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अधिक-मास-दर्पण.
nararrnama
आबादी है. वहां मय बेंडबाजा वगेरा जुलुसके उनकी पेंशवाइ करते हैं, उनका व्याख्यान सुनते हैं, चौमासा ठहरानेकी मिन्नत करते हैं, रैलकिराया देकर आदमीको साथ भैजते हैं. ताजीम करते हैं, और खिदमत करते हैं, इससे ज्यादा और क्या रुतबा होगा. धर्म और प्रीत जोराजोरी नही होती. शास्त्रार्थ और रैल विहारका क्या संबंध है ? जैनशास्त्रों में सम्यक्दर्शन ज्ञान और चारित्र ये तीन गुण काबिल अदबके हैं, जिसमें एतकात सबसे बडा कहा, उत्तराध्ययनसूत्र में एतकात बडा फरमाया, बाद उसके ज्ञान
और तीसरे दर्जे चारित्र कहा, अकेला एतकात मुक्ति दे स.कता है, विना एतकात अकेला चारित्र मुक्ति नही दे सकता,
और न इस रुहको फायदा पहुचा सकता, ज्ञान सर्व आराधक कहा और क्रिया देश आराधक कही. मगर शर्त यह है, अगर वो एतकातके साथ हो, इसमें कोई खिलाप जैनशास्त्रके लिखा हो, तो अकलमंद लोग इसपर टीका करे में उसका जवाब दूंगा.
मेने संवत् (१९३६) में मुल्क पंजाब शहर मलेरकोटमें दीक्षा इख्तियार किड, बीस वर्सतक मुल्क-ब-मुल्क पैदल सफर किया. संवत् (१९५६) में जब मेरा चौमासा शहर लखनउमें हुवा, तीर्थसमेत शिखरजीकी जियारतके लिये जानेकी तयारी किइ-ब-सवारी रैल सफर करना शुरु किया
और वही बरताव अबतक जारी है. जैनसमाजमें जो इज्जत
मेरी पहले थी, अबभी है, यूं तो तीर्थकर देवोंको भी कई ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com