगा, जो जो सवाल तपगछ-खरतर गछके बारेमें मेरे नजदीक पेश होगें,-में-उनका माकुल जबाब देता रहूं गा. ३-कलम तीसरी,-आगे खरतर गछके मुनि-मणिसागरजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. अपने इस्तिहार नंबर दसमें बयान करते है, आप बंबइमें हरवख्त आते जाते है, फिर शास्त्रार्थके लिये खडे क्यों नहीं होते, जबाबमें मालुम हो, वादी-प्रतिवादी-सभादक्ष-दंडनायक और साक्षीके जरीये दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे अगर सभा होवे, और संघका मेरेपर वुलाना आवे तो-में-शास्त्रार्थके लिये आनेकों खडा हुं, और यह बात मेने अवलके इस्तिहारमेंभी जाहिर कर दिइ है, फिर शास्त्रार्थके लिये खडे क्यों नही होते एसा कहना किसीको लाजिम नही, मुताबिक मेरी सूचनाके अगर सभा किइ जाय और-में-उसमें हाजिर-न-हुं-तो मुजे आप लोग कुछ कह सकते हो, यूं-तो चश्मोंकी तलाशीके लिये डोकतरकी मुलाकात लेनेको और-जो-पुस्तक छपता है, उसके गुफ देखनेको मेरा आना बंबइमें होता रहेता है, मगर वो काम करके शामकों वापीस थाने लोट पाता हूं. ४-कलम चोथी-फिर खरतर गछके मुनि-मणिसागरजी अपने 'इस्तिहार नंबर दसमें तेहरीर करते है, सभा करनेका मंजुर किये विना किसीके लंबे चोडे लेखका जबाब नही दिया जायगा. • जबाब-यह लेख जाहिर करता है, जबाब देनेवाले अब जबाब देनेसे इनकार करते हैं, में-पुछता हुं ! इतने ही से क्यों थक गये. . कलम-५-६-७-८ इस लिये नही लिखी कि-इसका मजमून इस किताबमें और अलग छपे हुवे इस्तिहारमें आगया है. ९-कलम नवमी-फिर खरतर गछके मुनि मणिसागरजी अपने इस्तिहार नंबर दसमे तेहरीर करतेहै, यह विवाद साधुओंका है, (जबाब) अकेले साधुओंका नही,बल्कि! सब जैनसमाजका है, और यह चर्चा सब जैनसंघके फायदेकी है, इसीलिये कहा जाता है-सभा करना, सब जैनसंघका काम है, कोई अकेला कहे कि-में-सभा करुं तो यह बात नही हो सकती, जब गये बर्स पौष महिनेमें मेरी और मणिसागरजीकी मुलाकात दादरमें हुइ थी,-दुसरी दफे वालकेश्वरमेंभी मीलें थे, मेने वही बात कही थी, जो उपर लिख चुका हूं. ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिक-मास-दर्पण. १०-कलम दसमी, मेने जो खरतर गछ समीक्षा किताब बनाइ है, उसकी जाहिर खबर अधिकमास निर्णय किताबमें छपी हुइ है, आपने पढी होगी, उसमें खरतर गछवालोंकी तर्फसे बनी हुइ किताब प्रश्नोत्तर विचार-हर्षहृदयदर्पण-और प्रश्नोत्तरमंजरीका जवाब दर्ज कर दिया है! आप जो बृहत्पर्युषण निर्णयग्रंथ बनाते थे, उसका क्या हुवा? कइ वर्स हो गये, अबतक जाहिर क्यों नही किया? जब आपका मजकुरग्रंथ जाहिर होगा, फोरन ? मेरा बनाया हुवा, खरतर गछसमीक्षा छपकर जाहिर हो जायगा आप ऐसा हर्गिज-न-समजे तप गछके मंतव्यपर कोइ आक्षेप करे और शांतिविजयजी उसका जबाब-न-देवे. ११-कलम ग्यारहमी-आप मेरी दोनों किताबोंकी एक भी भूल बतला सके नही, बारां तेरां भूले बतलाना तो दुर रहा, आपके विज्ञापन नंबर सातमेंका जबाब मेरी तीसरी किताबमें छप रहाहै, मेरी दोनों किताबोंके दरेक बयानका पुरा जबाब आप देते नहीं, सभामें देयगे ऐसा कहकर बातको लंबाते हो, मगर इन्साफ कहता है, जबाब भी दिजिये, और सभा होवे जब शास्त्रार्थभी किजिये सभा होगी तब जबाब देयगे, एसा कहकर जबाब-न देना ठीक नही. १२-कलम बारहमी-फिर खरतर गछके मुनि मणिसागरजी अपने इस्तिहार नंबर दसमे इस मजमूनको पेश करते है, कि आपकी दोनों किताबोंमें जैसी उत्सूत्रता भरी हुई है, वेसी तीसरी किताबमें भी भरी