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अधिक-मास-दर्पण.
अगर रुबरु मिलकर जैनमुनिको आज्ञा देवे तो उसको दीक्षा देना मुनासिब है, दीक्षा पालना सहज नही, कलम आठमी, अगर कोइ जैनमुनि आचार्य उपाध्याय गणीप्रवर्तक वगेरा पदवीके धारक बने तो पहले उनको यह सौच लेना चाहिये मेने उस पदवीके गुण हासिल किये है या नहीं, कलम नवमी, अगर कोइ जैन यतिजी हो तो उनकोभी पंचमहाव्रत पालना चाहिये, जैनशास्त्रोंमें पाठ है, जो शख्श पांच इंद्रियोंको जीते और पंचमहाव्रत पाले उसको जैनयति कहे हैं, तीर्थकर गणधरोंके दरबारसे छुट नही मिली है कि पंचमहाव्रतसे जुदा बरताव करना. यति मुनि साधु संयमी अणगार श्रमण निग्रंथ ये सब मुनिपदके पर्याय नाम है.
खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीको याद होगा कि उपर लिखी हुइ नव कलमके वारेमें बातें मेरी और आपके गुरुजीकी मुलाकातके वख्त हुइ थीं, उस वख्त जो यतिजी और श्रावक वगेरा साथ थे, उनसेभी दरयाफ्त किया जाय.
. ९ अगर कोइ जैन मुनि या जैनश्वेतांबर श्रावक एसा कहे कि शांतिविजयजी रैल विहार करते है, इस लिये हम उनको नही मानते, तो जवाबमें मालुम हो जिनकी जैसी मरजी हो, वैसा वरताव करे. शांतिविजयजी किसी बातसे नासज नही, शांतिविजयजीको माननेवाले जैन समाजमें बहुत हैं, कोइ न माने तो क्या हुवा ? शांतिविजयजी रैल विहार करते हैं तो भी शहरबशहरमें जहां जैन समाजकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com