________________
NHA
अधिक-मास-दर्पण. जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर स्वासरदर महाराज शांतिविजयजी तसं काम
थाना-कोकन
दोहा. नमुं देव अरिहंतको, गुरु नमुं निथू । स्याद्वादवानी नमुं, यही मुक्तिका पंथ । सुनकर वानी जैनकी, क्यों न धरे मनधीर ।
धर्मविना इस जीवकी, कौन हरे भवपीर ॥ २ ॥ १ इस किताबके तयार करनेका सबब यह है कि-खरतर गछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीने बंबइसे विज्ञापन नंबर सातमा-अपने हस्ताक्षरकी सहीसे लिखकर प्रकाशक हिरालालजीके नामसे जाहिर किया है. उसमे लिखा है. शांतिविजयजी सावधान ! शास्त्रार्थके लिये-जल्दी तयार हो.
जबाब-शांतिविजयजी हमेशां सावधान है. जभी तो आपके लेखोंपर-पर्युषणपर्वनिर्णय-और-अधिकमासनिर्णयकितावें बनाकर बजरीये प्रकाशकके जाहिर करवाइ है.
आप उन दोनों किताबोंके दरेक बयानपर पुरेपुरा जबाब दीजिये ! एक छोटासा विज्ञापन नंबर सातमा लिखकर
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com