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अधिक-मास-दर्पण. www.www.www.wwwxxmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwer
देखिये ! जैनमुनिको एकदफे आहार खाना कहा, इसपर अगर कहा जाय शरीरकी स्थिति पहले जैसी नही रही, इस लिये दिनमे दोदफे आहार खाना पडता है, और सवेरे चाहदुधका सहारा लेना पडता है, तो सबुत हुवा इरादे शरीरस्थितिके आजकल शिथिलमार्ग इख्तियार करना पड़ता है. जैनशास्त्र में जैनमुनिको दिनमें नींदलेना नही कहा. क्षुधा तृषा वगेरा बाइस परिसह सहन करना कहा. और शरीरपर ममत्वभावका त्याग करना फरमाया, चाहे कोइ जैनमुनि हो साधवी हो श्रावक हो या श्राविका हो जबजब उपवासव्रत करे तो पहले रौज एकाशना करे और पारनेके रौजभी एकाशना करे आजकल एसा बरताव बहुत थोडे शख्श करते होंगे एसा बरताव करे नही और अपने आपको उत्सर्ग . मार्गपर चलनेवाले बोले तो इस बातको जैनशास्त्र कबुल नही करते. कलम छठी जैनशास्त्रोंमें योग उपधान वहन करना उसका नाम है, जिस जैनशास्त्रका योग वहना हो, उस जैनशास्त्रको मय अर्थके कंठाग्र करे, और श्रावकको जिस जिस सामायिक प्रतिक्रमणके विभागका उपधान वहना हो, उस उस विभागको मय अर्थके कंठाग्र करे. कोरा तप करनेसे योग उपधान हो गया समजना गलत है. ___ कलम सातमी-जैनशास्त्रों में लिखा है, जैनमुनि किसीके लडकेको विना हुक्म उसके वारीशोंके दीक्षा न देवे, अगर कोइ शख्श दीक्षा लेनेका इरादा बतलावे तो जैनमुनि उसके
मातापिता वगेरा रिस्तेदारोंको खबर देवे, उनके रिस्तेदार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com