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अधिक-मास-दर्पण. अमरचंदजीके बंगलेमें ठहराथा, बंबइ वालकेश्वरसे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजीने एक आदमीके साथ मेरेपास एक चीठी लिखकर भेजी थी, उसमे लिखा था, मेने आपका आना दादरमें सुना है, इसमें आपकों में सूचना देता हूं कि-आपने पर्युषणपर्वनिर्णय-और अधिकमासनिर्णय दोनों पुस्तकोंमें बहुत जगह शास्त्रविरुद्ध होकर उत्सूत्रप्ररूपणारूप लिखा है, शास्त्रार्थ किये विना चले जाओगे तो जूठे समजे जाओगे.
जवाब-विना शास्त्रसबुत मेरे लेखको शास्त्रविरुद्ध कहदेना कौन अकलमंद मंजूर करेंगे? मेरी किताबके दरेक • बयानको लिखकर जैनशास्त्रोंके पाठसे पुरेपुरा जबाब दीजिये,
विना जबाब दिये एसा कह देना मुनासिब नही. शास्त्रार्थके •लिये सभाकातरीका इस किताबकी शुरुवातमें पहेली
दूसरी कलममें लिख दिया है उसको पढ़ लीजिये.. यह चर्चा जैनश्वेतांबरसंघके फायदेकी है. किसी एकके घरकी नही, दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे सभा होना चाहिये, संघका आमंत्रण मेरेपर आवे तो-तपगछवालोंकी तर्फसे अधिकमासके बारेमें शास्त्रार्थके लिये आनेको-में-तयार हूं: जाहिर चर्चाके विषयकी हस्ताक्षरसे लिखी हुइ खासगी चिठीका जवाब देना-में-गेरइन्साफ समजता हुँ, मेने उस चीठीका जवाब नही दिया. दुसरे रौज आप दादर मुकामपर आये, और शेठ-हेमचंदजी अमरचंदजीके बंगलेमें मुझको
रुबरु मिले, उसवख्त आपके साथ-श्रीयुत लब्धिमुनिजी ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com