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अधिक-मास-दर्पण.
देखिये ! इस लेख में तीर्थंकर महावीरस्वामीके पांच कल्याणिक लिखे हैं, पंचाशकसूत्रके मूलपाठमें आचार्य श्रीमान् हरिभद्रमूरिजीभी पांच कल्याणि फरमाते हैं. श्रीमान् अभयदेवसूरिजी जिनको खरतरगछवाले अपने गछमें हुवे बतलाते हैं. वेभी पांचकल्याणिक लिखते है, आचारांगसूत्रकी टीकामें या कल्पसूत्रकी पुरानीटीका जो कि खरतरगछतपगछके निकलेके पहलेकी बनी हुइ हो उनमें किसीमेंभी तीर्थकर महावीरस्वामीके छह कल्याणिक नहीं लिखे अगर लिखे हैं तो कोइ बतलावे.
२३ खरतरगछके साधु-साधवी श्रावक-श्राविका प्रतिक्रमणमें उनके गछके जंगमयुगप्रधानश्रीजिनदत्तसूरिजी और . श्रीजिनकुशलमूरिजीके नामसे कायोत्सर्ग करते हैं, मगर इन्साफ कहता है, इनसे बडे जो गौतमस्वामी सुधर्मस्वामी जंबूस्वामी देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण हरिभद्रमूरि सिद्धसेनदिवाकर और हैमचंद्राचार्य वगेरा कइ जैनाचार्य होगये उनका कायोत्सर्ग क्यों नहीं करते ? अगर कहा जाय श्रीमान् जिनदत्तसूरिजीने कइ महाशयोंको धर्मोपदेश देकर जैनधर्मी बनाये हैं तो जवाबमें मालुम हो क्या? दुसरे जैनाचार्यों ने नही बनाये ? उनसे बडेबडे जैनाचार्य होगये जिनोंने जैन संघपर बडा उपकार किया है. श्रीमान् जैनाचार्य रत्नप्रभसूरिजीने ओशियाननगरीमें लाखों जैनश्रावक बनाये उनका कायोत्सर्ग क्यों नहीं करते! जिनोंने जैन संघपर बडा उपकार किया, अगर उनका कायोत्सर्ग नहीं करते और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com