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अधिक-मास-दर्पण.
२१ वैशाखकों क्यौं छोड देते हो? गतवर्षमें अन्यमतके पंचांगके
आधारसे दो भादवे मानकर पांच महिनेका चौमासा क्यों माना ? खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी मेरे लेखोंके बारेमे हरवख्त लिख देते है कि आपकी किताब पर्दूषणापर्व शास्त्रकारों के अभिप्रायसे विरुद्ध है. जिनाज्ञाबहार है, और कुयुक्तियोंसे भोलेजीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली है. मगर में पुछता हुं. इन बातोंकी साबीती क्या है? साबीती कर सकते नही, वृथा लिखना, कौन अकलमंद मंजुर करेगा.
१७ आगे खरतरगछके मुनि श्रीयुत मणिसागरजी अपने विज्ञापन नंबर सातमें इसमजमूनकों पेंश करते है कि मानवधर्मसंहिताके पृष्ठ (८००) पर लिखा है अगर अधिकमहिना गिनतीमें लिया जाता हो तो पर्युषणापर्व दूसरे वर्स श्रावणमें और इसीतरह अधिकमहिनोंके हिसाबसे उक्तपर्व हमेशां फिरते हुवे चले जायगे, यह लेखभी उत्सूत्रप्ररूपणारूपी है. क्योंकि जिनेंद्रोने अधिकमहिना आने परभी वारुतुमें प]षणा करना फरमाया है.
जवाब-मेरी बनाइ हुइ मानवधर्मसंहिता किताबका लेख उत्सूत्रप्ररूपणारूप नही, क्योंकि अधिकमहिना गिनतीमें लेवे तो पर्युषणापर्व बारह महिनेको कैसे आयगें? तेरह महिनेमे आयगे. आप लोगोंके खयालसे तो बारह महिनेपर आना चाहिये, क्यों कि एकवर्सके चौमासे तीन होते हैं, दरेक चौमासेके चार महिने गिने जाते हैं. और
आपके खयालसे एक चौमासेमें पांच महिने आयगें, या तो ___Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com