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अधिक-मास-दर्पण.
अपने इस्तिहार नंबर दसमें बयान करते है, आप बंबइमें हरवख्त आते जाते है, फिर शास्त्रार्थके लिये खडे क्यों नहीं होते, जबाबमें मालुम हो, वादी-प्रतिवादी-सभादक्ष-दंडनायक और साक्षीके जरीये दोनोंपक्षके संघकी सलाहसे अगर सभा होवे, और संघका मेरेपर वुलाना आवे तो-में-शास्त्रार्थके लिये आनेकों खडा हुं, और यह बात मेने अवलके इस्तिहारमेंभी जाहिर कर दिइ है, फिर शास्त्रार्थके लिये खडे क्यों नही होते एसा कहना किसीको लाजिम नही, मुताबिक मेरी सूचनाके अगर सभा किइ जाय और-में-उसमें हाजिर-न-हुं-तो मुजे आप लोग कुछ कह सकते हो, यूं-तो चश्मोंकी तलाशीके लिये डोकतरकी मुलाकात लेनेको
और-जो-पुस्तक छपता है, उसके गुफ देखनेको मेरा आना बंबइमें होता रहेता है, मगर वो काम करके शामकों वापीस थाने लोट पाता हूं.
४-कलम चोथी-फिर खरतर गछके मुनि-मणिसागरजी अपने 'इस्तिहार नंबर दसमें तेहरीर करते है, सभा करनेका मंजुर किये विना किसीके लंबे चोडे लेखका जबाब नही दिया जायगा. • जबाब-यह लेख जाहिर करता है, जबाब देनेवाले अब जबाब देनेसे इनकार करते हैं, में-पुछता हुं ! इतने ही से क्यों थक गये. .
कलम-५-६-७-८ इस लिये नही लिखी कि-इसका मजमून इस किताबमें और अलग छपे हुवे इस्तिहारमें आगया है.
९-कलम नवमी-फिर खरतर गछके मुनि मणिसागरजी अपने इस्तिहार नंबर दसमे तेहरीर करतेहै, यह विवाद साधुओंका है, (जबाब) अकेले साधुओंका नही,बल्कि! सब जैनसमाजका है, और यह चर्चा सब जैनसंघके फायदेकी है, इसीलिये कहा जाता है-सभा करना, सब जैनसंघका काम है, कोई अकेला कहे कि-में-सभा करुं तो यह बात नही हो सकती, जब गये बर्स पौष महिनेमें मेरी और मणिसागरजीकी मुलाकात दादरमें हुइ थी,-दुसरी दफे वालकेश्वरमेंभी मीलें थे, मेने वही
बात कही थी, जो उपर लिख चुका हूं. ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com