होगी. जबाब-कुछ शास्त्र सवुत दे सकते हो-या-कोरी बातें ही बातें है ! शास्त्र सबुत देना नही, और दूसरेके लेखको कहदेना उत्सूत्र प्ररूपणा हैं यह कौन अकलमंद मंजुर करेगा? इन्साफ कहता हैं, शास्त्र सवुत देकर जबाब दिया करो. १३-कलम तेहरमी-अब-में-यहां थाने में चौमासेतक मुकीम हूं, वा-कायदा सभाके जरीये सभा करना-या-ब-जरीये छापेके सवाल जबाब करते रहना दोनोंमें से किसीतरह मेरा इनकार नही, चाहे जिसतरह पेश आइ ये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहिरखबर. Hoeseseneseseoeoeoeoesebeseseoeoeoeoeoeoeoesem खरतरगछसमीक्षाग्रंथ. __ मजकुर ग्रंथ मेरी तर्फसे बनरहा है, इसमें छह कल्याणिकके लिये माकुल जवाब दर्ज है, जैनशास्त्रोंमें 5 हरेक तीर्थंकरोंके पांच कल्याणिक होते हैं, नवांगसूत्र'वृत्तिकार श्रीमान् अभयदेवमूरिजीनें पांचाशकसूत्रकी टीकामें तीर्थकर महावीरस्वामीके पांचकल्याणिक फर• माये है. जिस साल अधिकमहिना आवे तो उसको 8 चातुर्मासिक, वार्षिक और कल्याणिकपर्वकी अपेक्षा गिनतीमें नहीं लेना. यह बात जैनशास्त्रके पाठसे 2 साबीत कर दिइ है. सामायिक लेतेवख्त इपिथिका छ पाठ पहिले और करेमिभंतेका पाठ पीछे बोलना, मुताबिक जैनशास्त्रोंके फरमानसे सिद्ध कर दिया है, जैन मुनिको व्याख्यानके वख्त या तमामदिन मुखपर मुखवस्त्रिका बांधना किसी जैनशास्त्रमें नही लिखा. 9 इस बातकोभी इसमें तेहरीर किइ है. दादाजीके सामने नैवेद्य चढाया हूवा, गुरुद्रव्य होगया. और गुरुद्रव्य नही खाना चाहिये, इसकाभी खुलासा इसमें दिया है. खरतरगछके श्रीजिनप्रभसूरिजीने अपने बनाये हुवे ग्रंथमें तपगछके बारेमें जो कुछ लिखा है, उसका % जवाब इसमें दर्ज किया है, किताव रत्नसागर मोहन% गुणमालामें खरतरगछके उपाध्याय श्रीमोहनलालजीने जो तपगछ खरतरगछके. बारेमें लिखान किया है Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 उसका जवाब भी इसमें सामील है, किताब स्याद्वादअनु- भवरत्नाकरमें खरतरगछके मुनि श्रीयुत चिदानंदजीने डू * गछादिव्यवस्था निर्णयमें जो कुछ लिखा है, उसका * जवान भी इसमें रोशन है, किताब महाजन वंशमुक्ता वलीमें ग्रंथकर्ताने जो कुछ मजमून गछके संबंधों पेंशन किया है, उसका जवाबभी इसमें तेहरीर है, किताब प्रश्नोत्तर मंजरीमें और प्रश्नोत्तर विचारमें खरतरगछके पंन्यास श्रीकेशरमुनिजी गणीने तपगछ खरतरगछके • बारेमें जो कुछ लेख लिखा है उसका जवाब भी इसमें * मौजूद है. जिसको पढकर जिज्ञासु लोग खुश होंगे. 6 इतना लेख हाल तयार है, खरतरगछके मुनि श्रीयुत * मणिसागरजीका बनाया हुवा, बृहत्पयूषण निर्णयग्रंथ ) जब मुजकों मीलेगा, उसको देखकर उसका जवाबभी , इसमें जोड दिया जायगा, इस किताबमें कोइ अपशब्द नही लिखा है. जैनशास्त्रोके पाठ और दाखले दलि लोंसे जबाव लिखा गया है. जो कोइ जैन श्वेतांबर - श्रावक इस ग्रंथको अपने खर्चसे छपवाना. नाहे तो & उनका नाम प्रकाशकतरीके लिखा जायगा, अगर कोइ कहे ग्रंथका मेटर हमको भेजो देखकर लिखेगे. तो छ जवाबमें मालुम हो मेटर किसको भेजा नहीं जायगा. जिसकी मरजी हो रुबरु अानकर देखजावे. और खर्चा पेश करे. उनका नाम प्रकाशकतरीके लिखा जायगा. ब-कलम-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा, विद्यासागर न्यायरत्न मुनिशांतिविजयजी, मुकाम थाणा, मुल्क कोकन.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ શ્રી યશોટ .વજયજી ભાવનગ૨ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com